ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-18
मीनाकारी को मानव जाति के रचनात्मक आविष्कारों में कहा जा सकता है।
मीनाकारी को मानव जाति के रचनात्मक आविष्कारों में कहा जा सकता है। चूंकि इस कला में जटिल रासायनिक प्रक्रिया शामिल है इसलिए इसे प्रयोगशाला की कला भी कहा जा सकता है।
मीनाकारी की कला का इतिहास लगभग 5000 साल पुराना है। यह कला मिट्टी, चित्रकारी और आग के संगम के नतीजे में सुंदर रचना पेश करती है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ईरानी मीनाकारी की कलाकृतियों से यूनानी साम्राज्य की मीनाकारी की कलाकृतियों को आपस में मिला कर देखने से यह साबित हो चुका है कि यह कला ईरान में वजूद में आयी और फिर यहां से दूसरे देशों में पहुंची। आज कल इस कला को ज़्यादातर तांबे पर इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इसे सोने, चांदी और पीतल पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। सोना अकेली ऐसी धातु है जो इनैमल पेंट के पिघलने के बाद ऑक्साइड नहीं होता। इस प्रकार मीना पर बारीक डीज़ाइन बनाना मुमकिन होता है जबकि तांबे और चांदी पर मीनाकारी में यह गुणवत्ता नहीं आ पाती।
अमरीकी ईरानविद् आर्थर पोप ने मीनाकारी के बारे में लिखा है, “मीनाकारी चमकते व सिके हुए रंगों के साथ आग और मिट्टी के संगम की कला है। इसका इतिहास ईसापूर्व से मिलता है। धातु पर इस कला के नमूने 6 से 4 शताब्दी ईसापूर्व तक के मौजूद हैं। ईरान में मीनाकारी की कला अन्य क्षेत्रों से पहले मौजूद थी और सफ़वी शासन काल में फ़्रांसीसी पर्यटक जान शार्डेन ने इस कला के एक प्राचीन नमूने का उल्लेख किया है। मीनाकारी की कला से युक्त इस नमूने पर हल्के नीले रंग, हरे, पीले और लाल रंग का इस्तेमाल हुआ है। इस कलाकृति में परिन्दों और जानवरों की तस्वीरें, फूल-बूटे की पृष्ठिभूमि में बनाए गए हैं।”
सलजूक़ी शासन काल में मीनाकारी की कला अपने चरम पर पहुंची। सलजूक़ी काल में पीतल के बर्तन और मीनाकारी का बहुत चलन था। इस शासन काल में मीनाकारी के नमूने देश के भीतर इस्तेमाल होने के साथ साथ विदेश भी निर्यात होते थे। इस दौर की मीनाकारी का एक मूल्यवान नमूना इस वक़्त अमरीका के बोस्टन शहर के म्यूज़ियम में रखा हुआ है। इस नमूने का नाम ‘सीनी आल्ब अर्सलान’ है। यह चांदी पर की गयी मीनाकारी का उत्कृष्ट नमूना है। इस पर उस्ताद हसन काशानी ने अपनी कला की महारत दर्शायी है। इस कलाकृति पर उनका नाम कूफ़ी लीपि में उकेरा गया है।
इसी प्रकार सासानी दजर की प्लेटें, ईरान में मीनाकारी के प्राचीन नमून हैं जो इस वक़्त बर्लिन के इस्लामी कलाओं के म्यूज़ियम और न्यूयॉर्क के मेट्रोपोलिटन म्यूज़ियम में रखे हुए हैं।
