Apr ११, २०१६ १४:२५ Asia/Kolkata

हर समय के युवाओं की अपनी अलग विशेषता होती है।

विभिन्न विषयों के बारे में समाजों में गठित होने वाले गुटों, संगठनों और संघों आदि में वे प्रभावी भूमिका निभाते हैं इसलिए उन पर अधिक ध्यान दिया जाता है। वर्तमान समय के युवाओं की एक स्पष्ट समस्या प्राचीन परंपराओं का सामना है। अगर अच्छी तरह सोचें और ध्यान दें तो युवाओं और परंपराओं के मध्य स्पष्ट विरोधाभास को देखा जा सकता है। यह विरोधाभास इतना स्पष्ट है कि ग़ौर किये बिना भी उसे हम देख सकते हैं।

 

 

मामला परंपराओं और उसका संबंध युवाओं के जीवन से है। वह भी इतिहास के इस संवेदनशील समय में जिसे 21वीं शताब्दी कहा जाता है और युवा चाहते हैं कि वे परंपराओं के बंधन से दूर रहें। मानो ये परंपरायें युवाओं के पैरों की बेड़ियां हैं और यह मामला युवाओं तथा परंपराओं के मध्य विरोधाभास को अधिक स्पष्ट करता है। परंमपरायें विभिन्न समाजों के लोगों के जीवन का भाग हैं। इनके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों आयाम हैं जो समय के परिवर्तनों के साथ बदलती रहती हैं। परंपराओं के सकारात्मक पहलु यह हैं कि वे आध्यात्मिक, शिष्टाचारिक और लोगों की सामाजिक प्रगति का कारण बन सकती हैं जबकि उनके नकारात्मक पहलु यह हैं वे इंसानों के पिछड़ेपन का कारण बनें।

नकारात्मक परंपराओं का अंधा अनुसरण है जिसे पवित्र कुरआन ने इंसान की बर्बादी का कारण बताया है। पवित्र कुरआन कहता है जब अनेकेश्वरवादियों से कहा जाता है कि इस्लाम धर्म का अनुसरण करो तो वे कहते हैं कि हम अपने पूर्वजों की परंपराओं का अनुसरण करते हैं।“

 

 

 

आज बहुत से युवा परंपराओं को बंधन समझते हैं और वे सोचते हैं कि इन सब बातों का समय बीत चुका है, इनका कोई प्रयोग नहीं है और परंपराओं को वे अर्थहीन चीज़ समझते हैं इसलिए वे सोचते हैं कि इन सबको दूर फेंक दिया जाना चाहिये पर हम अपनी परंपराओं के कारण ही जीवित हैं।

वास्तविकता यह है कि हर राष्ट्र व समुदाय अपने इतिहास से जीवित है और इस्लाम हर परंपरा का विरोधी नहीं है। वे परंपरायें सराहनीय हैं जो भावनाओं और सामाजिक व्यवहार की मज़बूती का कारण बनती हैं। पवित्र कुरआन उन लोगों की प्रशंसा करता है जो अच्छी व भली परंपरा की बुनियाद रखते हैं अलबत्ता कुछ लोगों का मानना है कि आज की दुनिया में परंपरा और पहले के लोगों की शैली को आधार बनाकर आज परिवर्तन की दुनिया में जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता। यह वह दौर है जब बहुत से पूर्वाग्रहों और अतीत के लोगों की शैली को चुनौतियों का सामना है। दूसरी ओर किसी भी इंसान या समाज के लिए अपने अतीत व संस्कृति से हटकर जीवन बिताना संभव नहीं है। हममें से हर एक और हर समाज की अपनी एक पहचान है जिसकी जड़ें परंपरा में नीहित हैं।

 

 

 

