ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-19
प्राचीन काल से ही पूरी दुनिया में ईरानियों के साहस, उनकी दक्षता और वीरता का डंका बजता रहा है और इसका मुख्य कारण यह था कि सदैव उनके पास युद्ध के उचित उपकरण और सैन्य संसाथन रहे हैं।
शाहनामे फ़िरदौसी में मिलता है कि ईरान के पौराणिक राजा जमशीद ने बहुत से युद्ध उपकरणों का आविष्कार किया और उसने युद्ध उपकरण बनाने के लिए लोहे को पिघलाया या नर्म किया किन्तु यह बात स्पष्ट है कि कहानियों और कथाओं से हटकर, प्राचीन काल से ही ईरान में युद्ध उपकरण बनाने और उनके प्रयोग का प्रचलन रहा है।
शाहे जंगे ईरानियान दर यूनान व चालदारान नामक पुस्तक में लिखा हैं कि ईरान के बहुत से शहरों में हथियार और युद्ध उपकरण बनते थे किन्तु इनमें से कुछ हथियार निर्माण केन्द्र अन्य की तुलना में ज़्यादा महत्वपूर्ण थे। इन शहरों में एक करंद नगर था जो ईरान के पश्चिम में स्थित था। इस शहर में कवच और प्राचीन काल में युद्ध में प्रयोग होने वाली लोहे की विशेष टोपी जैसे विभिन्न प्रकार के उपकरण बनाये जाते थे जबकि ज़ंजान शहर के निवासी तलवार और चाक़ू बनाने में दक्ष थे। इसके अतिरिक्त इस्फ़हान, रय और तबरीज़ में विभिन्न प्रकार के हथियार बनाये जाते रहे हैं।
दसवीं हिजरी शताब्दी के अंत तक पूरी दुनिया में ईरानी हथियार विख्यात हो गये। फ़्रांस के प्रसिद्ध पर्यटक जॉन तावरनिये ने सफ़वी शासन काल में कई बार ईरान का दौरा किया। वे लिखते हैं कि ईरानी स्पात के निर्माण में पूर्ण रूप से दक्ष हैं और उन्हें यह पता है कि किस प्रकार तलवार की घार, चाक़ू और खंजर बनाने के लिए स्पात का प्रयोग किया जाए। इसी प्रकार फ़्रांस के एक अन्य पर्यटक जॉन शारदन ने भी सोलहवीं ईसवी शताब्दी में अपने यात्रा वृतांत में ईरान निर्मित तलवारों की विशेषताएं संक्षेप में बयान की है। सोलहवीं से उन्नीसवीं शताब्दी तक ईरान में तलावार और तलवार की धार बनाने में भारी परिवर्तन देखने में आया।
ईरान में तलवार निर्माण उद्योग का इतिहास उस काल तक जाता है जब हर व्यक्ति के लिए तीर व तलवार लेकर चलना आवश्यक होता था। मैदान में अग्नेयशस्त्र के आने के बाद धीरे धीरे तीर, तलवार और चाक़ू रखने का दौर ख़त्म हो गया और तलवार निर्माण करने का उद्योग धीरे धीरे धराशायी हो गया। अलबत्ता घरों के भीतर चीज़ों को काटने के लिए चसक़ू का निर्माण किया जाता रहा जो आज तक जारी है।
ईरान में चाक़ू के निर्माण के क्षेत्र में जो शहर सबसे अधिक प्रसिद्ध है वह ज़ंजान है। यह वही शहर है जो साल्टमैन या लवण पुरुष की खोज के कारण प्रसिद्ध हुआ। ज़ंजान में इस उद्योग का इतिहास दो हज़ार साल से अधिक पुराना है।
लवण पुरुष संग्राहलय से प्राप्त सबसे प्राचीन चाक़ू, चेहराबाद नमक खदान से मिला। इस चाक़ू की मुठिया या दस्ता बकरी की सींग का बना हुआ है जिसकी लंबाई 11 सेन्टीमीटर है जो दो कीलों के माध्यम से कल से जुड़ा हुआ है। इस चाक़ू का कवर, चमड़े का है जो चमड़े के तसमें से चाक़ू रखने वाले के कपड़े या शरीर पर लटकाया जाता था। इस चाक़ू को ज़ंजान में चाक़ू निर्माण उद्योग के सबसे प्राचीन और सबसे आरंभिक दस्तावेज़ में शुमार किया जा सकता है।
