Jun १७, २०१९ १६:३५ Asia/Kolkata

हमने ईरानी सूफ़िज़्म और ईरानी सूफ़ियों के बारे में आपको बताया था ।

ईरान के प्रसिद्ध सूफ़ी और तीसरी शताब्दी हिजरी क़मरी के प्रसिद्ध परिज्ञानी हुसैन बिन मंसूर हल्लाज की जीवनी, उनकी सुन्दर बातें और उनके मृत्यु के बारे में आपको बताया था। उन्होंने दुनिया में ऐसा जोश और उत्साह भर दिया कि उनकी मृत्य के बाद शताब्दियों से ईरानी और पश्चिमी विशेषज्ञ और शोधकर्ता उनके बारे में चर्चा करते आ रहे हैं।  उनकी बातों में ऐसा जादू था जिसे आज भी ईरान, भारत, तुर्किस्तान तथा, चीन और मान्चीन के विभिन्न शहरों में उनके अनुयायी और उनके चाहने वालों को देखा जा सकता है। प्राचीन फ़ारसी में मौजूदा चीन के सिन कियांग राज्य के अलावा क्षेत्रों को माचीन कहते थे।

हमने बताया था कि हल्लाज का अस्ली नाम हुसैन और उनके पिता का नाम मंसूर था। प्राचीन किताबों व स्रोतों में हल्लाज की पैदाइश का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इस्लामी इनसाइक्लोपीडिया में उनके जन्म का साल 244 हिजरी क़मरी बराबर 858 ईसवी बताया गया है। फ़्रांस के तीन पूर्व विदों लुई मासिन्यून ने अपनी किताब "हल्लाज की मुसीबतें" हेनरी कॉर्बिन ने इस्लामी दर्शनशास्त्र के इतिहास में और रोजे ऑर्नल्ड ने हल्लाज का मत नामक किताब में हल्लाज के जन्म का साल 244 या इसके आस- पास माना है परंतु इनमें से किसी भी किताब में इस दावे की सच्चाई में कोई दस्तावेज़ पेश नहीं गये हैं। ऐसा लगता है कि हल्लाज के जन्म का साल अनुमान पर आधारित है जिसके ज़रिए शोधकर्ताओं ने हल्लाज के जीवन की घटनाओं का अनुमान लगाया है। कुछ स्रोतों जैसे जामी की नफ़हातुल उन्स किताब और हल्लाज के बारे में कहे गए शेर में हल्लाज के जन्म का साल 248 हिजरी क़मरी बताया गया है।                                

हल्लाज का जन्म फ़ार्स प्रांत के बैज़ा शहर के उपनगरीय भाग में स्थित तूर नामक गांव में हुआ था। वह बचपन में ही अपने परिवार के साथ इराक़ के वासित नगर पलायन कर गए। हल्लाज शब्द का अर्थ रूई को बीज से अलग करने या रूई धुनने के हैं। शुरु में उनकी यही उपाधि थी और धीरे- धीरे उनका अस्ल नाम उनकी उपाधि के सामने दब गया।

 

हल्लाज ने ज्ञान अर्जित करने के लिए युवाकाल से ही यात्रा आरंभ की और सहल बिन अब्दुल्लाह तुस्तरी, अम्र बिन उसमान मक्की और प्रख्यात ईरानी परिज्ञानी जुनैद नेहावंदी जैसे अपने समय के बड़े गुरूओं की शिष्यता ग्रहण की। उन्होंने उन सब के निकट एक होनहार शिष्य के रूप में विशेष स्थान प्राप्त किया। उसी समय उन्होंने पवित्र नगर मक्का की यात्रा की। ईरान के अहवाज़ और तुस्तर नगरों में बहुत से लोग उनके अनुयाई हो गये थे। कहा जाता है कि इसी चीज़ के कारण कुछ सूफी उनसे ईर्ष्या करने लगे और हल्लाज के खिलाफ पत्र लिखने लगे। सूफियों के इस कार्य से हल्लाज का दिल बहुत टूट गया और अपने शरीर से उन्होंने सूफ़ियों वाला वस्त्र उतार दिया और आम लोगों की तरह रहने लगे और सूफीवाद को तिलांजली दे दी।

