पवित्र रमज़ान पर विशेष कार्यक्रम-१३
आज रमज़ान का तेरहवां दिन है और ईश्वरीय कृपा से भरा यह महीना लगभग आधा होने वाला है।
आज रमज़ान का तेरहवां दिन है और ईश्वरीय कृपा से भरा यह महीना लगभग आधा होने वाला है। रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने वाला चौबीस घंटों में दो बार ही खाता है। एक सहरी के समय और फिर सूरज डूबने के बाद इफ्तार के समय , इस लिए रोज़ा रखने वालों के लिए कुछ स्वास्थ्य संबंधी बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक होता है। रोज़ा रखने वालों के लिए डाक्टरों का कहना है कि रमज़ान के महीने में उसका खान पान बहुत अधिक बदलना नहीं चाहिए और जहां तक संभव है खान पान सादा होना चाहिए। इसके अलावा रमज़ान के महीने में खुराक ऐसी होनी चाहिए कि जिसका इन्सान के वज़न पर बहुत अधिक प्रभाव न पड़े अर्थात बहुत ज़्यादा कमज़ोरी न आ जाए किंतु अगर कोई मोटापे का शिकार है तो फिर रमज़ान का महीना उसके लिए बहुत अच्छा अवसर है और इस दौरान वह ईश्वर की उपासना के साथ ही अपना स्वास्थ्य भी सुधार सकता है।
रमज़ान के महीने में और विशेषकर गर्मियों के लंबे दिनों में रोज़ा रखने वालों को ऐसे खानों की ज़रूरत होती है जो आसानी से हज़्म हो जाए। सहरी के रूप में भोर से पहले कुछ खाए बिना ही रोज़ा रखना, पाचनतंत्र के लिए अत्याधिक हानिकारक होता है इस लिए रोज़ा रखने वाले को सहरी के रूप में पूरा भोजन करना चाहिए ताकि उसके बाद वह 15- 17 घंटों या उससे अधिक समय तक रोज़ा रख सके।
इसके साथ ही चूंकि इस वर्ष का रमज़ान गर्मियों में पड़ा है और दिन बड़े लंबे होते हैं इस लिए रोज़ा रखने वाले को वह आहार लेना चाहिए जो जल्दी से हज़्म न हो और उसके पचने की प्रक्रिया धीमी हो। इस लिए सहरी में अनाज और चना आदि और इसी प्रकार सूखे मेवे और फल आदि लेना चाहिए विशेषकर फाइबर युक्त चीज़ें खाना बहुत अच्छा होता है । इसके साथ ही प्रोटीन युक्त आहार भी रोज़ा रखने वाले के लिए बहुत ज़रूरी होता है । रोज़ा रखने वालों को तली हुई चीज़ें और अधिक मसाले वाली तथा अत्याधिक मीठी चीज़ों से भी परहेज़ करना चाहिए और चूंकि चौबीस घंटों में हर इन्सान को आठ ग्लास पानी की आवश्यकता होती है इस लिए रोज़ा खोलने के बाद से सहरी तक तरल पदार्थों विशेषकर पानी का सेवन बहुत अधिक करना चाहिए।
रोज़ा रखने वाले बहुत से लोग, दिन भर अत्याधिक प्यास के कारण, इफ्तार, ठंडे पानी या ठंडे शर्बत से करते हैं किंतु यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है बल्कि दिन भर भूखे प्यासे रहने के बाद मनुष्य को आरंभ गर्म पानी या चाय से करना चाहिए और उसके बाद खजूर या किशमिश खायी जा सकती है क्योंकि इससे भूख पर नियंत्रण होता है। पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम जाफरे सादिक अलैहिस्सलाम ने कहा है कि पैगम्बरे इस्लाम , इफतार, मीठी चीज़ से आरंभ करते थे और उसी से रोज़ा खोलते थे और यदि कोई मीठी चीज़ या खजूर और अंगूर भी नहीं मिलता तो फिर वह गर्म पानी से रोज़ा खोलते थे। और कहते थे कि इससे अमाशय और यकृत साफ होता है और सिर का दर्द खत्म होता है।
इसके अलावा रोज़ा रखने वाले को सूप और पतली दाल जैसी चीज़ें लेनी चाहिएं कि जिनमें पानी या शोरबा ज़्यादा हो इससे भी शरीर में पानी की कमी नहीं होती और इसी प्रकार इफ्तार के बाद से सोने तक रोज़ा रखने वाले को विभिन्न प्रकार के फल और बिना दूध की चाय पीते रहना चाहिए क्योंकि इन सब से शरीर में पानी की कमी दूर हो जाती है।
