इस्लामी क्रांति और समाज-25
सन 1979 में ईरान में आने वाली इस्लामी क्रांति को बीसवीं शताब्दी की अन्तिम सामाजिक क्रांति भी कहा जा सकता है।
यह क्रांति जहां एक ओर पर सत्ता में मूलभूत परिवर्तनों का कारण बनी वहीं दूसरी ओर इसने मूल्यों को भी बदला। संसार में जो महाक्रांतियां आई हैं उनकी तुलना में ईरान में आने वाली क्रांति में कुछ स्पष्ट अंतर पाए जाते हैं।
फ्रांस में 1789 और रूस में 1917 में जो क्रांतियां आईं उनकी एक विशेष बात यह थी कि उस समय कोई विदेशी शक्ति या देश उनका समर्थक नहीं था जबकि ईरान में जिस समय क्रांति आई उस समय की तत्कालीन सरकार को उस काल की महाशक्ति का भरपूर समर्थन प्राप्त था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ईरान की जनता ने न केवल तत्कालीन राजशाही का विरोध किया बल्कि उसने इस राजशाही का समर्थन करने वाली शक्तियों का भी मुक़ाबला किया। उस काल का पहलवी शासन मध्यपूर्व में अमरीकी हितों का पहरेदार था। वह अमरीकी हितों की पूरी निष्ठा के साथ रखवाली करता था। ईरान की जनता ने इस्लामी क्रांति को सफल बनाकर पहलवी शासन की तानाशाही सरकार का तख्ता पलट दिया बल्कि देश में लंबे समय से जारी पश्चिमी सामाज्य की उपस्थिति को समाप्त कर दिया। यही वह अंतर है जो ईरान की इस्लामी क्रांति और संसार की अन्य क्रांतियों में स्पष्ट रूप में दिखाई देता है।
इस्लामी क्रांति तथा अन्य क्रांतियों के बीच एक अन्य अंतर यह भी रहा कि विश्व की अधिक्तर क्रांतियों का मुख्य कारण अर्थव्यवस्था थी जबकि ईरान की इस्लामी क्रांति का मुख्य कारक कुछ और था अर्थव्यवस्था नहीं थी। इसकी मुख्य वजह यह है कि ईरान में एसी स्थिति में क्रांति आई कि जब तेल के मूल्यों में वृद्धि के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था बहुत मज़बूत हो गई थी। हांलाकि उस समय धन का बंटवारा अन्यायपूर्ण ढंग से किया जा रहा था जिसके कारण एक वर्ग बहुत अधिक धनवान था जबकि अन्य वर्ग ग़रीबी का शिकार था। इस बारे में एक ईरानी शोधकर्ता "मुहम्मद हुसैन पनाही" लिखते हैं कि शाह की सरकार के विरुद्ध जनता जिन नारों या स्लोगन का प्रयोग कर रही थी उनमें से केवल 6 प्रतिशत नारे ही अर्थव्यवस्था से संबन्धित हुआ करते थे। इससे यह बात समझ में आती है कि ईरान की जनता की मुख्य मांग पैसा नहीं बल्कि कुछ और थी। ईरानी जनता पहचान और धर्म की मांग कर रही थी।
एक अन्य अंतर यह है कि ईरान की इस्लामी क्रांति वास्तव में सांस्कृतिक क्रांति भी थी। इसने संसार के लिए एक नई शासन व्यवस्था को परिचित करवाया। फ्रांस की क्रांति राजनीति से प्ररित थी लेकिन इसने उदारवाद को पेश किया। रूस की क्रांति ने सोशलिज़्म का परिचय करवाया जबकि ईरान की इस्लामी क्रांति एक सांस्कृतिक क्रांति थी। इस संदर्भ में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने जुमे की नमाज़ के विशेष भाषण में कहा था कि इस्लामी क्रांति से पहले संसार में दो प्रकार की सरकारों का दुनिया ने अनुभव किया था। एक था पश्चिमी लोकतंत्र और दूसरी कम्यूनिस्ट व्यवस्था।
इस्लामी क्रांति के आन्दोलन में जनता की भारी उपस्थिति भी ऐसा कारक है जो इसे संसार की अन्य क्रांतियों से अलग करती है। रूस और फ्रांस की क्रांतियों में जनता की भागीदारी का अनुपात उतना नहीं थी जितना ईरान की इस्लामी क्रांति में पाया गया। इस क्रांति में समाज के हर वर्ग ने बढ चढकर भाग लिया जबकि रूस की क्रांति में अधिकतर श्रमिकों को देखा गया। इसी प्रकार से फ्रांस की क्रांति में समाज के हर वर्ग के लोगों ने बढ चढकर हिस्सा नहीं लिया था। इस बारे में फ्रेड हेल्डी का कहना है कि लोगों की भारी उपस्थिति की दृष्टि से ईरान की इस्लामी क्रांति को वरीयता प्राप्त है क्योंकि इस क्रांति में ईरानी समाज के हर वर्ग ने भाग लिया। वे कहते हैं कि जनता की भारी उपस्थिति की दृष्टि से इसे इतिहास की आधुनिक क्रांति कहा जा सकता है। इसमें राष्ट्रवादियों के साथ ही धार्मिक झुकाव रखने वाले भी लोग उपस्थित हुआ करते थे। दूसरी बात यह है कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की स्वदेश वापसी पर जितनी अधिक संख्या में ईरानियों ने उनका स्वागत किया उसका उदाहरण दूसरे स्थानों पर नहीं मिलता है।
