पवित्र रमज़ान पर विशेष कार्यक्रम-७
पवित्र रमज़ान का महीना, हमारी ज़िन्दगी पर ईश्वर की कृपा की बारिश का महीना है।
पवित्र रमज़ान का महीना, हमारी ज़िन्दगी पर ईश्वर की कृपा की बारिश का महीना है। यह बारिश हमारे मन पर बुराइयों व गुनाहों की जमी परत को हटा देती है और मन को फिर से प्रकाशमान बना देती है। इसलिए पवित्र रमज़ान को ईश्वर की कृपा का महीना कहा जाता है। इस महीने में मुसलमान यह कोशिश करता है कि ईश्वर का मेहमान बनने के इस सुवसर से ज़्यादा से ज़्यादा लाभ उठाते हुए अपने पापों की क्षमा करवा ले। इस महीने में जिन बातों पर सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया गया है उनमें से एक गुनाहों का ज़्यादा से ज़्यादा प्रायश्चित करना है। इस बात में कोई अंतर नहीं है कि पाप चाहे छोटा हो या बड़ा। यह महीना मन को गुनाहों और बुराइयों से पाक करने का बेहतरीन मौक़ा है। क्योंकि पवित्र मन ईश्वर की कृपा का पात्र बनने के क़ाबिल होता है। इस महीने में बंदा ईश्वर के दरबार में गुहार लगाता है कि उसे उन पापों के चंगुल से आज़ाद करा दे जिसे उसने अज्ञानता में अंजाम दिया है।
पवित्र रमज़ान के दिन और रात दोनों ही पापों के प्रायश्चित के लिए उचित समय हैं। प्रायश्चित का फ़ायदा यह होता है कि वह इंसान को ग़फ़लत या अपनी आत्मा के संबंध में लापरवाही से बाहर निकाल लाता है। जब इंसान प्रायश्चित के बारे में सोचता है तब उसे वह सारे पाप याद आते हैं जो उसने अपने मन पर किए या दूसरों के हक़ में अत्याचार किए। उस वक़्त वह घमंड और ग़फ़लत से बच जाता है। इस स्थिति में इंसान को यह पता चलता है कि वह कितना छोटा व तुच्छ है और ईश्वर की नेमतों और अनुकंपाओं के सामने कितना एहसानफ़रामोश व कृतघ्न पाता है। उस वक़्त इंसान ईश्वर के सामने शर्मिन्दगी का एहसास करता है और पछताता है। यह प्रायश्चित का पहला फ़ायदा है। इंसान अपनी ग़लतियों व बुराइयों से अवगत होने के बाद ईश्वर से क्षमा मांगता है। क्योंकि ईश्वर उसकी कमियों पर पर्दा डालता है और वह सभी बुराइयों से पाक करने वाला है। ईश्वर ने वादा किया है जो भी उससे प्रायश्चित करेगा अर्थात सच्चे मन से अपने पापों की क्षमा चाहेगा तो वह उसे माफ़ कर देगा और ईश्वर को बहुत ज़्यादा प्रायश्चित को स्वीकार करने वाला पाएगा।
पवित्र रमज़ान का महीना ईश्वर की कृपा के द्वार को खुलवाने का महीना है। इस महीने के आने से रोज़ा रखने वाले अपने वजूद में ताज़गी का एहसास करते हैं। महान ईश्वर इस महीने अपने बंदों को अपने दस्तरख़ान पर हर प्रकार की नेमतों व अनुकंपाओं से नवाज़ता है।