हल्लाज ने सूफीवाद को तिलांजली देने के बाद बगदाद को छोड़ दिया और शुस्तर चले गये वे वहां दो वर्षों तक रहे परंतु इसके बाद वहां भी न रहे और खुरासान और फार्स चले गये। इन यात्राओं के दौरान हल्लाज का कार्य लोगों को उपदेश देना और किताबों का लिखना रहा। कुल मिलाकर यह यात्राएं पांच वर्षों तक लंबी खिंची। हल्लाज दूसरी बार 291 हिजरी कमरी में पवित्र नगर मक्का काबे के दर्शन के लिए गये। काबे का दर्शन करने के बाद वह बग़दाद चले गये और वहां वह एक वर्ष तक रहे। उसके बाद वह तीसरी बार काबे के दर्शन के लिए पवित्र नगर मक्का गये। इस बार वह समुद्र के रास्ते सबसे पहले भारत गये और वहां से तुर्किस्तान और फिर अंत में मक्का गये और दो वर्षों तक वहां रहे। मक्का के अरफात नामक मैदान में जिस तरह समस्त हाजी अपने सगे- संबंधियों का नाम लेते हैं ताकि महान ईश्वर उन पर अपनी दया व कृपा करे उसी तरह हल्लाज चिल्लाते और कहते थे” हे ईश्वर मुझे इससे अधिक निर्धन कर दे। मेरे पालनहार मुझे अपमानित कर ताकि लोग मुझ पर लानत करें। हे पालनहार! लोगों को मुझसे विरक्त कर दे ताकि मेरी ज़बान से आभार और शुक्र के लिए जो शब्द निकलें वह केवल तेरे लिए हों और मुझे तेरे अलावा किसी का एहसान नहीं चाहिये। इस यात्रा के बाद 296 हिजरी कमरी में हल्लाज बगदाद चले गये और वहां वह लोगों को उपदेश देने लगे।

कहा जाता है कि जब वह लोगों को उपदेश देते थे तो उनके उपदेश में सूफीवाद की विचारधारा की झलक दिखाई देती थी और और साथ ही वह महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम के बारे में भी बात करते थे। चूंकि बगदाद में ख़लीफा के निकटवर्ती कुछ लोग भी हल्लाज के अनुयाई हो गये। इसलिए हल्लाज के विरोधी और उनसे ईर्ष्या करने वाले भयभीत हो गये और उन्होंने उनकी गतिविधियों को रोके जाने और उनकी गिरफ्तारी की भूमि प्रशस्त कर दी। जनता हुसैन बिन मंसूर हल्लाज में एक सुधारवादी और मुक्तिदाता को देखती थी। यही कारण था कि बग़दाद के मुफ़्ती उनसे ईर्ष्या करने लगे और उन्होंने बग़दाद के अधिकारियों को भी हल्लाज का विरोधी बना दिया।  

रोचक बात यह है कि बगदाद में खलीफा की मां भी हल्लाज के अनुयाइयों में थी। वास्तव में हल्लाज की जो बातें होती थीं उसके कारण बहुत से लोग उनके अनुयाई बन गये थे यहां तक कि कुछ अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि जादू और हाथ की सफ़ाई की तरह नज़र आने वाले हल्लाज के क्रियाकलाप की वजह से बहुत से आम लोग हल्लाज के अनुयाई बन गये थे।

अंतः बग़दाद के तत्कालीन शासकों और धर्मगुरुओं ने हल्लाज बिन मंसूर पर विभिन्न आरोप लगाकर उन्हें जेल  डाल दिया। आठ साल मुक़द्दमा चलने के बाद उनकी हत्या का आदेश जारी हो गया। इस प्रकार 24 ज़िल्हिज्जा 309 हिजरी क़मरी में उन्हें फांसी पर लटा दिया गया।

हल्लाज, इस्लामी परिज्ञान व सूफ़ीवाद की प्रसिद्ध हस्तियों में हैं, उनकी जीवनी और उनकी बातें जहां उनकी ज़िदगी में ध्यान का केन्द्र रहीं वहीं उनकी मौत के बाद अधिक लोगों के ध्यान का केन्द्र बने। हल्लाज की मौत के बाद, सूफ़ीवाद के बहुत से महापुरुष जो उनकी बातों से सहमत थे, वह बहुत ही सावधानीपूर्वक ढंग से हल्लाज के बारे में बातें करते थे और अपनी किताबों में उन्होंने इस बात की ओर संकेत किया है कि हल्लाज की मौत के काल में हल्लाज के साथ उनका कैसा बर्ताव हुआ करता था। हल्लाज ने सूफ़ियों, परिज्ञानियों, शायरों की आने वाली पीढ़ियों और कुल मिलाकर समाज पर बहुत अधिक प्रभाव डाला था।  

