Jul ०३, २०१९ १३:२० Asia/Kolkata

हमने "तसव्वुफ़" या रहस्यवाद के क्षेत्र में दक्षता रखने वाले एक जानेमाने आत्म ज्ञानी के बारे में चर्चा की थी।

इस क्षेत्र के जानकारों में वे कुछ अलग ही दिखाई देते हैं।  उनका पूरा नाम हुसैन बिन मंसूर हल्लाज था।  मंसूर हल्लाज का संबन्ध तीसरी हिजरी क़मरी से था।  वे इतने विचित्र थे कि उनके जन्म, उनके जीवन, उनकी मृत्यु और जीवन से संनध्धित अन्य बातों के बारे में लोगों को कुछ अधिक मालूम नहीं है।  हल्लाज के बारे में ईरानी और पश्चिमी शोधकर्ताओं को भी विस्तार से अधिक पता नहीं है।

जैसाकि हम आपको पहले बता चुके हैं कि ईरानी तथा ग़ैर ईरानी शोधकर्ताओं के अथक प्रयासों के बावजूद अभी भी ईरानी रहस्यवादीव आत्म ज्ञानी हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के बारे में अधिक जानकारी एकत्रित नहीं कर पाए हैं।  उनका अस्ल नाम हुसैन था जबकि उनके पिता का नाम मंसूर था।  प्राचीन किताबों में हल्लाज की जन्म तिथि के बारे में भी स्पष्ट रूप से कुछ नहीं मिलता।  हालांकि कुछ जानकारों का कहना है कि हुसैन हल्लाज का जन्म लगभग 244 हिजरी क़मरी बराबर 858 ईसवी में हुआ था।  कुछ जानकारों का मानना है कि उनका जन्म 248 हिजरी क़मरी बराबर 862 ईसवी में हुआ था।  हुसैन हल्लाज का जन्म फार्स के क़रिया नाम स्थान पर हुआ था जो बैज़ा क्षेत्र में स्थित था।  वे बचपन में ही अपने परिवार के साथ इराक़ चले गए थे।  हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के बारे में यह भी नही पता चलता कि उनका उपनाम हल्लाज क्यों था।  हालांकि हल्लाज अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है रूई धुनने वाला।

हुसैन हल्लाज ने अधिक से अधिक ज्ञान अर्जित करने के उद्देश्य से अपनी जवानी में ही दूरस्थ क्षेत्रों की यात्राएं आरंभ कर दी थीं।  उन्होंने अपने काल के कई जानेमाने गुरूओं से ज्ञान अर्जित किया जैसे सुहैल बिन अब्दुल्लाह तस्तरी, उमर बिन उस्मान मक्की तथा जुनैद नेहावंदी आदि।  अपने गुरूओं के निकट हल्लाज को विशेष महत्व प्राप्त था।  हुसैन हल्लाज ने अपने जीवन में तीन बार हज किया।  उनके बारे में कहा जाता है कि वे जहां भी जाते थे उनके मानने वालों और समर्थकों की संख्या बहुत अधिक हो जाती थी।

उनके काल के लोग हुसैन बिन मंसूर हल्लाज को एक सुधारक के रूप में देखते थे।  यही कारण है कि वे जहां भी जाते उनके चारों ओर उनके मानने वालों की भीड़ लग जाया करती थी।  हल्लाज की लोकप्रियता के कारण उनके काल के शासक यहां तक कि कुछ धर्मगुरू भी उनके विरोधी हो गए थे।  कुछ लोग उनके बारे में भ्रांतियों के शिकार हो गए थे।  यही वजह है कि हल्लाज के विरुद्ध विभिन्न प्रकार के आरोप लगने लगे और अंततः उनको जेल में डाल दिया गया।  8 वर्षों तक जेल में रहने के बाद 24 ज़िलहिज सन 309 हिजरी क़मरी को हुसैन हल्लाज को फांसी दे दी गई।

हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के विचारों से उनके बाद के बहुत से परिज्ञानी या रहस्यवादी प्रभावित रहे हैं जैसे अत्तार नैशापूरी, मौलवी तथा हाफिज़ आदि।  लोग हल्लाज से अधिक प्रभावित रहे हैं।

हल्लाज को इस्लामी जगत में रहस्यवाद का परिपूर्ण प्रतिनिधि कहा जाता है।  उनको उन्हीं के एक कथन के कारण फांसी पर लटका दिया गया।  वास्तव में उनके एक कथन का ग़लत अर्थ निकाला गया।  हल्लाज रहस्यवाद में इतने डूब चुके थे कि आम आदमी के लिए उनको समझना बहुत कठिन था।  वे "अनलहक़" कहा करते थे जिससे उनके विरोधी यह कहने लगे थे कि हल्लाज स्वयं को ईश्वर कहने लगे हैं।  सातवी हिजरी क़मरी शताब्दी के ईरानी विख्यात कवि "मौलाना जलालुद्दीन मुहम्मद बलख़ी ने अपनी रचनाओं में हल्लाज का बहुत उल्लेख किया है।  उन्होंने हल्लाज की बातों को बारंबार अपने लेखन में प्रयोग किया है।

