Apr ११, २०१६ १४:२७ Asia/Kolkata

युवाकाल प्रफुल्लता और विकास का काल है परंतु वह जिस सीमा तक प्रफुल्लता और विकास का काल है उसी सीमा तक बल्कि उससे भी अधिक उसे विभिन्न प्रकार के ख़तरों का सामना हो सकता है।

आज समाजों की सांस्कृतिक परिस्थिति इस प्रकार है कि युवाओं, किशोरों और नवयुवकों को विभिन्न प्रकार की जानकारियां व संदेश दिये जा रहे हैं। संचार माध्यम लोगों तक इन संदेशों व जानकारियों को पहुंचाने के माध्यम हैं। इनमें से एक सेटेलाइट है जो लोगों तक संदेशों व जानकारियों को पहुंचाने में काफी शक्तिशाली है और उसके कार्यक्रम लाभदायक होने से कहीं अधिक ख़तरनाक और हानिकारक हैं और वे विभिन्न प्रकार की नैतिक एवं सामाजिक बुराइयों की भूमि प्रशस्त कर रहे हैं। अश्लील फिल्मों के देखने की धार्मिक, नैतिक, स्वाभिमान एवं आध्यात्मिक मूल्यों को समाप्त करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। कितने अधिक युवा हैं जो सेटेलाइट से प्रसारित होने वाली अश्लील फिल्मों और कार्यक्रमों को देखकर ग़लत रास्ते पर चले गये और दूसरों को भी बर्बादी के रास्ते पर ख़ीच ले गये। इस बीच पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम का यह कथन विचार योग्य है जिसमें आप फरमाते हैं “उस समय तुम्हें क्या हो गया है कि नापसंद को पसंदीदा और बुरे को भला देखते हो।“

 

 

आज के समाजों विशेषकर पश्चिमी समाजों के युवाओं को जिन समस्याओं का सामना है उनमें से एक यौन समस्या है।

 

स्पष्ट है कि इंसान के अंदर जो शक्ति, क्षमता और योग्यता रखी गयी है उसे इंसान के विकास एवं उसकी परिपूर्णता के लिए रखा गया है और अगर इंसान सही व तार्किक ढंग से इन चीज़ों से लाभ उठाये तो उसके विकास एवं परिपूर्णता का कारण बनेगा। यौन शक्ति वह योग्यता है जिसका लाभ उठाकर इंसान परिवार गठन का आधार और मानव पीढ़ी को जारी रखने का कार्यक्रम बना सकता है और अगर वह बुद्धि तथा ईश्वरीय आदेशों से परे रास्ते पर चलता है तो बर्बाद हो जायेगा।

आज भड़काऊ व उत्तेजित करने वाले यौन कार्यक्रम संचार माध्यमों से प्रसारित हो रहे हैं और दिन –प्रतिदिन इस कार्य में वृद्धि ही हो रही है जिससे युवाओं के अंदर नैतिक व यौन पतन की भूमि प्रशस्त होती जा रही है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” इंसान के अंदर नफ्से अम्मारा वही यौन भावना है जिसके अधिक व उत्तेजित हो जाने के कारण वह बुद्धि पर भी हावी हो जाती है।“

इस प्रकार की परिस्थिति में कम ही लोग अच्छाई और बुराई के बारे में सोच सकते हैं या उसके ख़तरे को समझ लें। इस बात के दृष्टिगत कि संचार माध्यमों के कार्यक्रमों को केवल देखने से युवाओं की यौन आवश्यकताओं की आपूर्ति नहीं होती है, युवाओं में यौन इच्छा की आग भड़क जाती है और वह नैतिक बुराई एवं उसके पतन का कारण बनती है।

 

 

आज पश्चिमी समाजों में जिन संबंधों की भर्त्सना की जाती है उनमें से एक समलैंगिक संबंध है। मध्यपूर्व के इस्लामी देशों में इस विषय को पसंद नहीं किया जा जाता है और उसके विरुद्ध कार्यवाही की जाती है परंतु खेद के साथ कहना पड़ता है कि कुछ पश्चिमी देशों में इस अनैतिक संबंध को मान्यता प्रदान कर दी गयी है और अमेरिका के अधिकांश राज्यों में समलैंगिकों के मध्य विवाह के लिए कानून भी बनाये गये हैं।

यह संबंध कामइच्छा पूरी करने का ग़ैर क़ानूनी व अप्राकृतिक तरीक़ा है और इससे बहुत से युवा ख़तरे में पड़ गये हैं और यह कार्य इस्लाम में हराम अर्थात वर्जित है। महान ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरे मोमेनून की 7वीं आयत में फरमाता है जो लोग अपनी यौन इच्छा पूरी करने के लिए विवाह के अलावा कोई और मार्ग अपनाते हैं वे अतिक्रमणकारी हैं।“ इसी प्रकार पवित्र कुरआन समलैंगिक कार्य की भर्त्सना करते हुए हज़रत लूत के उस बयान को पेश करता है जिसमें वह कहते हैं क्या तुम विश्व वासियों के मध्य पुरूषों के पीछे जाते हो और ईश्वर ने तुम्हारे लिए जो पत्नियां पैदा की हैं उनके पास नहीं जा रहे हो? तुम अतिक्रमणकारी जाति हो।“

