पवित्र रमज़ान पर विशेष कार्यक्रम-२४
(last modified Sun, 19 Jun 2016 05:37:35 GMT )
Jun १९, २०१६ ११:०७ Asia/Kolkata

ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं कि उसने इस वर्ष 24वीं रमज़ान की अनुकंपाओं से लाभान्वित होने का अवसर प्रदान किया।

ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं कि उसने इस वर्ष 24वीं रमज़ान की अनुकंपाओं से लाभान्वित होने का अवसर प्रदान किया। इस पवित्र महीने में हम ईश्वर से उस चीज़ की मांग करते हैं जिससे उसकी प्रसन्नता प्राप्त की जा सके। ईश्वर की शरण की मांग करते हैं और हर वह जो  चीज़ उसकी अप्रसन्नता का कारण बनती है उससे हमें दूर करे और उसकी उपसना और उसके आज्ञापालन की कृपा प्रदान करे।

 

पवित्र रमज़ान के महीने की विशेषताओं और इसकी सुन्दरताओं में से एक इस महीने आयोजित होने वाली इसकी विशेष सभाएं हैं। पवित्र क़ुरआन भी उपदेश की किताब है और यह मनुष्य की आंतरिक बीमारियों को दूर करने और शिष्टाचारिक विशेषताओं के प्रसार के लिए ईश्वर की ओर से आई है। पवित्र क़ुरआन ने मनुष्य की आत्मा के प्रशिक्षण के लिए प्रभावी शैलियों में उपदेश को भी माना है और पवित्र क़ुरआन की बहुत सी आयतों में इसकी सिफ़ारिश भी की गयी है। पवित्र क़ुरआन की दृष्टि में इंसान को चाहे वह जिस आयु का हो, उपदेश की आवश्यकता है और इस विषय में बूढ़े और जवान में कोई अंतर नहीं है। मनुष्य की आत्मिक स्थिति को परिवर्तित करने के लिए उपदेश बेहतरीन शैली और अवसर है।

 

ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरए ज़ारियात की 55वीं आयत में अपने पैग़म्बर को आदेश देता है कि लोगों को उपदेश दें क्योंकि उपदेश मनुष्य के लिए बहुत ही लाभदायक है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने स्वयं भी लोगों के मार्गदर्शन के लिए इस शैली का प्रयोग किया और लोगों को भी उपदेश की सभाओं के आयोजन के लिए प्रेरित करते थे। वे लोगों को संबोधित करते हुए कहते थे कि हे लोगो होशियार हो जाओ कि बुद्धिजीवियों और ज्ञानियों की सभाएं स्वर्ग के बाग़ों में से एक बाग़ है, इस अवसर से लाभ उठाओ कि विभूतियां और क्षमायाचना वर्षा की भांति उस सभा पर पड़ती है और पापों को धो देती है और जब तक आप उनके पास बैठे रहेंगे, फ़रिश्ते आप के लिए पापों की क्षमा याचना करते रहेंगे, ईश्वर भी उस ओर देखता है और ज्ञानी, छात्र, दर्शक और उसके दोस्तों को क्षमा कर देता है।

 

पवित्र रमज़ान में आयोजित होने वाली धार्मिक सभाओं में उपस्थिति से मनुष्य इस्लामी शिक्षाओं से अवगत होता है और पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों के कथनों और उनके उपदेशों को याद करके वह अपने जीवन को अच्छी तरह से सजा संवार कर जारी रख सकता है किन्तु जो लोग इस प्रकार की सभाओं में उपस्थित नहीं होते वह ईश्वरीय शिक्षाओं और शिष्टाचारों से दूर रहते हैं।

 

इस पवित्र महीने में विभिन्न क्षेत्रों में मौलानाओं की उपस्थिति बेहतरीन अवसर है ताकि लोग शुद्ध इस्लामी शिक्षाओं से अवगत हों और अपनी धार्मिक जानकारियों और ज्ञानों में वृद्धि करें।  इस अवसर से लाभ उठाते हुए इस प्रकार की सभाओं को साप्ताहिक या मासिक रुप से आयोजित करते रहना चाहिए ताकि अधिक से अधिक लोग इनसे लाभान्वित हो सकें।

 

