ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-36
क़ालीन की बुनाई में प्रयोग होने वाले पदार्थ की दृष्टि से क़ालीन कई प्रकार के होते हैं।
पूरी तरह ऊन से बुना क़ालीन, ऐसा क़ालीन जिसका सिर्फ़ धागा ऊनी होता है, पूरी तरह रेशम का क़ालीन और वह क़ालीन जिसके फूल सिर्फ़ रेशम के धागे के बुने होते हैं।
पूरी तरह ऊन से बुना क़ालीन वह क़ालीन होता है जिसका सांचा और रोएं ऊन का होता है। इस प्रकार के क़ालीन रोएं के पदार्थ के कारण मोटे बुने होते हैं। इस प्रकार के क़ालीन को ख़ेरसक कहते हैं जो ऊन के बहुत मोटे धागे से बुना होता है। पूरी तरह ऊन का बुना क़ालीन मज़बूत होता है और उस पर गुज़रने के बाद उसके रोएं बहुत जल्दी अपनी पूर्व स्थिति में लौट आते हैं। इसी प्रकार इस क़ालीन में आर्द्रता को अपने भीतर अवशोषित करने की क्षमता बहुत ज़्यादा होती है। इस प्रकार का क़ालीन भारी किन्तु कम क़ीमत का होता है। इसी प्रकार इस प्रकार के क़ालीन में कलात्मक पहूल बहुत कम होते हैं।
पूरी तरह रेशमी क़ालीन वह क़ालीन होता है जिसका सांचा और रोएं रेशम के होते है। इस प्रकार के क़ालीन की बुनाई बहुत बारीक होती है, ये बहुत क़ीमती होते हैं और कलात्मक दृष्टि से भी बहुत अहमियत रखते हैं। यूं तो ये क़ालीन दिखने में बड़े नर्म व नाज़ुक लगते हैं किन्तु इन पर धब्बे आसानी से नहीं बैठते अर्थात अगर इस पर पानी, कोलड्रिंक या दूसरे प्रकार के पीने वाले पदार्थ गिर जाएं तो एक गीले कपड़े और थोड़े से शैम्पू से साफ़ हो जाते हैं।
एक प्रकार का क़ालीन गुले अबरीशम कहलाता है। यह वह क़ालीन है जिसका धागा ऊनी होता है किन्तु उस पर बने फूल बूटे रेशमी धागे के होते हैं जबकि बाक़ी रोएं या लिन्ट ऊन से बुने होते हैं। यह क़ालीन भी कला की दृष्टि से बहुत अहम होते हैं हालांकि इनकी क़ीमत पूरी तरह रेशमी क़ालीन की तुलना में कम होती है।
ईरानी क़ालीन की कोमलता इसके फ़ाहे के अलावा इसमें लगायी गयी गांठ पर भी निर्भर होती है। इसमें लगने वाली गांठ के एक प्रकार का नाम दो गिरेह या दो गांठ है जिसे गिरेह तुर्की भी कहते हैं। शुरु में तबरीज़ के बुनकर क़ालीन की बुनाई में दो गांठ वाली कला अपनाते थे। अब यह शैली या कला अन्य क्षेत्रों में भी प्रचलित है। दो गांठ वाली शैली में बहुत समय लगता है। यह शैली आम तौर पर बारीक बुनाई वाली या बहुत सूक्ष्म चित्र वाली क़ालीन की बुनाई में अपनायी जाती है।
दो गांठ की कला से बुने हुए क़ालीन कोमल होने के साथ साथ बहुत मज़बूत भी होते हैं। इस प्रकार के क़ालीन से धागे आसानी से नहीं निकलते। इस प्रकार के क़ालीन पर जितना चलेंगे उतना ज़्यादा इसकी गांठों की सूक्ष्मता और चित्रों की ख़ूबसूरती उभरकर सामने आती है।
यही कारण है कि किरमान के क़ालीन के लिए यह बात मशहूर है कि इस इलाक़े के क़ालीन पर जितना ज़्यादा चला जाता है उतनी ज़्यादा इसकी ख़ूबसूरती निखर कर सामने आती है। इसी प्रकार क़ुम, तबरीज़, इस्फ़हान और किरमान में क़ालीन की बुनाई दो गांठ की शैली से की जाती है। इसलिए इन क्षेत्रों के क़ालीन भी कोमल होने के साथ साथ मज़बूत भी होते हैं।
बुनाई की यह शैली आज़रबाइजान, ज़न्जान, हमेदान और तुर्क भाषी इलाक़ों में अधिक प्रचलित है। दो गांठ वाले क़ालीन की बुनाई के लिए चूंकि हुक का इस्तेमाल होता है और इसकी गांठे एक समान होती हैं इसलिए यह क़ालीन मज़बूत होने के साथ साथ बहुत अच्छी क्वालिटी का होता है। इस शैली में छोटी कंघियां इस्तेमाल होती हैं और लंबाई वाले धागों पर अधिक दबाव होता है।
क़ालीन की बुनाई की एक शैली को फ़ारसी बाफ़ या एक गांठ वाली बुनाई कहा जाता है। ऊन के मोटे बुने हुए क़ालीन एक गांठ वाली शैली में बुने जाते हैं जो भारी होते हैं और उन पर बड़े उभरे हुए चित्र बनाए जाते हैं। ताने को टाइट करने के लिए भारी कंघों को रोएं पर मारते हैं ताकि ऊनी रोएं एक दूसरे के अंदर बैठ जाएं और ताना मज़बूत हो जाए।
