Oct ०२, २०२३ १९:५४ Asia/Kolkata
  • पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म दिवस पर के शुभ अवसर पर विशेष कार्यक्रम

इस्लाम धर्म से पहले अरब समाज विदितरूप में ज़िन्दा था, सरकारें थीं, सामाजिक गतिविधियां थीं परंतु जो चीज़ मर चुकी थी वह इंसानियत व मानवता थी।

शक्तिशाली कमज़ोरों पर अत्याचार करते थे और भेदभाव से काम लिया जाता था। दासों को इंसान नहीं समझा जाता था। बहुत से अरब अपनी लड़कियों को ज़िन्दा दफ्न कर देते थे। अरब कबीलों के मध्य जंगें भी बहुत होती थीं और लड़कियों और महिलाओं के पास लड़ने की ताकत नहीं होती थी और जब दो कबीलों के मध्य लड़ाई होती थी तो ताकतवर कबीले अपने से कमज़ोर कबीले की महिलाओं और लड़कियों को बंदी बना लेते थे और इस बात को अरब अपनी लज्जा और कलंक का कारण समझते थे। इसलिए अपनी लड़कियों को ज़िन्दा ही दफ्न कर देते थे ताकि उन पर न बोझ रहे और न जंग होने की स्थिति में बंदी बनाये जाने का खतरा रहे।  

यही नहीं अरब समाज में लड़कियों को इंसान नहीं समझा जाता था और अगर किसी को इस बात की सूचना दी जाती थी कि उसके यहां लड़की पैदा हुई है तो उसका चेहरा उतर जाता था। शराब पीना और सूदखोरी आम बात थी। इसी प्रकार अरब मरे हुए जानवरों का मांस खाते थे। सारांश यह कि अरब समाज में विभिन्न प्रकार की बुराइयां प्रचलित थीं और एसे समाज में पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म से मानवता के शरीर में जान पड़ गयी।

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बाद पैग़म्बरी का ईश्वरीय प्रकाश उनके दो बेटों हज़रत इस्माईल और हज़रत इस्हाक़ की नस्ल में स्थानांतरित हो गया और उन दोनों से विभिन्न कबीले, जातियां व समुदाय अस्तित्व में आये। यहां तक कि उनकी नस्ल से कुछ कबीले पवित्र नगर मक्का से बाहर चले गये और वे दूसरे क्षेत्रों में रहने लगे। जब पवित्र नगर मक्का से कोई कबीला दूसरे क्षेत्रों में रहने के लिए जाता था तो वह यादगार के तौर पर काबे से एक पत्थर अपने साथ ले जाता था और जब दोबारा मक्का आकर उनके लिए हज करना संभव नहीं होता था तो वे खानये काबा की याद में उसी पत्थर का तवाफ करते थे।

इसी तरह से पीढ़ियां गुज़र गयीं और धीरे- धीरे मूल परम्परा भुला दी गयी और हर पीढ़ी ने अपने - अपने पूर्वजों के धर्म में नई-  नई परम्पराओं की वृद्धि कर दी यहां तक कि हर कोई पहाड़ों और मरुस्थलों से पत्थर उठाकर लाता और उसी की उपासना करता था और यह सिलसिला चलता रहा यहां तक कि नई- नई परम्परायें व  कुप्रथायें इतना अधिक हो गयीं कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के मूल धर्म और उनकी शिक्षाओं को भुला दिया गया और लोग मूर्तियों की पूजा करने लगे और हर कौम का अपना एक विशेष बुत होता था यहां तक कि पवित्र नगर मक्का में कुरैश "हुबल" नाम के एक बुत की पूजा करता था। कुरैश ने हुबल को खानये काबा के मध्य रख रखा था और उसके नीचे एक कुआं खोद रखा था ताकि जो लोग हुबल को चढ़ावा चढ़ायें वह उसी कुंए में गिरे।

इसी प्रकार कुरैश वालों ने ज़मज़म सोते के पास भी दो बुतों को रख रखा था और कभी- कभी एसा भी होता था कि अपने बेटों की इन्हीं बुतों के पास कुर्बानी करते थे। ये बड़े बुत थे और खानये काबा में लगभग हर कबीले का अपना बुत होता था और वे अपने- अपने बुतों की उपासना करते थे। हर कबीला दूसरे कबीला पर गर्व करता था। यहां तक कि कुछ अरब इस बात पर गर्व करते थे कि उनके मरने वालों की संख्या अधिक होती थी। यानी वे अपने मुर्दों की अधिक संख्या पर गर्व करते थे।

