May ०१, २०१६ १४:१५ Asia/Kolkata

ईरान में धातुओं के विशाल भंडार हैं और देश के विभिन्न इलाक़ों में मूल्यवान खवानें पायी जाती हैं, यही कारण है कि ईरान में धातु उद्योग और उससे संबंधित विज्ञान ने काफ़ी विकास किया है।

इस प्रकार से कि इस क्षेत्र में मिस्र, अराक़ और भारत जैसे देशों के समस्त विकास के बावजूद, वे ईरान से बेहतर स्थिति में नहीं हैं।

ईरान के धातु उद्योग में मूल्यवान धातुओं का महत्वपूर्ण स्थान था। यह धातुएं जहां मूल्यवान ख़ज़ाना होती थी वहीं किसी भी देश के राजनीतिक समीकरणों को बदल दिया करती थी और युद्ध में जीत प्राप्त होने के कारण हाथ लगने वाला महत्वूर्ण माल समझी जाती थी।

 

 

सोना प्राचीन समय से ही सुन्दर चमक और ऑक्सीकरण एवं अन्य रसायनों के मुक़ाबले में अधिक टिकाऊ होने और सुन्दर रूपों में ढलने तथा दुर्लभ होने के कारण इंसान के लिए आकर्षक रहा है। सोना विश्व में मौद्रिक मानक भी है और उसका सबसे अधिक प्रयोग सिक्कों और बुलियन में ढालकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में किया जाता है। सुन्दर और स्थिर होने के कारण, इस धातु का आभूषणों एवं हस्तशिल्पों के निर्माण में अधिक इस्तेमाल किया जाता है।

ईरान में सोने के आभूषणों एवं मूल्यवान धातुओं से गहने बनाने का काफ़ी पुराना इतिहास है। इस्लाम से पहले और बाद में ईरान के सुनार और गहने बनाने वाले अपनी कला में दक्ष रहे हैं। सासानी काल में ईरान में सोने की सबसे अधिक खपत हुई तथा इतिहासकारों एवं ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, उस काल में सोने, गहनों और मोतियों का व्यवसाय चरम पर था। सासानी राजाओं की आभूषणों विशेषकर ताज और सिंहासन में बहुत रूची थी। उनकी इस रूची ने सभी को आश्चर्यचकित किया हुआ था और उस काल की सोने की बनी हुई चीज़ों का इतिहास की किताबों में व्यापक उल्लेख मिल जाता है।

उल्लेखनीय है कि इतिहास के इस काल में सोने का अधिकांश इस्तेमाल दरबारों में और राजाओं द्वारा होता था और आम लोग इससे वंचित ही रहते थे। सोने के अलावा चाँदी जैसी धातुओं का भी काफ़ी प्रयोग होता था और आभूषणों तथा हस्तशिल्पों में उसे इस्तेमाल किया जाता था। चाँदी एक मूल्यवान धातु है, जिसका अधिकांश प्रयोग एक मूल्यवान धातु के रूप में और आसानी से विभिन्न रूपों में ढलने के दृष्टिगत किया जाता है।

 

 

 

टेपेस्ट्री काम ईरान की एक विशेष हस्तशिल्प और धातु का बारीक काम है। टेपेस्ट्री कला, सोने, चाँदी और तांबे का उत्पाद होता है। इन धातुओं के बारीक तारों का पारम्परिक डिज़ाइनों में बहुत ही ध्यानपूर्वक इस्तेमाल किया जाता है।

 

टेपेस्ट्री का अर्थ सोने और तारों की जटिल कला है, जो सामग्री और बारीकी के दृष्टिगत इस नाम से जानी जाती है। इस कला के इतिहास के बारे में कहा जा सकता है कि यह 200 वर्ष ईसा पूर्व से प्रचलित है। अधिकांश शोधकर्ताओं के मुताबिक़, ईरान की सबसे पुरानी टेपेस्ट्री हख़ामनेशी काल से संबंधित है। ईरान के मामलों में अमरीकी विशेषज्ञ आर्थर पोप ने ईरानी कला के बेहतरीन नमूनों में इस्लाम के उदय के बाद सोने और चांदी के काम की ओर संकेत करते हुए 12वीं शताब्दी से संबंधित टेपेस्ट्री वर्क का उल्लेख किया है। हालांकि पोप ने स्वीकार किया है कि उस काल की कला के नमूनें अब दुर्लभ हैं क्योंकि टेपेस्ट्री वस्तुएं सोने और चांदी से बनायी जाती हैं, इसलिए उनमें से अधिकांश को पिघलाकर पुनः प्रयोग कर लिया गया, यही कारण है कि अब उसके बहुत ही कम नमूनें बाक़ी रह गए हैं।

ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर, इस हस्तकला का अधिक प्रचलन सल्जूक़ी काल से शुरू हुआ और सफ़वी काल में यह अपने चरम पर पहुंच गया। ज़ंजान और इस्फ़हान शहरों में इसके अधिकांश कलाकार थे, जिन्होंने अपनी कला से सबका मन मोह लिया था।

 

 