ईरान की इस्लामी क्रांति की एक अन्य विशेषता यह रही कि क्रांति का नेतृत्व जिसके हाथ में था उसको जनता का भरपूर समर्थन प्राप्त था। अगर देखा जाए तो विश्व की अन्य क्रांतियों में क्रांति के नेताओं को समाज के हर वर्ग का इतना अधिक समर्थन प्राप्त नहीं था जितना समर्थन ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी को हासिल था। एक विचारक इब्राहीमियान इमाम ख़ुमैनी की तुलना फ्रांस, रूस और चीन की क्रांति के नेताओं से करते हुए कहते हैं कि इन क्रांतियों में जितना अधिक जन समर्थन स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी को प्राप्त था उतना किसी अन्य क्रांति के नेता को नहीं था। उनका कहना है कि इमाम खुमैनी की दो एसी विशेषताएं थी जिनको अनदेखा नहीं किया जा सकता। एक उनका व्यक्तित्व और दूसरे यह कि उन्होंने किसी भी स्थिति में शाह से कोई सांठगांठ या समझौता नहीं किया।
ईरान की इस्लामी क्रांति की एक अन्य विशेषता जो दूसरी अन्य क्रांतियों में नहीं पाई जाती उसमें धर्म की भूमिका है। संसार की अन्य क्रांतियों में धर्म की कोई भूमिका नहीं थी जबकि ईरान की इस्लामी क्रांति में धर्म की भरपूर भूमिका दिखाई देती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि धर्म ही क्रांति के दौरान लोगों के एकजुट होने का कारण बना था। धर्म ने ही समाज के बहुत से वर्गो को प्रेरित किया था। यही कारण है कि संसार के बहुत से विशेषज्ञों का कहना है कि सन 1979 में ईरान में आने वाली क्रांति मूल रूस से धर्म पर आधारित थी। तत्कालीन शासक शाह की सबसे बड़ी ग़लती यह थी कि उसने लोगों और धर्म के बीच दूरी पैदा करना शुरू कर दी थी। वह धर्म को जनता से बिल्कुल अलग करके उसे दूसरी ओर ले जाना चाहता था। हालांकि ईरान में धर्म ने ही लोगों को उसके विरुद्ध एकत्रित किया और जनता ने उसका जमकर विरोध किया। इस बारे में मीशल फोकू कहते हैं कि जिस बात ने मुझको ईरान में अचंभित किया वह यह थी कि ईरान की जनता धर्म के सहारे एसी व्यवस्था के मुक़ाबले में उठ खड़ी हुई जिसके पास सबकुछ था। जो पूरी तरह से हथियारों से लैस थी। लोग गोलियों के मुक़ाबले में डट गए और डटे रहे। वे कहते हैं कि धर्म के अतिरिक्त कोई अन्य ऐसा प्रभावशाली कारक नहीं था जो ईरानी जनता को शाह के मुक़ाबले के लिए तैयार करता। माइकल फ़िशर का भी कहना है कि इस्लामी क्रांति का प्रमुख कारक धर्म था। वे कहते हैं कि ईरानी जनता करबला के संदेशों से बहुत प्रभावित थी। उनका कहना है कि ईरानी जनता ने हुसैन के संदेश को बहुत गंभीरता से लिया और उसी के सहारे वह आगे बढ़ी। ईरान की जनता हुसैन के संदेशों के सहारे अत्याचार के मुक़ाबले में उठ खड़ी हुई और अंततः अत्याचारी शासको को परास्त कर दिया।
संसार की अन्य क्रांतियों की तुलना में ईरान की इस्लामी क्रांति का एक अन्य स्पष्ट कारक स्वावलंबन की प्राप्ति थी। इस क्रांति ने ईरान को स्वावलंबन प्रदान किया। इस्लामी गणतंत्र ईरान से संसार की महाशक्तियों की शत्रुता का मुख्य कारण यही स्वावलंबन है। रूस, फ़्रांस और चीन जैसे देश जो महाक्रांतियों के साक्षी रहे हैं क्रांतियों से पहले उन्हें स्वालंबन प्राप्त था और वे किसी विदेशी शक्ति पर निर्भर नहीं थे। इसके विपरीत ईरान की इस्लामी क्रांति से पहले यह देश पश्चिमी शक्तियों के वर्चस्व का शिकार था। उस समय यह शक्तियां ही ईरान की भीतरी और विदेशी नीतियों का निर्धारण किया करती थीं। यह क्रांति विदेशी शक्तियों से ईरान को मुक्ति मिलने के अर्थ में थी। इस प्रकार क्रांति से ईरान के आंतरिक मामलों में वर्चस्ववादियों के हस्तक्षेप की भूमिका का रास्ता बंद हो गया।
संसार की अन्य क्रांतियों की तुलना में इस्लामी क्रांति की एक अन्य विशेषता उसका आध्यात्मिक लक्ष्य है। फ्रांस, रूस और चीन की क्रांतियों का लक्ष्य भौतिक था और उनमें धर्म या आध्यात्म की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया था। ईरान की इस्लामी क्रांति में वंचितों की सहायता, भेदभाव को दूर करना और भ्रष्टाचार से मुक्ति जैसे भौतिक विषयों के साथ ही आध्यात्म की ओर विशेष ध्यान केन्द्रित था।