ईरान में मीनाकारी का इतिहास अश्कानी और सासानी शासन काल तक पहुंचता है लेकिन इस्लाम के उदय से मंगोलों के शासन काल से पहले तक इसके इस्तेमाल होने के बारे में कोई दस्तावेज़ नहीं है। मंगोलों के शासन काल में ईरान में धातु की कला और मीनाकारी में बहुत बद्लाव आया। इस दौर में अरबी चित्रों की जगह ईरानी दरबारियों के लिबास ने ले ली।
सफ़वी शासन काल में चांदी के ऊपर मीनाकारी प्रचलित थी और राज दरबार, शिकार, और घुड़सवारी के चित्र बनाए जाते थे। इसी प्रकार इस्लीमी और ख़ताई लीपि में चित्र बनाए जाते थे। सफ़वी काल में मीनाकारी के लिए सबसे ज़्यादा लाल रंग का इस्तेमाल होता था।
क़ाजारी शासन काल में मीनाकारी का चलन थोड़ा कम हुआ। क़ाजारी शासकों में ख़ास तौर पर नासिरुद्दीन शाह क़ाजार के हुक़्क़ों पर मीनाकारी की जाती थी क्योंकि उन्हें हुक़्क़ा पीने का बहुत शौक़ था। इसी प्रकार क़ाजारी शासन काल में कुलीन वर्ग के घरों में मीनाकारी की चीज़ें मौजूद रहती थीं।
मीनाकारी उत्पादन की दृष्टि से दो प्रकार की होती है एक ख़ाना बंद मीनाकारी और दूसरे चित्र वाली मीनाकारी।
ख़ाना बंद मीनाकारी को तारवाली मीनाकारी भी कहते हैं। इस शैली के तहत बहुत पतले और बारीक तार इस्तेमाल किए जाते हैं। अपनी रूचि के मद्देनज़र तार को आकार देते हैं और फिर उसे धातु के टुकड़े पर चिपका कर उस पर चमकीली पॉलिश चढ़ा देते हैं। उसके बाद उसे 1000 डिग्री के तापमान वाली भट्टी में रखा जाता है और फिर तार दृष्टिगत वस्तु के रूप में जुड़ जाते हैं। बाद के चरण में मीनाकारी के विशेष रंग को कलाकृति पर एक तरह से लगाया जाता है। ये रंग पाउडर की शक्ल में होते हैं। इसके बाद इस कलाकृति को 1000 सेंटीग्रेड के तापमान में 3 मिनट तक भट्टी में रखा जाता है। कलाकृति पर चिपकाए गए तार भट्टी में रखने से काले हो जाते हैं। इन तारों को उनके पहले वाले रंग में लौटाने उन पर तेज़ाब का इस्तेमाल किया जाता है।
मीनाकारी की दूसरी क़िस्म नक़्क़ाशी मीनाकारी कही जाती है। यह शैली इस्फ़हान में प्रचलित है। इस शैली के तहत चमकदार पॉलिश पर मीनाकारी के चित्र बनाए जाते हैं। इस शैली के तहत पहले ताम्रकार या मीनासाज़ धातु से अपने मद्देनज़र चीज़ बनाता है उसके बाद मीनाकारी का उस्ताद उस पर सफ़ेद रंग की चमकदार पॉलिश चढ़ाता है। चमकदार पॉलिश चढ़ाने का क्रम तीन बार अंजाम दिया जाता है और हर बार कलाकृति को 700 सेन्टीग्रेड के तापमान में भट्टी मे रखा जाता है ताकि चमकदार पॉलिश बैठ जाए। उसके बाद इस सफ़ेद पृष्ठिभूमि पर चित्र बनाए जाते हैं और फिर उस कलाकृति को 400 से 500 सेन्टीग्रेड के तापमान में भट्टी में रखते हैं ताकि उस पर मद्देनज़र रंग चढ़ जाए।
इस प्रकार मीनाकारी की कलाकृति के उत्पादन के चरण इस प्रकार हैं। सबसे पहले तांबे से मद्देनज़र चीज़ का ढांचा तय्यार करना। तीन चरणों में पॉलिश चढ़ाना,डीज़ाइन उतारने से पहले विशेष रंग की परत चढ़ाना, डीज़ाइन उतारना, रंग करना, क़लम चलाना, वार्निश करना, और मुलम्मा चढ़ाना।
