Oct २२, २०१९ १५:३२ Asia/Kolkata

पिछले कार्यक्रम में हमने अमेरिकी पुलिस द्वारा अल्प संख्यक मुसलमानों के खिलाफ की जाने वाली हिंसा की समीक्षा की और उसके कुछ नमूनों की ओर संकेत भी किया था।

पुलिस द्वारा हिंसा और दुर्व्यवहार का अर्थ अधिक बल का प्रयोग है। साथ ही इंसान पर पुलिस की ओर से जो मानसिक दबाव डाले जाते हैं उन्हें भी पुलिस की ओर की जाने वाली हिंसा का नाम दिया जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद से अमेरिकी पुलिस की ओर से की जाने वाली हिंसा में गति आ गयी। उसकी वजह जातीय, धार्मिक और राजनीतिक आदि भेदभाव का अधिक किया जाना है। अमेरिकी पुलिस की हिंसा को समय की दृष्टि से कुछ कालों में बांटा जा सकता है। जैसे वर्ष 1960 और 1970 के दशक में होने वाली हिंसा। इसी प्रकार 11 सितंबर वर्ष 2001 और वाल स्ट्रीट आंदोलन के बाद पुलिस की ओर से की जाने वाली हिंसा। अल्पसंख्यकों के खिलाफ अमेरिकी पुलिस की हिंसा के जिस तरह से विभिन्न आयाम हैं उसी तरह उसके कारण भी भिन्न हैं।

अमेरिका के टेक्सास विश्व विद्यालय में समाज शास्त्री डाक्टर लिओनार्ड मूर (LEONARD MOORE) जैसे कुछ अमेरिकी बुद्धिजीवियों व विशेषज्ञों ने अमेरिकी पुलिस द्वारा की जाने वाली हिंसा के कारणों पर ध्यान दिया है और उनका मानना है कि जब अल्प संख्यक समाज के किसी एक व्यक्ति की हत्या कर दी जाती है और जिस व्यक्ति की हत्या की गई है अगर यह स्पष्ट हो जाता है कि वह निर्दोष था तो इस घटना को पुलिस की गलती और उसका व्यक्तिगत व्यवहार माना जायेगा परंतु रिचर्ड ई कैनियो जैस अमेरिका के वर्जिनिया विश्व विद्यालय के कुछ अध्ययनकर्ता उस समाज को ज़िम्मेदार मानते हैं जिसमें संदिग्ध व्यक्ति था और अमेरिकी पुलिस ने उसकी हत्या कर दी है। अलबत्ता इस दावे का यह अर्थ नहीं है कि इसके लिए अल्पसंख्यक समाज को ज़िम्मेदार समझा जाये बल्कि उन लोगों का यह मानना है कि इस प्रकार की हिंसा की जड़ को उस अल्प संख्यक समाज में ढूंढ़ना चाहिये जिसे अमेरिकी पुलिस संदिग्ध की दृष्टि से देखती है। रिचर्ड कैनियो जैसे अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि अल्पसंख्यक समाज में बेरोज़गारी, निर्धनता और अपराध जैसी चीज़ें हैं जिनकी वजह से अमेरिकी पुलिस हिंसा करती है।

आन्दसे जैसे अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि अमेरिकी पुलिस की हिंसा का कारण अल्प संख्यक समाज की परिस्थिति है और उनका मानना है कि अमेरिका में रहने वाले अल्पसंख्यक समाज के कारण अमेरिकी पुलिस को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना रहता है इस प्रकार से कि जब कभी अल्पसंख्यक, अश्वेत या लैटिन मूल के समाज में पुलिस और अपराधियों के बीच झड़प हो जाती है तो स्थानीय पुलिस अपर्याप्त होती है। इस प्रकार पुलिस इन मोहल्लों से अपराधों को जड़ से खत्म करने के लिए अपनी जान को खतरे में नहीं डालती है क्योंकि वह जानती है कि इन मोहल्लों में रहने वाले अपराधी पुलिस की कम संख्या और उसकी अक्षमता से भली- भांति अवगत हैं। इस प्रकार की परिस्थिति में गोरे पुलिस वालों की ओर से अल्पसंख्यक समाज में रहने वाले व्यक्ति के खिलाफ हिंसा की संभावना अधिक रहती है क्योंकि यह सोच कल्पना से अधिक कुछ और नहीं है कि 20वीं शताब्दी में होने वाली आपत्तियों, विरोधों और श्याम वर्ण के नागरिक अधिकारों के लिए होने वाले आंदोलनों के बाद अमेरिकी समाज से वर्गभेद समाप्त हो गया है। वास्तव में आर्थिक, सामाजिक, यहां तक कि राजनीतिक व नागरिक अधिकारों के संबंध में अमेरिकी समाज में मौजूद वर्गभेद न केवल समाप्त नहीं हुआ है बल्कि उसमें कमी तक नहीं हुई है।

