पवित्र रमज़ान पर विशेष कार्यक्रम-२२
पवित्र रमज़ान की 22वीं तारीख़ है।
पवित्र रमज़ान की 22वीं तारीख़ है। विभूतियों और अनुकंपाओं भरा यह महीना धीरे धीरे समाप्त हो रहा है। आइये अपने महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के दरबार में यह दुआ करें कि हे मेरे पालनक्हार इस महीने में सद्गुणों के द्वार हम पर खोल दे, अपनी विभूतियां मुझे प्रदान करे, ऐसे कर्म करने का सामर्थ्य प्रदान कर जिससे तेरी प्रसन्नता प्राप्त हो सके, अपने स्वर्ग में मुझे जगह प्रदान करे, हे दुआओं को सुनने वाले।
साल के महीनों में पवित्र रमज़ान का महीना और पवित्र रमज़ान की रातों में सबसे महान रात शबे क़द्र की रातें हैं जिसकी विशेषता के बारे में बहुत सी हदीसें और रिवायतें मौजूद हैं। शबे क़द्र का सबसे बड़ा महत्व यह है कि इन रातों में पवित्र क़ुरआन उतरा है, शबे क़द्र वह रात है जो हज़ार महीनों से बेहतर है और इसका बहुत अधिक महत्व है। इस्लाम धर्म की महान हस्तियां और महापुरुष इन विशेष रातों में विशेष कर्म अंजाम देते थे और उन्होंने इन रातों में जागकर ईश्वर की उपासना और उससे अपने दिल की बात करने पर बहुत अधिक बल दिया है। शबे क़द्र की रातों में जागरण के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि जो भी व्यक्ति क़द्र की रातों में जागरण करता है तो उसका दिल प्रलय के दिन जब सभी के दिल मर जाएंगे, जीवित रहेगा।
महापुरुषों ने भी इस अच्छी परंपरा पर बहुत अधिक बल दिया है और इन रातों से भरपूर लाभ उठाते थे। पैग़म्बरे इस्लाम (स) न केवल क़द्र की रातों में बल्कि पवित्र रमज़ान के अंतिम दस दिनों में पूरे दिन व रात उपासना करते थे और अपने बिस्तर को समेट देते थे। हदीसों में बयान किया गया है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) 23वीं रमज़ान को अपने परिजनों को जगाते थे और उनके चेहरों पर पानी मारते थे ताकि वह पूरी रात जाग सकें और शबे क़द्र के गुणों से वंचित न रहें। पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा भी यह नहीं चाहती थीं कि उनकी कोई भी संतान इस रात सोये, इसीलिए वह उनको इन रातों में कम खाना देती थीं, आराम करने और लेटने नहीं देती थीं। वह कहती थीं कि वंचित वह है जिसके भाग्य में इस रात की विशेषताएं न हों।
शहीद मुतह्हरी शबे क़द्र की विशेषताओं के बारे में कहते हैं कि पवित्र रमज़ान के महीने में अध्यात्म का चरम, क़द्र की रातें हैं, हमें इन दिनों में रोज़े के दौरान कम से कम इतना काम करना चाहिए कि इन दिनों और रातों में एक मेहमान की भांति अपने मेज़बान ईश्वर के दस्तरख़्वान पर उपस्थित होना चाहिए, यह रोज़े रखना, आंतरिक इच्छाओं के क़दमों को ज़ंजीर से जकड़ देना, बहुत अधिक दुआएं पढ़ना, बहुत अधिक पवित्र क़ुरआन की तिलावत करना, यह सब तैयारियां हैं जिससे हम शबे क़द्र में अंजाम देकर एक मेहमान की भांति अपने मेज़बान ईश्वर के दस्तरख़्वान पर उपस्थित हो सकते हैं और उसकी मेहमान नवाज़ी से लाभान्वित हो सकते हैं। तौबा करें, प्रायश्चित करें, अपने पापों की क्षमा मांगें, ईश्वर की विभूतियां मांगे, अपने लिए, अपने मोमिन भाइयों और बहनों तथा इस्लामी समाज के लोक परलोक का कल्याण मांगे और इन सबसे बेहतर अपनी आत्मा की शुद्धता मांगे।