पवित्र क़ुरआन ईश्वरीय पुस्तक है जो उपदेशों का स्रोत है। उपदेशों की सभाओं और कार्यक्रमों में उपस्थित होने के अतिरिक्त बंदे इस महीने में एक दिन में पवित्र क़ुरआन के एक सिपारे या अंश की तिलावत करते हैं और पवित्र क़ुरआन की प्रकाशमान आयतों में चिंतन मनन करके इसकी मनमोहक आयतों से अधिक से अधिक लाभान्वित हो सकते हैं। पवित्र क़ुरआन की आयतों का अध्ययन तथा सांसारिक मायामोह रखने वालों, अत्याचारी राजाओं की कहानी पढ़ना तथा ईश्वरीय दूतों की जीवनी का अध्ययन, मनुष्य की ज़िंदगी संवारने के लिए बेहतरीन उपदेश हो सकता है। इसके अतरिक्त पवित्र क़ुरआन की प्रतिदिन तिलावत, पूरे साल तिलावत करने की भूमिका प्रशस्त कर सकता है।

 

 

रोज़े के मुख्य संदेशों में अधिक खान पान को नियंत्रित करना और उसका प्रबंध करना है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हवाले से बयान किया गया है कि खानपान में संतुलित रहो, क्योंकि यह काम अपव्ययता से दूरी और शरीर के स्वास्थ्य के लिए अधिक लाभदायक है और उपासना में बहुत ही प्रभावी है।

 

खान पान में संतुलन के कारण लोगों में शक्ति बढ़ती है और उपसना करने की क्षमता बढ़ती है। इसी प्रकार कम खाने पीने से आलस्य दूर होता है और पेट भर खाने से जो बोझलपन बढ़ता, उससे मुक्ति होती है किन्तु इन सबसे महत्वपूर्ण विचारों का प्रशिक्षण तथा दिल की सफ़ाई है। पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से बयान किया गया है कि जो व्यक्ति अपने पेट को ख़ाली रखता है, उसके विचार प्रशिक्षित होते हैं। जब मनुष्य के विचार सभी दिशा में प्रशिक्षित होते हैं तो उसका दिल साफ़ होता है।

 

 

पवित्र रोज़ा, चिंतन मनन और प्रशिक्षण का बेहतरीन अवसर है। रोज़ेदार मनुष्य चिंतन मनन करता है और रोज़े के दीप से रास्ता पाता है और स्वयं को भौतिक जीवन के ख़तरों से दूर रखता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से बताया है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने मेराज की यात्रा के दौरान ईश्वर से पूछा था कि हे मेरे पालनहार रोज़े का क्या प्रभाव है? जवाब आया रोज़ा सूझबूझ पैदा करता है और सूझबूझ, ज्ञान व पहचान बढ़ाती है और ज्ञान से विश्वास और आस्थाएं प्राप्त होती हैं।

 

जब कोई व्यक्ति विश्वास की सीमा तक पहुंच जाएगा और यह नहीं सोचेगा कि किसी प्रकार सुबह तक जागेगा तो वह अपनी समस्त परेशानियों और कठिनाइयों को सर्वसमर्थ ईश्वर के हवाले कर देगा और उसकी प्रसन्नता प्राप्त कर लेगा।

 

ईरान के प्रसिद्ध धर्मशास्त्री और परिज्ञानी आयतुल्लाह मिर्ज़ा मलेकी तबरीज़ी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “मुराक़ेबात” में लिखते हैं कि ईश्वर ने अपने मेहमानों को स्वीकार करने के लिए भूख का चयन क्यों किया? वे लिखते हैं कि पवित्र रमज़ान में भूख और कम खाना पीना, दिल की सफ़ाई का बेहतरीन अवसर है क्योंकि भरापेट बुद्धि में अमाशय की गर्मी बढ़ा देता है और मनुष्य को आध्यात्मिक चिंतन मनन का मार्ग तय करने से रोक देता है जबकि भूख और कम खाना, दिल की सफ़ाई का कारण बनता है और दिल, परिज्ञान तक पहुंचने के लिए तैयार रहता है, भूख एक ऐसा प्रकाश है जिसका आभास किया जा सकता है।

 

भूख के लाभों में से एक ईश्वर के समक्ष बंदे का विनम्र होना है क्योंकि ज़्यादातर बुराईयों की जड़ पेट का भरा होना और अधिक खानपान है। भूख, पापों में कमी और ख़तरों से सुरक्षित रखने का कारण बनती है। वे भूख के अन्य लाभों के बारे में कहते हैं कि कम खाने और भूख के लाभों में से एक, आंतरिक इच्छाओं को लगाम लगाना है। अब जब आपको इनका फ़ायदा पता चल गया तो आपके लिए यह जानना रोचक होगा कि ईश्वर ने अपने मेहमानों को स्वीकार करने के लिए भूख की शर्त रखी है क्योंकि ईश्वर से निकटता तथा ईश्वरीय ज्ञान की विभूतियों से बेहतर और अच्छी कोई विभूति नहीं है और इस गंतव्य तक पहुंचने के लिए भूख सबसे बेहतरीन रास्ता है।