फ़ारसी बाफ़ या एक गांठ वाले ताने में सूक्ष्म चित्र नहीं बुने जा सकते। बख़्तियारी, मशहद, अराक और हमेदान के एक क्षेत्र के क़ालीन एक गांठ की शैली में बुने जाते हैं। बहरहाल यह क़ालीन भी दिखने में बहुत अच्छे लगते हैं। इनकी बुनाई में ब्राइट कलर इस्तेमाल होते हैं जिससे जीवन में एक प्रकार ऊर्जा का एहसास होता है।
एक गांठ की शैली में ज़्यादातर बड़े या मध्यम आकार के क़ालीन बुने जाते हैं। इस शैली में मोटे धागे इस्तेमाल होते हैं और घनत्व ज़्यादा होता है इसलिए इस प्रकार के क़ालीन अधिक मज़बूत होते हैं और लंबे समय तक बाक़ी रहते हैं। बिछाने के लिए इस प्रकार के सबसे अच्छे क़ालीन काशान में बुने जाते हैं। इसकी बुनाई तेज़ी से होती है और इसकी क़ीमत हाथ से बुने हुए अन्य प्रकार के क़ालीन से कम होती है।
जिस तरह कपड़े की बुनाई में ताना-बाना बहुत अहम होता है इसी तरह क़ालीन की बुनाई का मुख्य ढांचा उसका ताना-बाना होता है। ताना धागों वह समूह है जिसमें धागों को समानांतर फ़्रेम में लगाते हैं। बाना, क़ालीन की बुनाई के वक़्त तानों के बीच से गुज़रने वाले धागे को कहते हैं। जिसे क़ालीन का बुनकर तानों के बीच से गुज़ारता है। यह काम एक या दो लोग मिल कर करते हैं। ताना चलाने वाले को विभिन्न प्रकार के चित्रों को बनाने में दक्ष होना ज़रूरी होता है। ताना चलाने वाला जिस क़ालीन के चित्र के अनुसार, धागों, उनके प्रकार, क़ालीन की लंबाई-चौड़ाई को तय करता है और किसी तकनीकी मुश्किल के समय उसका हल पेश करता है।
ताना चलाने की दो शैली प्रचलित है। एक फ़ारसी कहलाती है और दूसरी तुर्की। फ़ारसी शैली में ताने के धागों को ज़मीन पर लगी कील में लपेट कर फ़्रेम में लगाते हैं। जबकि तुर्की वाली शैली में दो लोगों की ज़रूरत होती है। एक क़ालीन की बुनाई के उपकरण के ऊपर और दूसरा नीचे बैठता है और धागे के गोले को दोनों ओर फेकता है और ऊपर तथा नीचे वाले रॉड पर घुमाता रहता है। इस शैली में वक़्त ज़्यादा लगता है लेकिन यह शैली बहुत सुव्यवस्थित है और इसका नतीजा भी संतोषजनक होता है।
बुने हुए क़ालीन में गांठ के प्रकार को समझना ज़रा कठिन काम है। बारीक बुने हुए क़ालीन में इसका पता लगाने के लिए मैग्नीफ़ाइंग ग्लास की ज़रूरत होती है। अगर गांठ का दायरा साफ़ तौर पर दिखाई न दे और रोएं घांस की तरह बाने के पास उगे हुए नज़र आएं तो यह फ़ारसी गांठ का पता देते हैं। अगर गांठ का दायरा रोएं के चारों ओर साफ़ साफ़ दिखाई दे और बाने का धागा दांतेदार लाइन की तरह लगे तो यह तुर्की गांठ का पता देते हैं। एक वर्ग मीटर पर जितना ज़्यादा गांठ होगी क़ालीन उतना ज़्यादा मज़बूत और उस पर चित्र अधिक स्पष्ट नज़र आएगा।
क़ालीन के प्रकार के अनुसार एक वर्ग मीटर पर गांठों की संख्या बदलती रहती है। गांवों और बंजारों द्वारा बुने जाने वाले क़ालीन में आम तौर पर गांठों की संख्या कम जबकि शहर में सूक्ष्मता से बुने जाने वाले क़ालीन में कभी कभी एक वर्ग मीटर पर 10 लाख गांठ लगायी जाती है।
मोटे बुने हुए क़ालीन में एक वर्ग डेसीमीटर पर 360 से 500 गाठें होती हैं। अर्ध मोटे बुने क़ालीन पर एक वर्ग डेसीमीटर पर 500 से 1000 गाठें लगायी जाती हैं। यह क्रम इसी तरह आगे बढ़ता है। आपके लिए यह जानना रोचक होगा कि रेशम के धागों के बुने कुछ ख़ास क़ालीन में एक वर्ग डेसीमीटर के क्षेत्रफल पर 1 लाख से ज़्यादा गाठे लगायी जाती हैं।
क़ालीन की बुनाई के समय कुछ लाइन बुनने के बाद विशेष प्रकार की क़ैची से निकले हुए धागों को काटते जाते हैं।
क़ालीन की बुनाई में रोएं को छांटने का चरण भी बहुत अहम है। फ़ाहे की छंटाई ऐसी हो कि छूने में नर्म लगे। अगर ज़्यादा छांट दें और छूने में नर्म महसूस न हो तो ऐसे क़ालीन की क़ीमत बहुत गिर जाती है।