Apr ११, २०१६ १४:१७ Asia/Kolkata

एक बार एक युवा ने महान दार्शनिक सोक़रात से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या है?

 सोक़रात ने उससे कहा कल तुम नदी के किनारे आना तो मैं तुम्हें सफलता का रहस्य बताऊंगा। अगले दिन सुबह बड़ी जिज्ञासा के साथ युवा नदी के किनारे गया। सोक़रात ने उससे कहा कि नदी तक मेरे साथ चलो। युवा भी उसके साथ चलने लगा। दोनों नदी के किनारे पहुंच गये और दोनों पानी के अंदर गये यहां तक कि पानी उनकी ठुड्डी के नीचे तक पहुंच गया। अचानक सोक़रात ने युवा को पकड़ा और उसे डूबोना आरंभ किया युवा ने निराशा के साथ स्वयं को मुक्ति दिलाने का पूरा प्रयास किया परंतु सोक़रात इतना मज़बूत व शक्तिशाली थे कि उन्होंने युवा को पानी में दबाये रखा। युवा पानी में इतनी देर तक रहा कि उसका चेहरा नीला पड़ गया और अंततः वह स्वयं को मुक्ति दिला सका। जैसे ही वह पानी से बाहर निकला एक लंबी सांस ली। सोक़रात ने उससे पूछ जब तुम पानी के नीचे थे तो किस चीज़ के लिए सबसे अधिक परेशान थे? युवा के उन्तर में सुक़रात ने कहा कि हवा । जब तुम सफलता तक पहुंचने के लिए इस सीमा तक जिज्ञासा रखेंगे और प्रयास करोगे कि उसे प्राप्त कर लो तो उसे प्राप्त कर लेंगे। सफलता प्राप्त करने का कोई दूसरा रहस्य नहीं है।

 

 

जिज्ञासु, सफल लोग होते हैं। वे हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं होते हैं कि बाहर से कोई शक्ति उनके अंदर जिज्ञासा पैदा कर दे बल्कि उनके अंदर जिज्ञासा पैदा होती है और उनके अंदर दायित्व व आभास की भावना परवान चढ़ती है ताकि उनके अंदर जिज्ञासा की भट्ठी जल जाये। वे अपेक्षा से अधिक कार्य व प्रयास करते हैं। वे हर कार्य को अच्छा से अच्छा अंजाम देने के लिए प्रयास करते हैं। क्योंकि उन्हें विश्वास होता है कि जो काम वे आज अच्छी तरह अंजाम दे रहे हैं वह कल के अच्छे काम की बुनियाद बनेगा। जो कार्य अच्छी तरह अंजाम दिया जाता है वह जिज्ञासा उत्पन्न करता है।

 

सफलता के लिए कुछ मापदंड हैं जिनको ध्यान में रखकर हर युवा अपने दृष्टिगत उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है। प्रवेश परीक्षा में सफलता, व्यायाम के क्षेत्र में सफलता, उचित कार्य पैदा करना और सफल विवाह जैसे कार्य बड़ी आकांक्षाए हैं जो हर युवा के दिमाग में रहते हैं और इन्हीं आकांक्षाओं के कारण कभी युवाओं को बहुत अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अलबत्ता यह बात किसी से छिपी नहीं है कि केवल आत्म विश्वास और गम्भीर प्रयास की छत्रछाया में ही सफलता का स्वाद चखा और उसे व्यवहारिक बनाया जा सकता है।

 

 