हल्लाज के काल के बहुत से शायरों और परिज्ञानियों की किताबों में हल्लाज की ज़िंदगी और मौत के प्रभाव और उनके विचारों को भलिभांति देखा जा सकता था। अत्तार नैशापूरी, मौलवी, हाफ़िज़, शफ़ीई कदकनी तथा ग़ैर ईरानी शायर एडोनीस, उन शायरों में हैं जिन्होंने हल्लाज, उनकी जीवनी और उनके विचारों पर विशेष रूप से ध्यान दिया। छठीं और सातवीं शताब्दी हिजरी क़मरी के प्रसिद्ध शायर और परिज्ञानी अत्तार नैशापूरी, उन शायरों में हैं जिन्होंने अपने शेरों में शब्दों और विचारों को हल्लाज से बहुत अधिक निकट किया है। उन्होंने अपने दीवानों और मस्नवियों में हल्लाज की ओर अपने झुकाव और स्वयं पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख किया है। तज़केरतुल औलिया नामक पुस्तक में भी हल्लाज की जीवनी को बहुत ही दर्दनाक और हृदयक विदारक ढंग से बयान किया गया है। अत्तार ने मन्तेक़ुत्तैयर नामक पुस्तक में व्यापक रूप से हल्लाज के बयानों को प्रतिबिंबित किया है। अत्तार के शेरों में हल्लाज से उनकी श्रद्धा और उनके विचारों से उनके प्रभावित होने को भलि भांति देखा जा सकता है।

कहा जाता है कि अत्तार और हल्लाज की जीवनी एक दूसरे से बहुत अधिक मिलती जुलती है। हल्लाज की ज़िंदगी भी शंका और संदेह का शिकार रही जबकि अत्तार की जन्म दिन की तारीख़ और उनकी मौत की तारीख़ भी सही से पता नहीं है। दोनों ही लोगों और उनके दुखों से अवगत थे, लोगों का दर्द समझते थे। आम जनता के साथ उनका लेनदेन और उठना बैठन था, उनके शासकों और सरकार से कोई वास्ता नहीं था, उन्होंने कभी किसी की चापलूसी नहीं की, हमेशा से अत्याचार और अत्याचार के विरोधी रहे हैं। उनकी बातें दिखावे से दूर हुआ करती थीं, उनकी बातों में निष्ठा दिखाई देती हैं। दोनों के बारे में बहुत सी कहानियां और क़िस्से बयान किए गये। हल्लाज व अत्तार के बीच आत्मिक,वैचारिक और बौद्धिक समानताएं इतनी सीमा तक पहुंच गयी थीं कि मानो हल्लाज और अत्तार की आत्माएं एक दूसरे में वीलीन हो गयीं हो और वहीं शब्द थे जो बाद में अत्तार के मुंह से निकले।  मौलवी ने अत्तार की मौत के वर्षों बाद हल्लाज से अत्तार नैशापूरी के प्रभावित होने के बारे में उन्हीं के शब्दों को बयान करते हुए लिखते हैं कि मेरे जाने से तनिक भी भयभीत न होना, दुखी न होना कि मंसूर का प्रकाश, डेढ़ सौ साल बाद फ़रीदुद्दीन अत्तार पर चमका और उनका मार्गदर्शक हो गया।

अत्तार मन्तेक़ुत्तैर में हल्लाज के विचारों से स्वयं के प्रभावित होने के बारे में कहते हैं। यह प्रभाव, हल्लाज के विचारों से हमदर्दीद और परिचित होने का परिणाम है। उन्होंने परोक्ष या अपरोक्ष रूप से हल्लाज के पंथ और उनकी शैलियों को बयान किया और हमारी इस बात की पुष्टि मन्तेक़ुत्तैर किताब के कुछ शेरों को पढ़ने के बाद हो जाती है।

अत्तार नैशा पूरी ने हल्लाज के कुछ विचारों और उनके कुछ बयानों को नये अंदाज़ में पेश किया। यहां पर यह कहा जा सकता है कि जो बातें बयान की गयीं है संभव है कि वह कुछ बड़े परिज्ञानियों के यहां भी पायी जाती हों किन्तु अत्तार द्वारा बयान किए गये तरीक़ों और विचारों को देखने से हल्लाज से उनकी निकटता का भलि भांति पता चलता है। वास्तव में मन्तेक़ुत्तैर ने हल्लाज की दर्दभरी आवाज़ को किसी दर्दनाक तरीक़े से पेश किया यह देखने योग्य है।

अत्तार नैशापूरी ने ईश्वर की पहचान और इस बात को बयान करने के लिए कि सत्यप्रेमी व्यक्ति को पहचान वाली नज़रें रखनी चाहिए ताकि  सही पहचान कर सके, हल्लाज की बात को तर्क के रूप में पेश करते हैं। (AK)

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