महान ईश्वर पवित्र कुरआन में कहता है अल्लाह और रसूल जिस काम के लिए तुम्हें बुलायें तो उनकी आवाज़ पर लब्बैक कहो कि इसी में तुम्हारी ज़िन्दगी व भलाई है।“ तो इस्लाम धर्म में इंसान के लोक -परलोक का जीवन नीहित है। अगर इंसान इस्लाम धर्म की शिक्षाओं पर चिंतन- मनन करे और उस पर अमल करे तो इस्लाम धर्म की शिक्षाओं के नतीजों और फायदों को बहुत अच्छी तरह समझ सकता है। इस्लाम धर्म वह ईश्वरीय उपहार है जिसे महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा हम तक पहुंचाया है। आज कितना मुबारक दिन है जब उस हस्ती ने इस ज़मीन पर कदम रखा जिसे महान ईश्वर ने पूरी दुनिया के लिए रहमत करार दिया है। पैग़म्बरे इस्लाम का अस्तित्व पूरी मानवता के लिए रहमत व दया है। एसा नहीं है कि पैग़म्बरे इस्लाम का अस्तित्व किसी विशेष जाति व समुदाय के लिए रहमत है बल्कि वह पूरी मानवता के लिए रहमत है।

पूरी दुनिया के मुसलमान पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर जश्न मनाते हैं एक दूसरे को मुबारकबाद देते हैं, पवित्र कुरआन की तिलावत करते हैं, बहुत से मुसलमान रोज़ा रखते हैं और अनाथों और गरीबों को खाना खिलाकर उन्हें भी अपनी खुशी में शामिल करते हैं।

जनाब अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के दादा थे। वह मक्का के कुरैश कबीले के प्रतिष्ठित व गणमान्य व्यक्ति थे। वह पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म दिवस को इस प्रकार बयान करते हैं मोहम्मद का जब जन्म हुआ तो मैं खानये काबा का तवाफ कर रहा था मैंने देखा कि काबे में रखे समस्त बुत ज़मीन पर गिर पड़े। सबसे बड़ा बुत भी मुंह के बल ज़मीन पर गिर पड़ा। उसी समय मैंने आसमानी आवाज़ सुनी कि उसने कहा पैग़म्बरे इस्लाम दुनिया में आ गये। यह दृश्य देखकर मैं हतप्रभ रह गया और तेज़ी से आमिना के घर की ओर गया। प्रकाश और सुगंध से पूरा घर भरा था। मैंने शिशु को देखा उसे चूमा और कहा अल्लाह का शुक्र है कि उसने जैसे वादा किया था तुम्हें वैसे दुनिया में भेजा। लोग हर तरफ से मोहम्मद को देखने के लिए आते थे, जो भी उन्हें देखता था उसे एसी सुगंध आती थी कि वापस जाने के काफी समय बाद तक भी उससे सुगंध आती थी और दूसरे उस सुगंध को सूंघते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म के सात दिन बाद हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम ने बड़े पैमाने पर लोगों को खाने पर आमंत्रित किया। कई भेड़ों और ऊंटों को ज़िब्ह किया और अपने पूरे परिवार और कबीले के लोगों की दावत की और तीन दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा और जश्न मनाया गया। इन्हीं दिनों में पुरानी परम्परा के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम का अकीका किया गया और इसके लिए भेड़ को ज़िब्ह किया गया और उसके मांस को गरीबों के लिए विशेष किया गया और उस मांस को जनाब अब्दुल मुत्तिब अलैहिस्सलाम के निकट संबंधियों और परिजनों ने नहीं खाया। इसी समारोह में पैग़म्बरे इस्लाम का नाम मोहम्मद रखा गया। इसके वर्षों बाद जब पैग़म्बरे इस्लाम ने महान ईश्वर की ओर से अपने पैग़म्बर होने की घोषणा की तो खुद अपने जन्म दिन को जश्न मनाया और एक भेड़ की कुर्बानी करके अपना अकीका किया।

