अमरीका, भेदभाव का साम्राज्य - 3
इस कार्यक्रम श्रंख्ला में अमरीका में अल्पसंख्यकों व अश्वेतों के ख़िलाफ़ पुलिस के आए दिन हिंसक व्यवहार की समीक्षा कर रहे हैं।
अमरीकी समाज में श्याम वर्ण के लोग पुलिस के हिंसक व्यवहार की सबसे ज़्यादा बलि चढ़ते हैं। पिछले कुछ साल में श्याम वर्ण के लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस के हिंसक व्यवहार की अनेक घटनाएं मीडिया में चर्चा का विषय बनीं जबकि वे घटनाएं जिन पर पर्दा पड़ा हुआ है, उनकी संख्या कहीं ज़्यादा है।
जून 2012 में रोडनी किंग नामक श्याम वर्ण के व्यक्ति का शव लॉस एंजलेस शहर में एक स्वीमिंग पुल से बरामद हुआ। रोडनी किंग ही वह व्यक्ति है जिसके ख़िलाफ़ 1992 में पुलिस के बर्बरतापूर्ण व्यवहार के ख़िलाफ़ इस शहर में व्यापक स्तर पर अशांति फैल गयी थी। जून 2012 में जब रोडनी किंग का शव स्वीमिंग पुल से बरामद हुआ तो इस घटना पर अमरीकी मीडिया में बहुत हंगामा हुआ। 47 साल के रोडनी किंग की संदिग्ध हालत में मौत से उनके साथ पुलिस के हिंसक व्यवहार की कटु यादें लोगों के मन में ज़िन्दा हो गयीं। 20 साल पहले 3 मार्च 1992 को लॉस एंजलेस शहर में रोडनी किंग पर पुलिस के बर्बर हमले के ख़िलाफ़ अमरीका के इतिहास के सबसे बड़े विरोध प्रदर्शनों में से एक आयोजित हुआ। उस समय रोडनी किंग जवान था और जिस समय वह घर में दाख़िल होने जा रहा था कि नशे में धुत 4 पुलिस कर्मियों ने उसका रास्ता रोक लिया और उसे इतना मारा कि वह अधमरा हो गया। उसके बाद उसे अधमरी हालत में छोड़ कर पुलिस कर्मी वहां से चले गए।
इस घटना की, लॉस एंजलेस शहर के एक नागरिक ने जो अपने घर की खिड़की से पुलिस के आपराधिक रवैय को देख रहा था, फ़िल्म बना ली। उसने इस फ़िल्म को मीडिया के हवाले कर दिया। इस घटना की फ़िल्म उस समय प्रसारित हुयी जब किंग को लोग अस्पताल में भर्ती करा चुके थे। इस घटना की फ़िल्म का प्रसारित होना था कि हंगामा मच गया। हमलावर पुलिस कर्मियों की गिरफ़्तारी के बाद उनके ख़िलाफ़ मुक़द्दमे की कार्यवाही का नतीजा और अधिक हंगामे का कारण बना। राज्य की अदालत ने आपराधी पुलिस कर्मियों की सिर्फ़ इस स्वीकारोक्ति पर उन्हें छोड़ दिया कि उनका इरादा मज़ाक़ का था और शराब पीने की वजह से वे अपने कर्म के अंजाम की ओर से अनभिज्ञ थे। इस अन्यायपूर्ण आदेश के ख़िलाफ़ लॉस एंजलेस की जनता का आक्रोश व प्रदर्शन भड़क उठा जिसे पुलिस ने पूरी शक्ति के साथ दबाने की कोशिश की और इस शहर की निहत्थी जनता का बर्बरतापूर्ण जनसंहार किया। अंततः लॉस एंजलेस की जनता का विरोध प्रदर्शन, राष्ट्रीय गार्ड और नौसैनिकों के हस्तक्षेप से 6 दिन बाद 55 लोगों के जनसंहार के साथ रुक गया। इस दौरान 2000 से ज़्यादा लोग घायल हुए।
