Apr ११, २०१६ १३:२९ Asia/Kolkata

अगर आप एक प्रतिभाशाली ईरानी महिला श्रीमती शुजाई की जीवनी का अध्ययन करें और उनके अध्ययन व शोध के कार्यों और ज्ञान, कला और संस्कृति के क्षेत्र में उन्हें मिलने वाली डिग्रियों पर नज़र डालें तो इस ईरानी महिला को देखने के लिए आतुर हो जायेंगे।

 १३८४ हिजरी शमसी बराबर २००५ में ईरान और रूस की नैनो टेक्नालोजी की एक संयुक्त कांफ्रेन्स हुई थी जिसमें श्रीमती शुजाई के पहले लेख को स्वीकार किया गया था और उनका परिचय नैनो रोबोटिक के क्षेत्र में ईरान के युवा वैज्ञानिक के रूप में किया गया। १३७७ हिजरी शम्सी से लेकर अब तक इस कुर्दी ईरानी महिला ने लगभग ५० शोधकार्य किये हैं, शिक्षा के क्षेत्र में १७ और संस्कृति नवासी व कला के मैदान में १६ डिग्रियां प्राप्त की हैं। इसी प्रकार १३८९ हिजरी शमसी में रूस में नैनो के क्षेत्र में एक कांफ्रेस आयोजित हुई थी जिसमें इस ईरानी महिला के लेख को चुना गया था और उन्हें जवान शोधकर्ताओं की दूसरी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में डिप्लोमा की डिग्री से सम्मानित किया गया।

 

इसी प्रकार “युवा खारज़्मी फेस्टिवल” “युवा आविष्कारक फेस्टिवल” और इसी प्रकार विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेन्सों में नैनो तकनीक के संबंध में उनके लेखों का चयन किया गया। जो कुछ बयान किया गया वह इस इंजीनियर ईरानी महिला के अध्ययनों, शोधों और कारमानों का मात्र एक भाग है। उन्होंने युवावस्था में ही अपनी योग्यताओं व क्षमताओं को पहचान लिया और अपने उद्देश्य तक पहुंचने के लिए प्रयास व परिश्रम किया।

जवानी क्षमताओं व योग्यताओं के विकास और निखरने का समय है और इंसान की रूचियों व रूझानों का प्रतिफल सामने आने लगता है और जवान अपने भविष्य के मार्ग का आरंभ कर देता है। यह भविष्य परिपूर्णता व कल्याण की ओर होता है या ग़लत व दुर्भाग्य की ओर और इस मार्ग में वही जवान सफल है जो परिपूर्णता एवं कल्याण की ओर जाता है।

 

 

दिग्भ्रमिता के कारकों और उसके मार्ग की पहचान के बिना सफलता प्राप्त करना संभव नहीं है और निश्चित रूप से वह जवान विफल होगा जो इस मार्ग में क़दम रखे और अपनी क्षमताओं व योग्यताओं से अवगत न हो और इसी तरह वह अपने सकारात्मक व नकारात्मक बिन्दुओं से अवगत न हो। जो जवान इस प्रकार की जानकारियों के बिना आगे बढ़ेगा वह उस ड्राइवर की भांति है जो गाड़ी पर सवार है और उससे बहुत दूर जाना चाहता है परंतु उसे गाड़ी की संभावना और उसके कल पुर्जों के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है तो इस प्रकार का ड्राइवर अपने गतंव्य तक पहुंचेगा ही नहीं। हां अगर कोई ड्राइवर अपने गतंव्य तक पहुंच जाता है तो ज़मीन पर होने वाले हज़ारों संयोगों में से एक होगा।

इसी प्रकार जो जवान अपनी योग्यताओं व क्षमताओं को न पहचाने और उनसे अवगत न हो तो वह अपने जीवन में विफल होगा और उस पराजय का कारण बनेगा जिसका परिणाम जीवन की सबसे मूल्यवान पूंजी यानी उम्र की समाप्ति होगी। अतः हर व्यक्ति पर अनिवार्य है कि वह स्वयं को पहचाने ताकि अपने जीवन में सफल हो सके।

 

 

आत्मबोध, आत्मा के अंदर का सफर है और जवान दूसरों से अधिक स्वयं इस यात्रा के प्रति रुझहान रखते हैं। आत्मबोध में बहुत सी चीज़ें व आकर्षण निहित हैं। आत्मबोध से इंसान अपने अंदर निहित सकारात्मक व नकारात्मक बिन्दुओं से अवगत होता है और उनमें से हर एक जवानों को प्रेरित व उत्सुक बनाने के लिए काफी है।

आत्मबोध, आत्म निर्माण एवं विकास की भूमिका है। क्योंकि जवान स्वयं को पहचान कर विकास एवं प्रगति की भूमि प्रशस्त करता है। क्योंकि जिन्होंने स्वयं को पहचान लिया है वे विकास व उन्नति के चरणों को तय कर सकते हैं। आत्मबोध, महान ईश्वर की पहचान की भूमिका है और हज़रत अली अलैहिस्सलाम का भी यही कहना है कि जो स्वयं को पहचान ले वह अपने ईश्वर को पहचान लेगा।

यहां प्रश्न यह है कि जवान किस प्रकार इस पहचान को प्राप्त कर सकता है?

