Jul १४, २०१९ १५:०० Asia/Kolkata

कुछ कार्यक्रमों में हमने शरीर की देखभाल के तारीक़ों और इसके लाभ के बारे में आपको बताया।

लिबास एसी चीज़ है जो इंसान के बदन से हमेशा संपर्क में रहता है। लिबास के अलग अगल रंग होते हैं, अलग अलग आकार होते हैं, अलग अलग मटेरियल होते हैं, अलग अलग माडल होते हैं और इनमें से हर किसी का इंसान के शरीर और स्वास्थ्य पर एक असर होता है। कभी कभी यह भी होता है कि इंसान कोई नया लिबास पहनता है तो बदन पर दाने पड़ जाते है, खुजली होने लगती है, त्वचा पर फफोले पड़ जाते हैं। इसका कारण होता है लिबास तैयार करने में प्रयोग किया जाने वाला कपड़ा और कभी इसका कारण वह रासायनिक प्रक्रिया होती है जिससे कपड़े को गुज़ारा जाता है। आजकल जो लिबास तैयार हो रहे हैं उनमें काटन के कपड़े, पोलिस्टर, इक्रीलिक, नाइलोन आदि पदार्थों का प्रयोग होता है। यह कपड़े रंग और केमिकल से युक्त होते हैं। कपड़ों के रंग को पक्का करने के लिए, उनको सिलवटें आदि पड़ने से बचाने के लिए और धब्बों से बचाने के लिए उनमें केमिकल मिलाए जाते हैं। यह केमिकल पदार्थ ज़हरीला होता है इसलिए इस प्रक्रिया और इस शैली में तैयार किए गए कपड़ों से बने लिबास को जब कोई पहनता है तो इसके नुक़सान उसे झेलने पड़ते हैं। कपड़े को रासायनिक प्रक्रिया से जितना ज़्यादा गुज़ारा गया होता है उस कपड़े के नुक़सानदेह होने की आशंका उतनी ही ज़्यादा हो जाती है। जिन कपड़ों में फ़ोर्मलडीहाइड पदार्थों की मिलावट होती है वह कपड़े अधिक मज़बूत होते हैं और उन में सिलवटें कम पड़ती हैं। यह चीज़ अच्छी है। इससे कपड़ा पहनने वाले को बड़ी आसानी होती है मगर इसके साथ ही एक तथ्य यह सामने आया है कि जिन कपड़ों में इन रासायनिक पदार्थों को मिलाया जाता है वह कैंसर की बीमारी उत्पन्न करने में प्रभावी हैं। विशेषज्ञों को स्पोर्ट्स सूट में डीमिथेल फ़ोर्मेमाइड नामक पदार्थ भी मिला है। यह पदार्थ एसा है जो इंसान के लीवर को प्रभावित कर सकता है। कहा जाता है कि इस पदार्थ से युक्त कपड़े पहनने वाले इंसान को लीवर संबंधी बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। इस पदार्थ के नुक़सान के बारे में विशेषज्ञों को पहले से ही पता है और इस बारे में किताबों और रिसर्च पेपर्ज़ में बहुत कुछ लिखा जा चुका है अतः अलग से कुछ साबित करने की ज़रूरत नहीं है कि यह पदार्थ यकृत की बीमारियां पैदा कर देता है बल्कि यही साबित कर देना काफ़ी है कि इस कपड़े में यह रासायनिक पदार्थ मौजूद हैं।