अहले सुन्नत के एक विद्वान जलालुद्दीन सियूती का मानना है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने जो दूसरा अकीका किया वह इस बात का शुक्र अदा करने के लिए था कि महान ईश्वर ने पूरी दुनिया के लिए रहमत व दया करार दिया है। अक़ीक़े का दूसरा कारण यह था कि चूंकि पैगम्बरे इस्लाम सर्वोत्तम आदर्श थे इसलिए वह अपना अक़ीक़ा करके दूसरों को इस काम के प्रति प्रोत्साहित करना चाहते थे और पैग़म्बरे इस्लाम स्वयं पर दुरूद व सलाम भेजते थे तो इससे दूसरों को इस काम की सिफारिश करना चाहते थे।

अहले सुन्नत की मशहूर किताब "सहीह मुस्लिम" में लिखा है कि पैग़म्बरे इस्लाम के सहाबियों व अनुयाइयों ने पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म दिवस और  पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की घोषणा के शुभ अवसर पर हर सोमवार को रोज़ा रखते थे और जब सोमवार को रोज़ा रखे जाने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम से सवाल किया गया तो उन्होंने दो कारणों से इस अमल की पुष्टि की और फरमाया यह दिन यानी सोमवार वह दिन है जब मैं पैदा हुआ था और वर्षों के बाद इसी दिन मुझे पैग़म्बर बनाया गया यानी सोमवार को ही मैंने पैग़म्बर होने की घोषणा की।

इसी प्रकार अहले सुन्नत के प्रसिद्ध विद्वान एसामी शाफेई ने पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म दिवस की शुभरात्रि के महत्व के बारे में लिखा है कि तीन कारणों से पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म दिवस की शुभरात्रि शबे क़द्र से भी बेहतर है। पहला कारण यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म से समूची दुनिया प्रकाशित व प्रतिष्ठित हो गयी और इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि शबे कद्र का महत्व इस वजह से है कि उस रात कुरआन नाज़िल किया गया और कुरआन पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल हुआ था।

पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म दिवस की शुभरात्रि के अफज़ल होने की दूसरी वजह यह है कि उस रात को पैग़म्बरे इस्लाम दुनिया में आये थे जबकि शबे क़द्र के बेहतर होने की एक वजह यह है कि उस रात को फरिश्ते नाज़िल हुए थे और यह स्पष्ट है कि पैग़म्बरे इस्लाम का पावन अस्तित्व सर्वश्रेष्ठ है। पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म जिस रात को हुआ था उसके शबे कद्र से बेहतर होने की तीसरी वजह यह है कि शबे कद्र इस्लामी राष्ट्र के लिए बरकत है परंतु पैग़म्बरे इस्लाम जिस रात को पैदा हुए थे वह रात पूरी दुनिया के लिए बरकत है क्योंकि महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को समूचे ब्रह्मांड के लिए रहमत व दया बनाकर भेजा है।

जिस रात को पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म हुआ है उसे अहले सुन्नत के विद्वान शबे कद्र और शबे मेराज से बेहतर समझते हैं।

सुन्नी और शीया इस बात पर एकमत हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म रबीऊल महीने में हुआ था अंतर केवल इतना है कि अहले सुन्नत का मानना है कि पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म 12 रबीऊल अव्वल को हुआ था जबकि शीया मुसलमानों का मानना है कि 17 रबीऊल अव्वल को हुआ था।

ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी रहमुल्लाह अलैहि ने 12 से 17 रबीऊल तक को एकता सप्ताह के रूप में मनाये जाने का एलान किया और इसका नाम हफ्तये वह्दत अर्थात एकता सप्ताह रखा और आज बहुत से इस्लामी देशों में मुसलमान इन दिनों को एकता सप्ताह के रूप में मनाते हैं।

महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन के सूरे आले इमरान में कहा है कि अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और अलग न हो।" मुसलमानों के मध्य एकता के लिए आह्वान करना ईश्वरीय आदेश और उस पर अमल करना समस्त मुसलमानों की ज़िम्मेदारी है। आज इस्लामी जगत की बहुत सी समस्याओं का समाधान एकता में नीहित है। अगर आज दुनिया के मुसलमान एकजुट हो जायें तो फिलिस्तीन जैसी समस्या का समाधान कुछ ही दिनों में हो सकता है। आज फूट, मतभेद और एक दूसरे से अलग रहने के कारण इस्लामी जगत की ताकत बिखरी हुई है। महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन के सूरे अनफाल में विवाद करने से मना किया है और कहा है कि विवाद न करो अन्यथा तुम कमज़ोर हो जाओगे और तुम्हारी हवा उखड़ जायेगी। mm

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