Jul ०७, २०१९ ११:१५ Asia/Kolkata

सन 1981 में 28 जून को आतंकी संगठन एमकेओ के आतंकियों ने हमला करके ईरान की न्यायपालिका के तत्कालीन प्रमुख आयतुल्लाह मुहम्मद हुसैन बहिश्ती और दसियों अन्य लोगों को शहीद कर दिया था।

इसी उपलक्ष्य में 28 जून से ईरान में न्यायपालिका सप्ताह मनाया जाता है। इस अवसर पर ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई से न्यायपालिका प्रमुख और कर्मियों ने मुलाक़ात की। उन्होंने इस मुलाक़ात में अपने संबोधन में न्यायपालिका के बेहतर क्रियाकलाप के लिए कुछ सुझाव दिए और फिर कुछ सामयिक विषयों के बारे में बात की।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि ईरानी राष्ट्र ने इस्लामी क्रांति की सफलता के चालीस वर्षों के दौरान सही अर्थों में दुश्मन के सामने अपने सम्मान, शक्ति और प्रभुत्व का प्रदर्शन किया है, कहाः

यह जो आप देख रहे हैं कि विदेशी समाचार एजेंसियों में राजनितिज्ञों और कूटनयिकों इत्यादि के हवाले से आजकल बार बार यह बात दोहराई जा रही है कि ईरान को दबाव, धमकी और इस तरह की चीज़ों से नहीं झुकाया जा सकता, इसका संबंध पिछले एक दो महीने या छः महीने की घटनाओं से नहीं है बल्कि यह पिछले चालीस साल से ईरानी राष्ट्र के क्रियाकलाप से संबोधित है। ईरानी राष्ट्र ने थोपे गए अपमान के चंगुल से स्वयं को एक क्रांति के माध्यम से मुक्त करा लिया, उस अपमान के दायरे को तोड़ दिया और बाहर निकल आया। इस्लामी विशेषताओं के साथ जो ईरानी पहचान उसके अंदर है, वह सम्मान की इच्छुक है, स्वाधीनता चाहती है, प्रगति की मांग करती है, यही कारण है कि अत्याचारी दुश्मन जितना भी दबाव डालते हैं, उस पर प्रभाव नहीं पड़ता।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने विश्व क़ुद्स दिवस और इस्लामी क्रांति की सफलता की वर्षगांठ की रैलियों में जनता की भव्य उपस्थिति और इसी तरह चुनावों में उसकी भरपूर भागीदारी को ईरानी राष्ट्र की महानता का चिन्ह बताया और कहा कि इस महान राष्ट्र पर, इस साहसी राष्ट्र पर और इस स्वाभिमानी राष्ट्र पर आरोप लगाए जा रहे हैं, कौन आरोप लगा रहा है? दुनिया की सबसे दुष्ट सरकार यानी अरमीकी सरकार। दुनिया की सबसे दुष्ट सरकार जो युद्ध, रक्तपात, फूट और राष्ट्रों की लूटमार का कारण रही है और वह भी पिछले दस बीस साल में नहीं बल्कि एक लम्बे समय से, यह सरकार सबसे घृणित सरकार है और इस प्रकार की सरकार ईरान पर आरोप लगा रही है, हर गुज़रते दिन के साथ ईरान का किसी न किसी रूप में अनादर किया जाता है, उसे बुरा भला कहा जाता है लेकिन ईरानी राष्ट्र इस प्रकार के अपमान से प्रभावित नहीं होगा वह इस प्रकार की बातों से पीछे नहीं हटेगा।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने आगे चल कर अपने संबोधन में कहाः 

