Jun १५, २०१९ १६:३४ Asia/Kolkata

सुव्यवस्थित शारीरिक गतिविधि और शारीरिक दृष्टि से चुस्ती, स्वस्थ्य रहने में बहुत प्रभावी तत्व हैं।

शीरीरिक चुस्ती का अर्थ है ऊर्जा व स्फूर्ति से भरे होना। जो व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से चुस्त होता है, उसके शरीर के विभिन्न तंत्र स्वस्थ होते हैं और अच्छा प्रदर्शन करते हैं। ऐसा व्यक्ति जल्दी नहीं थकता और अपनी दिनचर्या को प्रफल्लता से अंजाम देता है। इसी तरह शारीरिक दृष्टि से चुस्त व्यक्ति आपात स्थिति का सामना करने में सक्षम होता है। वह बैठे रहने की वजह से पैदा होने वाली बीमारियों से सुरक्षित रहता है। जीर्ण बीमारी ऐसी बीमारी होती है जिसके लिए किसी माइक्रोब या वायरस को ज़िम्मेदार नहीं बताया जा सकता बल्कि इसके पीछे जीवन शैली और पर्यावरण से जुड़े तत्व ज़िम्मेदार होते हैं। आज ज़्यादातर बीमारियों का कारण बैठे रहना माना जा रहा है। डॉक्टरों का मानना है कि कसरत से इन बीमारियो से ग्रस्त होने का ख़तरा बहुत कम हो जाता है।

व्यवस्थित रूप से शारीरिक गतिविधि और शारीरिक चुस्ती से न सिर्फ़ बीमारियों की रोकथाम में मदद मिलती है बल्कि कमर दर्द और मधुमेह जैसी बीमारी के लक्ष्ण को कम करने और हृदय आघात के बाद फिर से शारीरिक दृष्टि से शक्तिशाली होने में भी मदद मिलती है। कसरत से बीमारी से ग्रस्त होने की संभावना कम हो जाती है। अब अगर हम बीमार होते भी हैं तो कम समय के लिए होते हैं। सक्रिय व गतिशील व्यक्ति कम बीमार पड़ते हैं क्योंकि ऐसे व्यक्ति के शरीर में माइक्रोब और वायरस से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। जो लोग नियमित रूप से कसरत करते हैं वे साल के ज्यादातर दिन स्वस्थ गुज़ारते हैं।

कसरत से न सिर्फ़ मांसपेशी मज़बूत होती है बल्कि इससे दिमाग़ को भी बहुत फ़ायदा पहुंचता है। कसरत से शरीर में ख़ून का दौरान अच्छा रहता है साथ ही मस्तिष्क में ख़ून का दौरान बढ़ने से मस्तिष्क के सिकुड़ने की प्रक्रिया धीरी हो जाती है जो आम तौर पर 40 साल की उम्र से शुरु होती है। ख़ून का दौरान बढ़ने से मस्तिष्क के न्यूरोन का पोषण होता है, उसमें ऑक्सीजन अच्छी तरह पहुंचती है और मस्तिष्क की धमनियां नहीं सिकुड़ती। कसरत से न्यूरोन मज़बूत होते हैं। इसी तरह कसरत बड़ी हद तक अल्ज़ायमर और पार्किन्सन जैसी बीमारियों की पूर्व रोकथाम की जा सकती है।    

    

शोध के अनुसार, कसरत अगर कम की जाए तब भी इससे स्मरण शक्ति बेहतर होती है। यह प्रभाव उस समय बढ़ जाता है, जब हफ़्ते में 3 बार कसरत करें। अमरीका की ओर्गन हेल्थ ऐन्ड साइंस यूनिवर्सिटी में हुए शोध से यह तथ्य सामने आया है कि जिन वृद्ध लोगों ने हफ़्ते में 3 बार एक घंटे तक ड्रेड मिल पर तेज़ चलने सहित विभिन्न प्रकार की कसरत चार महीने तक की, उनकी स्मरण शक्ति और किसी घटना पर प्रतिक्रिया देने की क्षमता बेहतर हुयी। इसी तरह इस शोध से यह तथ्य भी सामने आया कि हलके दौड़ने, पैदल चलने, साइकिल चलाने और तेज़ चलने से भी लोगों की स्मरण शक्ति बेहतर हुयी और उनमें किसी घटना पर प्रतिक्रिया देने की क्षमता भी बेहतर हुयी।

कसरत से मन प्रफुल्लता और आत्म विश्वास का आभास करता है, क्योंकि कसरत से शरीर में नोरापाइनेफ़्राइन नामक हार्मोन अधिक गाढ़ा होता है। यह हारमोन स्ट्रेस की स्थिति में मस्तिष्क की प्रतिक्रिया को संतुलित करता है। नोरापाइनेफ़्राइन एक ओर तनाव को कम करता है तो दूसरी ओर मानसिक तनाव से निपटने में शरीर की क्षमता बढ़ाता है।

कसरत पर हुए शोध के अनुसार, ख़ास तौर पर एरोबिक कसरत करने का अवसाद सहित अनेक बीमारियों से छुटकारा मिलने में बहुत बड़ा रोल माना जाता है। रोज़ाना 30 मिनट की कसरत, अवसाद को दवाओं और मानसिक उपचार जैसी शैलियों की तरह कम करती है। कसरत से एन्डॉर्फ़िन नामी हार्मोन बढ़ता है और इंसान ख़ुद को ख़ुश महसूस करता है। इसी तरह कसरत से सोरोटोनिन नामी हार्मोन भी बढ़ता है जिसका इंसान का व्यवहार पर असर पड़ता है।

