Nov ०६, २०२१ १९:०५ Asia/Kolkata
  • ईरान भ्रमण-112

ईरान के ज़ंजान प्रांत में कई सुन्दर पर्यटन स्थल हैं जिनमें मस्जिदे हुसैनिए आज़म का अपना एक ख़ास स्थान है।

हुसनिया आज़म, ईरान के महत्वपूर्ण धार्मिक पर्यटन केन्द्रों में से एक है जिसे वर्ष 2008 में देश की दसवीं अध्यात्मिक धरोहर में शामिल किया गया।

ज़ंजान के हुसैनिया आज़म में एक मस्जिद और चार प्रांगड़ शामिल हैं जिसमें हर एक का अपना एक क्षेत्रफल और हर एक की अपनी एक भौगोलिक स्थिति है जिसकी वजह से उसको अलग अलग कामों में इस्तेमाल किया जाता है। हुसैनिया का सबसे प्राचीन भाग मस्जिद का है जिसकी प्राचीनता 400 साल से पहले की ओर पलटती है और वर्तमान समय में मस्जिद के मुख्य प्रांगड़ के रूप में ज़्यादातर कार्यक्रम इसी जगह पर आयोजित किए जाते हैं।

ज़ंजान के हुसैनिया आज़म की मस्जिद का क्षेत्रफल 12 हज़ार वर्गमीटर से ज़्यादा है जिसमें पुस्तकालय, विभिन्न हाल व प्रांगड़, छोटा चिकित्सालय और ऋण कोष सहित विभिन्न प्रकार की सेवाओं तथा धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संभावनाओं के केन्द्र शामिल हैं। इस हुसैनिया को हाजी मिर्ज़ा मुहम्मद नक़ी और हाजी मिर्ज़ा बाबाई ने वक़्फ़ किया है। यह मस्जिद, सऊदी अरब के मिना के बाद इस्लामी जगत ही सबसे बड़ी क़ुर्बानी की जगह है।

 

 

दोस्तो मुहर्रम की आठवीं तारीख़ को ज़ंजान शहर और आसपास के गांव व क़स्बे की सारी अंजुमनें, अज़ादारी और नौहाख़ानी के लिए इस मस्जिद और हुसैनिए में आती हैं और इस प्रांत के निवासी तथा देश के अन्य प्रांतों के निवासी मुहर्रम की आठवीं तारीख़ की रात को अपनी मन्नतें इस हुसैनिया में उतारते हैं। हुसैनिया आज़म में होने वाली अज़ादारी और अन्जुमनों के कार्यक्रम ईरान के सबसे बड़े अज़ादारी के कार्यक्रमों में शुमार होते हैं।  यह कार्यक्रम हुसैनी लश्कर के ध्वजवाहक और हुसैनी लश्कर के सेनापति हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम की याद में मनाया जाता है।

दोस्तो आपको यह बताते हुए ख़ुशी हो रही है कि ज़ंजान में अज़ादारी के कार्यक्रम के इस दिन को यौमुल अबलफ़ज़्ल और यौमुल अब्बास अर्थात हज़रत अब्बास के दिन का नाम दिया गया है। इस हुसैनिया और मस्जिद में बड़ी संख्या में अज़ादारों के एकत्रित होने की वजह से इस हुसैनिए की विश्वसनीयता काफ़ी हद तक बढ़ जाती है।

ज़ंजान में सुन्दर ऐतिहासिक घर भी मौजूद हैं जिनकी उपयोगिता को आजकल बदल दिया गया है। ज़ुल्फ़िक़ारियों के घर, ज़ंजान के ऐतिहासिक घरों में से एक घर है जिसे बदल कर संग्राहलय या म्यूज़ियम बना दिया गया है। ज़ंजान की ज़ुल्फ़ेक़ारी इमारत, ज़ंजान प्रांत की इतिहासिक इमारतों और आकर्षण केन्द्रों में से एक है जिसका निर्माण क़ाजारी शासन काल के अंतिम वर्षों में बनाया गया था। इस इमारत का संबंध इशराफ़ी परिवार और प्रभावी ज़ुल्फ़िक़ारी फ़ैमिली से रहा है।

यह ऐतिहासिक इमारत ज़ंजान शहर के केन्द्र में बनी है जिसमें कुछ भाग भीतरी और आंतरिक हैं। प्राचीनकाल में यह इमारात ज़ंजान के तत्कालीन शासकों का कार्यालय रहा है। वर्तमान समय में इस इमारात का बाहरी भाग सुरक्षित है जो महमूद ज़ुल्फ़िक़ारी नामक इमारात के नाम से प्रसिद्ध है।

 

ज़ंजान में ज़ुल्फ़िक़ारी इमारात के निर्माण की शैली, यूरोपीयन गोटिक इमारतों की शैली से ली गयी है, अलबत्ता इनमें ईरान की प्राचीन वास्तुकला की भी रक्षा की गयी है और उनका भी प्रयोग किया गया है।  इसी तरह ख़ानए ख़दीवर और ख़ानए वज़ीरी जैसी दूसरी ऐतिहासिक इमारतों की शैली, इमारतों की इन्हीं निर्माण शैलियों से ली गयी हैं। ज़ंजान की ऐतिहासिक ज़ुल्फ़िकारी इमारत दो मंज़िला है जिसमें से भूमिगत का क्षेत्रफल 1176 वर्गमीटर है।