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने पवित्र शाबान के भाषण में हे लोगों शब्द के ज़रिए सबको संबोधित किया है ताकि इस महत्वपूर्ण बिन्दु की ओर लोगों का ध्यान हो कि इस महीने में सारे इंसानों को ईश्वर के कृपा के दस्तरख़ान पर आमंत्रित किया गया है। पवित्र क़ुरआन की आयतें और पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों से पता चलता है कि पवित्र रमज़ान आत्म निर्माण व मन की सफ़ाई का बेहतरीन महीना है। आत्मोत्थान व मन की सफ़ाई की सबसे सुंदर शैली को क़ुरआन ने बयान किया है और वह अच्छाइयों के ज़रिए बुराइयों की क्षतिपूर्ति तथा विगत के कर्मों से प्रायश्चित है। जैसा कि माएदा नामक सूरे की आयत संख्या 39 में ईश्वर कह रहा है, “जो अपने ऊपर अत्याचार करने के बाद प्रायश्चित करे तो ईश्वर भी प्रायश्चित को क़ुबूल कर लेगा कि ईश्वर कृपालु और दयावान है।”
ईश्वर अपनी अथाह व अनंत शक्ति के बावजूद कितना अपने बंदों पर मेहरबान है और उससे प्रेम करता है। बंदे के संबंध में चिंतित है। ईश्वर को इंतेज़ार है कि कब उसका बंदा उसकी ओर पलटेगा। हदीसे क़ुद्सी में ईश्वर ने कहा है, “जान लो जब मेरा कोई नेक बंदा कोई पाप करे और उस पर पछताए तो गुनाह पर पछताने से न सिर्फ़ यह कि मैं उसके पाप को क्षमा कर दूंगा बल्कि उन पापों को उस सूचि से मिटा दूंगा जिसे फ़रिश्तों ने अपने यहां दर्ज कर रखा है और इससे भी बढ़ कर उसके पाप को भलाई से बदल दूंगा।”
इंसान विशेष परिस्थितियों में और ज़िन्दगी के विभिन्न चरणों में पाप व ग़लतियां करता है। कभी ईश्वर और अपने बीच बंदगी के संपर्क को भूल जाता है और कभी अपने कर्तव्यों व उपासना की ओर से लापरवाही करता है। कभी अनिवार्य काम को अंजाम नहीं देता और कभी वर्जित कामों के संबंध में ढिलाई बरतता है। कभी ख़ुम्स और ज़कात जैसे धार्मिक कर देने में सावधानी नहीं बरतता है। ऐसी हालत में उसे चाहिये कि वह प्रायश्चित करे, इन पापों को छोड़, छूटी हुयी उपासनाओं की भरपायी करे और धार्मिक कर अदा करे।
कुछ पापों का संबंध दूसरे लोगों से होता है। कभी दूसरे लोगों के जानी और माली अधिकार तथा सम्मान की अनदेखी की जाती है। इस स्थिति में इंसान को चाहिये कि वह प्रायश्चित करने के अलावा लोगों को उनके अधिकार लौटाए और उनकी रज़ामंदी हासिल करे। हर पाप से प्रायश्चित उसी के अनुसार होना चाहिए और उसी के अनुसार क्षतिपूर्ति करे।
कितना सौभाग्यशाली है वह रोज़ा रखने वाला बंदा कि इफ़्तार करते वक़्त ईश्वर उसके रोज़े से राज़ी हो। एक संत थे जो कहते थे कि जब मैंने एक दास ख़रीदा तो उससे पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है तो उसने कहा आप जिस नाम से पुकारें वही मेरा नाम है। जब पूछा कि क्या पहनोगे तो उसने कहा आप जो पहना दे। जब मैंने कहा कि क्या काम करोगे तो उसने कहा जो हुक्म देंगे। जब मैंने पूछा कि क्या खाओगे तो उसने कहा जो आप देंगें। मैंने पूछा कि क्या इच्छा है तो उसने कहा, बंदे को इच्छाओं से क्या लेना देना। तो उस वक़्त मैंने अपने आप से कहाः हे बेचारे! क्या तू अपनी पूरी ज़िन्दगी में अपने ईश्वर का ऐसा ही बंदा रहा है?
