Nov २७, २०१९ १५:४३ Asia/Kolkata

इस कार्यक्रम में इस बात की कोशिश की गई कि अल्पसंख्यकों और रंगीन वर्ण के लोगों के ख़िलाफ़ अमरीकी पुलिस की हिंसा की समीक्षा की जाए।

पिछली कड़ी में नागरिकों को हथियार रखने की स्वतंत्रता के प्रभाव और अमरीकी पुलिस की हिंसा में पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग के प्रभाव पर एक नज़र डाली गई थी। इस कार्यक्रम की अंतिम कड़ी में हम अमरीकी समाज में पुलिस का हिंसक व्यवहार जारी रहने और उसमें तीव्रता आने के सबसे अहम कारकों का उल्लेख कर रहे हैं।

जैसा कि पिछली कड़ियों में संकेत किया गया, अमरीका में दूसरे विश्व युद्ध के बाद के बरसों में, भेदभाव, जातीय, धार्मिक व राजनैतिक अंतरों और इसी प्रकार सामाजिक व आर्थिक असमानताओं के प्रभाव में अल्पसंख्यकों के साथ पुलिस का हिंसक रवैया योजनाबद्ध ढंग से बढ़ता चला गया है। बीसवीं सदी के अंतिम बरसों में इसी प्रक्रिया के जारी क्रम में अमरीकी समाज को इस देश में अधिक कड़े पुलिसिया रवैये का सामना करना पड़ा है।

वर्ष 1994 में पारित होने वाले क़ानून के अनुसार अमरीकी रक्षा मंत्रालय को इस बात की अनुमति मिली कि वह अपने अतिरिक्त हथियारों व सैन्य उपकरणों को देश की पुलिस को प्रदान कर दे। वर्ष 2011 में नाइन इलेवन की घटना के बाद आंतरिक सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने और आतंकवाद से संघर्ष के बहाने, अमरीका की पुलिस में अनुभवी व दक्ष सैनिकों को भर्ती करने का सिलसिला तेज़ हो गया। उसके बाद से अहिंसक अपराधों को रोकने की कार्यवाहियों को सफल बनाने की ओर से निश्चिंत होने के लिए विशेष पुलिस बल या स्वेट का भी इस्तेमाल होने लगा है।

अमरीका में सैन्यवाद के बहुत अधिक नकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। उदाहरण स्वरूप इसके चलते पुलिस बलों द्वारा आम नागरिको को दुश्मन की नज़र से देखने और उनकी हिंसा में वृद्धि की ओर इशारा किया जा सकता है। स्वाभाविक है कि विशेष सैन्य बल, जिन्होंने पुलिस की आवश्यक ट्रेनिंग नहीं हासिल की है और शहरों में होने वाली झड़पों के संबंध में पुलिस के व्यवहार से वे परिचित भी नहीं हैं, आपत्ति जताने वाले लोगों विशेष कर अल्पसंख्यकों को आतंकवादी मान कर, लोगों के साथ अधिक हिंसा का व्यवहार करते हैं।

हालिया बरसों में अमरीकी पुलिस के सैन्यकरण के परिप्रेक्ष्य में अमरीका के कुछ उच्चाधिकारियों ने अमरीकी पुलिस की ट्रेनिंग में ज़ायोनी शासन को आदर्श बनाए जाने पर बल दिया है और इस संबंध इस्राईली प्रशिक्षणकर्ताओं के सहयोग से कई कार्यक्रम भी आयोजित हो चुके हैं। अमरीकी नौसेना के विशेष बल सील के पूर्व कर्नल और अमरीका की राष्ट्रीय हथियार एसोसिएशन के तत्कालीन प्रमुख ओलिवर नोर्थ ने 2015 में इस्राईल टाइम्ज़ को दिए गए एक इंटरव्यू में खुल कर इस बात की मांग की थी कि अमरीकी पुलिस के प्रशिक्षण में इस्राईल के सैन्य प्रशिक्षण को मॉडल बनाया जाना चाहिए।

अमरीका के एक वरिष्ठ टीकाकार गोर्डन डफ़ ने 14 अगस्त वर्ष 2016 को "अमरीका की आंतरिक पुलिस के विभागों का इस्राईलीकरण" शीर्षक के अंतर्गत एक लेख में लिखा था कि अमरीका में आंतरिक सुरक्षा के मंत्रालय के आदेश पर धीरे-धीरे पुलिस के सभी विभागों की ट्रेनिंग, इस्राईल के प्रशिक्षणकर्ताओं के हाथों हो रही है। अमरीकी पुलिस के प्रशिक्षण में इस्राईली मॉडल के प्रयोग को बक्तरबंद गाड़ियों और भारी हथियारों के इस्तेमाल में भली भांति देखा जा सकता है। इसके अलावा, झूठी निगरानी और लोगों, मीडिया व अदालतों से झूठ बोलने जैसी बातें, अमरीकी पुलिस के प्रशिक्षण में ज़ायोनी शासन की संलिप्तता को स्पष्ट कर देती हैं।