"मौलाना जलालुद्दीन मुहम्मद बलख़ी उर्फ़ मौलवी ने हल्लाज के कथनों के लिए "इस्तेग़राक़" शब्द का प्रयोग किया है।  वे मानते हैं कि हुसैन बिन मंसूर ईश्वर के नामों और उसकी विशेषताओं में पूरी तरह से डूब चुके थे।  मौलवी कहते हैं कि हल्लाज का अनलहक़ कहना उनकी इसी विशेषता के कारण था।  वे ईश्वर से इतना अधिक निकट हो चुके थे कि उनके मुंह से अनलहक़ जैसा वाक्य निकलने लगा जिसका अर्थ होता है मैं ही हक़ हूं।  हल्लाज का मानना था कि चारों ओर हक़ है और इसके अतिरिक्त कुछ अन्य नहीं है।  अपनी एक किताब "फ़ीह माफ़ीह" में मौलवी लिखते हैं कि जब शहद की मक्खी शहद पर बैठती है और अपना सिर शहद में डालती है तो उसे इसतेग़राक़ या डूबना नहीं कहते बल्कि इसतेग़राक उस समय कहा जाएगा जब वह शहद में पूरी तरह से डूब जाए।  मौलवी कहते हैं कि हल्लाज इसी तरह से ईश्वर की याद में डूब गए थे।  अब जब इस हालत में वे कुछ कहते थे तो वह ईश्वर से संबन्धित था न कि उनके अपने व्यक्तित्व से।

मौलवी की रचनाओं में हल्लाज के नाम को स्पष्टता के साथ देखा जा सकता है।  अपनी रचनाओं में उन्होंने जगह-जगह पर हल्लाज के विचारों को प्रतिबिंबित किया है।  अफलाकी अपनी किताब "मुनाक़ेबुल आरेफ़ीन" में लिखते हैं कि कहा जाता है कि एक बार मौलाना ने अपने समर्थकों को एकत्रित किया।  उन्होंने इन लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि मेरे जाने से तुम बिल्कुल भी चिंतित न होना।  तुम लोगों को मेरे बाद दुख करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि डेढ़ सौ वर्षों के बाद मंसूर का नूर, फ़रीदुद्दीन अत्तार के रूप में प्रजवलित होगा।  शम्स तबरेज़ी की उपस्थिति के बावजूद मौलवी को इसकी आवश्यकता नहीं थी किंतु मौलवी की रचनाएं बताती हैं कि हल्लाज का आध्यात्म सदैव ही मौलवी को प्रभावित किये रहता था जो उनका मार्गदर्शन किया करता था।

मौलवी के अन्तिम काल की रचना का नाम " फ़ीह माफ़ीह" है।  उन्होंने इस किताब में हल्लाज की कुछ जटिल बातों की व्याख्या की है।  यह वे जटिल बाते हैं जिन्हें आम इन्सान समझ नहीं सकता क्योंकि यह एसी बातें होती हैं जिन्हें कोई रहस्यवादी उस समय कहता है जब वह रहस्यवाद में पूरी तरह से डूब जाता है और उसमें डूबने के बाद कुछ कहता है।  इन्हीं बातों में से एक अनलहक़ भी है।

कुछ लोग यह समझते हैं कि अनलहक़ कहने से तातपर्य यह है कि मैं ही सबकुछ हूं।  इस वाक्य से ऐसा लगता है कि कहने वाले का ईश्वर पर भरोसा नहीं है और वह स्वयं को ईश्वर के स्थान पर लाकर खड़ा कर रहा है।  मौलवी कहते हैं कि एसा कहने वाले ऊपर वाली बात के विपरीत है अर्थात उसने स्वयं को समाप्त कर लिया और अब उसके निकट केवल ईश्वर ही सबकुछ है।  वे कहते हैं कि हल्लाज ने अनलहक़ कहकर अपने बहुत से शत्रु बना लिए और अंततः वे अपने इसी वाक्य की भेंट चढ़ गए।  हालांकि उनका तातपर्य यह था कि मैं ईश्वर में पूरी तरह से डूब कर समाप्त हो चुका हूं।  इससे मनुष्य की ईश्वर के प्रति अडिग आस्था का पता चलता है।

मौलवी ने मसनवी में भी हल्लाज के बहुत से शेरों और उनके वक्तव्यों को कहीं पर विस्तार से तो कही पर संक्षेप में पेश किया है।  ईरान के एक जानेमाने साहित्यकार उस्ताद ज़र्रीन ने हल्लाज के वक्तव्य की व्याख्या करते हुए लिखा है कि वह व्यक्ति जो वास्तविक प्रेम के मार्ग में क़दम बढ़ाता है वह उसी में डूब जाता है और उसको अपने प्रेमी के अतिरिक्त कुछ अन्य दिखाई नहीं देता।  मौलवी का मानना था कि हल्लाज को प्रकाश मिल गया था और वे उसमें डूब चुके थे।  वे कहते हैं कि हल्लाज जिस स्थान पर पहुंच चुके थे उस स्थान पर हर एक नहीं पहुंच सकता।  मौलवी हल्लाज के विचारों से सहमत थे और उन्होंने  उनको अपना वैचारिक मार्गदर्शक बताया है।

 

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