इस मध्य जो चीज़ सबसे महत्वपूर्ण है वह यह है कि इन रातों को जागना बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इन रातों को जागकर इंसान नया जीवन प्राप्त करता है अर्थात उसे अध्यात्म जीवन प्राप्त होता है। मनुष्य का अध्यात्म जीवन, उसे ईश्वर की याद से प्राप्त होता है। मनुष्य का दिल यदि ईश्वर से निश्चेत न हो तो वह इंसान जीवित होता है। यह रातें बेहतरीन अवसर है ताकि हम पूरे तन मन से ईश्वर को याद करें और अपने पापों की उससे क्षमा मांगें।
पवित्र रमज़ान का महीना, ईश्वर की उपासना और उसके गुणगान का महीना है। यह एक ऐसा महीना है जिसमें ईश्वर के बंदे अपने ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने का प्रयास करते हैं और यह कृपा दृष्टि ईमान और सद्कर्म की छत्रछाया, भलाई से प्रेम और अच्छाइओं से लगाव के अतिरिक्त प्राप्त नहीं हो सकता किन्तु इन सब चीज़ों को प्रदान करने वाला ईश्वर ही है।
इतिहास में मिलता है कि एक व्यक्ति का कहना था कि उसके पास एक सेवक था जो उसके साथ उसके घर में रहता था। एक रात मैं नींद से उठा, मैंने उसे उस स्थान पर नहीं पाया जहां व सामान्य रूप से होता था। मैंने उसे तलाश करना आरंभ किया, तभी मैंने उसे देखा कि वह सज्दे में है और कह रहा है, हे मेरे पालनहार उस प्रेम के कारण जो तू मुझसे करता है, मुझे माफ़ कर दे और मेरे पापों को क्षमा कर दे। मैंने उससे कहा इस प्रकार न कहो, बल्कि कहो कि हे मेरे पालनहार, उस प्रेम और उस संबंध के कारण जो मैं तुझसे रखता हूं, मुझे माफ़ कर दे, सेवक ने कहा, वह मुझसे स्नेह करता था जिसके कारण उसने मुझे अनकेश्वरवाद के अंधकार से एकेश्वरवाद के प्रकाश में डाल दिया, रात के समय मुझे जगाया ताकि उसकी उपासना करूं जबकि ईश्वर के बहुत से बंदे मीठी नींदों का आनंद ले रहे हैं।
हदीसे क़ुद्सी में आया है कि महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम से कहा कि मेरे मोमिन बंदों तक यह बात पहुंचा दीजिए कि यदि वह ईश्वर से स्नेह करते हैं, तो मेरा अनुसरण करें ताकि ईश्वर भी तुमसे स्नेह करे। अब यह स्पष्ट हो गया कि मित्रता और दोस्ती की शर्त, प्रेम में निष्ठा और प्रेम का दावा, अनुसरण और उपासना है। जो व्यक्ति अधिक आज्ञापालन करेगा उसमें प्रेम की ज्वाला अधिक भड़केगी और अपने दावों में अधिक सच्चा होगा। ईश्वर के बंदे जब परिज्ञान के चरम पर पहुंच जाते हैं और यदि उन्हें पता चले कि उस चरण में ईश्वर उनसे प्रसन्न है तो बंदे से ईश्वर की प्रसन्नता का यही स्थान, उसे स्वर्ग और अमर विभूतियों का मालिक बना सकता है। पवित्र क़ुरआन में भी ईश्वरीय प्रसन्नता को रिज़वान की संज्ञा दी गयी है।
पवित्र क़ुरआन के व्याख्याकर्ता अल्लामा तबातबाई ईश्वरीय रिज़वान के बारे में कहते हैं कि मनुष्य का परिज्ञान, ईश्वरीय रिज़वान और उसकी सीमाओं को समझ नहीं सकता क्योंकि ईश्वरीय रिज़वान की सीमाएं निर्धारित नहीं है ताकि मनुष्य का सोच उस तक पहुंच सके, शायद यह बिन्दु समझाने के लिए हो कि ईश्वर के रिज़वान की सबसे कम श्रेणी, जो जितनी भी कम हो, इस स्वर्ग से बहुत बड़ी है, अर्थात ईश्वर से प्रेम और उससे स्नेह करने वाले की सबसे बड़ी सफलता और उसका सबसे बड़ा कल्याण यह है कि वह अपनी आत्मा को प्रसन्न किए बिना अपने प्रेमी की प्रसन्नता प्राप्त करे।
