ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-14
पच्चीकारी ईरान की प्राचीन कलाओं में से हैं और यह ईरान और अन्य देशों में काफ़ी लोकप्रिय है।
आज भी पच्चीकारी के कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पच्चीकारी की कला, ईश्वरीय दूत हज़रत इब्राहीम (अ) का एक चमत्कार है। इस कला का एक उच्च नमूना ईरान के शीराज़ शहर में स्थित जामा मस्जिद ‘अतीक़‘ में मौजूद एक मिंबर है। यह मिंबर 1 हज़ार साल पुराना है। इसी प्रकार 14वीं शताब्दी से संबंधित इस मस्जिद के हाल की छत पच्चीकारी के दक्ष उस्तादों के हाथों सजाई गई थी।
पच्चीकारी की कला, एक सीने से दूसरे सीने, उस्ताद से शागिर्द और बाप से बेटे की ओर स्थानांतरित होती रही। समय के साथ इसमें परिवर्तन होते रहे हैं। इस्लाम से पहले ईरान में पच्चीकारी की जो कला प्रचलित थी उसमें एक ही रंग की लकड़ी को चार मिलीमीटर के घनाकार में काटते थे और उसे विभिन्न डिज़ाइनों के साथ किसी एक जगह पर लगाया जाता था। इस्लाम के उदय के बाद कुछ शताब्दियों तक यह शैली जारी रही। इस्लाम आने के कुछ शताब्दियों बाद, बड़े त्रिकोणीय टुकड़ों को एक साथ रखकर पच्चीकारी की जाती थी। जिस लकड़ी का इसमें इस्तेमाल किया जाता था, अक्सर उसका रंग काला या सफ़ैद हुआ करता था। लेकिन शीघ्र ही ईरानी शैली ने इसमें कुछ और बारीकियों की वृद्धि करके रंगों को विविधता प्रदान की। इस प्रकार, लाल, हरे और नीले रंग की वृद्धि की गई और पीतल का भी प्रयोग किया गया।
यह कला सफ़वी शासनकाल में अपने चरम पर थी। उस समय ईरान भर से कलाकार तत्कालीन राजधानी इसफ़हान में एकत्रित हो गए थे और उन्होंने इस कला को पुनर्जीवित किया। सफ़वी शासनकाल में अन्य कलाओं को भी विस्तार मिला और कलाकारों को धार्मिक स्थलों को सजाने और उनके पुनर्निमाण के लिए प्रोत्साहित किया गया।
ज़ंदिया शासनकाल में करीम ख़ान के शासन के दौरान कलाकारों के प्रोत्साहन के कारण सजाने की कला में एक बड़ा परिवर्तन हुआ। इस काल की कला के नमूनों में नजफ़ अशरफ़ में हज़रत अली (अ) के पवित्र मज़ार की ज़रीह, कर्बला में हज़रत इमाम हुसैन और हज़रत अब्बास अलमदार (अ) की ज़रीह और सीरिया में जनाबे सकीना और हज़रत ज़ैनब (स) की ज़रीह का नाम लिया जा सकता है। उसके बाद, क़ाजारी शासनकाल में इस कला का रंग फीका पड़ गया और इस कला के कलाकार छोटी मोटी चीज़ें बनाने में व्यस्त हो गए।
पच्चीकारी में विभिन्न कोणों को मिलाया जाता है और इसमें विभिन्न रंगों का प्रयोग किया जाता है। इस कला में बहुत अधिक धैर्य और ध्यान की ज़रूरत होती है। पच्चीकारी में मोज़ेक के रूप में छोटे त्रिकोणीय टुकड़ों को मिलाकर किसी वस्तु की सतह को सजाया जाता है। पच्चीकारी के विभिन्न डिज़ाइन हमेशा किसी ज्यामिति रूप में होते हैं। इन ज्यामिति रूपों को त्रिकोणीय टुकड़ों को व्यवस्थित रूप से रखकर डिज़ाइन बनाया जाता है। त्रिकोणीय टुकड़े लकड़ी, धातु और हड्डियों के हो सकते हैं। यह टुकड़े जितने बारीक होंगो पच्चीकारी उतनी ही सुन्दर होगी। एक छोटे सी पच्चीकारी के डिज़ाइन में कम से कम तीन त्रिकोण और बड़ी से बड़ी में 400 त्रिकोणों का प्रयोग किया जाता है।
पच्चीकारी के कच्चे माल में लकड़ी, हड्डियां और मोती शामिल हैं। आबनूस, सुपारी, अख़रोट, बेर और संतरे के वृक्षों की लकड़ियां इस कला के लिए सबसे उचित रहती हैं। इसी प्रकार विभिन्न प्रकार की हड्डियां और हाथी दांत मज़बूती एवं सफ़ैद रंग के कारण पच्चीकारी में प्रयोग की जाते हैं। हालांकि असली और बनावटी हाथी दांत का इसमें काफ़ी प्रयोग किया जाता है।
पीतल, एलुमिनियम, और चांदी के तार एवं मोती अन्य कच्चा माल हैं, जो पच्चीकारी में प्रयोग किए जाते हैं। पच्चीकारी जब बनकर तैयार हो जाती है तो उसकी सुरक्षा के लिए रंगीन धातुओं का काफ़ी प्रयोग किया जाता है, जिसमें चांदी और एलुमिनियम को सफ़ैद रंग के लिए और पीतल को पीले रंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
