Nov २८, २०१५ १२:४७ Asia/Kolkata

वर्तमान समय में महिलाओं के साथ हिंसा एक बहुत बड़ी समस्या है।


वर्तमान समय में महिलाओं के साथ हिंसा एक बहुत बड़ी समस्या है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 25 नवम्बर को महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की रोक थाम का विश्व दिवस घोषित किया है। इस दिन को महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की रोक थाम के सार्वजनिक संकल्प को दोहराने के लिए चुना गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने 17 अकतूबर 1999 को इस विश्व दिवस की घोषणा की थी। इस दिन का चयन इस लिए किया गया कि इसी दिन डोमिनिकन गणराज्य की तीन राजनैतिक कार्यकर्ता बहनों की निर्मम हत्या की कर दी गई थी।


रिपोर्टों और साक्ष्यों के अनुसार महिलाओं के विरुद्ध हिंसक बर्ताव एक गहरी और विश्व व्यापी समस्या है। यौन हिंसा, मौखिक एवं शरीरिक उत्पीड़न, ज़बरदस्ती देह व्यापार करवाना, महिलाओं और लड़कियों की तस्करी, कर्मचारी महिलाओं के साथ हिंसक बर्ताव, युद्ध के दौरान की हिंसा, जेलों में महिलाओं को दी जाने वाली यातनाएं, राजनैतिक हिंसा आदि समस्याओं का सामना महिलाएं शताब्दियों से कर रही हैं।


संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने महिलाओं के साथ हिंसक व्यवहार की परिभाषा में कहा है कि लिंगभेद के आधार पर किसी भी प्रकार का हिंसक रवैया जो महिलाओं को शरीरिक अथवा मनोवैज्ञानिक नुक़सान पहुंचाए वह महिलाओं के ख़िलाफ हिंसा की सूचि में आता है। इसी लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठन और विश्व के देश महिलाओं के साथ होने वाले हिंसक बर्ताव की रोकथाम के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम बना रहे हैं।


आज की दुनिया में शायद बहुत से लोगों को सोच यह हो कि विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय समझौतों, कन्वेन्शनों और क़ानूनों को पारित करके महिलाओं की वर्तमान स्थिति में सुधार लाया जा सकता है लेकिन आधुनिक जगत के ज़मीनी तथ्य इसके विपरीत तसवीर पेश करते हैं। क्योंकि विकसित, विकासशील, अधर्मी और धार्मिक सभी समाजों में किसी न किसी रूप में महिलाओं के अधिकारों का हनन किया जा रहा है। महिलाओं के साथ विभिन्न प्रकार के हिंसक बर्ताव, महिलाओं को साधन के रूप में देखना और फ़िल्मों तथा प्रौपैगंडे में प्रयोग के सामान के रूप में उन्हें प्रयोग करना, उन पर शारीरिक रखरखाव के लिए बाहर से मानकों का थोप दिया जाना, महिलाओं को उनकी प्राकृतिक और स्वाभाविक भूमिका से दूर कर देना, अविवाहित माओं की संख्या में वृद्धि, देह व्यापार और महिलाओं की तस्करी वर्तमान पश्चिमी समाजों की वह समस्याएं हैं जो साफ़ साफ़ दिखाई देती हैं।


इसके अलावा अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ़्रांस, स्पेन, बेल्जियम, पुर्तगाल, हालैंड, यूनान, बेलग्राड, सर्बिया जैसे यूरोपीय और पश्चिमी देशों और इसी प्रकार अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन अर्थात इस्राईल में महिलाओं को विभिन्न प्रकार की हिंसाओं का सामना है और वहां अनेक जटिल समस्याएं खड़ी हो गई हैं। न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र संघ के आयोग की 57वीं बैठक की रिपोर्ट में बताया गया कि 15 से 44 साल की आयु के बीच की महिलाओं की मृत्यु का एक महत्वपूर्ण कारण उनके साथ किया जाने वाला हिंसक बर्ताव है। वर्ष 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के बारे में जो आंकड़े जारी किए उनसे पता चलता है कि विश्व की 35 प्रतिशत महिलाओं को अनेक प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ता है।