कसरत समाज के सभी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक बहुत ही कम ख़र्च वाली आसान शैली है।                 

अगर आप अवसाद से ग्रस्त हैं तो इससे बचने के लिए डॉक्टर कसरत पर अधिक बल देते हैं।

स्कॉटलैंड के शोधकर्ताओं ने अपने शोध में बताया है कि अगर तेज़ रफ़्तार से पैदा चला जाए तो डिप्रेशन अर्थात अवसाद से मुक्ति मिल सकती है।

हालांकि शोध में यह बात पहले ही साबित हो चुकी है कि कड़ी मेहनत से अवसाद को ख़त्म किया जा सकता है लेकिन कम मेहनत से भी इसे ख़त्म करने की बात अब तक स्पष्ट नहीं थी।

मेंटल हेल्थ ऐन्ड फ़िज़िकल हेल्थ एक्टिविटी में प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया है कि टहलने का अवसाद को ख़त्म करने में कितना प्रभाव पड़ सकता है।

शोधपत्र में आया है कि 10 में से एक व्यक्ति कभी न कभी अवसाद ग्रस्त ज़रूर रहा होगा। शोध में यह भी कहा गया है कि चिकित्सक दवा के ज़रिए अवसाद का इलाज करते हैं लेकिन इससे मुक्ति पाने के लिए घूमने-टहलने का भी सुझाव देते हैं।

स्टर्लिंग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि टहलने से अवसाद का इलाज हो सकता है। शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि घूमना टहलना और शारीरिक व्यायाम बहुत लाभदायक है।

उनका कहना है कि टहलने का फ़ायदा यह है कि इसे सभी लोग कर सकते हैं। इसमें बहुत कम ख़र्च होता है और इसे दिनचर्या में आसानी से शामिल किया जा सकता है।

हालांकि शोधकर्ताओं का सुझाव है कि इस विषय पर और अधिक शोध की ज़रूरत है। उनके अनुसार, अभी तक इस बात का अध्ययन नहीं हुआ है कि कितनी तेज़, कितनी देर और कहां घूमने फिरने से इसका लाभ मिलता है।

इस बारे में आपको एक्सटर यूनिवर्सिटी में अवसाद, तनाव और आदतों का अध्ययन करने वाले प्रोफ़ेसर एडरियन टेलर के विचार से अवगत कराते हैं। वह कहते हैं कि घूमने टहलने की विशेषता यह है कि इसे हर इंसान करता है।

प्रोफ़ेसर टेलर के अनुसार, डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारी में घूमना-फिरना लाभदायक होता है। उनका कहना है कि कसरत कष्ट निवारण में इसलिए मददगार साबित होती है क्योंकि इससे अवसाद से पीड़ित लोगों का ध्यान दूसरी ओर केन्द्रित हो जाता है और वे अच्छा महसूस करने लगते हैं।

मेंटल हैल्थ चैरिटी माइंड के मुख्य कार्यकारी पॉल फ़ार्मर का कहना है कि आपको अलग अलग तरह से कसरत करते रहना चाहिए जैसे साइकिल चलाना, बाग़बानी या फिर पानी में तैरना वग़ैरह। उनका कहना है कि अगर किसी दूसरे व्यक्ति के साथ कसरत करते हैं तो इसका सकारात्मक असर ज़्यादा होता है क्योंकि इससे सामाजिक नेटवर्क भी विकसित होता है।        

इस बात का उल्लेख  भी ज़रूरी लगता है कि कसरत के लिए कौन सा समय अधिक उपयुक्त है।

वैसे आम तौर पर लोगों को कसरत के लिए प्रेरित करने के लिए यह कहा जाता है कि आप कसरत कभी भी कर सकते हैं लेकिन इसके लिए सबसे अच्छा वक़्त सुबह का माना गया है। हालांकि शुरु में सुबह कसरत करना ज़रा मुश्किल लगता है लेकिन अगर आदत हो जाए तो फिर इससे अच्छा कोई समय नहीं। कसरत से आप ख़ुद अपने अंदर फ़र्क का आभास करेंगे।

सुबह कसरत करने का बहुत बड़ा फ़ायदा तनाव के स्तर में कमी है। सुबह की कसरत से आप शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक तौर पर फ़ायदा महसूस करेंगे। सुबह व्यायाम करने से आप अधिक ऊर्जावान महसूत करते हैं और तनाव स्तर में कमी आती है। अगर आपका कार्यक्षेत्र ऐसा है जहां उच्चस्तरीय तनाव का सामना होता है तो आपके लिए सुबह के समय कसरत बहुत ज़रूरी है।

कसरत पर हुए शोध के अनुसार, ख़ास तौर पर एरोबिक कसरत करने का अवसाद सहित अनेक बीमारियों से छुटकारा मिलने में बहुत बड़ा रोल माना जाता है। रोज़ाना 30 मिनट की कसरत, अवसाद को दवाओं और मानसिक उपचार जैसी शैलियों की तरह कम करती है। कसरत से एन्डॉर्फ़िन नामी हार्मोन बढ़ता है और इंसान ख़ुद को ख़ुश महसूस करता है। इसी तरह कसरत से सोरोटोनिन नामी हार्मोन भी बढ़ता है जिसका इंसान का व्यवहार पर असर पड़ता है।

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