अमेरिकी अर्थ व्यवस्था और उत्पादन में जो परिवर्तन हुए हैं उनमें से अधिकांश तकनीक के क्षेत्र में हुए हैं और इस परिवर्तन से अमेरिकी समाज के अल्प संख्यक समाज और सत्तासीन वर्ग के मध्य दूरी बहुत बढ़ गयी है। इस समय आर्थिक क्षेत्र में जो बदलाव हुए हैं उसका श्रमबल इंसान की सोच है और सोच, विचार और तकनीक के क्षेत्र में भेदभाव से काम लिया जा रहा है। दूसरे शब्दों में अमेरिका में जो सत्तासीन वर्ग है वह श्याम वर्ण के लोगों से काम ही नहीं लेना चाहता जबकि इससे पहले उत्पादन के बहुत से कार्यों को श्याम वर्ण के लोग अंजाम देते थे और इस समय गिने- चुने स्थानों को छोड़कर हर जगह गोरे लोगों का प्रभुत्व है और उनमें अश्वेत और अल्पसंख्यक लोगों की कोई भूमिका नहीं है।

रिचर्ड कैनियो और उनके सहयोग मेक की इस वास्तविकता की ओर संकेत करते हैं और अल्पसंख्यकों के खिलाफ होने वाली हिंसा की समीक्षा करते हैं। उनका मानना है कि अमेरिका जैसे समाज में उपभोग का चलन बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है और थोड़ी से भी आर्थिक व सामाजिक कमी समाज में विभिन्न समस्याओं के अस्तित्व में आने का कारण बनती है। इसी प्रकार अल्प संख्यक समाज में बच्चों के पैदा होने, सहायता प्राप्त करने, आवास के क्षेत्र में आरंभिक संभावनाओं व सुविधाओं के हासिल करने और अल्प संख्यक समाज के हर मोहल्ले से अपराधों की रिपोर्टें पुलिस में दर्ज कराई जाती हैं और इस समाज में कितने युवा शिक्षित हैं ये सब वे चीज़ें हैं जो अल्प संख्यक समाज के प्रति एक विशेष धारणा उत्पन्न होने का कारण बनती हैं।

स्टेनली कोहन जैसे कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक अध्ययन कर्ताओं का मानना है कि जिस तरह श्वेत समाज की अपेक्षा अल्प संख्यक समाज में हिंसा की दर व संभावना अधिक है उसी तरह अमेरिकी पुलिस द्वारा श्वेत समाज की अपेक्षा अल्पसंख्यक समाज में हिंसा की संभावना अधिक रहती है। वास्तव में इन लोगों का मानना है कि अल्पसंख्यक समाज के साथ पुलिस की हिंसा का सीधा संबंध है और इस समाज की अच्छी व बुरी स्थिति के अनुसार पुलिस की हिंसा भी कम व अधिक होती है।

अलबत्ता कैथलिन हेरिंग (KATHLEEN HARRING) जैसे अमेरिकी समाज शास्त्रिंयों का मानना है कि अल्प संख्यक समाज में शराब और मादक पदार्थों के सेवन की दर को भी ध्यान में रखना चाहिये क्योंकि पुलिस की हिंसा में ये चीज़ें भी प्रभावी हैं। अलबत्ता कैथलिन हेरिंग के जो अध्ययन हैं और अमेरिका के कुछ नगरों में अल्पसंख्यक समाज के जो जीवन है उससे अमेरिकी पुलिस की हिंसा मेल नहीं खाती है।

अमेरिका में पुलिस द्वारा अल्पसंख्यकों के विरुद्ध जो हिंसा होती है उसका एक कारण यह है कि अमेरिकी अदालतों में दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ उचित कार्यवाही ही नहीं होती है। दूसरे शब्दों में पुलिस वालों को एक प्रकार की सुरक्षा प्रदान कर दी गयी है और दूसरे अपराधों के लिए उनके हाथों को खुला छोड़ दिया गया है। अमेरिकी पुलिस अल्पसंख्यकों के साथ जो हिंसात्मक व्यवहार करती है और अमेरिकी समाज में जो भेदभाव होता है उससे इस विषय का गहरा संबंध है। साथ ही इस बात को जानना रोचक होगा कि अमेरिका में फेडरल और राज्यों के कानूनों में अंतर है और यह चीज़ पुलिस द्वारा की गयी हिंसा को पता लगाने की प्रक्रिया को जटिल व कठिन बनाती है। अमेरिकी अदालतों में उन दोषी पुलिस कर्मियों को बरी कर दिया जाता है जिन्होंने अश्वेतों की गोली मार कर हत्या की होती है और यह चीज़ अमेरिकी पुलिस द्वारा हत्या के जारी रहने का एक महत्वपूर्ण कारण है।