शुरू में विभिन्न रंगों की लकड़ियों और हड्डियों को तैयार किया जाता है और उन्हें 30 सेंटीमीटर की लम्बाई और दो से ढाई सेंटीमीटर की चौड़ाई में काटा जाता है। उसके बाद उन्हें इस प्रकार रखा जाता है कि उनसे एक त्रिकोण बन जाता है। इसके बाद, त्रिकोणों को एक दूसरे के साथ रखा जाता है और धीरे धीरे केन्द्रीय त्रिकोण की चौडाई को ज़्यादा किया जाता है, इस प्रकार मूल रूप और रंग उभर कर आता है। मिसिलबंदी के बाद, समस्त कोण डिज़ाइन के अनुरूप आ जाते हैं। डिज़ाइन को पूरा करने के लिए तारों की ज़रूरत होती है कि जो लकड़ियों के बीच में या उन्हें मज़बूत बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
पच्चीकारी के लिए पहले एक उस्ताद उसका डिज़ाइन और सेलैंडर तैयार करता है, उसके बाद विशेष गोंद द्वारा उसे लकड़ी की सतह पर चिपकाया जाता है। बारीक टुकड़ों को विशेष तरतीब के साथ लकड़ी की सतह पर चिपकाया जात है और उसके सूखने के बाद, उन्हें सजाने के लिए प्रयोग किया जाता है। हालांकि त्रिकोण के विभिन्न स्वरूपों, तारों और विविध शट कोणिय रूपों में बनाया जाता है। पच्चीकारी रंग, रूप और साइज़ के दृष्टिगत विभिन्न प्रकार की होती है। अंततः पच्चीकारी की सतह को तेल और विशेष पदार्थ से चमकाया जाता है, जिससे उसकी सुन्दरता और मज़बूती में वृद्धि होती है।
आपके लिए यह जानना दिलचस्प होगा कि पच्चीकारी को बनाने में शुरू से आख़िर तक लगभग 400 चरण शामिल होते हैं।
एक पच्चीकारी की सुन्दरता उसकी बारीकी और व्यवस्थित होने पर आधारित होती है। यह सब एक दक्ष उस्ताद, उसका धैर्य और कच्चे माल पर निर्भर करता है। इसी प्रकार एक सुन्दर पच्चीकारी में एक प्रकार के रंगों और मसालों का प्रयोग किया जाता है और समय के बीतने के साथ साथ उसके रूप और रंग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। सतह पर समस्त फूलों और चित्रों का तरतीब से होना औऱ उसके कोण एवं रंग और उसकी सतह को बिना खरोच के तैयार करना पच्चीकारी की अन्य विशेषताओं में से हैं।
ईरान में पच्चीकारी के महत्वपूर्ण केन्द्रों में से इस्फ़हान, शीराज़ और तेहरान हैं, हालांकि तेहरान में अधिकांश कलाकार इस्फ़हान और शीराज़ से ही हैं। चहार महाल व बख़्तियारी प्रांत में शेख़ शबान गांव अपनी पच्चीकारी के कारण देश एवं विश्व में प्रसिद्ध है। इस कला को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक वहां जाते हैं।
यह गांव चहार महाल व बख़्तियारी प्रांत के केन्द्र कुर्द शहर से 39 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ईरान में पच्चीकारी के उत्पादन में इसका एक विशेष स्थान है। पच्चीकारी, एक धार्मिक स्थल और सुन्दर पहाड़ी इलाक़ा होने के कारण इस गांव में प्रतिवर्ष हज़ारों पर्यटक जाते हैं। इस गांव के लोग अन्य हस्तकलाओं के लिए भी मशहूर हैं।
विभन्न ज्यामितीय स्वरूपों और रंग बिरंगे टुकड़ों के कारण इस कला के डिज़ाइनों में विविधता पाई जाती है। पच्चीकारी के किनारे भी विभिन्न प्रकार के होते हैं और साइज़ और रंगों के दृष्टिगत विभिन्न प्रकार के होते हैं।
इस संबंध में यह जानना भी उचित होगा कि पच्चीकारी के उत्पादन को गर्मी, नमी और डायरेक्ट धूप से बचाना चाहिए और उसे साफ़ करने के लिए किसी भी स्थिति में गीले कपड़े या केमिकल लिक्विड का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
अनेक चीज़ों के बनाने और दीवारों, छतों एवं स्तंभों को सजाने के लिए पच्चीकारी का प्रयोग किया जाता है। ईरान में पच्चीकारी आईने के फ़्रेम, फ़ोटो फ़्रेम, छड़ी, शतरंज की बिसात, छोटे बड़े बोर्ड, क़लमदान, क़ुरान की रहल, मेज़ और विभिन्न प्रकार के बॉक्सों में व्याप्त मात्रा में प्रयोग होती है।
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