ईश्वरीय धर्मों ने हमेशा मज़लूमों के अधिकारों की रक्षा की है और पूरे इतिहास में महिलाएं अपनी शारीरिक शक्तिहीनता के कारण यातनाओं का निशाना बनी हैं इस लिए इस्लाम धर्म ने भी महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा का जमकर विरोध किया है। इस्लाम महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा की रोकथाम के लिए सबसे पहले मानसिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर काम किए जाने पर बल देता है। धार्मिक उपदेशों में इस प्रकार के अनेक उदाहरण मिल सकते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने महिलाओं के साथ कठोरता से पेश आने को मना किया और उनसे अच्छा व्यवहार करने की सीख दी है। ईश्वर के अंतिम नबी का कथन है कि मैं समाज के दो वर्गों के बारे में जिन्हें कमज़ोर बनाए रखा गया है विशेष रूप से सिफ़ारिश करता हूं, महिला वर्ग और सेवक वर्ग। पैग़म्बरे इस्लाम ने इसी प्रकार कहा कि महिलाओं का आदर केवल उदार व्यक्ति करता है और महिलाओं का अपमान केवल पस्त और घटिया इंसान करता है।


इस्लाम धर्म ने महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की रोक थाम के लिए इस हिंसा का रास्ता समतल करने वाली संस्कृति पर अंकश लगाने पर बल दिया है। इस्लाम धर्म ने सांस्कृतिक कारणों पर विशेष रूप से ध्यान दिया है। इस्लाम धर्म ने इस विचार का कड़ाई से विरोध किया कि लड़के को लड़की पर प्राथमिकता प्राप्त है। इस्लाम ने लड़कियों को ईश्वर की कृपा का नाम दिया। पैग़म्बरे इस्लाम इस बारे में कहते हैं कि बच्ची कितनी अच्छी होती है। लड़कियां कृपा से सुसज्जित होती हैं, वह सहायता और सहयोग के लिए तैयार रहती हैं, वह पवित्र और मुबारक हैं। इसी प्रकार पैगम्बरे इस्लाम ने फ़रमाया कि जब अपनी संतान को उपहार दो समानता का ख़याल रखो। और यदि उनमें कुछ को दूसरों पर प्राथमिका देनी होती तो लड़कियों को लड़कों पर प्राथमिकता दो।


महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा का सबसे प्रमुख़ क़िस्म घरेलू हिंसा है। इस्लाम धर्म ने इस संदर्भ में भी कहा है कि लड़कियों से बहुत अच्छा सुलूक होना चाहिए। इस्लाम ने पत्नी तथा मां के रूप में महिलाओं के उच्च स्थान का उल्लेख करते हुए उनसे अच्छा बर्ताव करने और बुरे बर्ताव से परहेज़ करने पर बल दिया है।


पुरुषों के मुक़ाबले में महिलाओं को तुच्छ समझने के माहौल के कारण इस्लाम धर्म ने लड़कियों पर विशेष ध्यान दिया और लड़कियों का ज़्यादा ख़याल रखे जाने पर बल दिया ताकि इतिहास में लंबे समय से जो महिलाएं दबा कर रखी गई हैं उसकी भरपाई हो और लड़कों तथा लड़कियों के बीच समाज में समानता का माहौल पनपे।


पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि जिसे भी ईश्वर बेटी दे और वह बेटी को परेशान न करे, उसका अपमान न करे और अपने बेटे को कदपि बेटी पर प्राथमिकता न दे, ईश्वर उसे स्वर्ग में स्थान देगा।


इस्लाम धर्म ने महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा को समाप्त करने के लिए प्रशैक्षणित पहलुओं पर भी बल दिया है। महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की रोकथाम के लिए इस्लाम धर्म ने कहा है कि लड़कियों और लड़कियों की परवरिश समानता के आधार पर की जानी चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि ईश्वर को यह बात पसंद है कि तुम अपने बच्चों के साथ न्यायपूर्ण बर्ताव करो यहां तक कि उन्हें चूमने के मामले में भी।


इस्लाम का कहना है कि महला फूल और महक है। पुरुष को चाहिए कि बाग़बान की तरह उसकी सुरक्षा और प्रतिष्ठा का खयाल रखे। इसी लिए इस्लाम ने परिवारों की नींव मज़बूत करने के लिए पुरुषों को निर्देश दिया है कि वह अपनी पत्नियों का खयाल रखें। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति किसी महिला का पत्नी के रूप में चयन करता है तो उसे चाहिए कि उसकी इज़्ज़त करे। तुम्हारी महिलाएं तुम्हारी ख़ुशी का साधन हैं। जो भी शादी करे उसे अपनी पत्नी को परेशान करने का अधिकार नहीं है।


