Jun १८, २०१९ ११:५३ Asia/Kolkata

इस कड़ी में हम ईरान में तीसरी शताब्दी हिजरी क़मरी के मशहूर सूफ़ी हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपने जीवन, अपनी बातों यहां तक कि अपनी मौत से दुनिया में बड़ी हलचल पैदा कर दी और शताब्दियों का समय बीत जाने के बावजूद आज भी ईरानी व पश्चिमी शोधकर्ता उनके बारे में लिख रहे हैं।

ईश्वर की याद में लीन रहने वाली इस हस्ती ने ईरान, भारत, तत्कालीन तुर्किस्तान, चीन और माचीन के शहरों में बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित किया।

प्राचीन फ़ारसी में मौजूदा चीन के सिन कियांग राज्य के अलावा क्षेत्रों को माचीन कहते कहा जाता था।

हमने कहा कि पश्चिम एशिया के विशेषज्ञों सहित दूसरे विशेषज्ञों ने हुसैन बिन मंसूर हल्लाज को पहचनवाने के लिए काफी प्रयास किये परंतु उसके बावजूद अभी भी उनकी वास्तविक शख़्सियत बहुत से आयाम से स्पष्ट नहीं हैं।

हल्लाज का अस्ली नाम हुसैन और उनके पिता का नाम मंसूर था। प्राचीन किताबों व स्रोतों में हल्लाज की पैदाइश की तारीख का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इस्लामी इनसाइक्लोपीडिया में उनके जन्म का साल 244 हिजरी क़मरी बराबर 858 ईसवी बताया गया है। फ़्रांस के तीन पूर्व विद लुई मासिन्यून ने अपनी किताब "हल्लाज की मुसीबतें" हेनरी कॉर्बिन ने इस्लामी दर्शनशास्त्र के इतिहास में और रोजे ऑर्नल्ड ने हल्लाज का मत नामक किताब में हल्लाज के जन्म का साल 244 या इसके आस- पास का समय माना है परंतु इनमें से किसी भी किताब में इस दावे की सच्चाई में कोई दस्तावेज़ पेश नहीं किए गये हैं। ऐसा लगता है कि हल्लाज के जन्म का साल अनुमान पर आधारित है जिसके ज़रिए शोधकर्ताओं ने हल्लाज के जीवन की घटनाओं के समय का अनुमान लगाया है। कुछ स्रोतों जैसे जामी की नफ़हातुल उन्स किताब और हल्लाज के बारे में की गयी शायरी में हल्लाज के जन्म का साल 248 हिजरी क़मरी बताया गया है।

हल्लाज का जन्म फ़ार्स प्रांत के बैज़ा शहर के उपनगरीय भाग में स्थित तूर नामक गांव में हुआ था। वह बचपन में ही अपने परिवार के साथ इराक़ के वासित नगर पलायन कर गए।

लोग हुसैन बिन मंसूर हल्लाज को एक सुधारक और मुक्तिदाता के रूप में देखते थे। उनके बारे में कहा गया है कि वह जहां भी जाते थे बहुत अधिक लोग उनके अनुयाई हो जाते थे और ये चीज़ बगदाद के धर्मशास्त्रियों और शासकों के भय का कारण बनी और अंततः बग़दाद के तत्कालीन शासकों और धर्मशास्त्रियों ने हल्लाज पर विभिन्न आरोप लगाकर उन्हें जेल में डाल दिया। आठ वर्षों तक उन पर मुकद्दमा चलाया गया और अंततः उनके खिलाफ मौत का निर्णय सुनाया गया और 24 ज़िल हिज्जा सन् 309 हिजरी क़मरी में उन्हें फांसी दे दी गयी। पिछले कार्यक्रमों में हमने हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के विचारों से आपको अवगत कराया था।

