Jan २८, २०२१ १५:०४ Asia/Kolkata

भारत में गणतंत्र दिवस मनाए जाने के बाद एक बार फिर यह प्रश्न सामने आने लगा है कि संविधान के निर्माताओं ने देश के भविष्य के लिए जो सपने देखे थे, क्या वे कभी साकार नहीं होंगे?

भारत वासियों ने अभी 26 जनवरी मनायी है जो भारत का गणतंत्र दिवस है। इस दिन औपचारिक रूप से भारतीय लोगों ने अपनी इच्छा अनुसार अपने देश को चलाने के लिए संविधान को औपचारिक रूप से लागू किया। 26 जनवरी सन 1950 को उस समय के भारत के हाई कमिश्नर कृष्ण मेनन ने भारत के स्वाधीन राजनैतिक प्रजातंत्र होने की घोषण की। 

26 जनवरी सन 1930 को इंडियन कांग्रेस पार्टी ने पूर्ण स्वराज घोषणापत्र पारित किया जिसके बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु हुआ जिसका आरंभ डांडी मार्च से हुआ जो गांधी अरविंद पैक्ट नामक समझौते पर ख़त्म हुआ। गवर्नमेंट आफ इंडिया 1935 एक्ट आया जिसने भारत में फेडरल और राजकीय व्यवस्था का आरंभ किया और राज्य के स्तर पर पहली बार वोट का अधिकार मिला। लेकिन इससे भारतीय नेता और नागरिक खुश नहीं थे इसी लिए अपने संविधान की मांग बनी रही। अन्ततः ब्रिटिश सरकार ने इंडियन इन्डिपेंन्डेंट एक्ट 1947 पास कर दिया जो हक़ीक़त में भारत की आज़ादी का परवाना भी था और उसके दो टुकड़े करने का आदेश भी।

14 अगस्त 1947 को संविधान सभा के प्रस्ताव का आभार प्रकट करते हुए भारत के पहले राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद ने कहा था। 29 अगस्त सन 1947 को एक 7 सदस्यीय समिति बनी जिसकी ज़िम्मेदारी थी भारत का संविधान बनाना। इसमें मुख्य भूमिका भीमराव अंबेडकर ने अदा की।  संविधान सभा ने 2 साल 11 महीने और 17 दिन में संविधान तैयार किया।  संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को संविधान पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। 26 नवम्बर को  भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है। रोचक तथ्य यह है कि पूरे संविधान को न टाइप किया गया न प्रिंट बल्कि इसे लिखा गया। 26 जनवरी को प्रभावी करने की वजह भी रोचक है। 26 जनवरी सन 1930 को इंडियन कांग्रेस पार्टी ने पहली बार पूर्ण स्वराज की मांग की थी। 24 जनवरी सन 1950 को एक बैठक में सभी सदस्यों ने नये संविधान पर हस्ताक्षर कर दिये लेकिन मौलाना हसरत मोहानी ने संविधान के ड्राफ्ट पर यह नोट लिखाः यह संविधान ब्रिटिश संविधान को ही लागू करना और विस्तृत करना है जिससे आज़ाद हिन्दुस्तानियों और आज़ाद हिन्द का मक़सद पूरा नहीं होता।

भारत के संविधान निर्माता डाक्टर अम्बेडकर ने भी भारत के भविष्य को लेकर बहुत कुछ कहा और भविष्य में संविधान को सही तरीक़े से लागू किए जाने के संबंध में कुछ आशंकाएं भी व्यक्त की थी। उन्होंने संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण में कहा था। डाक्टर अम्बेडकर की मुख्य चिंताओं में से एक यह थी कि भविष्य में कहीं देश की स्वतंत्रता को किसी महानायक के चरणों में समर्पित न कर दिया जाए। दूसरे शब्दों में कहीं देश लोकतंत्र से तानाशाही में न बदल जाए। उनकी ये चिंताएं आगे चल कर सही भी सिद्ध हुईं। 

डाक्टर अम्बेडकर ने इसी तरह कहा था कि अगर भारत के राजनैतिक दल अपने विचारों व नज़रियों को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी आज़ादी एक बार फिर ख़तरे में पड़ जाएगी बल्कि शायद हमेशा के लिए खो जाएगी। विविधता में एकता देश का बुनियादी सिद्धांत है जिसकी हर हाल में रक्षा की जानी चाहिए।

