Apr ३०, २०१६ १६:३५ Asia/Kolkata

पुरातत्वविदों के अध्ययन और विविध प्रकार की धातुओं की खोज के आधार पर ऐतिहासिक काल को धातुकार्य के विकास के रूप में जाना जाता है।

 इसका कारण यह है कि धातुओं में पाई जाने वाली विविधता तथा इन धातुओं पर सुन्दर डिज़ाइनों के प्रयोग ने धातुकला को एक नया रूप दिया। प्राचीनकाल में ईरान की कला से संबन्धित उपलब्धियों में सोने, चांदी और कांसे से बनाई गई वस्तुओं को विशेष महत्व प्राप्त है जैसे बर्तन, रत्न आभूषण, कपडों पर सोने का काम, हथियार, और अन्य वस्तुएं। ईरान में धातु से बनाई जाने वाली वस्तुओं से आपको अधिक से अधिक अवगत कराने के लिए पहले हम धातु के कार्य और ईरान में उसके इतिहास से अवगत करवाएंगे।

 

 

धातुकार्य ऐसा उद्योग है जिसमें विभिन्न प्रकार की धातुओं से चीज़ें बनाई जाती हैं। धातु का प्रयोग, वर्तमान काल की सभ्यता का महत्वपूर्ण भाग है। पुरातत्व विदों की खोज और उनके शोध बताते हैं कि लौह युग के आरंभ में कच्ची मिट्टी से बनी वस्तुओं को महत्व प्राप्त था किंतु जैसे-जैसे मानव को धातु की मज़बूती, उसके पिघलने की क्षमता, उसके ठोस होने और अन्य विशेषताओं की जानकारी मिलती गई, वह धातुओं के प्रयोग की ओर बढ़ने लगा। अब वह अपने प्रयोग की वस्तुओं को धातु से बनाने लगा और उसने हड्डी, पत्थर, लकड़ी या कच्ची मिट्टी से वे चीज़ें बनाना छोड़ दीं जिन्हें वह कृषि, शिकार या युद्ध में प्रयोग किया करता था।

 

 

स्थिरता, लंबे समय तक बाक़ी रहने और कई अन्य विशेषताओं के कारण धातुओं के प्रयोग में दिन प्रतिदिन तेज़ी आती गई। इस बात की कोई पुष्ट जानकारी नहीं है कि मनुष्य ने पहली बार लोहे का प्रयोग कब किया था किंतु इस बात की जानकारी मौजूद है कि लगभग पिछले पांच हज़ार वर्षों से मानव लोहे का प्रयोग कर रहा है। प्राचीन मिस्र के लोग लोहे को स्वर्ग की धातु के नाम से पुकारते थे। प्राचीनकाल में बहुत से क्षेत्रों में लोहा इतना मंहगा होता था कि वहां के लोग इससे आभूषण बनवाया करते थे। सत्रह सौ वर्ष ईसापूर्व लोहा, सोने की क़ीमत का तीन चौथाई और चांदी से आठ बराबर मंहगा हुआ करता था। एक हज़ार से बारह सौ वर्ष ईसापूर्व, लोहे से अधिक्तर हथियार बनाए जाते थे जबकि कांसे से बरतन और सजाने की वस्तुएं बनाई जाती थीं।

 

तांबे के प्रयोग के बारे में इतिहास में कुछ विरोधाभासी बातें भी दिखाई देती हैं। कुछ लोगों का कहना है कि तांबे का प्रयोग बीस हज़ार साल ईसापूर्व से होता आ रहा है जबकि दूसरे कुछ इतिहासकारों का कहना है कि इसका प्रयोग लगभग बारह हज़ार वर्ष ईसापूर्व से हो रहा है। उनका कहना है कि तांबे का प्रयोग पहली बार मिस्र में हुआ था।

 

 

ईरान में हख़ामनशी काल के दौरान ईरान में सोने, चांदी, कांसे और लोहे से हथियार और आभूषण बनाए जाते थे। उस काल की बहुत सी सजावट की वस्तुएं आज भी मौजूद हैं जैसे प्याले, बरतन और आभूषण आदि। उस काल में धातुओं से बनाई जाने वाली वस्तुओं में एक “रैतून” है। रैतून, उन बर्तनों को कहा जाता है जिन्हें हख़ामनेशी काल में जानवरों के रूप में बनाया जाता था। अर्थात यह बर्तन किसी पशु की शक्ल में होता था। सामान्यतः यह शंकुआकार बर्तन हुआ करते थे। इस काल के प्रमुख बर्तनों में दहाड़ते हुए शेर को बर्तन के रूप में दिखाया गया है। दहाड़ते हुए शेर को हखामनेशी काल में कला के प्रतीक के रूप में जाना जाता था।

 

ईरान में प्राचीनकाल के दौरान मेसोपोटामिया, यूनान और रोम में भी धातु के बरतन बनाए जाते थे। यह बरतन सोने, चांदी, तांबे, कांसे, सीसे, टीन और लोहे के हुआ करते थे। उस काल के कुछ ऐसे भी बरतन मिले हैं जो पारे या प्लैटीनियम से बने हुए थे। इस बात के साक्ष्य मिलते हैं कि दो से तीन शताब्दी ईसा पूर्व, ईरान के व्यापारी, वर्तमान जर्मनी के कोलेन नगर में हथियार और धातुओं की वस्तुएं बेचने जाया करते थे।