ईरानी राष्ट्र पर अत्याचार हुआ है, यही अत्याचारपूर्ण प्रतिबंध, ईरानी राष्ट्र पर एक खुला हुआ अत्याचार है, ईरानी राष्ट्र अत्याचारग्रस्त है लेकिन वह कमज़ोर नहीं है। ईरानी राष्ट्र शक्तिशाली है। ईश्वर की कृपा से, ईश्वर की सहायता से ईरानी राष्ट्र ने अपने लिए जितने भी लक्ष्य निर्धारित किए हैं, उन्हें वह पूरी शक्ति से हासिल करके रहेगा।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपने संबोधन के एक भाग में युद्ध, प्रभाव डालने और उकसावे की कार्यावाहियों समेत सभी चालों और अमरीका की अन्य शैतानी साज़िशों के मुक़ाबले में इस्लामी व्यवस्था की विजय को ईश्वर की ओर से ईरानी राष्ट्र के समर्थन का स्पष्ट चिन्ह बताया। उन्होंने क़ुरआने मजीद के सूरए ताहा की 46वीं आयत की तरफ़ इशारा करते हुए, जिसमें ईश्वर ने कहा है कि घबराओ मत कि मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं और मैं सुनने व देखने वाला हूं, ईरानी राष्ट्र की शक्ति का मुख्य भाग ईश्वरीय सहायता पर उसकी आस्था बताया और कहाः हम पर अत्याचार हुआ है लेकिन हम कमज़ोर नहीं हैं बल्कि हम मज़बूत हैं। ईरान के ख़िलाफ़ हज़ारों साज़िशें की गईं लेकिन ईरानी राष्ट्र पहाड़ की तरह डटा हुआ है और दिन प्रतिदिन मज़बूत होता जा रहा है। इस समय ईरान पिछले दस बीस बरसों की तुलना में अधिक शक्तिशाली बन चुका है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने संबोधन के एक भाग में अमरीका की ओर से वार्ता की पेशकश की तरफ़ इशारा किया। उन्होंने इस प्रस्ताव का कारण, ईरानी राष्ट्र पर दबाव डाल कर अपने लक्ष्य हासिल करने में अमरीका की विफलता को बताया। उन्होंने इस बात का उल्लेख करते हुए कि अमरीका, ईरानी राष्ट्र को भोला समझ कर प्रगति के नाम पर उसे वार्ता का प्रस्ताव दे रहा है, अमरीका को संबोधित करते हुए उन्होंने कहाः 

हां, ईरानी राष्ट्र निश्चित रूप से प्रगति करेगा लेकिन तुम्हारे बिना, अगर तुम आओगे तो प्रगति नहीं होगी। तुम, ब्रिटेन और कुछ अन्य देश, पहलवी शासन काल के पचास बरसों में विशेष रूप से दूसरे पहलवी शासक के काल में लगभग तीस साल तक अमरीका, इस देश का सब कुछ था, उस दौरान यह देश दिन प्रति दिन पीछे होता गया। तो तुम लोग प्रगति का कारक नहीं हो सकते, तुम लोग ईरानी राष्ट्र के पिछड़ेपन का कारण हो। ईरानी राष्ट्र प्रगति करेगा लेकिन शर्त यह है कि तुम लोग निकट न आओ।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई का कहना था कि अमरीका के वार्ता के प्रस्ताव का मूल लक्ष्य, ईरानी राष्ट्र को निहत्था करना और ईरान की शक्ति के कारकों को समाप्त करना है। उनका कहना था कि अमरीका की यह पेशकश एक धोखा है और वास्तव में अमरीका, ईरानी राष्ट्र की शक्ति के कारकों से डरा हुआ है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अपने संबोधन के अंत में एक बार फिर अपने संपूर्ण लक्ष्यों की प्राप्ति तक ईरानी राष्ट्र द्वारा अपने मार्ग पर चलते रहने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि ईरानी राष्ट्र ने अपना रास्ता ढूंढ लिया है, हमारे रास्ते का रेखांकन, इस्लामी क्रांति ने किया है, इमाम ख़ुमैनी ने किया है और हमारे लक्ष्य पहले से तैय हैं। इन दसियों बरसों में कई बार इन लक्ष्यों को दोहराया जा चुका है और ये अत्यंत मूल्यवान व आकर्षक लक्ष्य हैं। हम इन्हीं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपने मार्ग पर चल रहे हैं और दुश्मन को चाहे कितना ही बुरा क्यों न लगे, हम इन सभी लक्ष्यों को हासिल करके रहेंगे।

पाकिस्तान के वरिष्ठ टीकाकार साबिर अबू मरयम पश्चिमी टीकाकारों की इस स्वीकारोक्ति के बारे में कि ईरान को दबाव, धमकी और प्रतिबंध से झुकाया नहीं जा सकता है, कहते हैं। 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के इस बयान के परिप्रेक्ष्य में कि ईरान अवश्य प्रगति करेगा लेकिन अमरीका के बिना, अबू मरयम इस सवाल के जवाब में कि क्या कोई देश है जिसने अमरीका से गठजोड़ करके प्रगति की हो, कहते हैं। 

टैग्स