 

 

हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के अनुसार पुरूष पर पुरूष और महिला पर महिला के हराम होने का तर्क व रहस्य यह है कि यह कार्य प्रकृति के विरुद्ध है जिसे ईश्वर ने पुरुष और महिला के लिए क़रार दिया है और इसी कारण है कि अगर पुरुष और महिला समलैंगिक हो जायें तो मानव पीढ़ी समाप्त हो जायेगी और सामाजिक ज़िन्दगी बुराई की ओर चली जायेगी और दुनिया बर्बाद हो जायेगी।“

प्रसिद्ध यूरोपीय दर्शनशास्त्री बरटर्न्ड रसल ने पूछा कि इस्लाम में विवाह को इतना महत्व क्या दिया गया है और उसके लिए क़ानून क्यों बनाये गये हैं? उसके जवाब में प्रसिद्ध ईरानी विद्वान व धर्मगुरू अल्लामा दिवंगत मोहम्मद तक़ी जाफ़री ने लिखा है कि इस्लाम यह चाहता है कि विवाह के माध्यम से इंसान पैदा हों, इंसान की पैदाइश का मामला है।

युवा हमेशा अपनी कमियों की भरपाई और स्वाधीनता प्राप्त करने के प्रयास में होता है। उसे अपनी कमियों और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विवाह करने के लिए कहा गया है और वह अच्छी व योग्य पत्नी का चयन करके उन चीज़ों को प्राप्त कर सकता है जो उसकी प्रगति व परिपूर्णता का कारण हैं।

 

 

ईरान के प्रसिद्ध बुद्धिजीवी उस्ताद शहीद मुर्तुज़ा मुतह्हरी इस बारे में कहते हैं” परिवार का गठन यानी दूसरों के भविष्य के प्रति एक प्रकार का रुझान हो जाना। जिन कारणों से इस्लाम में विवाह को एक पवित्र कार्य और उपासना बताया गया है उनमें से एक यही है। विवाह, व्यक्तिगत जीवन से बाहर निकलने और इंसान की हस्ती के विकास का पहला चरण है। जो परिपक्वता विवाह से प्राप्त होती है उसे किसी अन्य स्थान पर प्राप्त नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर विवाह को विकास और इंसान को परिपूर्णता तक पहुंचने का कारण समझा जा सकता है। वास्तव में ईश्वर ने इंसान की इस प्रकार से रचना की है कि पुरूष महिला के बिना और महिला पुरूष के बिना अधूरी है और पुरूष को महिला तथा महिला को पुरूष की आवश्यकता होती है और इस प्रकार से वे परिपूर्ण होते हैं। शारीरिक एवं मानसिक रूप से दोनों एक दूसरे से संबंधित हैं यानी दोनों को एक दूसरे की आवश्यकता है और एक साथ रहने से दोनों एक दूसरे को पूरा करते हैं।“

 

 

अलबत्ता जो युवा गुमराही और समलैंगिकता की खाई में गिर रहे हैं संचार माध्यमों के प्रचार से हटकर उसकी जड़ परिवार के व्यवहार में भी है। अभी हाल ही में अमेरिका में परिवारों से संबंधित मामलों की एक संस्था ने एक अध्ययन किया और युवाओं द्वारा समलैंगिता की ओर रुझान और विवाह न करने के कारणों के संबंध में एक रोचक परिणाम को प्रकाशित किया है। इस संस्था ने दो हज़ार लड़के और लड़कियों से प्रश्न किया है कि समलैंगिकता की ओर रुझान के उनके क्या कारण हैं? या वे अपने अंदर विवाह का रुझान क्यों नहीं पाते? इस संस्था ने पाया कि युवाओं में इस प्रकार की अनिच्छा का संबंध अतीत, वातावरण और उनके साथ माता-पिता के व्यवहार से हो सकता है। 30 प्रतिशत लड़कों और 25 प्रतिशत लड़कियों ने कहा कि बचपने और किशोरावस्था में वे अपने माता -पिता के दुर्व्यवहार से प्रभावित थे। उनसे पर्याप्त प्रेम का न किया जाना, उन्हें कष्ट पहुंचाना, मारना- पीटना संतान के मध्य भेदभाव, उन पर ध्यान न देना दूसरे बच्चों के साथ उनकी अपमानजनक तुलना और बुरा- भला कहने जैसे दुर्व्यवहार की ओर संकेत किया जा सकता है।

 

 

