पवित्र रमज़ान पर विशेष कार्यक्रम-२१
हे हमारे पालनहार! आज रमज़ान महीने की २१ तारीख़ है हम तेरी असीम कृपा की ओर हाथ फैलाते हैं और तुझसे प्रार्थना करते हैं कि हमें उस मार्ग पर चलने की कृपा प्रदान कर जिसमें तेरी प्रसन्नता हो और हमारी ओर शैतान को कोई रास्ता न दे।
हे हमारे पालनहार! आज रमज़ान महीने की २१ तारीख़ है हम तेरी असीम कृपा की ओर हाथ फैलाते हैं और तुझसे प्रार्थना करते हैं कि हमें उस मार्ग पर चलने की कृपा प्रदान कर जिसमें तेरी प्रसन्नता हो और हमारी ओर शैतान को कोई रास्ता न दे। स्वर्ग को मेरे रहने का स्थान बना हे ज़रुरतमंदों की ज़रुरतों को पूरा करने वाले।
जब इंसान किसी को अपनी ओर बुलाना चाहता है तो उसे आवाज़ देता है। जो इंसान भी महान ईश्वर पर गहरा विश्वास रखता हो या महान ईश्वर पर उसका गहरा विश्वास न हो वह संकट और ग़ैर संकट की घड़ी में महान ईश्वर को पुकारता है। इस आधार पर महान व सर्वसमर्थ ईश्वर को पुकारने और उससे अपनी ज़रुरत को मांगने को दुआ कहते हैं।
दुआ करने के लिए रमज़ान का महीना विशेषकर क़द्र की रातें बेहतरीन अवसर हैं। ये वे रातें हैं जिनमें ज़मीन पर न जाने कितने फरिश्ते उतरते हैं जो फरिश्ते इंसान को दुआ करते देखते हैं वे चाहते हैं कि इंसान अपनी दुआओं को ज़बान पर लायें ताकि वे आमीन कहें।
रमज़ान के पवित्र महीने में जिन दुआओं के पढ़ने पर बल दिया गया है उनमें जौशने कबीर नाम की दुआ भी है। इस दुआ को क़द्र की विशेष रातों को पढ़ने पर बहुत बल दिया गया है। यह दुआ पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से आई है और इसमें महान ईश्वर के एक हज़ार एक नामों और विशेषताओं का उल्लेख है। इस दुआ को इस्लाम के आरंभिक काल में एक युद्ध में हज़रत जीब्राईल पैग़म्बरे इस्लाम के लिए लाये थे। इस दुआ के १०० भाग हैं और हर भाग में महान ईश्वर के १० नाम हैं। इस दुआ के ५५ वें भाग में महान ईश्वर के ११ नाम हैं। इस प्रकार इस दुआ में महान ईश्वर के कुल एक हज़ार एक नाम हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के हवाले से जो रिवायतें आई हैं उनमें यह बात बारम्बार देखने को मिलती है कि जो महान ईश्वर को उसके नामों से बुलायेगा उसकी दुआ क़बूल होगी और जो इन नामों का विर्द करेगा अर्थात उन्हें जपेगा वह स्वर्ग में जायेगा। अलबत्ता महान ईश्वर के नामों के जपने का अर्थ केवल उनका पढ़ना नहीं है बल्कि उनके अर्थों को समझना भी है।
दुआये जौशन कबीर को पढ़ने के महत्व के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं हमारी उम्मत में यानी हमारे अनयाइयों में ऐसा कोई बंदा नहीं है जो इस दुआ को रमज़ान के मुबारक महीने में तीन बार या एक बार पढ़े मगर यह कि ईश्वर उसके शरीर को नरक की आग पर हराम कर देगा और उस पर स्वर्ग अनिवार्य हो जायेगा। इस दुआ का सबसे पहला लाभ यह है कि उससे महान ईश्वर के प्रति इंसान के ज्ञान में वृद्धि होती है। दुआये जौशने कबीर में महान ईश्वर की ऐसी विशेषताओं का उल्लेख है जो इंसान के दिल को महान ईश्वर के निकट करती हैं। यह बहुत ही विशुद्ध दुआ है इसलिए कि इसमें महान ईश्वर के अतिरिक्त किसी और चीज़ का वर्णन नहीं किया गया है।