मोहसिन मलायरी एक परिश्रमी और सफल ईरानी युवा हैं जिन्होंने कभी भी परिस्थितियों के समक्ष घुटने नहीं टेके। वह अपने उद्देश्य तक पहुंचने के लिए परिश्रम करते रहे। बचपने से मोहसिन मलाएरी की एक सार्वजनिक आकांक्षा थी और आज तक वह आकांक्षा उनके दिल में है इस समय वह 27 वर्ष के हो चुके हैं। वह कहते हैं हमेशा वह यह सोचते थे कि दुनिया को बेहतर बनाने के लिए क्या किया जाये। वह क्या करें कि दुनिया में एक परिवर्तन का कारण बने और लोगों तथा आसपास के लोगों पर प्रभाव पड़े। इस समय वह एकोसिस्टम और STARTUP WEEKEND तथा ईरान में इलेक्ट्रॉनिक व्यापार के क्षेत्र में एक जाने- पहचाने व्यक्ति हैं। इस समय वह ईरान में व्यापार केन्द्र के उपाध्यक्ष के रूप में काम कर रहे हैं। वे कहते हैं लोग हमेशा मुझसे पूछते थे कि बड़े होकर तुम क्या बनोगे? यह बड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न है और शायद जब हम बड़े हो जायें तो यह प्रश्न हमें स्वयं से करना चाहिये कि हम क्या करना चाहते हैं? मैं अपनी आकांक्षा में अधिक गम्भीर नहीं था। इस समय की मेरी स्थिति अधिकतर उसी चीज़ से मिलती- जुलती है जिसे मैं सोचता था। मेरे अनुसार सफलता एक ध्रुवीय तारा है। ध्रुवीय तारा आपसे कहता है कि आप किस मार्ग से जायें। आप कभी भी ध्रुवीय तारे तक नहीं पहुंच सकते परंतु अगर आप उसके मार्ग में चलें कि आप जानते हैं कि वह उत्तर या दक्षिण की ओर जाता है।“

 

 

वह आगे कहते हैं” एक कांफ्रेन्स में वक्ताओं से पूछा गया कि सफलता का रहस्य क्या है? उन्होंने जवाब दिया कि जिस समय मैं उद्देश्य तक पहुंचने के लिए परिश्रम कर रहा था दूसरे सफलता का रहस्य जानने के प्रयास में थे। सफलता का कोई रहस्य नहीं है। सफलता के रहस्य को जानने का इच्छुक उस मछली की भांति है जो पानी में तैरती है और पूछती है कि पानी कहां है? स्वयं सफलता तक पहुंचने के लिए परिश्रम यानी सफलता। इसके बाद हमें देखना चाहिये कि दूसरे लोग सफलता की क्या परिभाषा करते हैं? मेरे विचार में हर व्यक्ति को अपना रास्ता स्वयं ढूंढ़ना चाहिये। इंसानों को देखना चाहिये कि वे देखें कि उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कितने प्रयास की आवश्यकता है। अगर कोई एक महत्वपूर्ण लक्ष्य रखता है और हर रात उसके दिमाग़ में यह बात घूमती रहती है कि किस रास्ते से वह दुनिया को परिवर्तित कर दे तो उसकी क़ीमत रात- दिन का प्रयास है। केवल यह नहीं है कि हम एक कोने में बैठ जायें और यह सोचें कि पांच साल बाद हम कहां पहुंच जायेंगे और उसके बाद कोई प्रयास ही न करें। सफलता का कोई विशेष रहस्य नहीं है केवल प्रयास करना चाहिये। कभी भाग्य भी इंसान का साथ देता है जिसे प्रयास में जोड़ दिया जाना चाहिये परंतु बहुत से परिजन और प्रशिक्षक यह जानना चाहते हैं कि किस प्रकार युवाओं को सफलता और बड़े उद्देश्यों की ओर प्रोत्साहित किया जा सकता है? विशेषज्ञों की सिफारिशों में आया है कि हर चीज़ से अधिक युवाओं के जीवन में सकारात्मक बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिये। युवाओं के साथ संपर्क, बातचीत और उठने- बैठने के कार्यक्रम को इस प्रकार बनाया जाना चाहिये कि वे यह आभास करें कि वे सफलता की दिशा या क्षेत्र में हैं और उनके अंदर सकारात्मक विशेषता मौजूद है। इस संबंध में इरादे को मज़बूत बनाने की आश्चर्यजनक भूमिका है। युवा जिस तरह से अपनी सफलता में परिवार, समाज और अपनी उम्र वालों और दूसरे कारकों की भूमिका पर विश्वास रखते हैं उसी तरह उन्हें अपनी क्षमताओं पर भी विश्वास करना चाहिये और इस बात को दृष्टि में लायें कि इंसान के अंदर जो इरादा होता है वह दूसरे कारकों से अधिक महत्वपूर्ण होता है। दूसरी ओर युवाओं के आत्मिक एवं वैचारिक संतुलन को सुरक्षित रखने के लिए बहुत ज़रूरी है कि युवाओं को यह समझाया जाये कि वे सफलता के कारकों के साथ विफलता के संभावित कारकों को भी दृष्टि में रखें और इस दृष्टि के साथ आज और कल के जीवन को ध्यान में रखना चाहिये ताकि जब उन्हें बंद गली का सामना हो तो पराजय को स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार हों।