इस ऐतिहासिक दस्तावेज़ के अतिरिक्त, लगभग दस शताब्दी हिजरी क़मरी से ज़ंजान शहर, हस्त कला उद्योग के महत्वपूर्ण केन्द्रों में शुमार होता था जिसमें विभिन्न प्रकार के हथियारों, चाक़ू और इससे संबंधित चीज़ों के के कारख़ाने पाये जाते थे।
इस्लाम से पहले और इस्लाम के बाद के विभिन्न युद्धों में ज़ंजान की भूमिका और भौगोलिक स्थिति तथा पड़ोसी प्रांतों की तुलना में इसकी महत्वपूर्ण स्थिति और पूर्वी तथा पश्चिमी सभ्यताओं के मार्ग पर स्थिति होने और केन्द्रीय पठार के निकट स्थित होने तथा तांबे और लोहे की खदानों और आरंभिक वस्तुओं के पाये जाने जैसे विभिन्न कारकों की वजह से ज़ंजान का चाक़ू उद्योग पूरी तरह से फला फूला।
लोगों की मांगों को दृष्टि में रखकर यहां के कलाकार और दक्ष लोग विभिन्न प्रकार के सुन्दर और आकर्षक चाक़ू बनाते थे और उन्हें बाज़ार में पेश करते थे जिनमें से अधिकतर प्रदर्शनी और संग्राहलय की शोभा बने।
अलबत्ता वर्तमान समय में चाक़ुओं को विभिन्न कामों में प्रयोग किया जाने लगा है जैसे कि रसोईघरों, शिकार तथा बाग़बानी और वृक्षों की क़लम लगाने के लिए इनका प्रयोग किया जाने लगा है। इन चाक़ुओं को विभिन्न प्रकार की डिज़ाइनों और साइज़ों में बनाया जाता है। सामान्य रूप से चाक़ू बनाने वाले दक्ष लोगों में से हरेक कोई विशेष प्रकार का चाक़ू बनाने में दक्षता रखता है और वह अपने बनाये हुए विशेष प्रकार के चाक़ू को बाज़ार में बेचने के लिए रवाना करता है। जंजान के कारीगर अधिकतर आर्डर देने पर ही चीज़े बनाते हैं और जब उनकी संख्या दस या पंद्रह तक पहुंच जाती है तो वे उसे बेचने के लिए बाज़ार भेज देते हैं। ज़ंजान में चाक़ू बनाने की कला पुरुषों से विशेष है और यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित होती है। वर्तमान समय में ज़ंजान में चाक़ू बनाने के पांच सौ से अधिक कारख़ाने सक्रिय हैं।
ज़ंजान के अतिरिक्त किरमान प्रांत के भी बहुत से लोग प्राचीन काल में हस्त कला उद्योग में व्यस्त रहे हैं और अपने अद्वितीय कला उत्पादन के अतिरिक्त इससे अपनी आजिविका भी चलाते थे। चाक़ू उत्पादन, किरमान प्रांत के राइन शहर का स्थानीय उत्पादन व हस्तउद्योग शुमार होता है और इसकी प्राचीनता, इस शहर में राइन दुर्ग के निर्माण के आरंभिक दौर तक जाती है। राइन दुर्ग, इस क्षेत्र की सबसे प्राचीन व ऐतिहासिक व महत्वपूर्ण धरोहर है और कहा जाता है कि इसका निर्माण सासानी शासन काल में किया गया था। इस दुर्ग का क्षेत्रफल 22 हज़ार मीटर है।
इतिहास में मिलता है कि राइन के सिपाही जिसका सेनापति तत्कालीन शासन गंजअली था, उसमानी शासन के साथ युद्ध में देसी बंदूक़ के कारण सदैव मैदान में बाज़ी मार ले जाते थे। इसी प्रकार इतिहास में आया है कि नासिरुद्दीन शाह क़ाजार के शासन काल में राइन के एक उद्यमी ने एक विशेष चाक़ू बनाया जिसकी काट अद्वितीय थी। इस चाक़ू की काट इतनी ज़बरदस्त थी कि वह बंदूक़ की नाल और मज़बूत तालों को मिनटों में काट देती थी। कुछ लोगों ने उसका प्रोत्साहन किया और कहा कि यदि यह चाक़ू तुम शासक के पास ले जाओ तो तुम्हें ढेरों ईनाम मिलेंगे।