एक लड़का बचपने में अपनी मां के व्यवहार की शिकायत कर रहा था। वह कह रहा था कि उसकी मां उसे बहुत बुरा -भला कहती थी और वह कभी भी उससे प्रेम नहीं करती थी और हमेशा उसका नापसंद व्यवहार उसके अपमान का कारण बनता था परंतु इसके विपरीत उसके पिता का उससे बहुत अधिक प्रेम इस बात का कारण बना था कि भावनात्मक दृष्टि से उसका रुझान अपने पिता की ओर हो जाये। समय बीतने के साथ- साथ इस लड़के की मानसिकता ही ऐसी हो गयी कि वह महिलाओं से द्वेष करने लगा इस प्रकार से कि बड़ी मुश्किल से वह किसी महिला से संपर्क स्थापित कर पाता था और इसके लिए वह अपने अंदर कोई रुझान भी नहीं देखता था हमेशा लड़कियों से दूर ही रहता था और वह अपने अधिकांश समय को अपने मित्र लड़कों के साथ बिताने का प्रयास करता था। यही विषय इस बात का कारण बना कि उसका रुझान लड़कों की ओर हो गया।

इसी तरह एक लड़की भी कहती है कि उसका पिता बचपने में उसके साथ बहुत दुर्व्यहार करता था और बचपने एवं नौजवानी में उसके लिए बहुत अधिक बाधायें उत्पन्न करता था इसी कारण उसका रुझान लड़कियों की ओर हो गया। वह कहती थी कि पिता का गलत, और अमानवीय व्यवहार इस बात का कारण बना कि उसके अंदर पुरुषों के प्रति घृणा उत्पन्न हो गयी और यह भावना उसके अंदर इतनी मज़बूत हो गयी कि वह किसी पुरुष के साथ संबंध स्थापित करने के लिए तैयार नहीं होती थी और वह सारे पुरुषों से संबंध करने से भागती थी। पुरुषों से उसका विश्वास पूर्णरूप से उठ हो चुका था और वह समस्त पुरूषों को अपने पिता की भांति समझती थी कि वे उसके प्रति किसी प्रकार का प्रेम करने की क्षमता नहीं रखते हैं। समय बीतने के साथ- साथ उसके अंदर महिलाओं व लड़कियों के प्रति रुझान उत्पन्न हो गया। ध्यान योग्य बिन्दु यह है कि युवाओं के साथ पिता- पिता के दुर्व्यवहार के अतिरिक्त स्वयं माता- पिता का एक दूसरे के प्रति दुर्व्यवहार इस प्रकार के युवाओं के मध्य समान बिन्दु था।

 

 

समाज शास्त्रियों का मानना है कि सामाजिक अपराधों और गुमराहियों से रोकने में परिवार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिस तरह से वे ग़लत कार्यों को अंजाम देने में प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं। इस आधार पर अगर बचपने में किसी व्यक्ति के परिवार का वातावरण अच्छा हो तो उसके अंदर गुमराही से बचने की संभावना बहुत अधिक है।

युवाओं के संबंध में सबसे तार्किक मार्ग यह है कि माता- पिता को चाहिये कि वे स्वयं को युवाओं के स्थान पर रखें और उनकी दृष्टि से मामलों व समस्याओं को देखें। वे युवाओं की नई हस्ती को मान्यता प्रदान करें और स्वयं को हज़ारों भ्रांतियों एवं प्रश्नों का ज़िम्मेदार समझें और उनके लिए एक अच्छे मार्गदर्शक बनें। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम फरमाते हैं” ईश्वर की दया उस बाप पर हो जो अच्छे कार्यों को अंजाम देने में अपने बेटे की सहायता करता है। “

 

 

इस महान दायित्व के निर्वाह में ध्यान योग्य बिन्दु युवा पीढ़ी के साथ व्यवहार की शैली है। युवाओं के साथ ग़लत व आर्तिक व्यवहार उन्हें गुमराही की ओर ले जाता है। युवाओं के साथ व्यवहार में आलोचनात्मक,भर्तस्नीय, हिंसक व झगड़ालु शैली नहीं अपनाई जानी चाहिये। इसी प्रकार युवा की प्रशंसा में सीमा से अधिक काम नहीं लिया जाना चाहिये कि इससे वह अहं का शिकार हो सकता है। इसी तरह उसके कमज़ोर बिन्दुओं से भी निश्चेत नहीं रहना चाहिये। ईरान के प्रसिद्ध बुद्धिजीवी शहीद मुर्तुज़ा मुतह्हरी लिखते हैं उच्च आकांक्षाओं व आभासों को समझे और उनका सम्मान किये बिना इन गुमराहियों का समाधान संभव नहीं है। अगर हम यह चाहें कि इन मामलों की उपेक्षा करें तो भावी पीढ़ियों को वैचारिक और नैतिक गुमराहियों से रोक पाना संभव नहीं है।