अमेरिकी पुलिस के हिंसात्मक व्यवहार के बारे में अमेरिकी मामलों की ईरानी विशेषज्ञ डाक्टर ज़ैनब कासिमी कहती हैं” अमेरिकी समाज में इस देश की पुलिस द्वारा किये जा रहे रवइये को स्वीकार कर लिया गया है इस प्रकार से कि दोषी अमेरिकी पुलिस के जो मामले अदालत में पेश किये जाते हैं उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती है और वे किसी परिणाम के बिना समाप्त हो जाते हैं और अधिकांश पुलिस कर्मी बरी हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में अमेरिकी पुलिस की हिंसा का शिकार बनने वालों को न्याय नहीं मिल पाता है और पुलिस वालों के पक्ष में फैसला सुनाया जाता है।

अमेरिकी पुलिस द्वारा हिंसा का एक कारण यह है कि इस देश में पुलिस के प्रशिक्षण का तरीका भी एसा है जिसकी वजह से पुलिस हिंसात्मक व्यवहार करती है। यहां इस बिन्दु की ओर संकेत करना भी ज़रूरी है कि इराक और अफ़गानिस्तान जैसे दुनिया के बहुत से क्षेत्रों से जब अमेरिकी सैनिक स्वदेश लौटते हैं तो उनमें से बहुत से सैनिक अमेरिकी पुलिस तंत्र में शामिल हो जाते हैं और आम तौर पर इस प्रकार के सैनिकों को निर्धन क्षेत्रों या उन मोहल्लों में तैनात किया जाता हैं जहां जातीय व धार्मिक अल्पसंख्यक रहते हैं और वहां वे किसी प्रकार के संकोच के बिना हिंसात्मक कार्यवाही करते हैं।

अमेरिकी संचार माध्यमों ने इस देश के श्याम वर्ण के लोगों की जो छवि और तस्वीर बना रखी है उससे प्रतीत होता है कि श्याम वर्ण के अधिकांश लोग अपराधी ही होते हैं और जब अमेरिकी पुलिस का सामना किसी श्याम वर्ण वाले व्यक्ति से होता है तो वह इस प्रकार का व्यवहार करती है मानो निश्चित रूप से उसका सामना किसी अपराधी से हो गया है और वह हिंसात्मक रवइया अपनाती है। जैसाकि हम अधिकांश फिल्मों में देखते हैं कि किस तरह अल्पसंख्यकों की तस्वीर को बिगाड़ कर पेश किया जाता है और यह दिखाने का प्रयास किया जाता है कि अल्पसंख्यक, और श्याम वर्ण के लोग ही अपराध करते हैं और अमेरिकी पुलिस श्याम वर्ण और अल्पसंख्यक समाज के लोगों के साथ हिंसात्मक कार्यवाही करती है और मुसलमानों व अल्पसंख्यकों के खिलाफ पुलिस की हिंसा कोई नया विषय नहीं है और हालिया कुछ दशकों के दौरान संचार माध्यमों और सोशल साइटों में विस्तार से केवल यह हुआ है कि पुलिस के कुछ अपराध संचार माध्यमों में आ जाते हैं।

अलबत्ता पुलिस द्वारा की जा रही हिंसात्मक कार्यवाहियों को रोकने में संचार माध्यमों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है और यह बात काफी महत्वपूर्ण है कि संचार माध्यम पुलिस द्वारा की जा रही हिंसात्मक कार्यवाहियों को किस प्रकार कवरेज देते हैं। बहुत कम एसा होता है कि संचार माध्यम वास्तविकताओं को बयान करें बल्कि वे वास्तविकताओं को उस तरह से बयान व पेश करते हैं जैसा सरकार या अमेरिकी राजनेता व पुलिस तंत्र  चाहते हैं। अधिकांश अमेरिकी संचार माध्यम यह दिखाने का प्रयास करते हैं कि अमेरिकी पुलिस व्यक्तिगत कारणों से अल्पसंख्यकों के साथ हिंसात्मक व्यवहार करती है ताकि इस प्रकार से वे इस बात पर पर्दा डाल सकें कि अमेरिकी पुलिस का रवइया सिस्टेमैटिक तरीके से हिंसा पर आधारित नहीं है।

वास्तव में अमेरिकी अधिकारी अपने देश में पुलिस की हिंसात्मक कार्यवाहियों के मूक दर्शक बने हुए हैं जबकि वे दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करके मानवाधिकारों का खुल्लम- खुल्ला हनन करते हैं।

 

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