Dec ०२, २०१९ १५:४४ Asia/Kolkata

इंसान एक ज़मीनी और आसमानी प्राणी है।

उसकी आत्मा भी उसके शरीर की भांति एक जैसी चीज़ की पुनरावृत्ति से ऊब जाती है। प्राकृतिक रूप से इंसान को विविधता और परिवर्तन की ज़रूरत और वह परिवर्तन को पसंद करता है और अगर उसका जीवन एक जैसा हो जाता है तो वह थक व ऊब जाता है। वास्तव में मनोरंजन इंसान की प्राकृतिक इच्छा है जो उसकी सृष्टि में शामिल है और जीवन के आरंभ से लेकर अंत तक उसके साथ है।

अनुभवों ने दर्शा है कि जब इंसान एक काम कई दिनों तक लगातार करता है तो उसका दिल भर जाता है और उस कार्य की गुणवत्ता कम हो जाती है जबकि अगर इंसान काम के साथ मनोरंजन भी करता रहे तो काम की गुणवत्ता कम होने के बजाये बेहतर हो जायेगी। तो दोस्तो जीवन में परिवर्तन के लिए तैयार हो जायें और जिस हालत में हैं उसे परिवर्तित कीजिये और स्वयं को आलस्य जैसी बीमारी से मुक्ति दिलाइये। नई शुरुआत के लिए हमें नये विचारों और नई आइडियालोजी की ज़रूरत है।

मनोरंजन और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन वह चीज़ है जिसे बहुत रोचक शैली में इस्लामी रवायतों में बयान किया गया है। उदाहरण स्वरूप हज़रत अली अलैहिस्सलाम सिफारिश करते हैं” मोमिन इंसान को अपने जीवन के समय को तीन भागों में बांटना चाहिये। कुछ समय ईश्वर की उपासना व प्रार्थना के लिए विशेष करना चाहिये, कुछ समय हलाल आजीविका के लिए और कुछ समय वैध व हलाल मनोरंजन के लिए विशेष करना चाहिये।“

रोचक बिन्दु यह है कि एक दूसरी हदीस में यह भी आया है कि यह मनोरंजन दूसरे कामों और कार्यक्रमों में मदद करता है।

मनोरंजन जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। इस प्रकार से कि कुछ रवायतों में हलाल व वैध मनोरंजन की सिफारिश की गयी है और इन रवायतों में बल देकर कहा गया है कि एक सच्चा व वास्तविक मुसलमान अपने समय के एक भाग को वैध व स्वस्थ मनोरंजन के लिए विशेष करता है और इस तरह से वह खुशी हासिल करता है और लोक- परलोक के दायित्वों को अधिक रुचि के साथ अंजाम  देता है।

जीवन में परिवर्तन और उसे अच्छा बनाने के लिए हमें अच्छे व स्वस्थ मनोरंजन की आवश्यकता है। जब हम छोटे थे तो शायद एक छोटे से गेंद या बाल से घंटों खेलते थे और कभी- कभी एसा भी होता था कि हम एक गुड़िया से आधे दिन खेलते थे। काल्पनिक रूप में हम उस गुड़िया की मां बन जाते थे उसे सुलाते थे उसे जगाते थे उसे खाना खिलाते थे उसके बालों को सही और उसमें कंघी करते थे। कभी- कभी एसा भी होता था कि हम एक छोटा बाल लेकर काल्पनिक रूप में एक फुटबालिस्ट बन जाते थे और जब बाल हमारे पास आ जाती थी तो दर्शक हमारा उत्साह बढ़ाते और हमारे समर्थन में नारे लगाते थे और हम बहुत खुश होते थे किन्तु जब इंसान बड़ा हो जाता है तो उसकी सोच में बहुत बदलाव आ जाता है और वह खेल सहित बहुत से कार्यों में बड़ा से बड़ा रिज़्क लेने के लिए तैयार हो जाता है।

मनोरंजन में छोटे- बड़े और सस्ते- महंगे हर तरह के मनोरंजन शामिल हैं। इंसान पैदल चलकर भी मनोरंजन कर सकता है। यह कार्य वह अकेले, कभी अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों के साथ भी कर सकता है। इसी प्रकार वह अकेले या दूसरों के साथ व्यायाम कर सकता है, पर्वतारोहण कर सकता है, पार्कों में घुम सकता है, अच्छी व शालीन फिल्मों को देख सकता है या इसी प्रकार के बहुत से दूसरे मनोरंजन कर सकता है।

छोटा सा भी कार्य करके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव किया जा सकता है। छोटे से बदलाव व परिवर्तन से जीवन को सुखमय व अच्छा बनाया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर नाश्ता घर में करने या शाम का खाना घर में खाने के बजाये पार्क में जाकर खाया जा सकता है।  पार्क की खुली हवा में खाना खाने के साथ साथ आपका मूड भी फ्रेश हो जायेगा। दूसरे शब्दों में जीवन में बदलाव के लिए थोड़ी रचनात्मकता की जरूरत है और इंसान अच्छी व ऊंची भावना के साथ फैसला लेकर अपने जीवन को रोचक व आकर्षक बना सकता है। इंसान के विचार और उसकी आस्थाएं फैसला लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। महान हस्तियों के कथनानुसार हम इंसान अपनी आस्थाओं व विचारों के अनुसार जिन्दगी गुज़ारते हैं। जो इंसान सकारात्मक सोच रखते हैं वे कठिन से कठिन परिस्थिति में भी अच्छा फैसला लेते हैं परंतु जो लोग नकारात्मक सोच रखते हैं वे अपने जीवन को संकट बना लेते हैं। यही नहीं नकारात्मक सोच के लोग दूसरों के लिए भी समस्याएं पैदा करते हैं परंतु जो इंसान इस बात पर विश्वास रखता है कि ईश्वर है और वह उसके लिए अच्छे से अच्छे का चयन करता है तो स्वयं यह विश्वास बहुत महत्वपूर्ण है। महान ईश्वर पर आस्था रखना, उसके फैसले पर राज़ी रहना, उसका शुक्रगुज़ार होना, स्वयं और दूसरों को दोस्त रखना और महान ईश्वर पर भरोसा रखना सकारात्मक सोच है और इस प्रकार की सोच इस बात का कारण बनती है कि इंसान छोटी से छोटी रचनात्मकता से भी अपने जीवन की सुन्दरता और उसकी मिठास में वृद्धि कर सकता है।