आम तौर पर मीनाकारी के लिए धातु के तय्यार ढांचे को शुद्ध धातु या मिश्रित धातु का होना चाहिए। इस धातु की परत की मोटाई कम से कम 8 सेंटीमीटर होनी चाहिए ताकि हर प्रकार के दबाव को झेल सके।
धातु की सतह को साफ़ होना बहुत ज़रूरी है ताकि मीनाकारी में प्रयोग होने वाली चमकदार पॉलिश अच्छे ढंग से चढ़ सके। अगर मीनाकारी की पृष्ठिभूमि पर कलाकार की उंगलियों के निशान बाक़ी रह जाएं तो फिर चिकनाई के कारण चमकदार पॉलिश पूरी तरह से धातु पर चढ़ेगी नहीं और पॉलिश की परत फट जाएगी।
इस बिन्दु का उल्लेख भी ज़रूरी है कि मीनाकारी के लिए सफ़ेद रंग का इस्तेमाल नहीं होता। अगर कलाकृति की ज़रूरत के तहत सफ़ेद रंग का इस्तेमाल ज़रूरी होता है तो कलाकार कलाकृति की पृष्ठभूमि में मौजूद सफ़ेदी को इस्तेमाल करता है या चित्र बनाने के बाद तेज़ क़लम से रंग को पृष्ठिभूमि से निकालता है ताकि सफ़ेद चमकदार पॉलिश ज़ाहिर हो जाए। अगर मद्देनज़र डीज़ाइन में सोने का पानी मौजूद होता है तो उसी चरण में चित्रकारी को सोने के पानी से पूरा किया जाता है।
आज ईरान में मीनाकारी के उत्पादन का केन्द्र इस्फ़हान है और उसके बाद शीराज़ का स्थान है। मीनाकारी के बर्तनों पर प्राचीन समय के बहुत से चित्र अब इसलिए प्रचलित नहीं हैं क्योंकि उनके बनाने में बहुत मेहनत जाती है। उकेरे हुए, फूल बूटे, इस्लीमी शैली में बने फूल और मुर्ग़ के चित्र, मीनाकारी व मिनिएचर कला के संयुक्त चित्र तथा पुरानी इमारतों के चित्र अब मीनाकारी के बर्तनों पर प्रचलित हैं।
मीनाकारी के कलाकार विभिन्न प्रकार के उत्पादों पर मीनाकारी करते हैं जिनमें प्लेट, गुलदान, प्याला, तस्वीर का फ़्रेम, पेन्टिंग के फ़्रेम वे चीज़ हैं जिस पर मीनाकारी की जाती है। इसी प्रकार दरवाज़ों, खिड़कियों और पवित्र रौज़ों में रखी जाने वाली ज़रीहों पर मीनाकारी की जाती है। इसी प्रकार औरतों के मेकअप बॉक्स, चाय सेट, लेमन सेट, आयनों, क़लमदान, बेल्ट, गुलाबपाश, तस्वीर के एल्बम और ज़ेवरात पर भी मीनाकारी की जाती है।
अंत में मीनाकारी के उत्कृष्ठ कला उत्पाद की पहचान के संबंध में इस बिन्दु का उल्लेख ज़रूरी है कि अगर मीनाकारी की कलाकृति पर हाथ फेरने पर खुरदुरे पन का एहसास तो इसका मतलब है कि अमुक कलाकृति पर मीनाकारी सही ढंग से नहीं की गयी है। मीनाकारी के चित्रों में बहुत सफ़ाई होनी चाहिए और चित्रों में एक प्रकार का सामन्जस्य होना चाहिए।
इसी प्रकार मीनाकारी के बर्तन के पिछले भाग पर चमकदार पॉलिश इस तरह से की गयी हो कि कहीं पर फटी हुयी नज़र न आए। इसी प्रकार बर्तन के भीतर रंग या चमकदार पॉलिश कहीं से हटी न हो। इस बिन्दु का उल्लेख भी ज़रूरी है कि मीनाकारी के जिन बर्तनों को तांबे की बहुत पतली परत से बनाया जाता है उन पर आम तौर पर अच्छी मीनाकारी नहीं होती और वे हल्के होते हैं।
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