इस समय के युवा ज्ञान और तकनीक पर निर्भर हैं। साथ ही वह अपने माता ­-पिता से अलग नहीं होना चाहते हैं। वह आंख बंद करके परंपरा के अनुसरण को कदापि स्वीकार नहीं करते हैं। वे न केवल अपने माता- पिता का अंधा अनुसरण नहीं करते हैं बल्कि तर्क व प्रमाण के बिना विद्वानों की बात भी मानने के लिए तैयार नहीं हैं। दूसरे शब्दों में इस समय के इंसान विशेषकर युवा पूर्वजों की समस्त धरोहरों को सवाल की दृष्टि से देखते हैं और उन्हें ज्ञान के कारणों व तर्कों के आधार पर ही स्वीकार तथा सही को ग़लत से अलग करना चाहते हैं। यद्यपि इंसान ने पुनर्जागरण के काल में कुछ अतिवादी रास्ता भी तय किया है और अतीत की समस्त चीज़ों को ग़लत करार दिया है परंतु आज उन्हें सवाल की दृष्टि से देखता है ताकि उनके सही या ग़लत सिद्ध करने का रास्ता ढूंढ़ सके। समाजशास्त्री असदुल्लाह रिज़ाई कहते हैं इस समय के युवाओं की स्थिति में बहुत अंतर व बदलाव आ गया है और हमारे माता ­पिता के मानदंडों से आज के युवाओं की आवश्यकताओं का उत्तर नहीं दिया जा सकता और यह स्थिति बहुत से क्षेत्रों में पश्चिमी संस्कृति के फैलने का कारण बनी है। उदाहरण स्वरूप विवाह करने की प्राचीन शैली आज के युवाओं को बिल्कुल पसंद नहीं है। वास्तव में हम इस समय परंपराओं और नूतनता के मध्य लड़ाई के साक्षी हैं। इस परिवर्तन का एक आयाम युवाओं के लिए ज़ोर- ज़बरदस्ती से किये जाने वाले विवाह का समाप्त हो जाना है। आज संचार माध्यमों विशेषकर सेटेलाइट ने इस विचार को परिवर्तित कर दिया है जबकि यही परिवर्तन तलाक़ आदि भी कारण बन रहा है।

 

 

विश्वविद्यालय के प्रोफसर रेज़ा एबादी कहते हैं दो से तीन दशक पहले के युवाओं की अपेक्षा आज के युवाओं में बहुत अंतर है। इस संबंध में जो महत्वपूर्ण बात कहनी चाहिये वह यह है कि आदत, व्यवहार और सम्मान जैसी चीज़ों से समय बीतने के साथ आज के युवा बेगाना होते जा रहे हैं।

इस बात को दृष्टि में रखा जाना चाहिये कि सामाजिक मूल्यों को ध्यान में रखना युवाओं को नियंत्रित करने का कारक है। अंधविश्वासों और पापों से दूर होने की स्थिति में वह तबाही व बर्बादी से रोकने का महत्वपूर्ण कारक है और युवा पीढ़ी के समूचे जीवन में उसका ध्यान रखा जाना चाहिये। सही व तार्किक परंपराओं का ध्यान में रखना किसी विशेष वर्ग से विशेष नहीं है। जैसाकि पवित्र कुरआन में महिलाओं का आह्वान किया गया है कि वे अज्ञानता के काल की महिलाओं की भांति सबके सामने सजे- संवरें नहीं और उनकी ग़लत परंपराओं का अनुसरण न करें।

 

 

 

इस आधार पर यह उचित नहीं है कि लड़के और लड़कियां भड़काऊ वस्त्र धारण करें और कामइच्छा के भड़कने या दूसरों के मध्य उंगली उठाने का कारण बनें। इस्लाम के शत्रु इस संबंध में पूंजी निवेश करते हैं ताकि पश्चिमी संस्कृति प्रचलित करके और लोगों को उनकी रचनात्मक संस्कृतिक से दूर रखकर इस्लामी समाज को कुठारा घात लगायें। दूसरे शब्दों में जितना अधिक धार्मिक व राष्ट्रीय मूल्यों को आघात पहुंचेगा या उनका अंत होगा उतनी की सांस्कृति चोट अधिक पहुंचाई जायेगी। इस्लामी समाजों में एक सामाजिक परंपरा शर्म व हया है जिसका ध्यान आज के युवाओं को रखना और अभद्र शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिये। युवाओं को चाहिये कि माता- पिता के सामने विनम्रता से पेश आयें और किसी भी स्थिति में उनसे झगड़ा न करें।

वास्तविकता यह है कि आज की दुनिया समस्त प्रगतियों और तकनीक के बावजूद सामाजिक परंमराओं के नकारने के स्थान पर उचित विकल्प पेश नहीं कर सकी है।