अंजाम से बेख़बर और हज़ारों आशाओं के साथ उस कलाकार ने उस चाक़ू को एक मख़मल के डिब्बे में रखा और सिर झुकाए शासक के पास पहुंचा। आदर व सम्मान के बाद उसने राज की सेवा में चाक़ू पेश किया। शासक ने उससे पूछा कि यह चाक़ू किस काम का है और यह दूसरे चाक़ूओं से अलग क्यों है? उस बेचारे कलाकार ने कहा महाराज, इस चाक़ू की काट अद्वितीय है और यह बंदूक़ की नाली को बड़ी सरलता से काट सकता है। उसने कहा कि इसके परीक्षण के लिए मुझे लोहे का एक टुकड़ा दें ताकि मैं उसे काट कर दिखाऊं। राजा ने ताक़ पर लगे एक बड़े से ताले को देखा और कहा कि जाओ उस ताले को काटो। उद्यमी ने आज्ञा का पालन किया और उसने एक ही मिनट में ताला काट दिया। राजा ने जब यह देखा तो उसने कहा कि तुमने यह चाक़ू बनाकर चोरों का काम आसान कर दिया और उसने पास खड़े सिपाहियों को उसे गिरफ़्तार करने का आदेश दिया किया। चाक़ू बनाने वाला ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहा था कि महाराज मुझे माफ़ कर दें। इसी मध्य महल में मौजूद प्रधानमंत्री ने राजा से कुछ कहा जिसके बाद राजा ने उसे इस शर्त के साथ कि अब वह ऐसा चाक़ू कभी नहीं बनाएगा, माफ़ कर दिया।
राइन क्षेत्र में चाक़ू निर्माण की कला बहुत ही प्राचीन है और इसकी शैली वही लोहारों वाली शैली है। इसमें अंतर केवल इतना है कि चाक़ू का फल बनाने में इस्पात का प्रयोग किया जाता है और उसके बाद फल को लकड़ी, सींग, लोहे या स्टील के दस्ते में दो कील के माध्यम से जोड़ देते हैं।
इस क्षेत्र में जो चाक़ू बनाये जाते हैं वह पांच प्रकार के होते हैं। शिकारी चाक़ू, पौधों की क़लम लगाने वाले चाक़ू, क़साई वाले चाक़ू, साज व सज्जा वाले चाक़ू और सींग के दस्ते या मुठिया वाले चाक़ू। इस चाक़ू में जिस प्रकार का फल लगाया जाता है वह उसी प्रकार के चाक़ू में शुमार होता है।
चाक़ू बनाने के लिए सबसे पहले लोहे को भट्टी में रखते हैं, यहां तक कि वह पूरा लाल हो जाए। उसके बाद हथौड़ी से उसे पीटते हैं यहां तक लोहा चौड़ा होता है और अधिक मज़बूत हो जाता है और इस प्रकार उन्हें अपना मनचाहा रूप हासिल हो जाता है। उसके बाद उसकी कटाई की जाती है और उसे रेगमाल द्वारा साफ़ व चिकना किया जाता है। उसके बाद के चरण में चाक़ू पर धार रखी जाती है और उसे आग पर रखा जाता है। जब चाक़ू की धार अच्छे तरीक़े से तप जाती है तो उसे ठंडा करने के बाद उसमें दस्ता या मुठिया लगाते हैं और चाक़ू प्रयोग के लिए तैयार हो जाता है।
चाक़ुओं में लगाये जाने वाले दस्ते स्टील, लकड़ी और जानवरों की सींग के होते हैं जिनमें से हर एक की निर्माण शैली अलग है और अपनी विशेष सुन्दरता होती है।
ईरान में इस्पात उद्योग के रूप में बनने वाले चाक़ू, विभिन्न प्रकार के होने के साथ अनेक विशेषताओं के स्वामी भी होते हैं। इनके निर्माण के लिए सूक्ष्मता, समरूपता, तकनीकी मामलों पर ध्यान और धार देने जैसे मामलों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। कहा जाता है कि वर्तमान समय में इस क्षेत्र में जो कुछ बनाया जाता है उनके अधिकतर ख़रीदार पर्यटक और यात्री होते हैं अलबत्ता इनमें से कुछ मूल्यवान वस्तुओं को संग्राहलयों में रख दिया जाता है ताकि पर्यटक उन्हें देख सकें।