21 रमज़ान का विशेष कार्यक्रम
(last modified Sat, 25 Jun 2016 10:48:35 GMT )
Jun २५, २०१६ १६:१८ Asia/Kolkata

हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहरवान युद्ध के  बाद मुआविया के विद्रोह को कुचलने के लिए सैनिक एकत्रित कर रहे थे और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के न्याय से चोट खाए कुछ लोग, उनकी हत्या का षडयंत्र रच रहे थे।

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार  उन्तालिस हिजरी क़मरी में या  सन 658 ईसवी के मई या जूलाई  के महीने में नहरवान नामक युद्ध हुआ था जिसके कुछ महीनों बाद, ख्वारिज कहे जाने वाले गुट के तीन सरगनाओं ने एक भेंट की और उसमें यह तय किया गया कि एक ही रात में , हज़रत अली, मुआविया और अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस की हत्या कर दी जाए।

 

 ख्वारिज उन लोगों को कहा जाता था जो धर्म के नाम पर और धार्मिक नारों के साथ अपनी मनमानी करते थे। यह लोग धर्म को अपनी इच्छा के अनुसार चलाना चाहते थे। नहरवान नामक युद्ध में हज़रत अली ने इन्ही लोगों के खिलाफ संघर्ष किया था।

 

हज़रत अली , मुआविया और अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस की हत्या के लिए तीन अलग अलग लोगों को नियुक्त किया गया। जिस व्यक्ति को हज़रत अली अलैहिस्सलाम की हत्या के लिए नियुक्त किया गया था उसका नाम अब्दुर्रहमान बिन मुल्जिम मुरादी था। इब्ने मुल्जिम, कूफा पहुंचा और वहां क़ुताम नाम की एक लड़की से मिला जिसका पिता और भाई, नहरवान युद्ध में मारा गया था। इब्ने मुल्जिम ने उस लड़की से शादी की इच्छा प्रकट की तो उसने अपने मेहर के रुप में इमाम अली अलैहिस्सलाम की हत्या की शर्त रख दी। अर्थात हज़रत अली अलैहिस्सलाम की हत्या को शादी की शर्त बताया।

 

इब्ने मुलजिम तो इसी काम के लिए कूफा गया था इसी लिए उसने फौरन यह शर्त स्वीकार कर ली।

 

इब्ने मुल्जिम ने सन चालीस हिजरी क़मरी के रमज़ान महीने की उन्नीस तारीख को हज़रत अली अलैहिस्सलाम पर उस समय हमला किया जब वह नमाज़ पढ़ रहे थे। उसने ज़हर में बुझी तलवार हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर मारी, जिसकी वजह से हज़रत अली अलैहिस्सलाम दो दिनों के बाद इक्कीस रमज़ान सन चालीस हिजरी में शहीद हो गये।

 

पिता की शहादत के बाद उनके बेटे इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कूफा की मस्जिद में लोगों के मध्य भाषण के दौरान अपने पिता को इस तरह से याद कियाः हे लोगो! आज की रात, कुरआन उतारा गया, आज ही की रात , हज़रत ईसा मसीह आसमान पर चले गये, आज ही की रात  हज़रत मूसा के उत्तराधिकारी, यूशा बिन नून मार डाले गये और आज ही की रात मेरे पिता और मोमिनों के सरदार इस दुनिया से चले गये। क़सम है ईश्वर की! जन्नत में जाने के मामले में किसी भी पैगम्बर का उत्तराधिकारी मेरे पिता से आगे नहीं होगा। और जब भी पैगम्बरे इस्लाम उन्हें किसी युद्ध में भेजते थे तो जिब्रराईल उनके दांए और मीकाईल उनके बाएं लड़ते थे और उन्होंने अपने बाद इस दुनिया में एक भी दिरहम या दीनार नहीं छोड़ा है।

 

इस्लाम की तारीख में इमाम अली अलैहिस्सलाम जैसी हस्ती नगण्य है और यही वजह है कि उन्हें सही रूप से पहचानने वाले का मिलना मुश्किल है, कुछ लोग तो उन्हें, ईश्वर ही मान बैठे जबकि कुछ लोगों को उनके उपासक होने पर ही शंका थी इसी लिए जब कूफा की मस्जिद में उन्हें शहीद किये जाने की खबर आम हुई तो बहुत से लोगों ने यह तक पूछा कि क्या अली नमाज़ भी पढ़ते थे? इस लिए यह कहा जाता है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम को सही रूप से अल्लाह और उसके रसूल ने ही पहचाना है ।