अमरीकी पुलिस की बर्बरता का एक और नमूना जून 1999 में शिकागो शहर में सामने आया जब पुलिस ने 19 साल की श्वेत वर्ण की एक लड़की लातान्या हैगर्टी की उस समय गोली मार कर हत्या कर दी जब वह कार में बैठी मोबाइल फ़ोन से किसी से बात कर रही थी। हमलावर पुलिस कर्मी को सिर्फ़ इस दावे पर अदालत ने दोषमुक्त कर दिया कि उसने मोबाइल को हथियार समझ कर हमला किया था। इस घटना के एक दिन बाद शिकागो पुलिस ने रॉबर्ट रास नामक श्याम वर्ण के नौजवान की इस बात पर हत्या कर दी कि वह गाड़ी में बैठ कर अपने स्कूल की फ़ुटबाल टीम में शामिल होने जा रहा था कि इस दौरान वह पुलिस के गाड़ी से उतरने के आदेश को नहीं समझ पाया। यह हमलावर पुलिस कर्मी भी दूसरे पुलिस कर्मियों की तरह बिना संतोषजनक तर्क के, झूठे बहानों से अदालत से छूट गया।
इसी तरह की एक घटना न्यूयॉर्क में घटी जब इस शहर की पुलिस ने डान्टे जॉनसन नामक श्याम वर्ण के नौजवान को सड़क पर पीछे से उस समय गोली मार कर हताहत कर दिया जब वह अपने दोस्तों के साथ रास्ता चल रहा था। श्याम वर्ण के लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस की हिंसा का एक और नमूना 1992 में मैलिस ग्रीन नामक व्यक्ति की घटना है जो डिट्रॉएट की पुलिस की हिरासत में पुलिस के हाथों पिटाई की वजह से अत्यधिक ख़ून बहने से मर गया। उसे पुलिस ने उस जगह से गिरफ़्तार किया था जहां ट्रैफ़िक का साइनबोर्ड लगा था। अमरीकी पुलिस के अत्याचार की एक अन्य घटना 1997 की है जब एब्नर लुइमा नामक व्यक्ति को न्यूयॉर्क पुलिस के अफ़्सर जस्टिन वोल्पे ने ग़लती से हिरासत में रखा, उसे यातना दी और उसके साथ यौन दुराचार किया। न्यूयॉर्क पुलिस ने इस घटना को छिपाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह इसे छिपाने में नाकाम रही। मीडिया ने इस घटना का पर्दा फ़ाश किया।
अमरीकी पुलिस के घिनौने अपराध की एक घटना 2006 की है। 21 साल के श्याम वर्ण के जोज़फ़ हैमली मानसिक रूप से बीमार था वह अर्कनज़ास राज्य के वेस्टफ़ोर्क शहर में ड्यूटी पर तैनात पुलिस अफ़सर लैरी नॉर्मन के हाथों मारे गया। वर्ष 2008 में ब्रायन स्टर्नर नामक अश्वेत व्यक्ति को जिसके शरीर के 4 अंग लक़वा ग्रस्त थे, ट्रैफ़िक नियम का उल्लंघन करने पर फ़्लोरिडा के पुलिस केन्द्र में व्हील चेयर से ज़मीन पर गिरा दिया गया और उसके शरीर की तलाशी हुयी। इस अमानवीय व्यवहार की वीडियो क्लिप मीडिया व सोशल मीडिया पर प्रसारित हुयी। इस क्लिप का प्रसारित होना था कि जेलों और हिरासत में विक्लांग लोगों के साथ अमरीकी पुलिस के व्यवहार की ओर से जनता में चिंता की लहर फैल गयी।
अमरीकी पुलिस के हिंसक व्यवहार का एक और नमूना जिसे नस्लभेदी व्यवहार के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता, रॉबर्ट डेविस की घटना है। रॉबर्ट डेविस सेवानिवृत अश्वेत शिक्षक थे जो 2005 में कैट्रीना तूफ़ान की तबाही के दौरान न्यूऑर्लियन पुलिस के हाथों यातना का शिकार हुए। इस घटना की प्रसारित तस्वीरों में दो श्वेत पुलिस कर्मी डेविस को पकड़े हुए थे और 2 पुलिस कर्मी उन्हें मार रहे थे। न्यूऑर्लियन पुलिस के इस हिंसक व्यवहार की तस्वीर असोशिएटेड प्रेस के एक पत्रकार ने खींच कर प्रकाशित की थी।