गोर्डन डफ़ ने इसी तरह लिखा है कि वर्ष 2001 में 11 सितम्बर के हमलों के बाद और जॉर्ज बुश जूनियर के राष्ट्रपति काल में अमरीकी पुलिस बल का प्रशिक्षण इस्राईली गुटों के माध्यम से कराया गया। यह ट्रेनिंग अमरीका के आंतरिक सुरक्षा मंत्री माइकल चेरटोफ़ के आदेश पर की गई जो एक अमरीकी व इस्राईली नागरिक थे। इस ट्रेनिंग का लक्ष्य सड़क पर लोगों की भीड़ को नियंत्रित करने, आतंकवाद से संघर्ष करने और सूचनाएं एकत्रित करने में पुलिस बलों को अधिक दक्ष बनाना बताया गया था।

बीबीसी न्यूज़ वेबसाइट ने 26 मई वर्ष 2015 को अमरीका के एक पूर्व पुलिस अधिकारी सेठ स्टॉटन का इन्टरव्यू प्रकाशित करके, जो इस समय दक्षिणी कैरोलिना विश्वविद्यालय में क़ानून के प्रोफ़ेसर हैं, अमरीकी पुलिस के रवैये में उसकी ट्रेनिंग की भूमिका के नए पहलुओं पर से पर्दा हटाया। उन्होंने बताया कि अमरीकी पुलिस की ट्रेनिंग में सबसे अहम व मूल सिद्धांत, लोगों की ओर से संभावित हमले और ख़तरे की स्थिति में पुलिसकर्मी की जान की रक्षा है। उन्होंने कहा कि लड़ाका पुलिसकर्मियों के प्रशिक्षण की संस्कृति, आम नागरिकों के लिए एक गंभीर ख़तरा है।

स्टॉटन का कहना है कि अमरीका के पुलिसकर्मी साठ घंटों की अनिवार्य ट्रेनिंग के दौरान पहले ही चरण में बंदूक़ इस्तेमाल करना सीखते हैं और फिर वे लोगों विशेष कर रंगीन वर्ण के अल्पसंख्यकों की बॉडी लेंगवेंज से मिलने वाले किसी भी प्रकार के इशारे को ख़तरा मानते हुए इसे पुलिस द्वारा गन के प्रयोग का औचित्य मान लेते हैं। यही कारण है कि पुलिस अभियानों के दौरान अन्य देशों की पुलिस की तुलना में अमरीकी पुलिसकर्मियों के मरने का अनुपात बहुत कम है।

स्पूतनिक समाचार एजेंसी ने 19 जुलाई वर्ष 2018 को एक अमरीकी पत्रिका के हवाले से समाचार दिया था कि अमरीका में पुलिस के हाथों एक नागरिक के मारे जाने के ख़तरे के बारे में इस देश की न्यायपालिका के डेटा सेंटर की ओर से जो औपचारिक आंकड़े जारी किए गए हैं, वास्तविक ख़तरा उनसे दोगुना अधिक है। इस रिपोर्ट के अनुसार कोरनेल और वॉशिंग्टन विश्वविद्यालयों की समाजशास्त्र की टीम की ओर से जो अध्ययन किया गया उससे स्पष्ट हो गया कि लैटिन अमरीकी मूल के और अश्वेत मर्दों को, श्वेत पुरुषों से अधिक पुलिस के हाथों मरने का ख़तरा है। इस प्रकार से कि प्रतिवर्ष पुलिस के हाथों अश्वेत पुरुषों के मारे जाने का ख़तरा हर एक लाख लोगों में एक दशमलव नौ से दो दशमलव चार के बीच है जबकि यही ख़तरा लैटिन अमरीकी मूल के लोगों के लिए शून्य दशमलव आठ से एक दशमलव दो के बीच है और गोरी चमड़ी वाले मर्दों के लिए केवल शून्य दशमल छः से शून्य दशमलव सात है।