हमने इस बात पर चर्चा की थी कि हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के विचार, उनकी ज़िन्दगी और मौत ने किस तरह सूफियों की पीढ़ियों, शायरों और समाजों पर प्रभाव डाला था। इसी प्रकार हमने पिछले कार्यक्रम में यह कहा था कि अत्तार, मौलवी और हाफिज़ जैसे ईरानी और ग़ैर ईरानी शायर हैं जिन्होंने हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के जीवन, उनके अंजाम और उनके विचारों पर विशेष दृष्टि डाली है। अत्तार ने हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के जीवन, मौत और विचारों पर जो दृष्टि डाली है वह बहुत महत्वपूर्ण है और उसमें से हम कुछ की ओर संकेत कर रहे हैं।

शैख फरीदुद्दीन अत्तार का मानना था कि महान ईश्वर की पहचान के लिए अपनी जान सहित हर चीज़ को कुर्बान कर देना चाहिये। अत्तार, हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के जीवन विशेषकर उनके अंजाम को बेहतरीन आदर्श मानते हैं। जैसाकि मंसूर हल्लाज ने कहा है कि ईश्वर के प्रेम में दो रकअत नमाज़ है और उसके लिए वज़ू नहीं होना चाहिये किन्तु ख़ून से अत्तार का कहना है कि जो चीज़ रास्ते के तय करने को सरल बनाती है वह प्रेम है और प्रेम से बेहतर कोई चीज़ नहीं है।

हुसैन बिन मंसूर हल्लाज दुःखी थे उन्हें सत्य का दुख था और वह अपने पूरे अस्तित्व के साथ इस दुख व पीड़ा को चाहते थे वह लेशमात्र भी इससे नहीं डरते थे। अत्तार भी इसी तरह                                                                                    के थे। जो प्रेम में दुखी होता है वह हर पीड़ा को नेअमत व अनुकंपा समझता है। अत्तार के अनुसार दर्द सहना और विपत्ति का देखना प्रतिष्ठा की निशानी है न कि अपमान की।

हुसैन बिन मंसूर हल्लाज अपने जीवन में कभी भी अपने विरोधियों और दुश्मनों की ओर से दी जाने वाली पीड़ाओं से भयभीत नहीं हुए। यहां तक कि जिन लोगों ने उनके खिलाफ मौत का आदेश दिया और जो आम लोग थे उन सबको माफ कर दिया। हल्लाज कहते थे कि ये लोग धर्म में पक्षपात के कारण मेरा विरोध कर रहे हैं। इस बारे में हल्लाज से संबंधित विभिन्न कहानियां बयान की गयी हैं।

अहमद बिन फातक कहते हैं” नौरोज़ की ईद को हम हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के साथ नेहावंद में थे। ईद की आवाज़ हमने सुनी। हल्लाज ने कहा यह कैसी आवाज़ है। मैंने कहा कि यह ईद की आवाज़ है। इस पर हल्लाज ने एक आह भरी और कहा मेरा नौरोज़ कब होगा? मैंने कहा तुम्हारे दृष्टिगत कौन सा दिन है? इस पर उन्होंने कहा जिस दिन मुझे फांसी दी जायेगी। उसके 13 साल बाद हल्लाज को फांसी पर लटकाया गया उन्होंने फांसी के फंदे से मुझे देखा और कहा कि हे अहमद अब मेरा नौरोज़ आया है। मैंने कहा कि हे शैख इस दिन तुमको क्या ईदी मिली? इस पर उन्होंने कहा हां एक क्षण का विश्वास और मैं इस क्षण से शर्मीन्दा हूं परंतु मैं इसकी आरज़ू करता था कि खुशी का यह क्षण जल्दी आये।

सूफीवाद की दृष्टि से इस प्रकार की विपत्ति प्रशंसनीय है और ईश्वर की राह में चलने वाले हर सूफी को इस प्रकार की विपत्ति सहन करने का अवसर नहीं मिलता है। इस विपत्ति का सहन करना धैर्य और खुशी के साथ था और इसने हल्लाज जैसी हस्ती को शूरवीरता का रूप प्रदान कर दिया है। “रूज़बहान बक़्ली” हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के बारे में कहते हैं कि हल्लाज ने विपत्ति और नेअमत की ओर इशारा किया है और जब उनसे इन दोनों चीज़ों के बारे में पूछा गया तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि विपत्ति उससे है और नेअमत भी उसी से है यानी महान ईश्वर से।  