पोलिस्टर से बने  कपड़े पहनने का भी काफ़ी रिवाज है। पुरुष और महिलाएं दोनों ही पोलिस्टर से बने कपड़े पहनते हैं। बच्चे भी इस प्रकार के कपड़े पहन रहे हैं। मगर चिंता की बात यह है कि पोलिस्टर के कपड़ों में एंटीमोनी नाम का रासायनिक पदार्थ मिलाया जाता है और इस पदार्थ की समस्या यह है कि वह भी कैंसर का रोग उत्पन्न करने वाले कारणों में गिना जाता है। यही नहीं यह पदार्थ हृदय, फेफड़ों, लीवर और त्वचा के लिए भी नुक़सानदेह हैं। धागों को रंगने के लिए जो रंग प्रयोग किए जाते हैं उनमें भी एंटीमोनी पदार्थ होता है। फिर कपड़े को विभिन्न प्रक्रियाओं से गुज़ारने के दौरान कैडमिम और क्रोम जैसे पदार्थों के प्रयोग से भी गुज़रना पड़ता है। यह सारे पदार्थ एसे हैं जो त्वचा के लिए समस्याएं पैदा करते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि जब आप वस्त्र ख़रीदने जाएं तो यह ज़रूर देखेंगे कि उसका कपड़ा कैसा है। काटन, ऊन और रेशम आदि से बने आग्रैनिक कपड़े यदि आप चुनें और इस कपड़े से अपना वस्त्र और या लिबास तैयार करवाएं तो यह आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत बेहतर होता है।

एक और बिंदु यह है कि जब आप कपड़े सिलवाते हैं और आपकी पोशाक तैयार होकर आ जाती है तो पहनने से पहले उसे धोना बहुत अच्छी आदत है। कुछ लोग यह भी करते हैं कि नए कपड़े ख़रीदे और सिलवाने के बाद या सिले सिलाए कपड़े ख़रीदने की स्थिति में उन्हें धोए बग़ैर ही पहनना शुरू कर देते हैं, यह उचित नहीं हैं। बेहतर यह है कि नए कापड़े को पहले धो लिया जाए और सूख जाने और स्त्री करने के बाद उसे पहना जाए। नए कपड़े देखने में तो साफ़ होते हैं और लोगों का ध्यान इस तरफ़ नहीं जाता कि उनमें मैक्रोब हो सकते हैं लेकिन सच्चाई यही है कि उनमें मैक्रोब होते हैं। कपड़ों के धागों के बीच मैक्रोब को पनपने का अच्छा मौक़ा और अच्छा स्थान मिल जाता है। विशेषज्ञ तो यहां तक कहते हैं कि यदि आप किसी बड़े माल से किसी मशहूर ब्रांड का कपड़ा ख़रीदें तब भी उसे बग़ैर धोए न पहनें। बेहतर और सेहत के लिए उचित यही है कि पहले आप वह कपड़ा धो लें उसके बाद ही उसे पहनना शुरू करें। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि आप बड़े माल में कपड़े ख़रीदते हैं तो पहले उसे पहन कर चेक करते हैं कि वह आपके शरीर के आकार का है या नहीं और पहनने के बाद वह अच्छा लग रहा है या नहीं। मगर आप से पहले भी संभव है कि कुछ लोगों ने आकर उस वस्त्र को पहनकर चेक किया हो। इससे भी यह संभावना पैदा होती है कि उस वस्त्र में मैक्रोब हों। इसलिए ज़रूरी हो जाता है कि वह कपड़े ख़रीद कर घर लाने के बाद आप उसे यूं ही न पहनें बल्कि धो लेना बहुत उचित होगा। कपड़े ख़रीदते समय इस बात पर ध्यान रखना चाहिए कि शोकेस में जो कपड़े सजाए गए होते हैं उनमें मैक्रोब सबसे ज्यादा होते हैं।

लिबास और पोशाक आपके व्यक्तित्व को भी प्रदर्शित करती है। आप रंगों का जिस प्रकार चयन करते हैं वह आपके व्यक्तित्व के पहलुओं को ज़ाहिर करता है। लिबास के रंग और उसके कपड़े और उसके मूल्य से बढ़कर एक चीज़ होती है साफ़ सफ़ाई। साफ़ सफ़ाई बहुत महत्वपूर्ण है। यदि कोई इंसान अपने कपड़े साफ़ सुथरे रखता है तो वह अपने साथ ही दूसरों का भी सम्मान कर रहा है। साफ़ कपड़े का असर जहां वह कापड़े पहनने वाले के मन मस्तिष्क पर पड़ता है वहीं जो लोग उसे दिनचर्या में देखते हैं उन पर भी ज़रूर पड़ता है।

