ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-12
लकड़ी छीलने या रंदने का काम, ईरान के पारंपरिक हस्त उद्योग में से है जो ईरान के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित है।
लकड़ी को रंदने या छीलने की कला में रंदे से लकड़ी को विशेष प्रकार का रूप देते हैं। अतीत में भी रंदने वाले लकड़ी के औज़ार से रंदने का काम करते थे किन्तु वर्तमान समय में लकड़ी को रंदने और उसे छीलने का काम आधुनिक व बड़ी बड़ी मशीनों से किया जाता है। इन मशीनों में लड़की को डाल दिया जाता है और उससे अपनी दृष्टिगत डिज़ाइनें प्राप्त की जा सकती हैं। इस प्रकार से हम बहुत ही सरलता और बिना ख़तरे के लकड़ी को रंद सकते हैं और उससे अच्छी डिज़ाइन प्राप्त कर सकते हैं।
कुछ नर्म और गीली लकड़ियां, रंदने के लिए बहुत उचित होती हैं और अधिकतर इन कामों के लिए आख़रोट, एल्म ट्री, एल्डर ट्री, Fraxinus excelsior ट्री, बांस, चेनार और नाशपाती के पेड़ बहुत ही उपयोगी होते हैं। रंदाई के कारख़ानों में लड़कियों की आपूर्ति नगरों और गांवों के आसपास पाये जाने वाले जंगलों से होती हैं।
तख़्ते जमशेद में दारयूश महल में मौजूद डिज़ाइनें इस बात का चिन्ह हैं कि तख़्त, उसके चारों आधार और लोहबान दान, सभी रंदे की कला से बने हुए हैं। फ़्रांसीसी पर्यटक जॉन चार्डन भी ईरान में रंदाई की कला से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने यात्रा वृतांत में ईरान में प्रचलित रंदने की कला पर विस्तार से चर्चा की है।
रंदाई की प्रक्रिया दो चीज़ों के लिए महत्वपूर्ण होती है, किसी चीज़ को सुन्दर बनाने के लिए और किसी वस्तु को अपने दृष्टिगत प्रयोग में लाने के लिए । मूर्ति, फ़्रेम, दर्पण का चौखटा, चारपाई के पाये, नवजात शिशु के पालने, पवित्र क़ुरआन का रहल बनाने तथा इसी प्रकार की अन्य चीज़ों का निर्माण रंदने या छिलाई से बनाया जाता था। इसी प्रकार माचिस का डिब्बा, टिश्यू पेपर रखने की जगह, सोफ़े, छड़ी, शतरंज, छोटा बक्सा, गमला, फल रखने के बर्तन और चमच इत्यादि की रंदने से बनाये जाते हैं।
ईरान के उत्तरी नगरों में गीलान और माज़ेन्दरान प्रांत, उचित लकड़ियों के पाये जाने के दृष्टिगत, रंदाई व छिलाई सहित लकड़ियों के महत्वपूर्ण उत्पादन केन्द्र समझे जाते हैं किन्तु यह कहा जा सकता है कि रंदाई की कला ईरान के बहुत से शहरों में भी प्रचलित है। इन शहरों के नाम इस प्रकार हैः ईरानशहर के कुछ शहर, उरूमिया, बूकान, सन्नदज, बाने, सक़ज़, देज़फ़ूल और नतन्ज़ के कुछ शहर। अलबत्ता कभी कभी बंजारे भी स्वयं वस्तुओं को रंदने के बाद मार्केट में पेश करते हैं।