 

 

दर्शनशास्त्रियों का कहना है कि पहचान का एक तरीक़ा अनुभव है और इस ब्रह्मांड में बहुत से शैक्षिक व वैज्ञानिक मामलों और वास्तविकताओं को अनुभव का लाभ उठाकर पहचाना जा सकता है। उदाहरण स्वरूप अगर हम आग के गर्म होने का पता लगाना चाहते हैं तो आग के निकट हाथ करके पता लगा सकते हैं कि आग गर्म होती है। प्रतीत यह होता है कि जवान अपनी कुछ योग्यताओं, क्षमताओं और नैतिक विशेषताओं को अनुभवों द्वारा प्राप्त कर सकता है। उदाहरण स्वरूप एक जवान अच्छा लिपिकार बनना चाहता है तो कई दिन के अच्छे अभ्यास के बाद वह समझ जाता है कि वह अच्छी लिपी में लिख सकता है और इस दिशा में वह प्रगति कर सकता है और वह अपनी इस आंतरिक क्षमता को मज़बूत करके एक सफल लिपिकार बन सकता है।

 

अनुभव के अलावा इंसान की बुद्धि भी एक चीज़ है जिसके द्वारा इंसान अपने आपको पहचान सकता है। जो जवान अपने कार्यों में सोचता है वह बहुत अधिक परिणामों को प्राप्त करता है और इसके अतिरिक्त वह अधिक बेहतर ढंग से स्वयं को पहचान सकता है। यह पहचान बहुत सी गतिविधियों के लिए इंसान के अंदर भूमि प्रशस्त करती है। जो जवान अपनी जवानी में सोच -विचार से काम लेता है वह बहुत से अप्रिय व अर्थहीन कार्यों से दूरी करता है और यह माता-पिता, स्कूल और समाज का दायित्व है कि वे जवानों को बतायें कि वे किस प्रकार सोचें और अपनी सोच से लाभ उठायें।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जो इंसान गाड़ी बनाता है वह दूसरों की अपेक्षा गाड़ी की विशेषताओं से अच्छे ढंग से अवगत होता है और वह दूसरों से अधिक बेहतर ढंग से गाड़ी से लाभ उठा सकता है। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने इंसान को पैदा किया है और उससे बेहतर ढंग से कौन इंसान की समस्त विशेषताओं से अवगत हो सकता है? बचपना,जवानी और बुढ़ापे की बहुत सी विशेषताएं एक दूसरे से भिन्न होती हैं। आसमान और ज़मीन की रचना करने वाले महान ईश्वर ने इंसान का आह्वान किया है कि वह सोच- विचार करे विशेषकर स्वयं के बारे में सोचे महान व कृपालु ईश्वर ने सही मार्ग की ओर इंसान के दिशा- निर्देशन के लिए वहि के रूप में पवित्र कुरआन को उतारा है। वास्तव में इंसान की बुद्धि और ईश्वरीय संदेश पहचान के दो सबसे बड़े व महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

 

 

अगर जवान स्वयं को पहचान जाये और अपने अंदर नीहित योग्यताओं व क्षमताओं से अवगत हो जाये तो उसका मनोबल ऊंचा हो जायेगा और वह विकास व उन्नति के मार्ग में प्रयास करेगा और उसका यह प्रयास उसकी आत्मिक पराजय के मार्ग में प्रतिरोधक का काम करेगा। इस आधार पर कहा जा सकता है कि अपनी पहचान या आत्मबोध मनुष्य की जवानी की आवश्यकता है। ईरानी मनोचिकित्सक डाक्टर शरफी कहते हैं” आत्मबोध जवान की प्रगति व उन्नति की भूमिका है। जब एक जवान अपनी भूमिका से अवगत हो जाता है तो उसके विकास की भूमि प्रशस्त हो जाती है। इस स्थिति में हम जवान की योग्यताओं व क्षमताओं में विकास के साक्षी होंगे। जवान अपनी क्षमताओं व योग्यताओं की पहचान करके इस परिणाम पर पहुंचता है कि वह ऐसे व्यक्तित्व का स्वामी है जो बहुत विस्तृत और परिवर्तन योग्य है। यह बात जीवन और भविष्य के बारे में उसमें आशा का कारण बनती है। जवान प्रफुल्लता एवं तरुणायी से भरा होता है और अप्रिय चीज़ों से संघर्ष तथा योग्यताओं के निखार के लिए उसके अंदर क्षमता मौजूद होती है।

 

जवानी जीवन के महत्वपूर्ण कालों में से है और इस चरण में आवश्यकता इस बात की होती है कि जवान अपनी प्राकृतिक पहचान को मज़बूत करे और उसकी अच्छी तरह सुरक्षा करे। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी सदैव फ़रमाते थे” जब तक जवानी है अच्छा अमल अंजाम देने, हृदय को शुद्ध बनाने, तालों को तोड़ने और रुकावटों को दूर करने का प्रयास करो क्योंकि हज़ारों जवान, जो अध्यात्म के विशेष स्थान से निकट हैं, सफल हो जाते हैं और एक बूढ़ा सफल नहीं होता है और जो शैतानी चालें व रुकावटें हैं अगर जवानी में उन पर ध्यान न दिया जाये तो इंसान की ज़िन्दगी में वह दिन-प्रति जड़ पकती और मज़बूत होती जाती हैं।