 

 

दिन और रात तेज़ी से गुज़र रहे हैं और पवित्र रमज़ान भी धीरे धीरे अपनी विभूतियों के साथ समाप्त हो रहा है। कितना अच्छा है कि हम सब इन बाक़ी बचे दिनों को ईश्वरीय मेज़बानी में गुज़ारें और ईश्वर से किए अपने वचनों को पुनर्जीवित करें और अपने दिल की सच्चाई से अपने समस्त पापों की क्षमा याचना करें और पूरी कटिबद्धता के साथ ईश्वर का अनुसरण करें। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई पवित्र रमज़ान से भरपूर ढंग से लाभ जाने के बारे में कहते हैं कि हमें आवश्यकता है कि इन विभूतिपूर्ण घंटों, दिनों और रातों से भरपूर ढंग से लाभ उठाएं और अनदेखे संसार से और परालौकिक संसार से अपने दिली संबंधों को मज़बूत करके, ईश्वर के दरबार में विनम्र होकर और झुककर, पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से अपने प्रेम के बंधंन को मज़बूत करने की यह समस्त भले कार्यों का आधार है जो एक मोमिन और प्रयत्नशील व्यक्ति सत्य के मार्ग में कर सकता है।

 

यदि इन क्षणों से लाभ नहीं उठाया, इन अवसरों से लाभान्वित नहीं हुए तो एक दिन हमारे लिए पछतावे का कारण बनेंगा, निश्चेतना और अविश्वास की भावना हमसे यह अवसर छीन लेगी और उस दिन जब हमारे हर घंटे का, हमारे हर क्षण का, हमारी हर गतिविधि का और हमारे हर शब्द का हिसाब किताब होगा, तो यह निश्चेतना हमारे पछतावे का कारण बनेगी।

 

 

एक दिन दो युवा छात्र एक गुरु के पास आये और उससे पूछा कि समस्या में ग्रस्त होने और उसके समाधान की प्राप्ति के मार्ग के बीच में कितनी दूरी है। गुरु ने थोड़ा सोचा और कहा समस्या में ग्रस्त एक व्यक्ति और उसके समाधान की प्राप्ति के मार्ग के बीच की दूरी घुटने से ज़मीन तक है। वह दोनों लोग युवा बहुत हैरान व परेशान होकर वहां से निकल आये और स्कूल के बाहर चर्चा होने लगी।

 

उनमें से एक युवा ने कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि गुरु का आशय, यह था कि ज़मीन पर एक स्थान बैठने के बजाए उठ खड़ा हो और स्वयं समस्या का सामाधान करे, एक स्थान पर बैठे रहने और घुटनों में सिर डाले रहने से समस्या का सामाधान नहीं होता।

 

दूसरे ने थोड़ा सोचकर कहा कि सामान्य रूप से ज्ञानी लोगों की बातें बहुत गहरी होती है और इसको इतनी सरलता से बयान नहीं किया जा सकता। जो तुम कह रहे हो वह हमारी ज़बानों पर वर्षों से जारी है और हम सब इसको जानते हैं। गुरु का आशय कुछ और ही था।

 

उन दोनों ने गुरु के पास जाने का फ़ैसला किया और उन्होंने उनसे उस वाक्य का अर्थ पूछा, गुरु उन दोनों छात्रों को एक साथ देखकर मुस्कुराये और कहा कि जब एक व्यक्ति समस्या में ग्रस्त हो तो उसे स्वयं को शून्य बिन्दु पर पहुंचाना चाहिए। शून्य बिन्दु वह है जब मनुष्य सृष्टि के रचयिता के सामने घुटने टेक दे और उससे सहायता मांगे।  इस शून्य बिन्दु के बाद मनुष्य उठ खड़ा हो सकता है और स्वयं पर विश्वास करते हुए सृष्टि के साथ कार्य शुरु करे। बिना इस विश्वास और भरोसे के किसी भी समस्या का समाधान प्राप्त नहीं हो सकता। मैं एक बार फिर कहता हूं कि यदि किसी को कोई समस्या हो और वह समस्या का सामाधान चाहता है तो उसकी समस्या और उसके समाधान के बीच की दूरी घुटने से उस ज़मीन के बीच की दूरी है जिस पर वह खड़ा है। 

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