रंदने में जिन उपकरणों का प्रयोग किया जाता है उनके नाम इस प्रकार हैः चाक़ू, रंदा, हथौड़ी, छेनी, बेलनाकार रंदा और आरी इत्यादि। कारख़ानों में लकड़ियों की रंदाई से पहले इस बात को निर्धारित करना पड़ता है कि हमें किसी प्रकार की लकड़ियों का चयन करना है और उसे ब्रश करना होता है और उसके बाद दक्ष कलाकारों द्वारा निर्माण का चरण आरंभ होता है। कारख़ानों में छिलाई या रंदाई का काम तीन चरणों में होता है। पहले चरण में लकड़ी को बेलनाकार छोटे छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। बाद के चरण में बेलनाकार टुकड़े को रंदे में रखकर रंदा जाता है और फिर दक्ष कलाकार उसे अपने दृष्टिगत रूप में ढालता है। उसके बाद उस कलाकृति को कुछ दिन खुले आसमान में रखा जाता है और उसके बाद उसका बाहरी रूप दिया जाता है। यदि उसमें छेद करने की आवश्यकता हो तो उसमें छेद करते हैं और उसके बाद उसे मशीन रखकर अंतिम रूप देते हैं। उसके बाद के चरण में उस वस्तु को रंगते हैं और उसके बाद उसे बाज़ार रवाना कर दिया जाता है।
चटाई बुनाई या बोरिया बनाने का काम ईरान में प्रचलित प्राचीनत हस्तउद्योगों में से एक है। मेसोपोटामिया और अफ़्रीक़ा से प्राप्त होने वाले नमूनों को देखने से पता चलता है कि चटाई बुनाई और डलिया बुनाई, कपड़ों की बुनाई और मिट्टी के बर्तनों के बनाने की कला से उत्पन्न हुई है।
चटाई बुनाई की कला में मुख्य रूप से हाथ और साधारण उपकरणों की भूमिका हेती है जिससे विभिन्न प्रकार की चीज़े बनती हैं। जैसे डलिया, डोलची, चटाई, चिलमन और छीका इत्यादि बनाये जाते हैं। चटाई बुनाई की कला को कई प्रकार की कला में विभाजित किया जा सकता है।
कलाकारों और विशेषज्ञों का मानना है कि आरंभिक मनुष्यों ने मैसोपोटामिया क्षेत्र में अपने रहने के लिए नरकट से घरों का निर्माण किया था। प्रमाणों से पता चलता है कि यह झोपड़िया पास ही मौजूद नरकट और घास फूंस से बनाई गयी थी और उसके साथ ही उस काल के लोगों ने ज़मीन पर बिछाने के लिए एक प्रकार की चटाई भी बनाई जो बाद में चटाई बुनाई की कला के रूप में उभर कर सामने आई। इस प्रकार से यह दावा किया जा सकता है कि मनुष्य ओर से जो आरंभिक ढांचा बनाया गया वह चटाई से बना हुआ था और आदि काल के बाद चटाई और नरकट से घर बनाये गये।
सामन्य रूप से चटाई बुनाई में जो पदार्थ प्रयोग होते हैं वह बहुत शीघ्र ख़राब हो जाते हैं इसीलिए प्राचीन चटाई के बहुत से उत्पादन ख़राब हो गये किन्तु यह कहा जा सकता है कि निश्चित रूप से चटाई उत्पादन मिट्टी के बर्तनों से अधिक प्रयोग होता है। प्रमाणों से पता चलता है कि मिट्टी के बर्तनों के निर्माण में सांचे के रूप में चटाई का प्रयोग किया जाता था । इसी आधार पर विशेषज्ञों ने स्वीकार किया है कि पाषाणयुग से पहले भूसे और पेड़ों के पत्तों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया जाता था। इन कलाकृतियों के बहुत कम बचे नमूनों को देखने से यह पता चलता है कि यह नौ से सात हज़ार वर्ष ईसापूर्व प्राचीन हैं जिसके निर्माण में बहुत ही जटिल शैलियों का प्रयोग किया गया है।
