पवित्र रमज़ान पर विशेष कार्यक्रम-२६
आज रमज़ान मुबारक की 26 तारीख़ है।
आज रमज़ान मुबारक की 26 तारीख़ है। हम ईश्वर से दुआ करते हैं कि वह हमारी इबादतों और उपसानाओं को स्वीकार कर ले, हमारे पापों को क्षमा कर दे, हमारे थोड़े से प्रयास को स्वीकार कर ले और हमारी कमियों की अनदेखी कर दे।
ईश्वर ने अपने बंदों से प्रेम और स्नेह के कारण, महीनों में से एक महीने और रातों में से एक रात का सर्वश्रेष्ठ महीने और रात के रूप में चयन किया है। इस सर्वश्रेष्ठ रात में इबादत को ईश्वर ने एक हज़ार महीनों तक की इबादत से बेहतर क़रार दिया है।
हां, शबे क़द्र की स्थिति और उसकी महानता के दृष्टिगत, इस रात का पुण्य एवं आध्यात्मिक लाभ 30 हज़ार रातों से बेहतर है। ईश्वर ने शबे क़द्र को इस रमज़ान के महीने में रखा है, ताकि लोग अतीत में अपनी इबादतों की कमियों को इसमें पूरा कर लें और ईश्वर से लोक परलोक में अपनी भलाई के लिए दुआ करें। शबे क़द्र रमज़ान की अंतिम दस रातों में से एक है, लेकिन ईश्वर ने उसे पूर्ण रूप से निर्धारित नहीं किया है। इतिहास में उल्लेख है कि किसी ने इमाम अली (अ) से सवाल किया, शबे क़द्र कौन सी रात है? उन्होंने फ़रमाया, मुझे कोई संदेह नहीं है कि ईश्वर ने तुम्हारी सहायता के लिए और अधिक अवसर प्रदान करने के लिए इस तुमसे छुपाकर रखा है। इसलिए कि अगर वह इसे स्पष्ट कर देता तो लोग उसी रात में इबादत करते और उसके अलावा, इबादत नहीं करते।
इसका एक रहस्य के रूप में होना इसीलिए है, ताकि लोग अन्य दो रातों को भी शबे क़द्र समझें और भले कार्य करें और इबादत करें और बुराईयों से दूर रहें।
इन रातों की विशेषता ईश्वर से क्षमा याचना और तोबा करना है। इन रातों में क्षमा याचना और तोबा की सिफ़ारिश इसलिए की गई है, क्योंकि पाप इंसान के दिल को काला और दूषित कर देते हैं, दूषित बर्तन की भांति दूषित दिल भी ईश्वर के प्रकाश का स्थान नहीं बन सकता। यही कारण है कि उसकी कोई इबादत और दुआ क़बूल नहीं होती।
निःसंदेह इस रात में वह तोबा और क्षमा क़बूल होती है जो क़ुरान के मुताबिक़, शुद्ध दिल से मांगी जाए। क़ुरान में उल्लेख है कि, हे वह लोगो। जो ईमान लाए, ईश्वर से क्षमा मांगो, शुद्ध क्षमा। इतिहास में है कि जब मआज़ बिन जबल ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) से नसूह तोबा के बारे में पूछा, तो हज़रत ने फ़रमाया, नसूह तौबा वह तोबा है कि इंसान किसी पाप से तौबा करे और उसके बाद, किसी भी स्थिति में वह पाप न करे। वास्तव में यह तोबा इंसान के भीतर ऐसी क्रांति जगाती है कि गुनाह की ओर वापसी के समस्त रास्तों को बंद कर देती है।
क्षमा और तोबा के बाद, दुआ और ईश्वर से मांगने की बारी आती है। दुआ की एक बेहतरीन स्थिति, मिलजुलकर और सामूहिक रूप से दुआ करना है। इसलिए इस बात का प्रयास करें कि इन रातों में मस्जिदों में उपस्थित हों। पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं, ईश्वर का हाथ समूह पर है। क़द्र का दिन भी उसकी रात की भांति उसी प्रकार महत्वपूर्ण है और अन्य दिनों से भिन्न है। इसलिए उचित होगा क़द्र की रात और दिन को शिक्षा के ग्रहण, क़ुरान की तिलावत और नमाज़ एवं ईश्वर का नाम जपने में बिताया जाए।
रमज़ान का महीना बरकत, रहमत और क्षमादान का महीना है। ईश्वर इस महीने में अपने बंदों के पापों को माफ़ कर देता है और अच्छे कामों के बदले जैसे कि रोज़ा रखने, इबादत करने, क़ुरान की तिलावत करने और दान देने, स्वर्ग प्रदान करता है। इसलिए जिन लोगों पर उनके पुण्य के कारण ईश्वर की कृपा होती है, उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं लेकिन अगर कोई इस प्रकार का पुण्य नहीं कर रहा है तो वह ख़ुद पर स्वर्ग के द्वार को बंद कर रहा है।
इमाम बाक़िर (अ) ने फ़रमाया है, पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने जब रमज़ान के महीने के चांद की ओर देखा तो काबे की ओर रुख़ करके फ़रमाया, हे ईश्वर इस महीने को हमारे लिए नया बना दे, सुरक्षा के रूप में, ईमान के रूप में, स्वास्थ्य के रूप में, कल्याण के रूप में, आजीविका के रूप में, बीमारियों से बचने के रूप में, क़ुरान की तिलावत करने और नमाज़ व रोज़े के रूप में, हे ईश्वर हमें रमज़ान के लिए स्वस्थ रख और रमज़ान को हमारे लिए और हमसे स्वीकार कर ले, यहां तक कि रमज़ान का महीना पूरा हो जाए और तू हमें क्षमा कर चुका हो। उसके बाद, लोगों की ओर देखकर कहा, हे मुसलमानो, जब रमज़ान का चांद निकल आता है, तो शैतानों को ज़ंजीर में बांधकर खींचा जाता है, आसमान, स्वर्ग और रहमत के द्वार खुल जाते हैं और नरक के द्वार बंद हो जाते हैं।
