Jul ०१, २०१९ १३:३० Asia/Kolkata

समय का प्रबंधन या उसका सदुपयोग बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है। 

समय के महत्व को समझाते हुए इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम कहते हैं कि अपने दैनिक जीवन को तुम चार भागों में विभाजित करो।  इन चारों में से एक भाग ईश्वर की उपासना के लिए हो, दूसरा हिस्सा आजीविका कमाने के लिए, तीसरा हिस्सा लोगों से मिलने-जुलने के लिए और चौथा हिस्सा, ग़ैर हराम मनोरंजन के लिए होना चाहिए।

समय का सदुपयोग करके हम अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को बढ़ा सकते हैं।  समय के सदुपयोग से तातपर्य यह नहीं है कि हर काम को जल्दी-जल्दी किया जाए बल्कि उसे उसके समय पर ही अंजाम दिया जाना चाहिए।  समय का सदुपयोग करके ही मनुष्य सफल जीवन व्यतीत कर सकता है।  इस बारे में बहुत सी पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं और वर्तमान समय में इंटर नेट पर भी इस विषय से संबन्धित बहुत अधिक सामग्री मौजूद है।  हम इनकी सहायता से समय के सदुपयोग के महत्व को सरलता से समझकर इस बारे में कोई निर्णय ले सकते हैं।  समय के महत्व के संदर्भ में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि समय, बादलों की भांति तेज़ी से गुज़र जाता है।  ऐसे में मनुष्य को अवसरों से लाभ उठाना चाहिए।

हमने समय के उचित प्रबंधन या समय के सुदपयोग के मार्ग में आने वाली बाधाओं का उल्लेख किया था।  समय के सदुपयोग के मार्ग में आने वाली बाधाओं में सदैव कल्पनाओं के संसार में रहना, ख़याली पुलाव पकाना, निर्णय लेने में देर लगाना, कमज़ोर क्रियाकलाप और ऐसी ही कुछ बातों का उल्लेख कर चुके हैं।  समय के उचित प्रबंधन के मार्ग में आने वाली बाधाओं को पहचानने और फिर उन्हें दूर करने से हमें एक सफल जीवन व्यतीत करने में सहायता मिलती है।

मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि समय के प्रबंधन की एक सबसे बड़ी बाधा, मनुष्य का अव्यस्थित होना है।  यदि कार्यालय में मेज़ पर चीज़ें फैली हुई हों, घर के भीतर चारों और फैलावा हो, कमरे में चीज़ें व्यवस्थित ढंग से न रखी हुई हों तो ऐसे में मनुष्य के भीतर एक दुर्भावना उत्पन्न होती है जिसके परिणाम स्वरूप ध्यान केन्द्रित करने में समस्याएं आने लगती हैं।  ऐसे में आत्मसम्मान की भावना डांवाडोल होने लगती है और मनुष्य स्वयं को भीतर से अक्षम समझने लगता है।

समय के प्रबंधन से संबन्धित विशेषज्ञों का कहना है कि किसी व्यक्ति की सुव्यवस्था एक चमत्कार की भांति आपके जीवन को भी प्रभावित करके उसे परिवर्तित सकती है।  जब आपको अपने कामों पर पूर्ण रूप से नियंत्रण होगा और सारे काम आपकी क्षमता के अनुरूप होंगे तो आपके भीतर अधिक क्षमता का आभास होगा।  यही विषय आपके आत्म सम्मान को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगा।  अनुशासन ऐसी विशेषता है जो यह बतलाती है कि आप स्वयं का भी सम्मान करते हैं।  यही सम्मान, आपके भीतर मूल्यवान भावनाओं को परवान चढ़ाता है।

जब ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना व्यवस्था और अनुशासन के अन्तर्गत की है तो फिर उसके बंदों को भी अपना जीवन अनुशासन से ही बिताना चाहिए।  अंतिम ईश्वरीय दूत हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा के जीवन के कामों में पूरी तरह से अनुशासन पाया जाता था।  आपके जीवन को जिस आयाम से भी देखा जाए उसमें भरपूर अनुशासन पाया जाता है।  यहां पर इस बिंदु की ओर संकेत आवश्यक है कि जीवन में अनुशासन किसी एक फैसले या किसी एक निर्णय से नहीं आता बल्कि इसके लिए आरंभ में अथक प्रयास करने पड़ते हैं।  अनुशासन को हम भी दृढ़ संकल्प के साथ धीरे-धीरे अपने जीवन में ढाल सकते हैं।

इमाम अली अलैहिस्सलाम को जब मस्जिद में नमाज़ के दौरान इब्ने मुल्जिम ने घायल कर दिया था तो उसके बाद अपने अन्तिम समय में उन्होंने अपने सुपुत्रों को संबोधित करते हुए उनसे जीवन के भीतर अनुशासन के साथ रहने का आग्रह किया था।  आपने कहा था कि मैं चाहता हूं कि तुम ईश्वरीय भय और अनुशासन के साथ जीवन व्यतीत करो।

