Jun १७, २०१९ १३:०१ Asia/Kolkata

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मनुष्य का व्यक्तित्व बनाने में तीन महत्वपूर्ण कारकों की भूमिका होती है। 

निजी, पारिवारिक और सामाजिक।  समाजशास्त्रियों का यह कहना है कि मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास में सबसे बड़ी भूमिका परिवार की होती है।  यह बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि जीवन के प्रति सकारात्मक सोच, जीवन की सफलता का रहस्य है।  इसीलिए जीवन के प्रति मनुष्य को सदैव सकारात्मक सोच के साथ ही ईश्वर पर भरोसा करना चाहिए।

जैसाकि हम बता चुके हैं कि मनुष्य का वक्तित्व बनने में परिवार की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है।  अगर परिवार का वातावरण अच्छा हो तो बच्चे के भीतर आत्मविश्वास, प्रेम, स्वावलंबन, दायित्वों के निर्वाह और बलिदान की भावना जागृत होती है।  इस प्रकार एसा बच्चा, बड़े होकर आदर्श व्यक्तित्व का स्वामी बनता है।  इसके विपरीत अगर किसी परिवार का वातावरण उचित न हो तो उस परिवार में पलने वाला बच्चा खराब व्यक्तित्व का स्वामी बनेगा जो समाज के लिए समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।

व्यक्ति के व्यक्तित्व बनने का सबसे उचित समय बचपन होता है।  अगर किसी बच्चे का बचपन में सही प्रशिक्षण किया गया हो तो इसका लाभ यह होता है कि युवा अवस्था में वह समस्याओं और कठिनाइयों का डटकर मुक़ाबला करते हैं।  ऐसा युवा कठिनाइयों के समय बहुत ही स्थिर और दृढ़ रहता है।  इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम, पिता पर संतान के अधिकारों के संदर्भ में कहते हैं कि बाप को चाहिए कि वह अपने बेटे को अच्छे संस्कार दे, उन्हें ईश्वर के बारे में बताए और यह समझाए कि वे ईश्वर के आदेशों का अनुसरण करें।  इस प्रकार वे लक्ष्यपूर्व जीवन व्यतीत करें।

इस्लाम की दृष्टि में परिवार, एसी संस्था है जिसमें व्यक्तित्व का निर्माण होता है।  यही कारण है कि इस्लाम में अच्छे परिवार के गठन पर बल दिया गया है।  परिवार रूपी केन्द्र के दो प्रमुख होते हैं एक पति और दूसरी पत्नी।  यह दो सदस्य जितना भी अनुशासन और अच्छे ढंग से परिवार का संचालन करेंगे उतने ही अच्छे ढंग से उनके बच्चों का प्रशिक्षण होगा।  इसीलिए कहा गया है कि अच्छा जीवनसाथी एसी महा पूंजी है जिसका पूरे जीवन लाभ मिलता है।  यही कारण है कि इस्लाम में अच्छे जीवनसाथी के चयन पर बहुत बल दिया गया है।  इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि उचित जीवन साथी का होना व्यक्ति का सौभाग्य है।

हमने बताय था कि पवित्र क़ुरआन में चार प्रकार के परिवारों का उल्लेख किया गया है।  इनमे से दो प्रकार के परिवारों का उल्लेख किया जा चुका है।  एक प्रकार का परिवार एसा है जिसमें पति निरंकुश और उदंडी तथा पत्नी मोमिन।  दूसरे प्रकार का परिवार, पहले के बिल्कुल विपरीत है।  इसमें महिला निरंकुश और उदंडी तथा पुरूष अच्छा और मोमिन।

पवित्र क़ुरआन की बहुत सी आयतों में परिवार के प्रति मनुष्य के दायित्वों का उल्लेख किया गया है।  सूरे तूर की आयत संख्या 26 में कहा गया है कि ईश्वर के मानने वाले वे हैं जो अपने परिवारों के प्रति सजग रहते हैं और इससे वे निश्चेत नहीं रहते।  इस आसमानी किताब में मोमिनों से कहा गया है कि वे अपने घर के वातावरण को हर प्रकार की बुराइय से सुरक्षित रखें और परिवार के सही सदस्यों के भविष्य के प्रति संवेदनशील रहे।  सूरे तहरीम की आयत संख्या 6 के एक भाग में ईश्वर कहता है कि स्वयं को और अपने परिवार को नरक की आग से सुरक्षित रखो।  यह इसलिए कहा गया है कि परिवार रूपी सामाजिक इकाई के प्रति किसी भी प्रकार की अवहेलना से जो क्षति होगी उसकी पूर्ति कभी भी नहीं हो सकती।

पवित्र क़ुरआन ने जिन परिवारों का उल्लेख किया है उनमें से एक परिवार ऐसा होता है जिसमें पति और पत्नी दोनो ही दुष्ट और ख़राब होते हैं।  एसे परिवार के लिए अबू लहब और उसकी पत्नी का उल्लेख किया जा सकता है।  अबू लहब, अब्दुल मुत्तलिब का बेटा था।  वह पैग़म्बरे इस्लाम (स) का खुला हुआ शत्रु था।  हालांकि वह पैग़म्बरे इस्लाम (स) का चाचा था किंतु उनसे बहुत द्वेष रखता था।  अबूलहब का संबन्ध हालांकि उच्च कुल से था किंतु बुरे लोगों के साथ संपर्क के कारण बुरा आदमी बन गया था।  वह बहुत ही दुष्ट, दुस्साहसी, भ्रष्ट और झगड़ालू व्यक्ति था।  अबूलहब पैग़म्बरे इस्लाम का खुला हुआ शत्रु था।