इस प्रकार के आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि अश्वेत नागरिक, श्वेत पुरुषों की तुलना में अमरीकी पुलिस के हाथों तीन गुना अधिक मारे जाते हैं। इसी तरह लैटिन अमरीकी पुरुषों को श्वेत पुरुषों के मुक़ाबले में पुलिस के हाथों मारे जाने का ख़तरा चालीस प्रतिशत अधिक होता है। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 9 जुलाई 2016 को अमरीकी पुलिस के हाथों अफ़्रीक़ी मूल के लोगों की हत्या पर प्रतिक्रिया जताते हुए कहा था कि इस प्रकार की त्रासदियां हम कई बार देख चुके हैं। वर्ष 2015 में पुलिस के हाथों मारे जाने वाले अफ़्रीक़ी मूल के अमरीकी नागरिकों की संख्या, श्वेत अमरीकियों की तुलना में दुगनी थी। जब इस प्रकार की घटनाएं होती हैं तो हमारे देश के बहुत से लोगों को यह महसूस होने लगता है कि अपनी त्वचा के रंग के कारण उनके साथ समान व्यवहार नहीं किया जाता।

जातिवादी रुझानों और अनुचित प्रशिक्षण के अलावा गन कल्चर और हथियार रखने और लोगों के बीच उसे लेकर चलने की स्वतंत्रता का क़ानून भी अमरीका में पुलिस की हिंसा में वृद्धि का एक कारण है। अमरीकी समाज में गन कल्चर, पुलिस की हिंसा में वृद्धि के अलावा आम नागरिकों के बीच रक्तरंजित हिंसक घटनाओं में वृद्धि का भी कारण बन रहा है। अमरीका की मेडिकल एसोसिएशन के प्रमुख स्टीवन जे. स्टेक ने मई 2016 में एक बयान जारी करके बताया था कि हर साल लगभग तीस हज़ार बच्चे, महिलाएं व पुरुष अमरीका के स्कूलों, कालेजों, सिनेमा व थियेटरों, कार्यालयों, उपासना स्थलों यहां तक कि टीवी के लाइव कार्यक्रमों में गोलियों का शिकार बन कर मारे जाते हैं। अमरीकी समाज में इस प्रकार की हिंसा के विभिन्न पहलुओं और कुपरिणामों की समीक्षा इस कड़ी में संभव नहीं है और इसके लिए अलग से एक कार्यक्रम तैयार किए जाने की ज़रूरत है।

अपनी चर्चा को समेटते हुए हम संक्षेप में बस यही कहेंगे कि अमरीका में नागरिकों विशेष कर अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ पुलिस की बढ़ती हुई हिंसा के मुख्य कारकों में इस देश में नए रूपों में पुराना जातीय भेदभाव, ग़लती करने वाले पुलिसकर्मियों से निपटने के संबंध में पारदर्शी क़ानूनों का अभाव, अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ विभिन्न प्रकार का भेदभाव, अदालतों द्वारा अपराधी पुलिसकर्मियों का समर्थन, हथियार लेकर चलने की स्वतंत्रता, पुलिस बलों की अनुचित ट्रेनिंग और पुलिस बल में सैन्य शैलियों व उपकरणों की सम्मिलिति जैसी बातें शामिल हैं।

इस बीच एक ध्यान योग्य बिंदु अमरीकी मीडिया में पुलिस की हिंसा को ग़लत ढंग से बल्कि विपरीत ढंग से पेश किया जाना है। उदाहरण स्वरूप हालीवुड में अमरीकी पुलिस को हिंसा के एक कारक के रूप में नहीं बल्कि क़ानून को सच्चाई के साथ लागू करने वाले और नागरिकों के अधिकारों के रक्षक व समर्थक के रूप में पेश किया जाता है। इस संबंध में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने नवम्बर 2015 में अपने भाषण में जो बात कही थी उसे हम कार्यक्रम के अंतिम भाग के रूप में पेश कर रहे हैं। उन्होंने कहा था। हालीवुड की फ़िल्मों में जब पुलिस किसी को गिरफ़्तार करना चाहती है तो पहले ही कह देते है कि सचेत रहो कि जो कुछ तुम बोलोगे वह संभावित रूप से न्यायालय में तुम्हारे ख़िलाफ़ इस्तेमाल हो सकता है। तो क्या वास्तव में अमरीकी पुलिस इतनी शरीफ़ है? यह हालीवुड की फ़िल्में हैं, वरना अमरीकी पुलिस किसी को हथकड़ी लगाने के बाद उसकी पिटाई करती है, उस पर फ़ायर करती है, उसकी हत्या करती है, किसी को केवल इस लिए फ़ायर करके मार देती है कि उसकी जेब में खिलौना पिस्तौल है। अमरीकी पुलिस यह है। फ़िल्में, अमरीकी न्यायालय को, पुलिस को और सरकारी तंत्र को झूठ में सजा संवार कर पेश करती हैं। (HN)

 

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