 

पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली से कहा है कि हे अली! सही रूप से मेरे और तुम्हारे अलावा अल्लाह को किसी ने नहीं पहचाना है और तुम्हें, सही रूप से मेरे और अल्लाह के अलावा किसी ने नहीं पहचाना।

 

अपने पूरे जीवन में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का चरित्र, संसार के संबंध में उनके दृष्टिकोण पर आधारित था। वे संसार के संबंध में तर्कसंगत दृष्टिकोण रखते थे तथा संसार के संबंध में उनका रवैया अपने आपमें अनुदाहरणीय था। संसार तथा उसकी सुंदरता ईश्वर की रचना है। आकाश, धरती, समुद्र, बादल, हवाएं तथा पर्वत सभी ईश्वर की निशानियां हैं। हज़रत अली धरती तथा प्रकृति से प्रेम करते थे और ईश्वर की सभी निशानियों की सुंदरता की प्रशंसा करते थे। उन्हें जलाशय, खेत खलिहान, खजूर के बाग़ बहुत पसन्द थे। वे अपने कंधों पर खजूर की गुठलियों का गट्ठर उठा कर ले जाते और उन्हें मरुस्थल में बोते थे तथा गहरे कुओं से अपने हाथों से पानी निकाल कर उनकी सिंचाई करते थे। इस प्रकार उन्होंने मरुस्थल में खजूर के कई बाग़ लगा दिये थे ।

 

 

 वे संसार को बुरा भला कहने वाले की निंदा करते हुए संसार के संबंध में कहते हैः  संसार, सच्चों के लिए वास्तविक घर है, संसार , सही ढंग से पहचानने वालों के लिए  स्वस्थ ठिकाना है और जो इससे परलोक की यात्रा के लिए कुछ लेना चाहे तो उसके लिए आवश्यकतामुक्त कर देने वाला घर है। संसार, ईश्वर को चाहने वालों का उपासना स्थल, तथा फ़रिश्तों के नमाज़ पढ़ने का स्थान है। संसार ईश्वर के प्रेमियों के व्यापार की मंडी है जहां वे ईश्वरीय दया का पात्र बनते हैं और अनंत स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।

 

 

 

इस आधार पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम की दृष्टि में संसार, प्रलय व परलोक की भूमिका है। जब तक हम इस संसार में प्रयास नहीं करेंगे और सही ढंग से प्रयत्न नहीं करंगे तब तक हमें परलोक के लिए सही लाभ प्राप्त नहीं होगा। यह संसार परीक्षा का स्थान है और परिपूर्णताओं तक पहुंचने की सीढ़ी है। यह एक ऐसा बाज़ार है जिसमें ईमान वाले व्यापारी अपनी भौतिक व आध्यात्मिक क्षमताओं से लाभ उठा कर मानवता के उच्च स्थानों तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। वे लोगों से प्रेम और उनकी सेवा और न्याय व मानव प्रतिष्ठा के प्रसार द्वारा एक कल्याण प्राप्त समाज का गठन करते हैं जिसमें लोगों के लिए पवित्र जीवन उपलब्ध होता है।

 

 हज़रत अली अलैहिस्सलाम की दृष्टि में संसार तब तक प्रिय व सम्मानीय है जब तक वह लोगों की सेवा, न्याय के प्रसार और शांति व समानता के आधारों को सुदृढ़ बनाने का माध्यम हो। संसार के संबंध में यही दृष्टिकोण इस बात का कारण बनता है कि अली अत्याचार व अन्याय के विरुद्ध युद्ध के रणक्षेत्र के सबसे बड़े योद्ध बन जाते हैं और अत्याचाग्रस्त लोगों को उनके अधिकार दिलाने के लिए अपनी जान की बाज़ी तक लगा देते हैं। इसी प्रकार वे तपती दोपहर में खजूरों के बागों की सिंचाई करते हैं और उससे प्राप्त होने वाले धन को गरीबों और अनाथों व बेवाओं  पर ख़र्च कर देते हैं।

 

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के गुणों के बखान में असंख्य हदीसें हैं और यहां तक कि उन्हें अच्छी तरह से जानने वाले पैगम्बरे इस्लाम भी कहते हैं कि अली के गुणों को गिनना संभव नहीं है।

 

इब्ने अब्बास कहते हैं कि पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया हैः अगर धरती के सारे पेड़, क़लम, समुद्र, रोशनाई, सारे जिन्न, हिसाब करने वाले, सारे इन्सान लिखने वाले बन जाएं तब भी यह सब लोग अली इब्ने अबी तालिब के  सदगुणों को गिन नहीं सकते।