अबूलहब की पत्नी का नाम था "उम्मे जमील"।  अबूलहब की पत्नी भी बहुत बुरी औरत थी।  वह भी पैग़म्बरे इस्लाम से द्वेष रखती थी।  अबूलहब की पत्नी सदैव पैग़म्बरे इस्लाम के विरुद्ध षडयंत्रों में व्यस्त रहती थी।  वह अपने पति को भी पैग़म्बर के विरुद्ध कार्यवाहियों के लिए उकसाती रहती थी।  वह पैग़म्बरे इस्लाम और मुसलमानों पर आए दिन कोई न कोई आरोप लगाती रहती थी।  इस प्रकार वह उन्हें परेशान करती रहती थी।  अबूलहब की पत्नी पैग़म्बरे इस्लाम और मुसलमानों को परेशान करने के लिए जंगल से कंटीले पेड़ों की शाखें काटकर लाती और उसे उनके रास्ते में डाल देती ताकि वहां से गुज़रने वालों के पैरों मे कांटे चुभ जाएं।  इस महिला ने यह काम इतना अधिक किया कि वह ईंधन ढोने वाली महिला के नाम से जानी जाने लगी थी।  इस महिला का पति अर्थात अबूलहब जब भी पैग़म्बरे इस्लाम को देखता तो वह उनपर कूड़ा या कंकड़ियां फेकता था।  इन दोनों पति और पत्नियों का काम ही यही रह गया था पैग़म्बरे इस्लाम को परेशान करना।

पवित्र क़ुरआन में अबूलहब नाम का एक सूरा है जिसमें अबूलहब और उसकी पत्नी के कामों का उल्लेख है।  यह सूरा पवित्र क़ुरआन का छोटा सूरा है जिसमें एक दुष्ट दंपति के बुरे काम के बारे में बात कही गई है।  सूरे अबूलहब का अनुवाद इस प्रकार हैः अबु लहब के हाथ टूट जाएँ और वह ख़ुद सत्यानास हो जाए।  न उसका माल ही उसके हाथ आया और (न) उसने कमाया।  वह बहुत भड़कती हुई आग में दाख़िल होगा। और उसकी पत्नी भी जो सिर पर ईंधन उठाए फिरती है और उसके गले में बटी हुई रस्सी बँधी है। 

पवित्र क़ुरआन के हिसाब से चौथे प्रकार का परिवार ऐसा परिवार होता है जिसमें पति और पत्नी दोनो ही अच्छे और चरित्रवान होते हैं।  इस प्रकार के दंपति का सबसे उत्तम नमूना हैं हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा।  संसार के समस्त दंपतियों के लिए यह दंपति आदर्श हैं। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का पूरा जीवन हम सबके लिए आदर्श है।  इस्लामी शिक्षाओं में अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम के प्रदर्शन को विशेष महत्व दिया गया है।  इस काम से दामपत्य जीवन में प्रगाढ़ता आती है।  इस काम से परिवार रूपी इमारत में मज़बूती आती है।  जिन परिवारों में प्रेम नहीं होता उनके टूटने की संभावना बहुत अधिक पाई जाती है।  वैवाहिक जीवन को सफल बनाने के लिए पति-पत्नी को आपस में प्रेमपूर्ण ढंग से बात करनी चाहिए।

अंत में हम यह कहना चाहते हैं कि वह व्यक्ति जो अपने जीवन में परिपूर्णता का इच्छुक है और बुराइयों से बचना चाहता है उसके लिए आदर्श परिवार का होना बहुत ज़रूरी है।  जब आदर्श परिवार में किसी का प्रशिक्षण होता है तो वह अपने जीवन में परिपूर्णता प्राप्त कर सकता है।  सफल और अच्छे परिवार के बारे में हम गणित के एक ज्ञानी का दृष्टिकोण पेश करने जा रहे हैं।   उन्होंने संख्याओं का उल्लेख करते हुए चरित्रवान होने के महत्व को इस प्रकार समझाया है।  वे कहते हैं कि यदि कोई महिला या पुरूष अच्छे स्वभाव का है तो उनको 1 नंबर दिया जाएगा।  अब अगर वह सुन्दर भी है तो 1 नंबर के आगे 0 बढ़ा दिया जाएगा इस प्रकार से उसे मिले 10 नंबर।  अब अगर वह धनवान भी हो तो 1 नंबर के आगे दो शून्य बढ़ा दिये जाएंगे अर्थात 100 नंबर हो जाएंगे।  यदि वह उच्च का भी स्वामी है तो 1 नंबर के आगे तीन शून्य बढ जाएंगे इस प्रकार उसके नंबर होंगे एक हज़ार 1000/ इसी प्रकार अच्छी विशेषताओं के बढ़ने से उसके नंबर भी बढ़ते जाएंगे किंतु यह वही व्यक्ति चरित्रवान के बदले चरित्रहीन हो जाए तो फिर उसके पास कुछ नहीं रह जाएगा क्योंकि चरित्र का एक नंबर उससे छिन जाएगा और जब एक नंबर की संख्या हट जाएगी तो फिर शून्य कितने भी रख दिये जाएं उनका कोई महत्व नहीं रह जाता।  इस प्रकार कहा जा सकता है कि मनुष्य के लिए चरित्र के बिना सबकुद शून्य है, वह बेकार है।

 

टैग्स