पवित्र रमज़ान का महीना इस बात का मौक़ा मुहैया करता है कि मुसलमान आपस में मिलें और एकता व सौहार्द का प्रदर्शन करें। इस महीने लोगों के मन एक दूसरे से जुड़ें और रोज़ा यह अवसर भी देता है कि मोमिन बंदे एक दूसरे की हालत से अवगत हों। इसके साथ ही मस्जिदों में सामूहिक रूप से नमाज़ में शामिल होकर रोज़ादार इस महीने में ईश्वर की कृपा का ज़्यादा से ज़्यादा पात्र बन सकता है। मुसलमान मस्जिदों में सामूहिक रूप से नमाज़ और इफ़्तार के ज़रिए अपने वैभव व ताक़त का प्रदर्शन करता है। जब लोग नमाज़ के लिए सामूहिक रूप से लाइन में खड़े होते हैं तो ईश्वर की याद के आध्यात्मिक वातावरण में मन को शांति मिलती है।
अब आपको ऑस्ट्रेलिया में ताज़ा मुसलमान हुयी एक महिला से आपको परिचित कराएंगे। इनका नाम इवेट बैल्डाचिनो है। यह 31 साल की हैं और काफ़ी अध्ययन के बाद इन्होंने इस्लाम क़ुबूल किया है। वह अपना अनुभव इस प्रकार बयान करती हैं,“मैंने बाइबल का गहन अध्ययन किया है और इस बात को समझती हूं कि इसका बहुत बड़ा भाग ईश्वर का कथन नहीं है। बहुत दिनों मैंने विभिन्न धर्मों व मतों का अध्ययन किया। एक रात मैंने अपने कमरे में ईश्वरीय किताब क़ुरआन खोली तो उसके शुरु में हम्द नामक सूरे को देखा तो उसके अंग्रेज़ी में अनुवाद को पढ़ा। उसी वक़्त मैं समझ गयी कि यह इंसान का कथन नहीं हो सकता। अर्थ और बयान का अंदाज़, ऐसा था कि ईश्वर के कथन के आकर्षण व प्रभाव मैंने अपने वजूद में महसूस किया। तौहीद नामक सूरे को पढ़ने से एकेश्वरवाद का विषय मेरे लिए स्पष्ट हो गया। उस वक़्त मेरे मन से संदेह दूर हो गया। यक़ीन नहीं आता कि उस रात सुबह तक मैंने क़ुरआन पढ़ा। उस दिन सुबह अज़ान की आवाज़ ने मेरे मन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला यहां तक कि मैं ख़ुद ब ख़ुद अज़ान के अशं दोहराने लगी। कुछ दिन बाद कुछ मुसलमान साथियों के साथ सामूहिक नमाज़ पढ़ने गयी। जिस वक़्त नमाज़ पढ़ाने वाले इमाम हम्द नामक सूरा पढ़ रहे थे, अनन्य ईश्वर पर विश्वास से पूरा वजूद उत्साह और ताज़गी का एहसास कर रहा था। हालांकि मैं शुरु में नमाज़ में पढ़े जाने वाले शब्द और उसके अशं को सही तरह से नहीं समझ पा रही थी लेकिन लोगों के साथ सामूहिक रूप से पूरे समन्वय के साथ नमाज़ पढ़ना मेरे लिए बहुत अच्छा अनुभव था। नमाज़ के शब्दों को अंग्रेज़ी में काग़ज़ पर लिखती थी और उसे दोहराती थी। कोशिश करती थी कि सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ूं।”
कितना अच्छा हो हम ईश्वर के मेहमान बनने वाले इस महीने में अज़ान की आवाज़ सुनकर उठ खड़े हों और सच्चे मन से वज़ू करके सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद में जाएं। अगर ऐसा करें तो मन पर शैतान को क़ाबू करने का कोई मौक़ा नहीं मिलेगा। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम फ़रमाते हैं, “शैतान उस मोमिन बंदे से उस वक़्त तक डरता है जब तक वह पांचों वक़्त की नमाज़ नियमित रूप से पढ़ता है और जब ऐसा करना छोड़ देता है तो शैतान को उस व्यक्ति से बड़े बड़े पाप करवाने का साहस मिल जाता है।”
ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं कि उसने हमें सातवां रोज़ा रखने का अवसर दिया। इस पवित्र दिन ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमें प्रायश्चित करने वालों में क़रार दे और हमारे पापों को क्षमा कर दे।