 

अली वह हैं जो जब तलवार उठा कर जब रणक्षेत्र की ओर बढ़ते हैं तो एसा हगांमा मचता है कि आसमान के फरिश्ते भी हैरत में पड़ जाते हैं। उनकी बहादुरी की खुश्बू इन्सानियत को हैरान कर रही है, जिस दिन वह सत्ता संभालते हैं , रोम और ईरान के साम्राज्यों को अपने पैरों तले रौंदते हैं और उसी दिन अपने हाथों से अपनी जूतियों पर टांके  भी लगा रहे होते हैं यह सारा राज-पाट मेरे लिए मेरी इस फटी जूती से भी गया गुज़रा है। इस शासन की अच्छाई बस इसी में है कि मैं इसके ज़रीए किसी पीड़ित को, अत्याचारी से इंसाफ दिला दूं।

 

इसके बाद इमाम अली अलैहिस्सलाम कहते हैः सौगंध है ईश्वर की! अगर पूरी दुनिया और जो कुछ आस्मान के नीचे है मुझे दे दिया  जाए ताकि मैं एक चींटी के मुंह से जौ का छिलका छीन कर ईश्वर की अवज्ञा करूं तो मैं ऐसा करने वाला नहीं।     

 

सुन्नी मुसलमानों की अत्याधिक महत्वपूर्ण किताब, सहीह मुस्लिम में सअद बिन वेक़ास के हवाले से लिखा गया है कि मुआविया ने उनसे कहाः तू किस वजह से अली को बुरा भला नहीं कहता? तो उन्होंने कहाः तीन वजहों से! एक तो यह कि पैगम्बरे इस्लाम ने तबूक नामक युद्ध के लिए जाते समय हज़रत अली को मदीना नगर में अपना उत्तराधिकारी बनाया और कहा थाः क्या तुम इस पर खुश नहीं हो कि तुम्हारा स्थान मेरे निकट वैसा है जैसा कि मूसा के निकट हारून का था सिवाए इसके लिए मेरे बाद कोई नबी नहीं होगा।

 

 दूसरी बात यह है कि खैबर नामक युद्ध के दौरान पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया कि मैं यह झंडा उस व्यक्ति को दूंगा कि जिससे ईश्वर और उसका पैगम्बरे प्रेम करता होगा और जो खुद ईश्वर और उसके रसूल से प्रेम करता होगा। और जब इस झंडे को लेने के लिए सब लोग कोशिश कर रहे थे, पैगम्बरे इस्लाम ने कहा अली को बुलाया जाए।

 

 इसी प्रकार ईसाई धर्मगुरुओं के साथ होने वाले मुबाहेला के अवसर पर भी कुरआन में कहा गया कि जो भी ईसा के बारे में तुम से बहस करे उससे कह दो कि चलो हम अपने लड़कों को और तुम अपने लड़कों और हम अपनी औरतों को और तुम अपनी औरतों को और हम अपने आप जैसों को  और तुम अपने आप या जैसों को ले आएं और एक दूसरे पर लानत करें और ईश्वर से झूठों पर लानत की  प्रार्थना करें। इस आयत के बाद पैगम्बरे इस्लाम, हज़रत अली , हज़रत फातेमा, और इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिमुस्सलाम को अपने साथ लेकर गये और फरमायाः हे ईश्वर! यह मेरे घरवाले हैं।

 

रमज़ान की 21 तारीख को हज़रत अली की शहादत हो गयी, वह अल्लाह के घर काबे में पैदा हुए थे और अल्लाह के घर मस्जिद में शहीद कर दिये गये और  जब इब्ने मुल्जिम ने उस के सिर पर तलवार का वार किया तो वह नमाज़ के समय सजदे में थे, माथे पर तलवार लगने के बाद उन्होंने कहा कि  काबे के रब की क़सम, मैं सफल हो गया! ज़मीन व आसमान के बीच जिबरईल की आवाज़ गूंजी, ईश्वर की सौगंध! मार्गदर्शन के स्तंभ गिर गये, ईश्वर से भय के चिन्ह मिट गये और रचनाकार व रचयिता के बीच संबंध का मज़बूत साधन खत्म हो गया, पैगम्बरे इस्लाम मुहम्मद मुस्तफा के चचेरे भाई अलीए मुरतुज़ा शहीद हो गये।

 

 

 

 

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