Oct ११, २०२० १९:३० Asia/Kolkata

ईरान का सेमनान प्रान्त हमेशा से ही ईरान के लिए नमक का केन्द्र रहा है।

सेमनान प्रान्त का गर्मसार शहर नमक की वजह से पूरे ईरान में मशहूर है। इस नगर में नमक की 27 खानें हैं जहां से ईरान के लिए ज़रूरी नमक के बहुत बड़े हिस्से की आपूर्ति होती है लेकिन इन सब में कूहदश्त नामक खदान काफी मशहूर है क्योंकि उसमें एक नमक की गुफा भी है जिसे देखने के लिए दूर दूर से लोग जाते हैं। गुफा के मुहाने पर नमक के पत्थर गहरे रंग में नज़र आते हैं और जैसे जैसे आप गुफा के भीतर जाते हैं नमक के पत्थरों का रंग हल्का होता जाता है। गुफा के भीतर नमक के बारह बारह मीटर के खंभे हैं जो हर पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं लेकिन इस जगह आने वाले हर पर्यटक को जो चीज़ सब से ज़्यादा अपनी ओर आकर्षित करती है डिज़ाइन हैं जो नमक के पत्थरों पर बारिश ने बनायी है। इसी तरह पूरी गुफा में नमक के चमचमाते टुकड़े अलग अलग आकारों में और अलग अलग रंगों में देखने वाले को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। नमक के चमकते टुकड़े उसमें विभिन्न प्रकार के पदार्थों की मिलावट की वजह से रंगे बिरंगे नज़र आते हैं।

सेमनान प्रांत के गर्मसार नगर की नमक की खदान और उसकी खूबसूरत गुफा में हम नमक के हीरे जवाहरात की तरह चमकते नमक के टुकड़ों को देखते हुए इस प्रान्त की यात्रा खत्म करते हैं और आप को ईरान के एक एसे प्रान्त की सैर पर ले चलते हैं जहां ईरान के कही दसियों लाख पर्यटक हर साल जाते हैं और वहां के प्राकृतिक दृश्यों से आनंद उठाते हैं। ईरान का गुलिस्तान प्रान्त अपने आप में काफी अनोखा है । इस प्रांत में हरे भरे मैदान हैं, जंगल हैं और रेगिस्तानी इलाक़े भी हैं। 

 

गुलिस्तान प्रान्त 22 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल रखता है। इस प्रान्त का 70 प्रतिशत भाग विभिन्न प्रकार की खदानों पर आधारित है, कई मौसम होते हैं इस प्रांत में यही नहीं इस प्रान्त का इतिहास सात हज़ार साल पुराना है जिसकी वजह से प्रान्त में जगह जगह एतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहरें नज़र आती हैं। यही वजह है कि गुलिस्तान प्रान्त पर्यटक के लिए विशेष महत्व रखता है। 

 

गुलिस्तान के गुरगान इलाक़े मे जो खनन हुए हैं उनमें मिलने वाले अवशेषों से आर्यों से भी पहले की सभ्यता का पता चला है। तूरंग तप्पे नामक टीले में जो खुदाई हुई है उससे पता चलता है कि वहां प्राचीन समय में बहुत घनी आबादी वाला गांव था। हखामनी काल के शिलालेखों में इस इलाक़े को " वरगाने" कहा गया है जबकि पहलवी काल के अवशेषों में इस इलाक़े का नाम " गूरगान" मिलता है। यूनानी इतिहासकारों ने इस इलाक़े को " हीरकानी " कहा है लेकिन गुलिस्तान उस एतिहासिक भूमि का नाम है जिसे सातवीं हिजरी सदी तक गुरगान राज्य के नाम से जाना जाता था। दसवीं सदी के आंरभ में इसे उस्तराबाद कहा गया जबकि इस्लामी काल में उसे " जुरजान" कहा गया फिर उसे औपचारिक रूप से गुरगान कहा जाने लगा। तीन दशक पहले तक यह इलाक़ा माज़न्दरान प्रांत का भाग था  लेकिन उसके बाद इस इलाक़े को एक प्रांत बना दिया गया और गुरगान को गुलिस्तान प्रान्त का केन्द्र बनाया गया । 

 

गुलिस्तान प्रान्त रेलवे से तेहरान से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा यह ईरान के पवित्र नगर मशहद के रास्ते में भी पड़ता है इस लिए हर साल दसियों लाख पर्यटक इस प्रान्त की सैर करते हैं। आप को यह भी बता दें कि खेती बाड़ी और पशु पालन इस प्रान्त के अधिकांश निवासियों का व्यवसाय है। आप के लिए यह भी जानना रोचक होगा कि गुलिस्तान प्रान्त, खाने के तेल की पैदावार में पूरे देश में पहले नंबर पर है। इस प्रांत में पोल्ट्री फार्म और रेशम के कीड़े और मछली पालन का भी काफी रिवाज है। इसी तरह गुरगान की खाड़ी और कैस्पियन सागर के पश्चिमी भाग में मछली का शिकार भी किया जाता है। गुलिस्तान प्रांत में भी ईरान के अन्य क्षेत्रों की तरह अपनी हस्तकला है जिसमें ग्रामीण व्यस्त रहते हैं और यह उनकी आमदनी का एक साधन भी है। गुलिस्तान के कालीन, दरी, जाजिम, नकली ज़ेवर आदि काफी मशहूर हैं। 