पैग़म्बरे इस्लाम ने पत्नी से पति के ख़राब व्यवहार के बारे में एक स्थान पर कहा कि जो व्यक्ति अपनी कड़वी बातों से अपनी पत्नी को परेशान करता है अल्लाह उस व्यक्ति का सदक़ा और नेकियां स्वीकार नहीं करता यहां तक कि वह अपनी पत्नी को मना ले। यदि वह व्यक्ति हर दिन रोज़ा रखे और पूरी रात जागकर इबादत करता रहे तथा ईश्वर की राह में ग़ुलाम को आज़ाद करे और ईश्वर के मार्ग में शत्रुओं से लड़े तब भी वह जहन्नम में जाने वाला पहला व्यक्ति होगा।


इस्लाम धर्म ने घरों के भीतर महिलाओं के साथ कठोर व्यवहार और हिंसा को कम करने पर बहुत अधिक ध्यान दिया है। महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि जब विवाह होता है और दाम्पत्य जीवन शुरू होने जा रहा होता है तो वह दुआ पढ़ने की सिफ़ारिश की जाती है जिसमें बंदा अपने ईश्वर से कहता है कि हे पालनहार मेरे हाथ में तेरी अमानत है। दूसरी ओर पत्नी को यह सिफ़ारिश की जाती है कि जीवन की स्वाभाविक कठिनाइयों पर सब्र करे, अपने पति का सथ दे उसकी आज्ञापालन करे और इस प्रकार हिंसा की वजहों को समाप्त कर दे।


आज समाजों में विशेष रूप से जब झड़पें शुरू हो जाती हैं तो महिलाएं हिंसा का शिकार होती हैं। यह चीज़ विशेष सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों में आम जौर पर देखने में आती है और इसका कारण महिलाओं का शरीरिक रूप से कमज़ोर होना है।


इस समय युद्ध जैसे संकटों के कारण महिलाएं बहुत अधिक हिंसा का निशाना बन रही हैं। हालांकि सशस्त्र झड़पों में महिलाओं की भूमिका नहीं होती लेकिन इसके बावजूद इन घटनाओं की मुख्य भेंट महिलाएं बनती हैं। इस समय विश्व के अनेक क्षेत्रों और विशेष रूप से मध्यपूर्व में तकफ़ीरी आतंकी संगठनों के हाथों महिलाओं के साथ किया जाने वाला हृदय विदारक बर्ताव मीडिया की रिपोर्टों में मौजूद है। मध्यपूर्व में तकफ़ीरी संगठनों की रूढ़िवादी सोच ने बहुत सी समस्याओं को जन्म दिया है और महिलाएं विशेष रूप से इसका निशाना बनी हैं। इस समय अलक़ायदा, तालेबान, बोको हराम, दाइश और इन्हीं जैसे अन्य तकफ़ीरी संगठन पश्चिमी देशों के समर्थन से और इस्लामी संगठन के नाम पर अफ़ग़ानिस्तान, यमन, इराक़, सीरिया, सऊदी अरब और नाइजेरिया जैसे देशों में महिलाओं के साथ भयानक अत्यचार कर रहे हैं। इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है कि महिलाओं के ख़िला इस प्रकार की आपराधिक कार्यवाहियां किसी भी ईश्वरीय धर्म में स्वीकार्य नहीं हो सकती हैं क्योंकि ईश्वरीय धर्मों और विशेष रूप से इस्लाम में महिलाओं को उच्च स्थान दिया गया है। इसके लए अलावा ज़ायोनी शासन भी लेबनान, फ़िलिस्तीन, गज़्ज़ा पट्टी के क्षैत्रों पर अपने आए दिन के हमलों में महिलाओं और बच्चों का जनसंहार कर रहा है तथा ज़ायोनी शासन के जेलों में बड़ी संख्या में महिलाएं बंद हैं जिन्हें यातनाएं दी जा रही हैं।


इस्लाम धर्म ने इस प्रकार की स्थिति का सामना करने के लिए अनेक सिफ़ारिशें की हैं। पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का कथन है कि जब भी कोई लड़ाई होती तो पैग़म्बरे इस्लाम सेनापति को बुलाते थे और उसे अपने बग़ल में तथा सहाबियों के सामने बिठाते थे और उसके बाद कहते थे कि अति न करना, शव के अंगों को न काटना, पेड़ न काटना, सिवाए इसके कि कोई मजबूरी आ जाए। बूढ़ों बच्चों और महिलाओं की हत्या न करना।


इस्लाम ने महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा की रोकथाम के लिए बूढ़ी महिलाओं की मदद पर भी बल दिया है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है कि जो भी बूढ़े पुरुष या महिला की देखभाल की ज़िम्मेदारी स्वीकार करे मैं गैरेंटी देता हूं कि वह दरिद्रता और नास्तिकता से सुरक्षित रहेगा।   


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