पुराने समय की बात है बनी इस्राईल का एक उपासक था जो वर्षों से ईश्वर की उपासना में लीन था। सपने में उससे कहा गया कि तुम्हारे मित्रों में से अमुक महिला स्वर्ग में है। जब उसकी आंख खुली, उक्त महिला को ढूंढने निकल पड़ा, अंततः वह महिला उसे मिल गयी और उसने तीन दिन उसे अपना मेहबान बनाया ताकि वह देखे कि वह कौन से कर्म करती है जिससे उसके भाग्य में स्वर्ग लिखा गया, उसे बहुत आश्चर्य हुआ जब उसने पाया कि उक्त महिला बहुत सामान्य है, जहां एक ओर वह उपासक पूरी रात जागकर उपासना करता था, वह महिला पूरी रात सोती थी, दिन में उपासक रोज़े रखता था, किन्तु वह दिन में खाती पीती थी, दूसरे अन्य मामलों में भी उसमें कोई विशेष चीज़ दिखाई नहीं दी। अंततः एक दिन उसने उक्त महिला से कह ही दिल कि जो चीज़ मैं तुममें देख रहा हूं उसके अतिरिक्त भी कोई दूसरे कर्म करती हो, उक्त महिला ने कहा नहीं ईश्वर की सौगंध जो कुछ तुमने देखा वही मेरे कर्म हैं। उपासक ने आग्रह किया, कुछ सोचकर बताओ कि इसके अतिरिक्त कोई अन्य कार्य भी करती हो, उक्त महिला ने एक बार फिर वही उत्तर दिया कि वह कोई विशेष कर्म नहीं करती किन्तु सदैव ईश्वर की प्रसन्नता से प्रसन्न रहती हूं। यदि कठिनाइयों में हूं तब भी उससे हुटकारे की कामना नहीं करती, यदि बीमार हूं, तो स्वास्थ्य की कामना नहीं करती, यदि किसी समस्या में ग्रस्त हूं तब भी समस्या से रिहाई की मांग नहीं करती। उपासक को मामला समझ में आ गया उसने कहा ईश्वर की सौगंध, यह बहुत बड़ी विशेषता है जिससे बहुत लोग वंचित हैं।
इस पवित्र महीने में ईश्वर की अनुकंपाओं और उसकी विभूतियों के द्वार बंदों पर खुल जाते हैं। इस पवित्र महीने में अपने समस्त बंदों के लिए ईश्वर की अनुकंपाएं होती हैं चाहे वह उपासना करता हो या पापों में ग्रस्त हो, वह अनुकंपा ईश्वर की मेज़बानी है। इस पवित्र महीने में सृष्टि का रचयिता, अपने पूरे अस्तित्व के साथ मैदान में उतर आता है ताकि अपने बंदों की आवश्यकताओं को पूरा करे और उसे अपने नेक बंदों में शामिल करे। इस पवित्र महीने में हर व्यक्ति अपने ज्ञान के हिसाब से लाभान्वित होता है।
कहते हैं कि एक व्यक्ति नाई के यहां गया अपने बाल कटवाने और दाढ़ी बनवाने। नाई बाल बना रहा था और एक रोचक बात आरंभ हो गयी। वे विभिन्न विषयों पर रोचक बातें कर रहे थे। जब उनकी बात ईश्वर के विषय पर पहुंची तो नाई ने कहा कि मुझे विश्वास नहीं है कि ईश्वर मौजूद है।
ग्राहक ने कहा, क्यों विश्वास नहीं करते?
नाई ने जवाब दिया कि सड़क पर निकलो अभी पता चल जाएगा कि ईश्वर नहीं है? अब मुझे बताओ यदि ईश्वर होता तो यह सारे लोग मरीज़ होते? बच्चे अनाथ और असहाय होते? यदि ईश्वर होता तो यह सारी परेशानियां और कठिनाइयां होती? ऐसे कृपालु ईश्वर की कल्पना नहीं की जा सकती जो इन सब चीज़ों की अनुमति दे। ग्राहक ने थोड़ा सोचा लेकिन उसके पास कोई जवाब नहीं था, वह उससे बहस में उलझना नहीं चाहता था? नाई ने अपना काम समाप्त किया और वह ग्राहक पैसे देकर निकल गया।
ग्राहक जब नाई की दुकान से बाहर निकला, तभी उसने सड़क पर एक व्यक्ति को देखा जिसके लंबे लंबे बाल तथा दाढ़ी बहुत बढ़ी हुई है, उस व्यक्ति को देखकर उसे घिन आने लगी। वह ग्राहक दोबारा नाई की दुकान में आया और उसने नाई से कहा, देखा क्या हुआ मुझे लगता है कि नाई भी मौजूद नहीं है। नाई ने आश्चर्य से कहाः यह तुम कैसी बातें कर रहे हो? मैं यहां पर तो हूं, मैं ही तो नाई हूं, अभी मैंने ही तो तुम्हारे बाल बनाये हैं। ग्राहक ने उससे कहाः नहीं नाई भी मौजूद नहीं है, यदि ऐसा होता तो किसी भी व्यक्ति के उस बेचारे व्यक्ति की भांति लंबे और गंदे बाल न होते। नाई ने उत्तर दिया नहीं, नाई तो मौजूद है पर यह नाई की दुकान पर आया ही नहीं।
ग्राहक ने पुष्टि करते हुए कहा कि यही बात है, ईश्वर भी मौजूद है किन्तु कोई भी उसे पुकारता नहीं, उसके पास जाता नहीं और यही कारण है कि वह समस्याओं और कठिनाइयों में ग्रस्त होते हैं।