 

गुलिस्तान में शिया मुसलमान बहुसंख्यक हैं लेकिन सुन्नी मुसलमानों की एक बड़ी संख्या इस प्रान्त में रहती है। इस प्रांत में ईरान की फार्स, बलोच, तुर्क, क़ज़्ज़ाक़ और तुर्कमन जातियां एक साथ रहती हैं। इस प्रांत की चालीस फीसद आबादी तुर्कमन जाति की है जो लगभग प्रान्त के आधे भाग में फैले हुए हैं। तुर्कमन, गुलिस्तान के पूर्वी, केन्द्रीय और उत्तरी भाग में रहते हैं इसी तरह उनकी बड़ी आबादी प्रान्त के केन्द्रीय नगर गुरगान में भी रहती है। तुर्कमन जाति के सुन्नी मुसलमान होते हैं और उनकी अपनी भाषा भी तुर्कमन है। 

गुरगान के प्राचीन हिस्से की शिल्प कला से जानकारी के लिए सब से अच्छा यह होगा कि हम आप के इस हिस्से के एक शानदार घर से परिचित करा दें। गुरगान के प्राचीन भाग में " बाक़ेरी आवास " है जिसे लगभग डेढ़ सौ साल पहले बनाया गया था। यह गुरगान की स्थानीय शिल्पकला का एक बेहद उत्कृष्ट नमूना है। यह प्राचीन और खूबसूरत घर पुराने गुरगान की एक बेहद व्यस्त सड़क के किनारे है। पूरा घर एक हज़ार नौ सौ पचास वर्गमीटर पर बनाया गया है जबकि इमारत का क्षेत्रफल एक हज़ार पांच सौ पचपन वर्गमीटर है। इस घर को पहलवी शासन काल के आरंभ में बनाया गया था। इस घर की खास बात यह है कि इसमें कई आंगन हैं। इस पूरे घर में अलग अलग आकार  के सात आंगन हैं जो चार गैलरियों से एक दूसरे से जुड़े हैं। हालिया कई वर्षों से यह घर पर्यटकों के विशेष आकर्षण का केन्द्र है और लोग इस घर को देखने के बाद इसमें बने " शरबत खाने" में कुछ यादगार क्षण गुज़ारते हैं। 

 

गुरगान का एक दर्शनीय स्थल इस नगर का बाज़ार है । यह रंग बिरंगा प्राचीन बाजार " नालबंदान " के नाम से मशहूर है। यह बाज़ार लंबाई में है और अंत में एक छोटे से चौराहे पर खत्म हो जाता है। इसकी खास बात यह है कि यह बाज़ार इस्फहान व तबरेज़ आदि के प्राचीन बाज़ारों की तरह छत वाला नहीं था।  किसी ज़माने में यह बाज़ार गुरगान के बेहद महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्रों में गिना जाता था । व्यापार के अलावा भी इस बाज़ार में सांस्कृतिक व सामाजिक गतिविधियां होती थीं मगर समय के साथ ही साथ बहुत कुछ बदल गया और अब यह बाज़ार गुरगान के केद्र में स्थिति एक बाज़ार है। 

गुरगान की जामे मस्जिद 

गुरगान की यात्रा करने वाले इस नगर की जामे मस्जिद ज़रूर देखते हैं यह मस्जिद नालबंदान बाज़ार के पास ही बनायी गयी है। यह मस्जिद तैमूरी काल से लेकर सल्जूकी और आज के इतिहास की गवाह है। मस्जिद के  विभिन्न हिस्सों को अलग अलग काल की शिल्पकला और कला से सजाया गया है जिसकी वजह से यह मस्जिद गुरगान और अस्तराबाद के इतिहास के विभिन्न खंडों का नमूना है।  इस मस्जिद की तैमूरी, सफवी , अफशारी शासन कालों में बार बार मरम्मत की गयी जिसके चिन्ह आज भी देखे जा सकते हैं। यह मस्जिद 1200 साल पुरानी है यही वजह है कि उसके मीनारों पर कूफी लिपि में शिलालेख नज़र आते हैं। इसी तरह इस मस्जिद में बने लकड़ी के " मेंबर " पर 859 हिजरी क़मरी की तारीख खुदी है । यह मस्जिद तुर्कमन शिल्पकारों द्वारा बनायी गयी है और इसे ईरान की राष्ट्रीय धरोहरों की सूचि में पंजीकृत किया गया है। 

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