इमारतका पहला मंज़िला रहने के लिए है जबकि दूसरी मंज़िल पर कार्यालय और दफ़्तर इत्यादि हैं। इस इमारात में प्रवेश द्वार, आवासीय क्षेत्र, घेराव, कार्यालय और प्रांगड़ शामिल हैं। इस इमारात का प्रवेश द्वार बहुत ही सुन्दर है जिनमें से आज भी कुछ हिस्सा भी बाक़ी है। इस इमारात की छत ढलुआ है जो एक समय में ज़जान में ढलुआ इमारतों से बनी इमारातों का पहला नमूना समझी जाती है। इमारत के ऊपरी हिस्से में एक रोशनदान बना है जो इंग्लिश हैट के नाम से प्रसिद्ध है। इस इमारत को बहुत ही सुन्दर डिज़ाइनों से सजाया गया है जिसमें स्टील, ईंट, पत्थर, चूना और टाइल्स का प्रयोग किया गया है। इस इमारात का सबसे सुन्दर और सबसे अच्छा भाग दक्षिणी हिस्सा है जो दर्शकों को अपनी ओर प्रेरित करता है।

 

वर्तमान समय में ज़ुल्फ़िक़ारी इमारात को एक प्राचीन म्यूज़ियम में परिवर्तित कर दिया गया है। यह म्यूज़ियम साल्ट मेन्स और प्राचीन काल के बारे में जानकारी दिए जाने से विशेष है।  ज़ंजान का म्यूज़ियम, इतिहास के तीन विभिन्न कालों के नमूने पेश करता है। इतिहास के पहले का दौर, इतिहास का दौर और इस्लामी इतिहास के दौर को आप इस म्यूज़ियम में देख सकते हैं।  इस भाग में ज़ंजान प्रांत में मिले कच्ची मिट्टी के बर्तन, आटा ख़राब होने से बचाने के लिए प्रयोग होने वाले ख़मीर, सुन्दर डिज़ाइनों के बर्तन और तांबें के मूल्यवान बर्तन रखे गये हैं।

 

 

ज़ंजान के म्यूज़ियम का सबस महत्वपूर्ण हिस्सा, लाशों को सुरक्षित रखने के लिए विशेष लेप लगाकर रखना है जिससे साल्ट मैन या नमक पुरुष के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन मिस्र में भी यह चीज़ देखने को मिलती है। बताया जाता है कि लाशों को सुरक्षित रखने के लिए विशेष प्रकार का ममी लगाकर रखने की प्रथा, चेहराबाद गांव में नमक की खदानों से लाभ उठाने और इससे 20 साल पहले सामने आई है। इस खोज से यह बात सामने आई है कि पांच लोग इस स्थान पर दफ़्न किए गये थे जिनको आज भी म्यूज़िम में सुरक्षित रखा गया है। चेहराबाद नमकी पुरूष की प्राचीनता 2350 साल पहले की ओर पलटती है। यह ममी दुनिया में सामने आनेवाली सबसे मूल्यवान और सबसे अहम समझा जाता है। इस ममी में शामिल तीन लोगों का संबंध हख़ामनेशी काल से है जबकि दो का संबंध सासानी काल से रहा है। यहां पर इस बात का जानना भी ज़रूरी है कि 19 फ़रवरी 1997 को ज़ंजान की ज़ुल्फ़िक़ारी इमारत को राष्ट्रीय धरोहर की सूची में पंजीकृत कर लिया गया।

 

ख़ानए ज़ुल्फ़िक़ारी के निकट एक दीवाने इस्तिफ़्ता नाम एक इमारात और म्यूज़ियम है जो ज़ंजान शहर की एतिहासिक इमारात और सब्ज़ा स्क्वायर के पास स्थित है। इस इमारत में भी तीन वास्तुकारों की कला के नमूनों को देखा जा सकता है। अर्मीनिया मूल के वारतान हवान्सियान जो क़ाजारी काल के वास्तुकार थे, पेल आबकार और गैब्रियन गूरकियान की कलाओं के नमूने साफ़ नज़र आते हैं। आरंभ में इस इमारात को दफ़्तर या कार्यालय के रूप में प्रयोग किया जाता था औज्ञ बाद में इससे वित्तीय मामलों के कार्यालय से विशेष कर दिया गया और अब इसे म्यूज़ियम बना दिया गया जिसके दरवाज़े सारे लोगों के लिए खुले होते हैं।

 

इस इमारात को 2011 को ज़ंजान के पारंपरिक और हस्तउद्योग की कलाओं के म्यूज़िम में बदल दिया गया। इस म्यूज़ियम में शामिल कलाओं के नमूनों में क़ाजारी शासन काल के पीतल और तांबे के विभिन्न प्रकार के बर्तन, चाक़ू, तलवार, दरियां और अनेक प्रकार की मूल्यवान वस्तुओं की ओर संकेत किया जा सकता है।

दोस्तो आपको यह भी बताते चलें कि ज़ंजान प्रांत में एतिहासिक धरोहरों के साथ साथ विभिन्न प्रकार की गुफाएं भी पायी जाती हैं। इन गुफाओं में सबसे प्रसिद्ध गुफा ग़ारे कुतले ख़ूर है जो ज़ंजान प्रांत में स्थित है।  यह गुफा ज़ंजान से 155 किलोमीटर की दूरी पर तथा गर्माब शहर से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस गुफा की शक्ल ज़ुरासिक काल अर्थात 120 मिलियन साल पहले से संबंधित है।

 

गुफा के द्वार पर 4000 मीटर की एक दहलीज़ बनी है और एक छोटी से छत है जिसके साथ लगी हुई कई छोटी छोटी दहलीज़ें हैं। दहलीज़ के बाद की आपको एक 950 मीटर चौड़ा एक दालान नज़र आता है जो 50 -50 मीटर के दो हिस्सों के साथ आगे बढ़ता रहता है। गुफा के कुछ हिस्सों में मिट्टी और कुछ में चूना मिट्टी के अंश भी मिलते हैं और इसी चीज़ ने गुफा की सुन्दरता में चार चांद लगा दिए हैं।

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