Apr ३०, २०१६ १६:२४ Asia/Kolkata

वादय यंत्रों के निर्माण का संबन्ध, धरती पर मनुष्य के जीवन के आरंभ से जुड़ा हुआ है।

 संगीत के बारे में यह बात कही जा सकती है कि संभवतः मनुष्य की आवाज़ ही संगीत का आरंभिक बिंदु है। बाद में समय गुज़रने के साथ ही साथ मानव ने वाद्य यंत्रों के निर्माण के बारे में सोचना आरंभ किया। वाद्य यंत्रों के निर्माण से मानव ने विभिन्न प्रकार के संगीत को जन्म दिया। आरंभिक वाद्य यंत्रों को लकड़ी, पत्थर और हड्डियों से बनाया गया था। खोजे गए प्रथम वाद्य यंत्र के संबन्ध में विभिन्न प्रकार के विचार पाए जाते हैं। इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि यह वाद्य यंत्र लगभग 67 हज़ार वर्ष पुराना है। हालांकि जानकारों का यह कहना है कि इसके लिए किसी समय सीमा का निर्धारण उचित नहीं है। विश्व का प्राचीनतम वाद्ययंत्र, तराशी हुई हड्डी से बनी हई बांसुरी है। इसमें चार छेद हैं जिनके माध्यम से सुर निकाले जा सकते हैं। वास्तव में उस वस्तु को जिससे ध्वनि निकलती हो, वाद्य यंत्र कहा जा सकता है और संभवतः वाद्य यंत्र की यही सबसे उचित परिभाषा है।

 

 

संगीत के इतिहास के अध्ययन से ज्ञात होता है कि फ़ाराबी को इसका पितामह कहा जाता है। उन्होंने विभिन्न प्रकार के सुरों के बारे में विस्तार से बताया है। जानकारों का यह कहना है कि इस बात का कोई भी दावा नहीं कर सकता कि अमुक व्यक्ति ने अमुक सुर या वाद्य यंत्र का अविष्कार किया है। इसका मुख्य कारण यह है कि संगीत के इतिहास में या फिर पूरे इतिहास में वाद्य यंत्र बनाने वाले का नाम नहीं मिलता। हालांकि पौराणिक कहानियों में कुछ सुरों का संबन्ध कुछ विशेष लोगों से बताया गया है किंतु वे सब काल्पनिक हैं। इस प्रकार की कहानियों का कोई भी एतिहासिक आधार नहीं है। संसार में संगीत के बहुत से सुरों को अलग-अलग लोगों ने बनाकर प्रस्तुत किया है। वास्तव में वाद्य यंत्र बनाने वालों ने उनकी कमियों को दूर करके उसे परिपूर्णता तक पहुंचाया है।

 

 

पुरातत्व वेत्ताओं की खोज से पता चला है कि बाद में जानवरों की खालों से भी वाद्य यंत्रों का निर्माण किया गया। हालांकि यह बात भी सही है कि लकड़ी की तुलना में कोई भी धातु या वस्तु, वाद्य यंत्रों के निर्माण में प्रभावशाली सिद्ध नहीं हो सकी। लकड़ी के भीतर कुछ ऐसी विशेषताएं पाई जाती हैं जो अन्य में मौजूद नहीं हैं। इस बात को मानव ने अपने अनुभवों से सीखा और इसे सिद्ध किया है। यही कारण है कि अधिकांश वाद्य यंत्र लकड़ी से ही बनाए जाते हैं।

 

 

ईरानी वाद्य यंत्र, तीन प्रकार के होते थे। धातु के, कच्ची मिट्टी के और लकड़ी के। किसी भी वाद्य यंत्र की आवाज़ इस बात पर निर्भर करती है कि उसे किस धातु या वस्तु से बनाया गया है। धातु से बनाए जाने वाले वाद्य यंत्रों को ठोक पीट कर बनाया जाता है। धातु से बने होने के कारण इनकी ध्वनि में कुछ विभिन्नता पाई जाती है। कच्ची मिट्टी के बने वाद्य यंत्रों में ऐसा कुछ नहीं करना पड़ता। इनको बनाने की शैली, धातु से बनाए जाने वाले वाद्य यंत्रों से कुछ भिन्न होती है। लकड़ी से बनाए जाने वाले वाद्य यंत्रों को काट छांट कर बनाया जाता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि लकड़ी से बनाए जाने वाले वाद्य यंत्रों को सबसे अच्छा माना जाता है। लकड़ी से बने वाद्य यंत्रों में बहुत विविधता पाई जाती है।

 

 