रमज़ान के महीने में ईश्वर, शैतान की शक्ति को सीमित कर देता है और भटकाने के उसके मार्गों को कम कर देता है। यही कारण है कि इंसानों का मन और आत्मा ईश्वर की उपासना और उसके आदेशों का पालन करने के लिए अधिक तैयार होते हैं। लेकिन इसका मतलब, पूर्ण रूप से शैतान का असमर्थ हो जाना और लौगों की ज़िम्मेदारियों का समाप्त हो जाना नहीं है।
वास्तव में रमज़ान का महीना एक ऐसा उचित अवसर है कि जिसमें शैतानों द्वारा इंसानों को भटकाने के रास्तों की पहचान हो जाती है। आयतुल्लाह दस्तग़ैब, शैतान और उसका मुक़ाबला करने के लिए एक सुन्दर उदारहण देते हुए कहते हैं, अगर आपके पास ऐसा खाना है जो कुत्ते को बहुत पसंद है तो अगर आप उसे ढककर भी ले जा रहे हैं तो भूखा कुत्ता दूर से उसकी सुगंध सूंघ लेगा और आपके पीछे चलने लगेगा। इसलिए कि वह भूखा है और उसका मनपसंद खाना आपके पास है। इस स्थिति में आप उसे कितना भी भगायेंगे और डांटेंगे वह आपका पीछा करना नहीं छोड़ेगा। इंसान का दिल भी इसी प्रकार शैतान का लक्ष्य है। जिस किसी के दिल में पद, शोहरत, दुनिया और धन की मोहब्बत होगी और दूसरों से ईर्ष्या होगी वह ज़बान से शैतान को कितना भी बुरा भला कहे, उसका कोई परिणाम नहीं निकलेगा। इसलिए कि केवल ज़बान से शैतान को भगा रहा है और अपने कर्मों से उसे अपने दिल के लिए आमंत्रित कर रहा है। शैतान से बचने के लिए हमें अपने दिल को बुराईयों से पाक साफ़ करना होगा।
ईश्वरीय अनुकंपाओं से लाभ उठाना और उसका शुक्रिया अदा करना उस पूंजी की भांति है, कि जो पिता अपने बेटे को सौंपता है, ताकि वह उससे व्यापार कर सके। अगर वह सही व्यापार करता है और अपनी पूंजी का सही प्रयोग करता है तो पिता उसे अधिक पूंजी प्रदान करता है। लेकिन अगर बेटे ने उस पूंजी को व्यर्थ कर दिया और उलटे सीधे कामों में उड़ा दिया तो पिता यही कहता है कि क्यों उसे पैसा दूं? मैं उसका दुश्मन तो नहीं हूं कि उसे बर्बाद होने और बिगड़ने के लिए पैसा दूं। उसके बाद वह उसे कोई पूंजी नहीं देता है। ईश्वरीय अनुकंपाएं भी इसी प्रकार हैं। अगर इंसान ईश्वरीय अनुकंपाओं का महत्व नहीं जानता और उसका आभार व्यक्त नहीं करता है तो ईश्वर उसे अधिक प्रदान नहीं करता है। ईश्वर के वास्तविक बंदे जो कुछ उन्हें प्रदान कर दिया जाता है, उस पर प्रसन्न रहते हैं और अपने पालनहार का आभार जताते हैं और समस्याओं में घिरने के बावजूद, हमेशा ख़ुद को ईश्वरीय अनुकंपाओं में घिरा हुआ पाते हैं।
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के एक साथी कहते हैं, मिना में हम हज़रत की सेवा में उपस्थित थे। एक फ़क़ीर हज़रत के पास आया। वे अंगूर खा रहे थे और उन्होंने आदेश दिया कि अंगूर का एक गुच्छा फ़क़ीर को दे दिया जाए। फ़क़ीर ने कहा, मुझे अंगूर नहीं चाहिए, अगर पैसे दें तो बेहतर रहेगा। हज़रत ने फ़रमाया, ईश्वर तुम्हें पर्याप्त मात्रा में दे और उसे कुछ दान में नहीं दिया। उसके बाद एक दूसरा फ़क़ीर आया और उसने सहायता के लिए कहा, हज़रत ने केवल अंगूर के तीन दाने उसे दिए। फ़क़ीर ने ले लिए और कहा, शुक्र है उस पालनहार का जिसने मुझे रिज़्क़ प्रदान किया। हज़रत ने उससे कहा, ठहरो, उसके बाद इमाम ने अपने दोनों हाथों में अंगूर भरे और उसे दान में दिए। फ़क़ीर ने लेकर फिर ईश्वर का आभार जताया। इमाम ने फिर उससे कहा, ठहरो और अपने सेवक से कहा, तुम्हारे पास इस समय कितना पैसा है? उसने कहा, बीस दिरहम। हज़रत ने वह सब पैसा फ़क़ीर को दे दिया। फ़क़ीर ने पुनः ईश्वर का शुक्र अदा किया। हज़रत ने फ़रमाया, यहीं खड़े रहो, और अपनी क़मीज़ उतार कर उसे दे दी, फ़क़ीर ने लेकर पहन ली और पुनः ईश्वर का शुक्र अदा किया और इमाम का आधार जताया और चला गया। इमाम के साथी का कहना है कि हम समझते हैं कि अगर वह फ़क़ीर इमाम का आधार नही जताता और निरंतर ईश्वर का शुक्रिया अदा करता तो वे भी निरंतर उसे दान देते रहते।