ज़ंजान में टेपेस्ट्री वर्क के इतिहास के संबंध में सैलानियों के यात्रा वृतांतों से लाभ उठाया जा सकता है और यात्रा टेपेस्ट्री के शेष नमूनों की समीक्षा की जा सकती है, जो अंतिम दो शताब्दियों से संबंधित हैं। ज़ंजान के बारे में अधिकांश ऐतिहासिक किताबों में इस शहर के उद्योगों में से सबसे अधिक धातु उद्योग की चर्चा की गई है। टेपेस्ट्री भी धातु उद्योग की ही एक शाख़ा है, इसलिए उसके विकास की समीक्षा क्षेत्रीय धातु उद्योग के तहत ही की जा सकती है।

ज़ंजान में टेपेस्ट्री का इतिहास 17वीं शताब्दी के बाद से स्पष्ट होता है। उदाहरण स्वरूप, फ़्रेडरिक रिचर्ड अपने यात्रा वृतांत में लिखते है कि ज़ंजान शहर, एक छोटा शहर है, लेकिन इस शहर का टेपेस्ट्री वर्क और चांदी का काम बहुत शानदार है।

इस समय ज़ंजान में टेपेस्ट्री के 30 सक्रिय वर्कशॉप हैं। इन वर्कशॉप्स के समस्त उस्ताद, उस्ताद मंसूर काज़मियान मुक़द्दम के शिष्य हैं। पिछले चालीस वर्षों से इस कला को ज़िंदा रखने के लिए टेपेस्ट्री का प्रशिक्षण दिया जा रहा है और कई कलाकारों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।

ज़ंजान के टेपेस्ट्री वर्क में 99.9 प्रतिशत कैरट की चाँदी इस्तेमाल की जाती है, जो शुद्ध 100 प्रतिशत के लिए प्रसिद्ध है। बनावट की गुणवत्ता के लिहाज़ से इस्फ़हान की टेपेस्ट्री के चित्र ज़ंजान की टेपेस्ट्री से बड़े होते हैं, इसीलिए ज़ंजान की डिज़ाइनों और चित्रों में बारीकी और सुन्दरता होती है।

 

 

टेपेस्ट्री वर्क में अधिकांश ईरान के पारम्परिक चित्रों का प्रयोग किया जाता है, जिनके नाम दन्दाने, ताबीदे, हिक़्क़े, बर्गे फ़िरंग, बर्ग, पीच, ग़ुंचे, पीचके से चश्मे और यक चश्मे हैं। उल्लेखनीय है कि कभी कभी मूल्यवान पत्थरों के प्रयोग से इस हस्तशिल्प की सुन्दरता में चार चांद लगाए जाते हैं।

टेपेस्ट्री में प्रयोग होने वाले उपकरण वहीं हैं जो स्वर्णकार में प्रयोग होते हैं। अंकित करना, हीटिंग, तार खींचना और सांचा तैयार करना ऐसे कार्य हैं जो टेपेस्ट्री वर्क के उस्तादों द्वारा किए जाते हैं। टेपेस्ट्री वर्क के लिए पहले सोने, चाँदी या तांबे के तार तैयार करने होते हैं, उसके बाद लकड़ी और वैक्स के बने हुए सांचों में इन तारों को डाला जाता है और उन्हें विभिन्न रूपों में ढालने के लिए चाँदी के तारों को गरमा कर तांबे के बुरादे में मिलाया जाता है, परिणाम स्वरूप विभिन्न बर्तन बनकर तैयार हो जाते हैं।

टेपेस्ट्री के तार तैयार होने के बाद, टेपेस्ट्री को बनाया जाता है। इसके लिए पहले धातु की एक आयताकार शीट ली जाती है और उसपर एक परत वैक्स की लगाई जाती है, यह परत 3 से 4 मिलीमीटर की होती है। उसके बाद सांचा लिया जाता है और डिज़ाइन को विभिन्न भागों में बांटकर उसकी सतह को टेपेस्ट्री के चित्रों से भर दिया जाता है। अंतिम चरण में लोहे के बहुत ही बारीक तारों से चित्रों को एक दूसरे से बांध दिया जाता है, ताकि यह चित्र आपस में न मिल जाएं। उसके बाद, वैक्स को पिघलाकर टेपेस्ट्री के तैयार ढांचे को शीट से अलग कर दिया जाता है।

 

 

टेपेस्ट्री की एक अन्य क़िस्म में टांके लगाकर टेपेस्ट्री की शीट को तैयार किया जाता है। उसका तरीक़ा यह है कि पहले दृष्टिगत साइज़ में शीट तैयार की जाती है और उसके बाद, गिलास, प्याली, शकरदान, गुलाबपाशी, फ़ोटो का फ़्रेम, चमचा आदि बनाए जाते हैं।

हर काल में चाँदी के मंहगा होने के कारण टेपेस्ट्री के उत्पादनों की मांग कम ही रही है। लेकिन इसके बावजूद, आज भी संग्राहलयों और धनी लोगों के घरों की सजावट इससे की जाती है। इस तरह के हस्तशिल्प उत्पादन ईरान आने वाले विदेशी पर्यटकों में काफ़ी लोकप्रिय हैं, यह लोग उपहार के रूप में इन्हें अपने साथ ले जाते हैं।

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