दैनिक जीवन में किसी कार्यक्रम का न होना भी समय के सदुपयोग की एक बाधा है।  सटीक कार्यक्रम बनाकर जीवन को व्यवस्थित किया जा सकता है।  कभी ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य को पहचानता हो, उस तक पहुंचने के मार्गों को भी जानता हो किंतु व्यवस्थित कार्यक्रम न होने की वजह से वह सफलता से वंचित रह जाता है।  उसको यह पता ही नहीं रहता कि काम को कहां से शुरू करे और कहां पर ख़त्म करे।  समय का सदुपयोग करने के लिए हर मनुष्य को अपने दैनिक कार्य के लिए एक रूपरेखा बनानी चाहिए।  वे लोग जो सफल जीवन व्यतीत करना चाहते हैं और सफलता के इच्छुक हैं उनको अपने जीवन के लिए अवश्य ही एक कार्यक्रम निर्धारित करना चाहिए।  अपने कार्यक्रम में कामों को उनके महत्व के हिसाब से सूचि में रखना चाहिए।  जो काम अधिक महत्वपूर्ण हैं उनको वरीयता देनी चाहिए।  कितना अच्छा होगा कि मनुष्य अपने जीवन के लिए एक सही कार्यक्रम बनाकर उसी के अनुरूप आगे बढ़े।  वह आजीविका अर्जित करे ताकि दूसरों का मोहताज न रहे।  इसके अतिरिक्त कुछ समय ईश्वर को याद करने में भी गुज़ारे और अपने समाज में लोगों के साथ मेलजोल भी रखे।

समय के उचित प्रबंधन की एक बाधा यह भी है कि मनुष्य, महत्वपूर्ण काम को बाद के लिए टाल दे।  किसी भी काम को हमें कल पर नहीं टालना चाहिए।  जिस काम को करने का समय आ जाए उसे फिर कल पर टालना ग़लत है।  उदाहरण स्वरूप एक लड़के ने अपने दोस्तों के साथ बैठकर पढ़ने का कोई कार्यक्रम बनाया।  बाद में जब मित्रों के साथ बैठकर पढ़ने का समय आया तो उसने इस टाल दिया।  जब इस काम को वह कई बार करेगा तो निश्चित रूप में पढ़ाई में पीछे रह जाएगा। जब कोई व्यक्ति आवश्यक काम को छोड़कर अनावश्यक काम को पहले करने लगता है तो फिर वह उस काम से दूर होने लगता है जो उसके लिए अधिक ज़रूरी है।  इस बात को जब वह अपने जीवन में अधिक दोहराता है तो सफलता से दूर होने लगता है अतः मनुष्य को पहले वे काम ही करने चाहिए जो उसके लिए प्राथमिकता रखते हों चाहे उनके करने में उसे कितनी भी समस्याओं का सामना करना पड़े।  एसा अधिकतर आलसी और कायर लोग करते हैं।  समय का दुरूपयोग करने वाला व्यक्ति अपने जीवन में कुछ भी नहीं कर पाता जिसके कारण उसे जीवन भर पछताना पड़ता है।

समय का मूल्य उसके बीत जाने के बाद ही समझ में आता है।  समय के दुरूपयोग से मनुष्य को दुख ही हाथ आता है।  समय नष्ट करने से बहुत से लोगों को निर्धनता का मुंह देखना पड़ता है।  समय वास्तव में ईश्वर की एक अनुकंपा है जिसे ईश्वर ने सबको समान रूप से दिया है।  संसार में प्रत्येक व्यक्ति के पास समान रूप से समय की एक निश्चित अवधि पाई जाती है।  हम सबके पास 24 घण्टे का समय रहता है।  अब यह हमारे ऊपर निर्भर है कि हम उसका प्रयोग किस प्रकार से करते हैं।  क्या हम उसका सदुपयोग करते हैं या फिर दुरूपयोग।  समय के दुरूपयोग को पाप कहा गया है।  जीवन में प्रगति के लिए समय का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना स्वयं में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कला है।  जीवन में सफलता की प्राप्ति का रहस्य, प्रत्येक क्षण का उचित ढंग से सदुपयोग करने में ही निहित है।

ऐसे में समय का सही मूल्यांकन करके हमे उसका सदुपयोग करना चाहिए।  ऐसा करने से हमें अपने जीवन में निश्चित रूप से सफलता मिलेगी।  हमें यह बिल्कुल ही नहीं भूलना चाहिए कि बीता हुआ समय कभी भी वापस नहीं आता।  बीते हुए समय को मनुष्य कभी भी वापस नहीं ला सकता।  समय के इस महत्व को समझते हुए मनुष्य को व्यर्थ में अपना समय व्यतीत नहीं करना चाहिए बल्कि इसका सही प्रबंधन करके रचनात्मक कार्य करते रहने चाहिए।  मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य को पहले यह देखना चाहिए कि उसका शरीर किस समय अधिक ऊर्जावान रहता है।  इसको समझकर उसे अपने जीवन के लिए कार्यक्रम बनाने चाहिए और महत्वपूर्ण कामों को उसी समय करना चाहिए जब उसका शरीर अधिक ऊर्जावान हो जो सामान्यतः सुबह का समय माना गया है।