लिबास का महत्व यह है कि वह आपके शरीर को छिपाता है और उसे गर्मी और सर्दी से बचाता है। इससे भले लोगों को एक पाठ भी मिलता है। पाठ यह मिलता है कि भले लोग वह हैं जो अपनी बुराइयों पर तो ध्यान रखते हैं मगर दूसरों की बुराइयों को नज़र अंदाज़ बरते हैं। नज़र अंदाज़ करने का मतलब यह है कि दूसरों की बुराइयों के बारे में बातें करने और लोगों के बीच फैलाने से बचते हैं। अपनी बुराइयों पर नज़र इसलिए रखते हैं कि उन्हें हमेशा यह आभास रहे कि उनके भीतर कुछ कमियां मौजूद हैं और यह कमियां उन्हें दूर करना है। दूसरों की बुराइयों पर ध्यान देने और अपनी बुराइयों को नज़रअंदाज़ करने की ख़राबी यही है कि इंसान धीरे धीरे भूल ही जाता है कि उसके भीतर बुराई मौजूद है और यह बहुत बड़ी ख़राबी और चिंता का विषय है। महापुरुषों की शिक्षाओं में बताया गया है कि भले लोग एक दूसरे के लिए लिबास का काम करते हैं। अर्थात भला इंसान दूसरे व्यक्ति की कमियों को लोगों के बीच फैलाने के बजाए छिपाता है अर्थात उसके लिए लिबास का काम करता है।

लिबास बदलना एक मुहाविरा भी है जिसका एक नकारात्मक अर्थ भी है। कहते हैं कि फ़लां व्यक्ति तो लिबास की तरह दोस्त बदलते हैं। यह बुरी स्थिति है। चूंकि कोई भी लिबास पहनने का एक समय होता है वह समय पूरा होने के बाद इंसान लिबास बदल कर दूसरा लेबास पहन लेता है। लेबास समय पर बदल लेना तो अच्छी आदत और प्रशंसनीय तरीक़ा है लेकिन यह मुहाविरा जिन अर्थों में प्रयोग होता है वह नाकरात्मक है। मुहावरा उन लोगों के लिए प्रयोग होता है जो अपने मित्रों और रिश्तों के प्रति वफ़ादार नहीं रहते। बल्कि ज़रूरत पड़ने पर दोस्त और रिश्ते भी बदल लेते हें।

लेबास में एक अन्य पहलु यह भी है कि इंसान अपने आखिरी लेबास को भी ज़रूर याद रखे। महापुरुषों के कथन में इस बात पर बहुत ज़ोर दिया गया है कि इंसान को कभी भी अपने उस लेबास को नहीं भुलाना चाहिए जिसमें उसे अंतिम यात्रा करनी है। अंतिम यात्रा का लिबास कफ़न है । कोई भी इंसान हो उसे मृत्यु के बाद जो लिबास पहनाया जाता है वह कफ़न होता है। कफ़न को याद रखने के बड़े रचनात्मक प्रभाव होते हैं। इस लिबास को याद रखने से इंसान को आत्म निर्माण में मदद मिलती है। यह विचार इंसान को बार बार याद दिलाता है कि इस सांसारिक जीवन की कुछ सीमाएं हैं अतः इस जीवन में चीज़ें हासिल करने के लिए उतनी ही कोशिश करे जो ज़रूरी है। इस बात में यह पाठ भी निहित है कि इंसान हमेशा घमंड से बचे और ख़ुद को एक सामान्य इंसान माने क्योंकि वह कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए आख़िरी सफ़र तो उसे कफ़न पहन कर ही करना है। उस सफ़र में शान बान नाम की कोई चीज़ नहीं होगी। इस लिबास में यह पाठ भी निहित है कि किसी भी कफ़न में जेब नहीं होता। अर्थात इस यात्रा पर इंसान को ख़ाली हाथ जाना है। ख़ाली हाथ जाने से तात्पर्य यह है कि सांसारिक संसाधन किसी भी इंसान के साथ उसकी अंतिम यात्रा में नहीं जाएंगे। उसके साथ जो चीज़ जाएगी वह उसका कर्म है। इंसान के सुकर्म ही उसे इस अंतिम यात्रा में बहुत लाभ पहुंचाएंगे और संसार में भी उसे हमेशा अच्छे शब्दों में याद रखे जाने का रास्ता साफ़ करेंगे।

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