पारंपरिक वाद्य यंत्रो का निर्माण ईरान में एक कला भी रहा है और उद्योग भी। ईरान के विभिन्न क्षेत्रों में आपको ऐसे लोग मिल जाएंगे जो वाद्य यंत्र बनाकर इसके प्रेमियों को उपलब्ध कराते रहे हैं। पारंपरिक वाद्य यंत्रों के निर्माण को, हस्तकला उद्योग की श्रेणी में रखा जा सकता है। हालांकि ईरान में प्राचीन काल से वाद्य यंत्र बनाए जा रहे हैं किंतु इसमें अभी भी विकास की आवश्यकता है।

 

 

ईरान में वाद्य यंत्रों के निर्माण के इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि इस विषय से संबन्धित जो प्रमाण मौजूद हैं वे क़ाजारिया शासन काल के हैं। इन प्रमाणों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उस समय के कलाकार अपनी आवश्यकता के वाद्य यंत्र स्वयं ही बना लिया करते थे। शायद यही वजह है कि ईरान में वाद्य यंत्र अधिकांश आरंभ में उसके बनाने वाले के नाम से प्रसिद्ध हुए जो बाद में उसके बजाने वाले के नाम से जाने गए। इसीलिए हम देखते हैं कि वर्तमान समय में संग्रहालयों में जो वाद्ययंत्र रखे हुए हैं वे या तो अपने बनाने वाले के नाम से या फिर उसके बजाने वाले के नाम से प्रसिद्ध हैं।

 

 

पिछली शताब्दियों के दौरान ईरान में वाद्य यंत्र बनाने वालों के बारे में यह विचारधारा पाई जाती थी कि वह बहुत ही सादा हो और उसपर सजावट न हो क्योंकि सजावट से उसकी आवाज़ प्रभावित होती है जिसके कारण वह अपनी अस्ल आवाज़ पहुंचाने में अक्षम हो जाता है।

 

 

ईरान में प्रचलित काष्ठकला के अन्तर्गत अधिकांश सजावट की चीज़ें बनाई जाती हैं जैसे फ़्रेम, क़लमदान, फूलदान आदि। आरंभ में तो इन्हें बहुत ही सादे ढंग से बनाया जाता है किंतु बाद में उसकी सज्जा पर कार्य किया जाता है। वास्तव में कलाकार बड़ी ही सूक्ष्मता से इन बनाई गई वस्तुओं पर कलाकारी करके उनमें जान डाल देता है। ईरानी कलाकार इतनी सूक्ष्मता से कार्य करते हैं कि उनके कार्य को देखने वाला, देखता ही रह जाता है। लकड़ी पर सामान्यतः जो चित्र बनाए जाते हैं वे पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों मनुष्यों, तारों से भरे आसमान, रहने के क्षेत्रों या इसी प्रकार की अन्य चीज़ों के होते हैं। लकड़ी के भीतर सोखने की विशेषता पाई जाती है। यही कारण है कि लकड़ी पर कोई कार्य करने वे पहले उसपर एक विशेष प्रकार का लेप लगाया जाता है ताकि वह रंगों को न सोखे। बाद में उसपर दृष्टिगत चित्र बनाए जाते हैं। ईरान में ज़ंदिये और क़ाजारिया काल में लकड़ी से बनी वस्तुओं और उनपर बनी कलाकृतियों का प्रयोग अपने चरम पर था। इस समय उस काल के कई नमूने संग्रहालयों में सुरक्षित हैं।

 

लकड़ी पर पेंटिग के अतिरिक्त ईरान में लकड़ी से ही लकड़ी को सजाने या उसे सुसज्जित करने की एक अन्य कला भी प्रचलित है। इस कला को फ़ारसी में नाज़ुककारी कहा जाता है। इस प्रकार के कार्य के लिए आरंभ में तो लकड़ी को आरी से बहुत ही सावधानी से छोटे छोटे टुकड़ों में काट लेते हैं। बाद में उसे घिस कर एक दूसरे से चिपका दिया जाता है। यह कार्य सामान्यतः बेर, अख़रोट या नाशपाती की लकड़ी पर किया जाता है। इससे बनाई गई वस्तुएं देखने में बहुत ही सुन्दर लगती हैं।

 

ईरान के पश्चिम में स्थित सनंदज नगर, नाज़ुकारी कला का केन्द्र रहा है। यह इस कला में न केवल ईरान में बल्कि पूरे विश्व में ख्याति रखता है। सनंदज की नाज़ुककारी की वस्तुओं को विश्व ख्याति प्राप्त है। पहले तो इस कला के लिए पारंपरिक चीज़ों का प्रयोग किया जाता था किंतु वर्तमान समय में आधुनिक उपकरणों से यह कार्य किया जाता है। लकड़ी के ऊपर सूक्ष्मता से किया जाने वाला नाज़ुककारी का काम अब सनंदज के अतिरिक्त पश्चिमी ईरान के उरूमिये नगर में भी बढ़ रहा है।

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