सफलता प्राप्त करने का एक तरीक़ा यह है कि इंसान को अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिये। जो युवा भविष्य में ज़िम्मेदारियों को स्वीकार करना चाहते हैं उन्हें चाहिये कि वे अधिक से अधिक अध्ययन व ज्ञान प्राप्त करने और इस दिशा में प्रयास करने से न रुकें और अच्छे से अच्छे भविष्य तक पहुंचने के लिए उन्हें तेज़ और शीघ्र प्रयास करना चाहिये। धार्मिक अभिभावकों के अनुसार सबसे बुद्धिमान वह व्यक्ति है जिसकी नज़र दूसरों से अधिक अंजाम पर होती है। यह वाक्य भी प्रसिद्ध है कि बड़े व महान लोग अपनी हिम्मत व साहस से ऊंचे स्थान पर पहुंचे हैं।

युवाओं को जीवन की कठिनाइयों से अवगत कराना ज़रूरी है और जीवन की कमियों एवं विफलताओं पर उसका अपमान एवं भर्त्सना नहीं करना चाहिये। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” जब किसी युवा की भर्त्सना करो तो उसे अपनी ग़लतियों को सुधारने का रास्ता भी बताओ ताकि वह बाग़ी न हो जाये।“

युवाओं के लिए असफलता का अर्थ समस्त अवसरों का समाप्त हो जाना नहीं होता है। क्योंकि कठिनाइयों व समस्याओं के कारण जो शक्ति इंसान में उत्पन्न होती है वह सफलता के परिप्रेक्ष्य में उत्पन्न होने वाले आभास से कई गुना बेहतर होती है। दूसरे शब्दों में पराजय व विफलता इंसान के अंदर प्रतिभाओं को स्पष्ट करती है और उसे सफलता से हमकिनार करती है।

सफलता व उद्देश्य तक पहुंचने के लिए युवाओं में आध्यात्म और ईमान को मज़बूत करना ज़रूरी है। यह सोच कर चुपचाप नहीं बैठना चाहिये कि समस्त अच्छाई ईश्वर की ओर से है और जो ईश्वर करेगा वही होगा। जो युवा महान ईश्वर पर भरोसा रखते हैं वे अपनी समस्त सफलता के लिए ईश्वर को कारण मानते हैं और महान ईश्वर के दूतों का सहारा लेकर अपने आध्यात्मिक संबंध में वृद्धि करते हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वे स्वयं को आशा व ईमान के महासागर से जोड़ लेते हैं और इसी संपर्क की छत्रछाया में वे अपने प्रयास को जारी रखते हैं। HPR पत्रिका के एक लेख में आया है कि हारवर्ड विश्व विद्यालय के अध्ययनकर्ताओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि परिश्रमी इंसान महान ईश्वर से अधिक निकटता का आभास करते हैं। उसका कारण यह है कि वे एक रास्ते का निर्माण कर रहे होते हैं और दूसरों को भी उससे लाभान्वित कर रहे होते हैं जबकि उसका दूसरा कारण यह है कि वे अधिक जोखिम मोल लेते हैं और अनजाने में ईश्वर पर उनका भरोसा अधिक हो जाता है।