Oct २१, २०१९ १७:३४ Asia/Kolkata

अमरीका में अल्पसांख्यकों विशेषकर मुसलमानों के विरुद्ध इस देश की पुलिस की बढ़ती हिंसात्मक कार्यवाहियों का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि एमनेस्टी इंटरनैश्नल ने सन 2014 में इसको मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन बताया था।

इस अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ने अमरीकी सरकार से इस संदर्भ में अधिक सुरक्षा का आह्वान किया था।  जब से अमरीका में ग्यारह सितंबर जैसी संदिग्ध घटना घटी है उसके बाद से अमरीकी अधिकारी, इस्लामोफोबिया फैलाकर इस्लाम के बारे में अधिक से अधिक भ्रांतियां पैदा कर रहे हैं जिसके कारण अमरीकी समाज में मुसलमानों के बारे में बहुत ग़लतफ़हमियां पैदा हो चुकी हैं।  सन 2008-2012 और 2016 के राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार के दौरान अधिक्तर प्रत्याशियों ने मतदाताओं को रिझाने के लिए इस्लामोफ़ोबिया का सहारा लिया था।  अमरीकी अधिकारियों के माध्यम से इस्लामोफोबिया को हवा देने के कारण हालिया वर्षों में अमरीकी पुलिस और वहां के जातिवादी तत्वों की ओर से मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा में तेज़ी से वृद्धि हुई है।  इन बातों के दृष्टि अमरीका में रहने वाले मुसलमानों के विरुद्ध इस देश के नागरिकों के व्यहवार में भी अंतर पैदा हुआ है।

सर्वेक्षण करने वाली एक संस्था "प्यू" की 2013 की रिपोर्ट के अनुसार आम अमरीकी नागरिकों और वहां के मुसलमानों के संबन्धों के बारे में इस देश के मुसलमानों के दृष्टिकोण बहुत अलग तरह के हैं।  प्यू की रिपोर्ट के अनुसार अपने निजी अनुभवों के आधार पर अमरीका के एक तिहाई मुसलमानों का मानना है कि आम अमरीकी, मुसलमानों को सम्मान नहीं देते।  हालांकि कुछ अमरीकी मुसलमानों का मानना है कि अधिकतर अमरीकी, मुसलमानों का सम्मान करते हैं।  हालांकि इन मुसलमानों का यह भी कहना है कि ग्यारह सितंबर की संदिग्ध घटना के बाद उनको या उनके परिवार के किसी एक सदस्य को आम अमरीकी या अमरीकी पुलिस की हिंसा का शिकार बनना पड़ा है।  ग्यारह सितंबर 2001 की घटना के बाद किये जाने वाले बहुत से सर्वेक्षणों से पता चलता है कि इन वर्षों के दौरान अमरीकी मुसलमानों को किसी न किसी रूप में भेदभावपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ा है।  प्यू के 2014 के सर्वेक्षण के अनुसार 58 प्रतिशत अमरीकियों का यह मानना है कि अमरीकी समाज में मुसलमानों को विभिन्न रूप में भेदभाव का सामना है।  हालांकि 42 प्रतिशत का यह मानना है कि इस प्रकार का कोई भेदभाव अमरीका में नहीं है।

यह एक वास्तविकता है कि मुसलमानों के बारे में नकारात्मक सोच, ग्यारह सितंबर की घटना के फौरन बाद पैदा नहीं हुई बल्कि पहले भी थी किंतु इस संदिग्ध घटना के बाद इस्लामोफ़ोबिया और मुसलमानों के बारे में भ्रांतियों को अधिक प्रसारित किया गया।  इस घटना के बाद ही अमरीका में बहुत से स्थानों पर इस्लामी केन्द्रों, मस्जिदों या मुसलमानों से संबन्धित इमारतों पर हमले किये गए।  इसके अतिरिक्त स्वयं मुसलमानों पर भी हमलों में वृद्धि देखी गई है।  अमरीकी मुसलमानों का यह भी कहना है कि मीडिया और हालिवुड की ओर से भी मुसलमानों के साथ न्याय नहीं किया जाता।  अमरीकी संचार माध्यम, सामान्यतः इस्लामी की छवि को बिगाड़कर पेश करते हैं।  यह संचार माध्यम, मुसलमानों को आतंवादी के रूप में पेश करते हैं।  इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि अमरीकी संचार माध्यम इस देश में रहने वाले मुसलमानों के विरुद्ध आम लोगों को उकसाते हैं।

इस संबन्ध में कई उदाहरण पेश किये जा सकत हैं।  जैसे ज्यूडी पाल की घटना।  यह घटना सन 2013 की है जब ज्यूडी पाल, अमरीका के मिशीगान राज्य के एक नगर में अपने पति के साथ कहीं जा रही थीं।  इसी बीच एक इस्लामविरोधी ने उनपर हमला कर दिया।  उनका कहना है कि मैं अपने पति के साथ सड़क पर जा रही थी तभी कुछ लोगों ने हमारा अपमान करते हुए मुझपर हमला कर दिया।  इस मुसलमान महिला का कहना था कि हालांकि पुलिस बहुत निकट से यह देख रही थी।  उसने हमपर हमला होते और हमें दी जाने वाली गालियों को भी सुना लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई।  उन्होंने कहा कि जब हमला करने वाले हमपर हमला करके भाग गए तो फिर पुलिस ने उनको गिरफ़्तार करने की कोशिश आरंभ की।