जो चीज़ जीवन को अच्छा बना सकती है उसमें से एक घर का साफ- सुथरा होना है। घर इंसान के आराम करने का स्थान होता है। वहां पर इंसान शारीरिक व मानसिक विश्राम करता है। जब घर साफ- सुथरा होता है और घर की चीजें व्यवस्थित होती हैं तो इससे इंसान की मानसिक शांति पर असर पड़ता है। दूसरे शब्दों में इंसान की आत्मा पर इसका सकारात्मक असर पड़ता है। घर में थोड़ा सा परिवर्तन करके उसे शांतिदायक बनाया जा सकता है। जीवन को आकर्षक बनाने के लिए घर को साफ- सुथरा बनाना ज़रूरी है। घर जब तितर- बितर रहता है उसमें मौजूद चीज़ें सही से नहीं रखी होती हैं तो वह मानसिक व आत्मिक थकावट में वृद्धि का कारण बनती है और घर में आराम कम या खत्म हो जाता है। कभी- कभी घर का डिकोरेशन बदल देने से घर अच्छा लगने लगता है और उससे आत्मिक शांति व आराम का आभास होता है। इसी प्रकार घर में जो चीज़ें ज़रूरत की नहीं हैं या ख़राब हो गयी हैं उन्हें घर से निकाल देने से भी इंसान शांति का आभास करता है। इसी प्रकार इंसान जब घर में गुलदान रखता है या उसकी संख्या अधिक कर देता है और घर को विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक फूलों से सजा देता है तो भी इंसान को शांति का आभास होता है और ये फूल घर के वातावरण को शुद्ध बनाने के साथ इंसान को शांति व खुशी प्रदान करते हैं।

घर के अंदर साफ- सफाई पर ध्यान रखने के अलावा इस बात को दृष्टि में रखना चाहिये कि बाहर भी स्वस्थ मनोरंजन के बहुत से संसाधन हैं। जैसे पार्क में घुमना- फिरना, खेलना, नहाना और इसी प्रकार के बहुत से दूसरे मनोरंजन। इस्लाम के अनुसार अस्वस्थ मनोरंजन इंसान की आत्मा को थका देता है। इस प्रकार के मनोरंजन से न केवल इंसान वास्तविक मनोरंजन व खुशी हासिल नहीं कर सकता बल्कि इससे इंसान पर विनाशकारी प्रभाव भी पड़ते हैं। इस आधार पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं दुनिया के मनोरंजन को अपनी कामयाबी का साधन बनाओ और अपनी इच्छाओं को हलाल व वैध मार्गों से पूरा करो। इस बात को ध्यान में रखो कि इस कार्य से तुम्हारी प्रतिष्ठा को आघात न पहुंचने पाये और इसमें फुज़ूलख़र्ची न करो और इस प्रकार के मनोरंजन से अपने सांसारिक जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करो।“

कुछ अस्वस्थ और हानिकारक मनोरंजन इस प्रकार हैं जैसे सिगरेट पीना और मादक पदार्थों का सेवन आदि। इस प्रकार के मनोरंजन से वास्तव में इंसान को बहुत नुकसान पहुंचता है और इनसे इंसान को केवल काल्पनिक व झूठी शांति मिलती है और इससे इंसान के शरीर विशेषकर उसके ज़ेहन को अपूर्णीय हानि पहुंचती है।

अस्वस्थ मनोरंजन का एक अन्य उदाहरण एसी मेहमानी व पार्टी में जाना है जहां नैतिक मूल्यों को ध्यान में नहीं रखा जाता। इसी प्रकार बुरे मित्रों के साथ रातों को बैठकर टाइम गुज़राना या लड़के व लड़कियों का एक दूसरे से अनुचित संबंध रखना। चिकित्सकों का कहना है कि इस प्रकार का संबंध एड्स जैसी प्राणघातक बीमारी का कारण बन सकता है।

इसी प्रकार बहुत से लोग वीडियो, डिश और टेलीवीज़न आदि के माध्यम से अश्लील फिल्में देखते हैं, इस प्रकार की फिल्में इंसान पर बहुत बुरा प्रभाव डालती हैं। ये चीज़ें इंसान के ज़ेहन को व्यस्त कर देती हैं और इंसान झगड़ालू हो जाता है और वह जीवन के महत्वपूर्ण मामलों के बारे में सोचता ही नहीं। इस प्रकार की फिल्मों के देखने का एक दुष्परिणाम यह है कि ये पारिवारिक जीवन को प्रभावित कर देती हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अश्लील फिल्में अकल्पनीय ढंग से पारिवारिक आधारों को हानि पहुंचाती हैं। बहरहाल अंत में कहा जा सकता है कि स्वस्थ मनोरंजन और उसके लिए कार्यक्रम बनाना जीवन में बहुत अच्छा सकारात्मक परिवर्तन है जिसके अनगिनत लाभ हैं और जीवन को मिठास और खुशियों से भर देते हैं।

 

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