बहरहाल 1857 के विद्रोह से सन 1947 तक अर्थात 90 बरसों तक तेज़ी और व्यापकता के साथ चले संघर्ष के बाद यह अधिकार भारत वासियों को मिला है। यूं तो अग्रेज़ों का पहला जहाज़ जहांगीर के दौर में सन 1601 में भारत पहुंच चुका था जिसके बाद 346 साल गुज़र गये तब जाकर अग्रेज़ों को बाहर निकाला जा सका। लेकिन उसके बाद भारत के  संचालन की समस्या थी जिसके लिए संविधान बनाया गया और उसमें भारत की संस्कृति और विभिन्न धर्मों के लोगों का ख्याल रखा गया। रोचक बात यह है कि भारत में सेकुलर व्यवस्था लागू करने में मुसलमानों का काफी हाथ रहा और संविधान सभा में जमीअते उलमा के महासचिव मौलाना हिफ़्ज़ुर्रहमान सेवहारवी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए, दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई को इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

सन 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा इसमें संशोधन किया गया था जिसमें तीन नए शब्द समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया था। आज जो हालात हैं उनमें एक वर्ग, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को गाली की तरह एक विशेष वर्ग पर चिपकाने की कोशिश करता है। भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने तो संसद में यह तक कह दिया कि भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं बल्कि पंथनिरपेक्ष देश है। उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ भी कहते हैं कि आजकल जिसे सेकुलरिज़म कहा जा रहा है, उसकी देश को ज़रूरत नहीं है। इस प्रकार के विचारों पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की प्रमुख सोनिया गांधी ने संसद तक में चिंता प्रकट की। 

भारत की आज़ादी और उसके संघर्ष की कहानी बहुत लंबी और खून में डूबी हुई। इस आज़ादी को पाने के लिए भारत के सभी वर्ग और धर्म के लोगों ने खून बहाया है। अगर न्याय के साथ भारत की आज़ादी का पूरा इतिहास पढ़ा जाए तो उसमें वह लोग आगे आगे नज़र आंएगे जिन्हें आज अपने ही देश में वह लोग देश भक्ति के सर्टिफेकेट  देने की ज़िम्मेदारी उठाए हैं जिनकी विचारधारा वाले लोगों का खून क्या, आज़ादी के लिए पसीना भी नहीं बहा है।

भारत को 15 अगस्त सन 1947 में आज़ादी मिली, 26 जनवरी सन 1950 को भारत गणराज्य बना और देश में संविधान लागू कर दिया गया। पीआईबी के अनुसार भारत में 26 जनवरी सन 1950 को सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर भारत एक गणराज्य बना जिसके छे मिनट बाद अर्थात 10 बजकर 24 मिनट पर राजेन्द्र प्रसाद ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण की। उस दिन पहली बार राष्ट्रपति के रूप में राजेन्द्र प्रसाद बग्घी पर बैठ कर राष्ट्रपति भवन से निकले थे। उस दिन पहली बार उन्होंने भारतीय सेना की सलामी ली थी और पहली बार उनको गार्ड आफ आनर दिया गया था। पहली बार गणतंत्र दिवस जिस तरीक़े से मनाया गया था उसमें अब बहुत कुछ बदल गया है जो स्वाभाविक भी है लेकिन इसके साथ ही भारत में और भी बहुत कुछ बदल गया है जो न केवल यह कि स्वाभाविक नहीं है बल्कि चिंताजनक भी है।

पूरी दुनिया में अपनी गंगाजमुनी संस्कृति अपनी सहिष्णुता और उदार देशवासियों के लिए मशहूर भारत का नाम अब उन देशों में दर्ज किया जाने लगा जहां अल्पसंख्यकों को पूरी आज़ादी नहीं है। भारत के लिए सब का खून बहा है बिना किसी भेदभाव के, अग्रेज़ों ने स्वतंत्रता संग्रामियों को फांसी पर चढ़ाते समय उनके धर्म व जाति पर ध्यान नहीं दिया तो आज संपन्न व समृद्ध भारत में, भारतीयता और राष्ट्रवाद के दावे के साथ कुछ वर्गों को हाशिये पर रखने की कोशिश क्यों की जा रही है? क्या यह वही भारत है जिसका सपना, अपना खून बहाकर उसे आज़ाद कराने वालों ने देखा था?

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