 

 

 

नैतिक मूल्यों का पतन, अकेले रहने का रुझान, सामूहिक गतिविधयों से दूरी उन व्यवहारों में से है जिसे आज के इंसान विशेषकर युवा अपना रहे हैं। पारंपरिक समाजों में भी यह प्रक्रिया बढ़ रही है। इस प्रकार से कि युवा वर्ग अब परंपराओं में बंधकर नहीं रहना चाहता। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि आज युवा तेज़ी से बौद्धिक विकास करके जल्द से जल्द आत्म निर्भर हो जाना चाहते हैं परंतु वास्तविकता कुछ और ही है और जो लोग केवल अपने बारे में सोचते हैं इसे एक सामाजिक नुकसान व आघात समझा जाता है जिसके प्रभाव समाज के विभिन्न क्षेत्रों और आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में भी दिखाई देते हैं। अमेरिकी दर्शनशास्त्री फ्रांसीस फुकुयामा के शब्दों में नैतिकता के सीमित होने और आज की ज़िन्दगी के कारण हम क्रमशः एक बहुत बड़े अंत के साक्षी होंगे। यह अंत, नैतिकता और परिवारों के क्षेत्र में अधिक होगा।

 

 

इस समय इस्लाम के स्रोतों, कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों की जीवनी एवं परंपराओं पर ध्यान देकर जीवन के बेहतरीन शिष्टाचारों व परंपराओं का निर्धारण किया जा सकता है और सबसे सीधा रास्ता युवाओं के समक्ष पेश किया जा सकता है। ग़लत परंपराओं से मुकाबला और हानिकारक परंपराओं को तोड़ देना भी इंसानों और भावी पीढ़ी की बहुत बड़ी सेवा है। क्योंकि ऐसा बहुत हुआ है कि बहुत से लोगों और परिवारों को ग़लत सामाजिक परंपराओं के कारण बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी है। वास्तव में इंसानों विशेषकर युवाओं की ज़िन्दगी पर कभी ग़लत परंपराओं का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है और वे उनके वास्तविक शांति तक पहुंचने में बाधा बन जाती हैं और कुछ समाजों के बहुत से परिवार ग़लत परंपराओं के अनुसरण से ग्रस्त हो गये हैं। जैसे एक महत्वपूर्ण मामला विवाह है। बहुत से परिवार ग़लत परंपराओं के कारण लड़की और लड़के का विवाह वहां पर नहीं करते जहां करना चाहिये। उसका परिणाम युवाओं के जीवन का सबसे अच्छा अवसर एक डरावने स्वप्न में बदल गया है और बहुत से युवा परिवार गठन और विवाह करने से निराश हो गये हैं जबकि दूसरे बहुत से युवाओं को जीवन के आरंभिक चरण में ही बहुत सी कठिनाइयों का सामना है।

 

 

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ग़लत परंपराओं से बचने का बेहतरीन रास्ता इस्लाम और उसके आदेशों के पालन को बताया है। वह युवाओं से सिफारिश करते हैं कि विवाह में इस्लाम ने अज्ञानता के काल की परंपराओं को ख़त्म कर दिया और नई बातों एवं भली शैलियों की आधार शिला रखी अगर हम ऐसा करें कि हमारा विवाह उस चीज़ से दूर व पवित्र रहे जिसे इस्लाम ने दूर किया है और उन शैलियों से सुसज्जित रहे जिनकी बुनियाद इस्लाम ने रखी है तो हमारा विवाह इस्लामी और महान पैग़म्बर तथा मानवता के मार्गदर्शक की इच्छा के अनुसार होगा। इस स्थिति में जीवन अच्छा होगा और पति-पत्नी एक दूसरे के साथ अच्छी ज़िन्दगी गुज़ारेंगे। ईश्वर न करे ऐसा हो कि इस्लाम ने जिन चीज़ों को नकार और बाहर कर दिया है अगर हम उन्हें अपने विवाहों में लायें तो उस समय हमारा विवाह अज्ञानता के काल का विवाह होगा और हमारा कार्य अज्ञानता के काल का कार्य होगा।“