रमज़ान वास्तव में शरीर के साथ ही साथ मन को पवित्र करने का एक उचित अवसर होता है और जिस प्रकार भूख और प्यास, शरीर के विभिन्न अंगों से खराब पदार्थ बाहर निकाल कर उन्हें साफ कर देती है उसी प्रकार रमज़ान के महीने में आत्मा भी साफ की जाती है और मनुष्य अपनी आध्यात्मिकता में वृद्धि कर सकता है। वास्तव में रमज़ान इच्छा शक्ति व संकल्प को मज़बूत करने का अवसर होता है और मनुष्य भूख व प्यास सहन करके वास्तव में अपनी इच्छा शक्ति को मज़बूत बनाता है।
मनुष्य की जब इच्छा शक्ति मज़बूत होगी तो वह शैतान के बहकावे में भी नहीं आएगा और अपनी गलत इच्छाओं का मुकाबला कर सकेगा। सामान्य में लोग बहुत से ऐसे काम करते हैं जिनके बुरा होने का उन्हें विश्वास होता है मगर कहते हैं कि क्या करें यह आदत छूट नहीं रही है। यह इरादे की कमज़ोरी और आतंरिक इच्छाओं के सामने हथियार डालने जैसा होता है। रोज़ा मनुष्य में यह इच्छ और इरादा मज़बूत करता है।
इच्छा शक्ति के संदर्भ में ईरान के एक प्रसिद्ध धर्मगुरु की यह घटना रोचक है । ईरान के एक धार्मिक शिक्षा केन्द्र में मुहम्मद बाक़र नाम का एक छात्र अपने कमरे में बैठा हुआ अध्धयन कर रहा था कि अचानक उसके कमरे में एक जवान लड़की घुसी जो बहुत घबराई हुई थी। लड़की ने कमरे में घुसते ही दरवाज़ा बंद कर दिया और छात्र को चुप रहने का इशारा किया लड़की ने छात्र से खाना मांगा और खाना खाकर एक कोने में जाकर सो गई। मुहम्मद बाक़र नाम का यह छात्र अध्धयन में लीन हो गया। उसे पता नहीं था कि उसके कमरे में सोने वाली लड़की, ईरान के तत्कालीन राजा की बेटी है जिसे राजा के सिपाही इधर-उधर खोज रहे हैं । अगली सुबह जब लड़की सोकर उठी तो इसी बीच राजा के सिपाही वहां पर पहुंच गए। वे राजकुमारी के साथ ही मुहम्मद बाक़िर को भी अपने साथ ले गए। ईरान के तत्कालीन शासक का नाम शाह अब्बास था जो सफ़वी शासन श्रंखला का एक प्रभावशाली राजा था।
शाह अब्बास ने बड़े ग़ुस्से में मुहम्मद बाक़िर से पूछा कि तुमने रात ही हमें क्यों सूचित नहीं किया कि राजकुमारी तुम्हारे कमरे में है? उत्तर में मुहम्मद बाक़र ने कहा कि उन्होंने ने मुझको धमकी दी थी कि यदि मैंने किसी को सूचित किया तो वह मुझको जल्लाद के हवाले कर देगी। पूछताछ के बाद शाह अब्बास इस परिणाम पर पहुंचा कि मुहम्मद बाक़र रात भर अध्धयन में व्यस्त रहे। उसे विश्वास हो गया कि छात्र ने कोई ग़लत क़दम नहीं उठाया। शाह अब्बास ने मुहम्मद बाक़िर से पूछा कि तुम किस प्रकार अपनी भावनाओं और आंतरिक इच्छाओं पर क़ाबू पाने में सफल रहे? राजा के प्रश्न के उत्तर में मुहम्मद बाक़िर ने अपने हाथों की दसों उंगलिया सामने कर दीं जो आग से झुलसी हुई थीं। जब शाह अब्बास ने इसका कारण पूछा तो मुहम्मद बाक़िर ने कहा कि जब राजकुमारी सो गईं तो उसकी आंतरिक इच्छाओं ने उसे परेशान करना आरंभ किया। उसने कहा कि जब-जब मेरी आंतरिक इच्छा ने मुझको बहकाना चाहा मैंने अपनी उंगली को जलते दीये पर रख दिया। इस प्रकार मेरी दसों उंगलियों के आगे के भाग जल गए। इस प्रकार से मैंने अपनी आंतरिक इच्छाओं को रोका और स्वंय नर्क की आग को याद किया और ईश्वर की कृपा से शैतान के जाल में फंसने से बच गया। मुहम्मद बाक़िर की बात सुनकर शाह अब्बास बहुत प्रभावित हुआ।
उसने आदेश दिया कि उसकी सुपुत्री का विवाह मुहम्मद बाक़िर से कर दिया जाए। शाह अब्बास ने मुहम्मद बाक़िर को मीर दामाद की उपाधि दी। आगे चलकर मीर दामाद ईरान के बहुत बड़े विद्वान और दर्शनशास्त्री के रूप में विश्खयात हुए और उनकी बहुत सी किताबें ईरान के धार्मिक केन्द्रों में पढ़ाई जाती हैं।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि रमज़ान के महीने मनुष्य की इच्छा शक्ति को मज़बूत करके वास्तव में उसे बहुत से पापों से बचाते हैं क्योंकि पाप हमेशा लुभावने होते हैं और मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित करते हैं किंतु यदि किसी में इच्छा शक्ति मज़बूत होती तो फिर वह पापों के प्रकट रूप से धोखा नहीं खाएगा।