Aug २८, २०१९ १३:३४ Asia/Kolkata

हमने बताया था कि फ़िलिस्तीन की सौदेबाज़ी के लिए विभिन्न प्रकार के समझौते किए गये।

बराक ओबामा 2009 में सत्ता में पहुंचे और फ़िलिस्तीनी- ज़ायोनी विवाद, एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में अमरीका की विदेश नीति में यथावत बाक़ी रहा। इससे पहले तक यद्यपि अमरीका ने फ़िलिस्तीनियों और ज़ायोनियों के बीच तथाकथित शांति के बहुत अधिक प्रयास किए किन्तु इससे न केवल उनके बीच मतभेदों में कमी नहीं हुई बल्कि मतभेद और भी गहरे हो गये।

शायद यह कहा जा सकता है कि अमरीकी योजनाओं के मार्ग की मुख्य रुकावट, बुश सरकार द्वारा ज़ायोनी शासन की आतंकवादी कार्यवाहियों और निहत्थे फ़िलिस्तीनियों के जनसंहार का बिना रोक टोक और खुला समर्थन था। अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी बस्तियों की संख्या में वृद्धि और अमरीका द्वारा फ़िलिस्तीनी सरकार को आधिकारिक रूप से स्वीकार न करने की वजह से मतभेद और भी गहरा गया। बराक ओबामा ने अपने चुनावी प्रचार में हमेशा से ही पश्चिमी एशिया के बारे में अमरीका की पूर्ववर्ती सरकारों की नीतियों विशेषकर फ़िलिस्तीन मुद्दे के बारे में उनकी नीतियों की आलोचना की और इस मामले को अपनी नवीन विदेश नीति के आधार पर हल करने पर बल दिया।

ओबामा ने अपने राष्ट्रपति काल के पहले ही सप्ताह में एक अरब टीवी चैनल के साथ अपना पहला साक्षात्कार किया और उन्होंने फ़िलिस्तीनी-इस्राईली मुद्दे के समाधान के लिए अपने विशेष दूतको पश्चिमी एशियाई क्षेत्र भेजा। उन्होंने अपने बारे में मुसलमानों के दृष्टिकोणों को बदलने का प्रयास किया और इसी के तहत ज़ायोनी शासन की विशेषकर बस्तियों के विस्तार के लिए निंदा की।

बराक ओबामा ने यह सब कुछ तो किया लेकिन सच्चाई यह है कि जैसे जैसे वह अपने दूसरे शासन काल की ओर बढ़ रहे थे उन्होंने अपनी राजनैतिक बोलचाल बदल दी जबकि ज़ायोनी शासन से अपनी सरकार के दृष्टिकोण को निकट कर दिया बल्कि यूं कहा जाए कि उन्होंने भी खुलकर इस्राईल का समर्थन शुरु कर दिया।  

परिवर्तन के नारे के साथ सत्ता में पहुंचने वाले बराक ओबामा ने आरंभ में तो यह दिखाने का प्रयास किया कि वह निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाएंगे और अपने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वह कम से कम विदित रूप से ज़ायोनी शासन का समर्थन कम करने के लिए मजबूर हुए किन्तु अमरीका में मौजूद मज़बूत ज़ायोनी लाबी और बहुत से ज़ायोनी समर्थक अमरीकी नेता इस बात को समझ गये।

वर्ष 2001 में होने वाले एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि केवल 9 प्रतिशत ज़ायोनियों को ही यह विश्वास था कि ओबामा सरकार, फ़िलिस्तीनियों का समर्थक होने से पहले ज़ायोनियों की समर्थक है।

बराक ओबामा ने गद्दी पर बैठने के पहले ही दिन अर्थात राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे पहला काम यह किया कि उन्होंने 21 जनवरी 2009 में ज़ायोनी प्रधानमंत्री एहूद ओलमर्ट, हुस्नी मुबारक, मलिक अब्दुल्लाह द्वितीय और महमूद अब्बास जैसे अरब नेताओं से टेलीफ़ोन वार्ता में इस बात पर बल दिया कि वह शांति योजना को व्यवहारिक बनाने में पूरी तरह गंभीर हैं और इसमें वह सक्रिय भूमिका अदा करेंगे।

इसके बाद उन्होंने और अमरीका की तत्कालीन विदेशमंत्री हिलेरी क्लिटन ले इस संबंध में एक संयुक्त बयान जारी किया और जार्ज मिशल नामक अपने एक अनुभवी सांसद को पश्चिमी एशिया के लए अमरीका के विशेष दूत के रूप में चुना। बराक ओबामा ने कई बार कई अवसरों पर इस्राईल द्वारा बस्तियों के निर्माण का खुलकर विरोध भी किया। उन्होंने सितम्बर 2009 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महा सभा में अपने भाषण में कहा कि अमरीका, इस्राईल द्वारा बस्तियों के निर्माण के क्रम को जारी रखने का विरोधी है। उन्होंने इसी प्रकार जून 2009 में क़ाहिरा विश्व विद्यालय में अपने भाषण के दौरान ज़ायोनी बस्तियों का विरोध किया। उनका कहना था कि सयुंक्त राज्य अमरीका बस्तियों के निर्माण के जारी रखने को ग़ैर क़ानूनी समझता है और यह निर्माण, पहले वाले समझौतों का उल्लंघन है और शांति प्रक्रिया के प्रयास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। अब इस्राईली कालोनियों के निर्माण को रोकने का समय आ गया है।

अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनके मंत्रीमंडल ने आने वाले वर्षों में भी ज़ायोनी बस्तियों के निर्माण का विरोध किया किन्तु ज़ायोनी प्रधानमंत्री बेनयामीन नेतेनयाहू बस्तियों के निर्माण को रोकने के अपने वचनों के पालन से इनकार कर दिया। या यूं कहा जाए कि ज़ायोनी प्रधानमंत्री ने अमरीका को बस्तियों के निर्माण के लिए जो वादा किया था उस पर अपनी प्रतिबद्धता से इनकार कर दिया।

बराक ओबामा ने वर्ष 2009 में विदेशमंत्रालय के अपने भाषण में 1967 से पहले की सीमाओं के अनुसार फ़िलिस्तीनी देश के गठन के समर्थन की घोषणा की। उन्होंने अपने बयान में कहा कि 1967 की सीमाओं को दोनों पक्षों के बीच शांतिवार्ता का आधार बनाया जाना चाहिए किन्तु नेतेनयाहू ने एक बयान जारी करके इस्राईल के प्रति अमरीकी सरकार के वचनों को याद दिलाया और उक्त सीमाओं के अनुसार वार्ता आरंभ करने के लिए ओबामा की नीतियों को रद्द कर दिया।

अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बावजूद इसके कि वह ज़ायोनी बस्तियों के निर्माण और 1967 की सीमाओं के आधार पर दो सरकारों के गठन के ज़बरदस्त विरोधी थे, संयुक्त राष्ट्र संघ, यूनेस्को और अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में फ़िलिस्तीन की सदस्यता के विषय का विरोध किया। यद्यपि आख़िर में जीत फ़िलिस्तीनियों की ही हुई और फ़िलिस्तीनी 2012 में संयुक्त राष्ट्र संघ में पर्यवेक्षक सदस्य के रूप में चुना गया। (AK)

टैग्स