विश्व में चटाई की बुनाई करने में प्रयोग होने वाली वस्तुओं का उत्पादन करने वाले सोलह देशों में से एक ईरान भी है। ख़ुरासाने रज़वी प्रांत, दक्षिणी ख़ुरासान, ख़ोज़िस्तान, सीस्तान व ब्लोचिस्तान, फ़ार्स, किरमान, गीलान, माज़ेन्दरान, हमदान, पूर्वी आज़रबाइजान और बूशहर ईरान में में चटाई बुनाई के मुख्य केन्द्र हैं। कुछ किताबों में ईरान में चटाई बुनाई की प्राचीनता की ओर संकेत किया गया है। उदाहरण स्वरूप जी ग्लाक ईरान में हस्त उद्योग की सैर नामक पुस्तक में लिखते हैं कि चटाई बुनाई की कला, ईरान के दक्षिणी और उत्तरी क्षेत्रों में स्थानीय कला रही है और इसके उत्पादन के समस्त चरण पूर्ण रूप से पारंपरिक और महिलाओं द्वारा अंजाम दिए जाते हैं। ईरान के उत्तरी क्षेत्रों में अतीत से लेकर अब तक चटाई निर्माण में विभिन्न डिज़ाइने देखी जा सकती हैं जिसमें विभिन्न प्रकार के रंगीन प्राकृतिक नरकट प्रयोग किए जाते थे।
ईरान के विभिन्न क्षेत्रों में चटाई निर्माण, भिन्न है क्योंकि हर एक पास अलग अलग कच्चे पदार्थ होते हैं। उदाहरण स्वरूप ईरान की दक्षिणी तटवर्ती पटी में खजूर के पेड़ की टहनियों और पत्तों से जबकि उत्तरी पट्टी में गेंहू और चावल की टहनियों से चटाई बुनी जाती है। इसी प्रकार चटाई का प्रयोग हर क्षेत्र का निवासी अपने अनुसार करता और उसके निर्माण में इसी प्रकार अपनी आवश्यकता के अनुसार वस्तुओं का प्रयोग करता है।
यद्यपि ईरान में विभिन्न क्षेत्र में चटाई निर्माण के लिए आरंभिक वस्तुएं भिन्न हैं क्योंकि यहां की भौगोलिक स्थिति भिन्न होती है किन्तु चटाई निर्माण के मुख्य पदार्थ इस प्रकार हैः बोरिया, भूसा, खजूर ही टहनी, कुछ पेड़ों की छाल, बांस की कमज़ोर टहनी और इसी प्रकार अन्य पेड़ों की टहनियां।
सामान्य रूप से चटाई दो शैलियों से बुनी जाती हैं। एक दूसरे में गुथी हुई शैली या मुशब्बक अर्थात ख़ानेदार। एक दूसरे में गुथी हुई शैली गोल शक्ल या गोलाई वाली वस्तु बनाने में बहुत उचित होती है किन्तु मुशब्बक शैली बर्तनों और आधारभूत ढांचे बनाने में प्रयोग होती है।
कभी कभी ऐसा होता है कि चटाई निर्माण में सुई या किसी अन्य उपकरण के प्रयोग से रंगीन धागों का प्रयोग किया जाता और बुनाई ख़त्म होने के बाद जब आप देखे तो धागों से बहुत ही सुन्दर डिज़ाइन बन जाती है।
उन हस्त उद्योगों में जिनके निर्माण में नरकट का प्रयोग किया जाता है जब वाछिंत मात्रा में नरकट का प्रयोग हो जाता है तो उसे विशेष प्रकार के उपकरण से वहीं निकट से काट दिया जाता है। नरकट के पत्तों को काटने के बाद उसे चाक़ू से बीच से फाड़ा जाता है औस उसके बाद नरकटों को एक दूसरे पर रखा जाता है और उन्हें कूटा जाता है और कुट जाने के बाद उन्हें चटाई बुनाई के लिए प्रयोग किया जाता है। उन कूटे हुए भाग को एक दूसरे के साथ रखा जाता है और विभिन्न रूपों में बुनाई की जाती है। इस प्रकार से चटाई, चिलमन, झोपड़ी का छप्पर इत्यादि बनता है।
चटाई से बने हस्त उद्योग, गर्मी, आग, दबाव, चोट और नोकीली चीज़ों से बहुत अधिक प्रभावित होते हैं किन्तु उन्हें रखना और धोना बहुत सरल होता है। इनकी धुलाई के लिए केवल सादा पानी और साबुन की आवश्यकता होती है। (AK)