“रुहुल अरवाह समआनी” नाम की किताब में हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के हवाले से कुछ शेरों को बयान किया गया है जिनके अनुवाद इस प्रकार हैं। तू सत्य है कि मुझ पर विपत्तियों में वृद्धि कर दे, विपत्तियों के ख़जाने के द्वार को खोल दे, हर क्षण विपत्ति डाल, मेरे दिल को बलाओं व मुसीबतों का मैदान बना दे जैसा तू चाह कर, मुझ पर मुसीबत के बाणों की वर्षा कर दे उस वक्त मुझ पर दृष्टि डाल अगर तूने देखा कि मेरा दिल तेरे प्रेम से कण बराबर भी विचलित हो गया है तो आदेश कर कि हुसैन तेरे रास्ते से हट गया है।“

इस दर्द व पीड़ा चाहने का नतीजा महान व सर्वसमर्थ ईश्वर का सामीप्य है और उसकी याद में स्वयं को मिटा देना है।

हुसैन बिन मंसूर हल्लाज ने अपनी किताब में कहा है कि सबने ब्रह्मांड में देखा और ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध किया और मैंने स्वयं में देखा और स्वयं अपनी आंतरिक इच्छाओं से बाहर चला गया।

स्वयं में खो जाना और महान ईश्वर की याद में मिट जाना यह वही अनलहक है जो उनकी ज़िन्दगी थी और इसी विश्वास पर उन्होंने अपने प्राण को न्यौछावर कर दिया। अत्तार का मानना है कि जो भी ईश्वर की याद में मिट जाये उसने स्वयं को आज़ाद कर लिया। हुसैन बिन मंसूर हल्लाज ने स्वयं को महान ईश्वर की याद में मिटा दिया और अपनी जान दे दी।

इस बारे में हल्लाज ने कहा है कि हे ईश्वर मैं अपने दिल को हर उस चीज़ से पवित्र करता हूं जो तेरे अलावा हैं किन्तु स्वयं को उनसे बेगाना कर लेने और तेरे साथ हो जाने से मुझे कुछ मिला नहीं है हे लोगो जब सत्य किसी दिल पर हावी हो जाता है तो ईश्वर के अलावा जो कुछ उस दिल में होता है उससे दिल को खाली व पवित्र कर देता है।

जिस प्रेमी का समूचा अस्तित्व उसके प्रेम में डूबा हुआ है जिससे वह प्रेम करता है तो वह किसी अन्य के बारे में सोचता भी नहीं और किसी चीज़ पर ध्यान नहीं देता है और जिससे प्रेम करता है जो कुछ भी उससे मिले वह सुन्दर व अच्छा होता है। “तज़केरतुल औलिया” नामक किताब में अत्तार ने हुसैन बिन मंसूर हल्लाज का एक कथन लिखा है कि हल्लाज से पूछा गया कि ईश्वर का मार्ग कैसा है? तो हल्लाज ने जवाब दिया दो कदम है एक क़दम दुनिया से पीछे हट जाओ और एक कदम परलोक की ओर बढ़ा लो तो मौला यानी ईश्वर तक पहुंच जाओगे।

“मन्तिकुत्तैर” अत्तार की एक किताब है उस किताब के एक भाग में अत्तार, हुसैन बिन मंसूर हल्लाज को याद करते हैं और छोटी- छोटी कहानियों में उनके जीवन की घटनाओं को किसी विषय पर साक्ष्य के रूप में या किसी बात पर बल देने के लिए बयान किया है। अत्तार ने कुछ शेरों में हुसैन बिन मंसूर हल्लाज को फांसी पर दिये जाने की घटना बयान करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि जिसने प्रेम की राह में कदम उठाया है उसके लिए यह छोटी चीज़ है।

 

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