जिन लोगों ने काफी ज्ञान अर्जित किया है वे इस दुआ की गहराईयों को समझ सकते हैं। इसी प्रकार इस दुआ में महान ईश्वर से मांगने की अभी व्यक्ति है। क्योंकि महान ईश्वर हर प्रकार की आवश्यकता से मुक्त है और उसके अतिरिक्त जितनी भी चीज़ें हैं सबको उसकी आवश्यकता है और वह हर कार्य में पूर्ण समक्ष है इसलिए हमें केवल उसी पर भरोसा करना चाहिये और केवल उसी से मांगना चाहिये।
रमज़ान का पवित्र महीना क्षमा, दया, नरक से मुक्ति और स्वर्ग प्राप्त करने का महीना है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से फरमाते हैं “रमज़ान का महीना बहुत बड़ा महीना है। लोगों की अच्छाइयों का कई गुना पुण्य दिया जाता है पाप मिटा दिये जाते हैं। इंसान के आध्यात्मिक दर्जे ऊंचे हो जाते हैं। यह महीना दूसरे महीनों की भांति नहीं है। जब यह महीना आता है तो बरकत और कृपा के साथ आता है और जब जाता है तो पापों को माफ करके जाता है। बेशक अभागा वह व्यक्ति है जो इस महीने से निकल जाये और उसके पाप क्षमा न किये जायें।“
पापों से प्रायश्चित करने का बेहतरीन समय रमज़ान का पवित्र महीना है। हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम रमज़ान महीने के भोर में दुआ करते और कहते थे हे हमारे पालनहार! तेरी महानता इससे बहुत बड़ी है कि मेरे कार्यों की तुलना उससे की जाये और तेरी क्षमाशीलता इससे बहुत बड़ी है कि मेरे पापों की तुलना उससे की जाये मुझे माफ कर दे। हे मेरे स्वामी!
अलबत्ता महान ईश्वर द्वारा पापों के क्षमा करने की एक शर्त यह है कि लोग एक दूसरे की ग़लतियों को नज़रअंदाज़ और क्षमा कर दें। जैसाकि पवित्र कुरआन के सूरे नूर की २२वीं आयत में महान ईश्वर कहता है” उन्हें चाहिये कि माफ कर दें और अनदेखी कर दें क्या इस बात को पसंद नहीं करते हो कि ईश्वर तुम्हें माफ कर दे? ईश्वर बहुत माफ करने वाला और दयावान है।“
वास्तव में दूसरों की ग़लतियों को माफ कर देना इस्लाम धर्म की महत्वपूर्ण शिक्षाओं में से है। पवित्र क़ुरआन उन स्थानों पर भी क्षमा कर देने की सिफारिश करता है जहां ख़ून का बदला ख़ून है क्योंकि क्षमा और माफी अपराधी के सुधरने का कारण बनती है। महान व अच्छे लोग जब सामने वाले पक्ष में शर्मिन्दगी के चिन्ह देखते हैं तो उन्हें माफ कर देते हैं। जैसाकि हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” जब अपने दुश्मन पर जीत प्राप्त करो तो माफी को इस विजय का शुकराना क़रार दो।“
अलबत्ता इस्लाम में जो दूसरों को क्षमा कर देने की बात की गयी है वह व्यक्तिगत हितों के बारे में है किन्तु जो बातें, हित व अधिकार समाज से संबंधित हों इस्लाम कदापि उन्हें माफ़ करने की अनुमति नहीं देता। इतिहास में है कि क़ुरैश की एक महिला ने चोरी की थी और उसका अपराध स्पष्ट व सिद्ध हो गया था। चोरी करने वाली महिला का ख़ानदान धनाढ़्य था और वह महिला के संदर्भ में इस्लामी क़ानून लागू किये जाने को अपना अपमान समझ रहा था इसलिए वह बड़ी असमंजस की स्थिति का शिकार था और चाह रहा था कि पैग़म्बरे इस्लाम महिला के बारे में इस्लामी क़ानून लागू न करें। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के कुछ सम्मानीय अनुयाइयों को सिफारिश के लिए उनके पास भेजा परंतु पैग़म्बरे इस्लाम ने अधिक क्रोध के साथ फरमाया” यह सिफारिश करने का क्या स्थान है? क्या लोगों के कारण ईश्वरीय क़ानूनों की अनदेखी की जा सकती है? उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम लोगों के मध्य आये और इस प्रकार फरमाया पिछली जातियॉ इस कारण तबाह हुईं और उनका पतन इसलिए हुआ कि वे ईश्वरीय क़ानून के लागू करने में भेदभाव से काम लेती थीं और जब उनमें से कोई प्रभावशाली व्यक्ति चोरी करता था तो उसके संबंध में वे ईश्वरीय क़ानून को लागू नहीं करतीं थी परंतु जब कोई कमज़ोर व्यक्ति अपराध करता था तो वे उसके संबंध में ईश्वरीय क़ानून लागू करती थीं। उस ईश्वर की सौगन्ध जिसके हाथ में मेरी जान है न्याय लागू करने में मैं किसी के बारे में भी संकोच से काम नहीं लूंगा यद्यपि वह मेरी बेटी ही क्यूं न हो।“
जो अपने जीवन में हिसाब- किताब रखते हैं विशेषकर वे लोग जो व्यापार करते हैं और इस बात का हिसाब -किताब रखते हैं कि कितना फायदा हुआ और कितना नुकसान ऐसे लोगों के लिए हिसाब -किताब बहुत महत्व रखता है अगर व्यापारी व उद्योगपति अपने कार्य का हिसाब- किताब न रखें तो उनके लिए कार्य कठिन हो जायेगा और लापरवाही की वजह से कभी बहुत बड़ी भूल हो सकती है।
ध्यान योग्य बिन्दु यह है कि जिस तरह व्यापारी व उद्योगपति पाई- पाई का हिसाब- किताब करता है उसी तरह मोमिन को चाहिये कि वह महान ईश्वर के साथ अपने हिसाब- किताब को सही करे। उसे चाहिये कि जो कुछ उसने अंजाम दिया है उसके संबंध में उसके पास संतोषजनक उत्तर होना चाहिये इस प्रकार से उसे अपना हिसाब- किताब करना चाहिये कि प्रलय के दिन महान ईश्वर के फरिश्ते उसका हिसाब -किताब करेंगे। रमज़ान का महीना इस कार्य के लिए बेहतरीन अवसर है ताकि महान ईश्वर के भले बंदे अपने कार्यों पर अधिक ध्यान दें और अपने क्रिया -कलापों की समीक्षा करें ताकि दया के महीने रमज़ान में वे ईश्वरीय कृपा के पात्र बन सकें और बेहतर ढंग से परिपूर्णता की ओर क़दम बढ़ा सकें।
कहते हैं कि एक छोटा बच्चा दुकान में गया। कोल्ड ड्रिंक के बक्स को खींचकर टेलीफोन के पास ले गया ताकि उसके हाथ टेलीफोन की बटन तक पहुंच सकें। उसके बाद उसने टेलीफोन लगाना शुरू कर दिया। दुकानदार छोटे बच्चे को देख रहा था और वह उसकी बात सुन रहा था। बच्चे ने एक महिला से कहा क्या हो सकता है कि घर के आंगन में लगे फूलों को छोटा करने का काम आप मुझे दे दें? महिला ने उत्तर दिया कि कोई है जो ये कार्य करता है। बच्चे ने कहा इस काम के लिए आप जितना पैसा देती हैं मैं उसके आधे पैसे में इस कार्य को अंजाम दूंगा। महिला ने उस बच्चे के जवाब में कहा जो व्यक्ति इस कार्य को अंजाम देता है मैं उसके काम से पूरी तरह राज़ी हूं। बच्चे ने अधिक आग्रह किया और कहा मैं घर के आंगन में झाड़ू भी लगाऊंगा और साफ- सफाई के दूसरे कार्यों को भी अंजाम दूंगा फिर आप देखेंगी कि रविवार को पूरे नगर में आपके आंगन की फुलवारी सबसे अच्छी होगी परंतु इस बार भी महिला ने नकारात्मक उत्तर दिया। बच्चे ने मुस्कराते हुए फोन रख दिया। दुकानदार, जो बच्चे की बात सुन रहा था, बच्चे के पास आया और कहने लगा बेटे तुम्हारा व्यवहार मुझे बहुत अच्छा लगा। तुम जो साफ और पवित्र दिल रखते हो उसके कारण मैं तुम्हें काम देना चाहता हूं बच्चे ने जवाब दिया, नहीं धन्यवाद। मैं केवल अपने कार्य को तौल रहा था मैं वही हूं जो इस महिला के लिए काम करता है। कितना अच्छा होता कि हम भी इस महीने में अपने कामों को तौलें उनकी समीक्षा करें और अपने बोझ को हल्का करें।