वर्ष 2014 में अमरीका के मिसूरी राज्य के फ़र्गूसन शहर में अमरीकी पुलिस के हिंसक व्यवहार के ख़िलाफ़ बहुत बड़ा प्रदर्शन हुआ। इस वर्ष श्वेत पुलिस अफ़्सर डार्न विल्सन को अदालत से मिली रिहाई के ख़िलाफ़ व्यापक हिंसक प्रदर्शन हुए। डार्न विल्सन पर फ़र्गूसन शहर में अश्वेत नौजवान माइकल ब्राउन की हत्या का इल्ज़ाम था। फ़र्गूसन शहर में शुरु हुए प्रदर्शन का दायरा फैला और दूसरे शहरों में भी विल्सन की रिहाई के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरु हुए यहां तक कि कुछ दिनों के भीतर पूरे अमरीका मे फैल गए। फ़र्गूसन और मिसूरी राज्य के कुछ दूसरे शहरों में प्रदर्शन इतना तीव्र था कि अमरीका की राष्ट्रीय गार्ड फ़ोर्स को इसे दबाने के लिए बुलाया गया। इन प्रदर्शनों के दौरान लोगों ने पुलिस, अदालत और सरकार के नस्लभेदी व्यवहार के ख़िलाफ़ नारा लगाया यहां तक कि कुछ शहरों में अमरीका के राष्ट्रीय ध्वज को लोगों ने जलाया। फ़र्गूसन शहर से शुरु हुयी अशांति की प्रतिक्रिया में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि सार्वजिनक संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने और इमारतों व गाड़ियों को आग लगाने का कोई औचित्य नहीं है, अशांति को हवा देने वालों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही की बात की।
फ़र्गूसन में अशांति अगले साल तक जारी रही और हर साल माइकल ब्राउन की हत्या के दिन इस शहर में अशांति रही। अगस्त 2014 में माइकल ब्राउन की हत्या के कुछ दिन बाद पुलिस की बर्बरता का एक वीडियो सामने आया जिसमें एज़ेल फ़ोर्ड नामक अश्वेत जवान की लॉस एंजलेस शहर में पुलिस के हाथों हत्या का दृष्य था। इस वीडियो के सामने आने पर अमरीका में व्यापक स्तर पर हिंसा भड़क उठी थी। इस घटना और और बाद के वर्षों की घटनाओं से स्पष्ट हो गया कि अमरीका में श्याम वर्ण के लोगों के ख़िलाफ़ इस देश की पुलिस के हिंसक व्यवहार में किसी तरह कमी नहीं हुयी है और सरकार भी इस हिंसा के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वालों के विरुद्ध दमनकारी नीति अपनाती है। अमरीका में नस्लभेद के ख़िलाफ़ सक्रिय एक गुट के प्रमुख जे जॉनसन का कहना हैः "पूरे अमरीका में अमरीकी पुलिस के व्यवहार में सुधार नहीं आया है। वास्तव में माइकल ब्राउन पर फ़ायरिंग के समय से इस तरह की ज़्यादा घटनाएं हुयी हैं जिनकी ओर विश्व जनमत का ध्यान गया है। तो यह कैसे कह सकते हैं कि पुलिस का व्यवहार बेहतर हुआ है। किसी भी तरह पुलिस का व्यवहार बेहतर नहीं बल्कि और ख़राब हुआ है।"
ऐसा लगता है कि अमरीका में पुलिस के अपराध व हिंसा के ख़िलाफ़ श्याम वर्ण के लोगों के आक्रोश के भड़कने की बड़ी वजह इस देश के न्याय तंत्र का पीड़ित श्याम वर्ण के ख़िलाफ़ अपराधी पुलिस के हित में भेदभावपूर्ण रवैया है। दूसरे शब्दों में श्याम वर्ण के लोगों का प्रदर्शन उस नस्लभेदी व्यवहार के ख़िलाफ़ है जो अमरीकी प्रशासन में संस्थागत रूप में मौजूद है। यही कारण है कि अमरीका में पुलिस का श्याम वर्ण के ख़िलाफ़ हिंसक व्यवहार हर सरकार के दौर में जारी है चाहे डेमोक्रेट्स की सरकार हो या रिपब्लिकन्ज़ की। बहुत से अवसर पर जज, श्वेत अपराधी पुलिस अफ़्सर को अदालत में हाज़िर होने के लिए भी नहीं कहता।