 

 

 

ईसापूर्व सहस्त्राब्दी के अन्तिम 50 वर्षों के दौरान ईरान में हख़ामनेशी शासन काल की स्थापना के साथ ही धरती के भीतर पाई जाने वाली धातुओं की खोज का कार्य आरंभ हुआ। इस प्रकार सोना, चांदी, तांबा, कांसा, फ़ौलाद और सीसे जैसी धातुएं प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हुईं। उस काल में ईरानी, लोहे से हथियार और उसको फ़ौलाद का रूप देकर पुल के लिए प्रयोग किया करते थे। तख़्ते जमशीद को मज़बूत बनाने के उद्देश्य से उसमें लोहे और सीसे का प्रयोग किया गया है। इस दौरान सोने और चांदी का भी प्रयोग प्रचलित था।

 

 

पुरातन वेत्ताओं का मानना है कि धातुओं से वस्तुओं के निर्माण के संबन्ध में ईरान का केन्द्रीय, उत्तरी और पूर्वी क्षेत्र, का इतिहास बहुत प्राचीन रहा है। ईसापूर्व सातवीं सहस्त्राब्दी के अन्तिम काल को, नियोलिथिक युग या नव-पाषाण युग से कास्य-युग की ओर जाने का काल कहा जाता है। धातुओं को पिघलाने के लिए ज़ागरस और अलबुर्ज़ पर्वत श्रंखलाओं के आंचल में पाई जाने वाली भट्टियां, जो बलोचिस्तान की पर्वत श्रंखला तक के क्षेत्रों में फैली हुई थीं, प्राचीनकाल में धातुओं से वस्तुएं बनाने में ईरानियों की दक्षता की सूचक हैं।

 

ईसा पूर्व तीसरी सहस्त्राब्दी के आरंभ से सूमेरी, बाबेली और ईलामी शासन कालों के दौरान लिखे जाने वाले प्रमाणों में उद्योग, व्यापार और खान के क्षेत्रों में अधिकतर ईरानियों की प्रगति का उल्लेख मिलता है। इन कालों के दौरान धातु के कार्य ने बहुत प्रगति की। उस दौरान कार्यशालाओं में अक़ीक़ और फ़ीरोज़े को तराशने का काम बड़ी दक्षता से किया जाता था। अक़ीक़ और फ़ीरोज़े को तराशकर मूल्यवान धातुओं में लगाया जाता था।

 

 

कांस्य युग का आरंभ दो हज़ार वर्ष ईसा पूर्व से बताया जाता है। कांसे की खोज के बाद स्वंय कांसे और इससे बनने वाली वस्तुओं की मांग में बहुत तेज़ी से वृद्धि हुई। ईरान में एक हज़ार से दो हज़ार वर्ष ईसा पूर्व लोहे का प्रयोग आरंभ हुआ। लोहे का प्रयोग सामान्यतः हथियारों और कृषि के उपकरणों को बनाने के लिए किया जाता था।

 

सासानी शासनकाल में सीसे, जस्ते, तांबे, सोने और लोहे का प्रयोग बहुत ही व्यापक स्तर पर किया जाता था। पुरातत्वविदों का कहना है कि खुदाई में जो धातुओं की वस्तुएं मिली हैं उनमें से अधिकांश का संबन्ध सासानी काल से बताया जाता है। वर्तमान समय में विश्व विख्यात बड़े-बड़े संग्रहालयों में धातुओं से बनी जो वस्तुएं पाई जाती हैं उनमे से भी बहुत सी वस्तुओं का संबन्ध सासानी काल से ही बताया जाता है। इनमें से अधिकांश चीज़ें चांदी से बनी हुई हैं।

 

 

ईरान में इस्लाम के उदय के बाद खदानों से संबन्धित गतिविधियां किसी सीमा तक कम हो गईं किंतु तीसरी और चौथी हिज़री क़मरी में, जिसे इस्लामी पुनर्जागरण के नाम से भी जाना जाता है, ईरान में धातु उद्योग और खदान से संबन्धित गतिविधियां पुन तेज़ हो गईं। सफ़वी काल में ईरान में खदानों से धातु निकालने के काम ने तेज़ी पकड़ी और इस दौरान सोना, चांदी तथा लोहा भारी मात्रा में निकाला जाने लगा। क़ाजारी शासनकाल के दौरान विशेषकर अमीर-कबीर के दौर में सोने की खदान से सोना निकालने का काम पूर्व की तुलना में अधिक होने लगा।

चौथी हिजरी क़मरी में लोहे और तांबे को पिघलाने के कारख़ाने बनने के साथ ही उद्योग में इन धातुओं का प्रयोग अधिक हो गया। इसके बावजूद ईरान में हस्तकला उद्योग में धातु के प्रयोग की प्रथा जारी रही।

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