एक घटना को हफ़िग्टन पोस्ट ने प्रकाशित किया है।  नवंबर 2016 में एक मुसलमान अमरीकी लड़की जैसे ही सेनडिगो विश्वविद्यालय से निकली, उसपर दो लोगों ने हमला कर दिया।  इस हमले में उसका सामान भी लूट लिया गया।  मुसलमान महिला के विरुद्ध एक अन्य हृदय विदारक घटना 2017 के ग्रीष्मकाल में घटी थी।  यह घटना इस प्रकार है कि नाब्रा हसनेन नामक सत्रह वर्षीय मुसलमान लड़की, जो अमरीका के पूर्वी राज्य वर्जीनिया के Herndon नगर में रहती थी, रमज़ान में सुबह की नमाज़ पढ़कर एक मस्जिद से निकल रही थी।  उसके साथ कुछ अन्य लड़कियां भी थीं।  जैसे ही वह मस्जिद से निकली एक मोटर सवार ने उनपर हमला कर दिया और हसनेन को उनसे अलग करके उसे उठा ले गया।  बाद में अगले दिन दोपहर को एक तालाब के निकट इस मुसलमान लड़की का शव पुलिस को मिला।  पुलिस का कहना था कि इस हत्या का संबन्ध इस्लामोफोबिया से नहीं है हालांकि नाब्रा के परिजनों और अन्य मुसलमानों का कहना है कि उसकी हत्या अमरीका में बढ़ते इस्लाम विरोधी दुष्प्रचारों का परिणाम है।  नाब्रा की माता ने हफिग्टन पोस्ट को दिये साक्षात्कार में कहा था कि मुझको इस बात का पूरा विश्वास है कि मेरी बेटी की हत्या इसलिए की गई क्योंकि वह मुसलमान थी और वह पर्दा करती थी।  उन्होंने कहा कि हम स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं।  नाब्रा की मां का कहना था कि अब मुझको अपने बच्चों को बाहर भेजते हुए डर लगता है क्योंकि पता नहीं कब एसा हो कि मेरा बच्चा बाहर जाए और बाद में उसकी लाश मुझको पकड़ा दी जाए।

मुसलमानों के विरुद्ध हिंसक कार्यवाहियों के अतिरिक्त अमरीका में हालिया दिनों में मुसलमानों की आस्थाओं के अपमान में भी वृद्धि हुई है।  सन 2013 में अमरीका के फ्लोरिडा राज्य के विवादित पादरी टेरी जोन्स ने पवित्र क़ुरआन को जलाने की धमकी दी थी।  इस मामले में पुलिस ने कोई विशेष भूमिका नहीं निभाई।  हालांकि ग्यारह सितंबर की घटना की बारहवीं बरसी पर यह धमकी व्यवहारिक नहीं हो सकी लेकिन इस धमकी ने पूरी दुनिया के मुसलमानों की भावनाओं को आहत किया।  टेरी जोन्स की यह धमकी इतनी घटिया और गिरी हुई थी कि अमरीका की तत्कालीन विदेशमंत्री हिलैरी क्लिंटन ने मजबूर होकर इसकी निंदा की थी।

अमरीका के दो राज्यों ओहायो तथा एलीन्यूज़ में पुलिस की हिंसा के बारे में इस देश के न्याय मंत्रालय द्वारा की गई तहक़ीक़ के आधार पर अमरीकी पुलिस, अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के साथ व्यवहार में अधिकतर हिंसा का प्रयोग करती है।  इसी प्रकार इंटरसेप्ट पत्रिका की ओर से 2017 में कराए जाने वाले सर्वेक्षण से पता चलता है कि ग़ैर मुसलमानों की तुलना में मुसलमानों के साथ अमरीकी अदालतें भेदभाव पूर्ण व्यवहार करती हैं।  इस रिपोर्ट के अनुसार एक ही प्रकार के अपराध में ग़ैर मुसलमानों के मुक़ाबले में मुसलमानों को अधिक कठोर सज़ा दी जाती है।  फाक्स न्यूज़ तथा सीएनएन जैसे अमरीकी संचार माध्यम, मुसलमानों की हिंसक कार्यवाहियों को बहुत बढ़ा-चढाकर पेश करते हैं।  वाशिग्टन बेस्ड संस्था "इंस्टीट्यूट फार सोशल पालिसी एंड अंडरस्टैंडिंग" ने सन 2016 में अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि अमरीकी संचार माध्यमों का यह प्रयास रहता है कि ग़ैर मुसलमानों की तुलना में मुसलमानों की हिंसा को अधिक से अधिक बढ़ा-चढाकर पेश किया जाए।

जानकारों का कहना है कि वे उन केन्द्रों केन्द्र और संस्थाओं का जो इस्लामोफोबिया को हवा देकर मुसलमानों के विरुद्ध दुष्प्रचार में लगी हुई हैं उनका मुख्य लक्ष्य, इस्लाम के विस्तार को रोकना है।  वे पूरे संसार में मुसलमानों को सीमित करना चाहती हैं।  हालांकि ज़मीनी सच्चाई तो यह है कि जैसा यह संस्थाएं चाह रही है कि ठीक उसके विपरीत हो रहा है।  केवल अमरीका में ही बड़ी संख्या में लोग मुसलमान हो रहे हैं और आम अमरीकियों का झुकाव इस्लाम की ओर बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है।  इस हिंसाब से लगता है कि इस्लाम विरोधी तत्वों के प्रयास सफल नहीं होने पाएंगे और उनको मुंह की खानी पड़ेगी।

 

 

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