एतेकाफ़
(last modified Mon, 25 Apr 2016 08:32:05 GMT )
Apr २५, २०१६ १४:०२ Asia/Kolkata

इस्लामी शिक्षाओं में कई प्रकार की इबादतों या उपासनाओं का आदेश दिया गया है जैसे नमाज़, रोज़ा और हज आदि। इस्लाम में जिन उपासनाओं का आदेश मिलता है उनमें से कुछ दैनिक हैं, कुछ साप्ताहिक तो कुछ वार्षिक।

 जैसे नमाज़ के रोज़ाना पढ़ने का आदेश है जबकि जुमे की नमाज़ साप्ताहिक है। इसी प्रकार रोज़े साल में एक बार रमज़ान के महीने में रखे जाते हैं। जो इबादतें वार्षिक हैं उनमें से एक का नाम एतेकाफ़ है। 

प्रवृत्ति के अनुसार मनुष्य में स्वभाविक रूप में आध्यात्म की ओर झुकाव पाया जाता है। महापुरूषों का कहना है कि जो आनंद ईश्वर के ध्यान या उसकी उपासना में है वह किसी में नहीं है। वर्तमान भौतिक जीवन ने पूरी मानव जाति के मन व मस्तिष्क को बुरी तरह से प्रभावित कर रखा है। आज का इन्सान भौतिक जीवन में उलझ कर रह गया है। यदि मनुष्य इन सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर कुछ समय के लिए अपना ध्यान ईश्वर की ओर लगाए तो उसे पता चलेगा कि वास्तविक आनंद उसकी उपासना में हैं न कि सांसारिक मायामोह में। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) का कहना है कि लोगो! तुम्हारे जीवन में कुछ एसे भी पल आते हैं जो तुमको ईश्वर की ओर आकर्षित करते हैं। तुमको उन पलों से लाभ उठाने के प्रयास करने चाहिए।

वे पल या लम्हे, जो मनुष्य को आध्यात्म की प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं उनमें से एक, रजब का महीना है जिसमें एतेकाफ़ किया जाता है। रजब, हिजरी क़मरी वर्ष का सातवां महीना है। ईश्वर के निकट इस महीने का विशेष महत्व है। यह ईश्वर से निकट होने का बहुत अच्छा अवसर भी है। बहुत से लोग हमेशा इसकी तलाश में रहते हैं कि उन्हें भौतिकता से निकलने का कोई अवसर मात्र ही मिल जाए। इस प्रकार के लोगों के लिए रजब का महीना बहुत अच्छा अवसर है। रजब का महीना वास्तव में उन लोगों के लिए स्वर्णिम अवसर की भांति है जो अपने दैनिक जीवन में पाई जाते वाली भौतिकता से दूर होकर कुछ समय आध्यात्मिक वातावरण में व्यतीत करना चाहते हैं। रजब के आध्यात्मिक कार्यक्रमों में से एक एतेकाफ़ है।

एतेकाफ़ अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ठहरना या रुकना। वास्तव में एतेकाफ का अर्थ है ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के उद्देश्य से कुछ समय के लिए मस्जिद में ठहरना। इस प्रकार से पता चलता है कि एतेकाफ़ एक उपासना का नाम है। यह स्वेच्छा से की जाने वाली उपासना है जिसके लिए इस्लामी शिक्षाओं में लोगों को बहुत प्रेरित किया गया है। एतेकाफ़ कोई वाजिब या अनिवार्य उपासना नहीं है बल्कि अपनी इच्छा से की जाने वाली उपासना है जिसका समय निर्धारित है। एतेकाफ़ में मस्जिद में कम से कम तीन दिन ठहरकर ईश्वर की उपासना की जाती है। जो व्यक्ति एतेकाफ़ करता है उसे मोतकिफ़ कहा जाता है। एतेकाफ़ रमज़ान में भी किया जा सकता है और रजब में भी यहां पर हम रजब के महीने में किये जाने वाले एतेकाफ़ के बारे में चर्चा करेंगे।

जैसाकि आपको पहले बताया गया कि एतेकाफ़ स्वेच्छा से की जाने वाली उपासना है यह अनिवार्य नहीं है। एतेकाफ़ सामान्यतः रजब के तीन दिनों में होता है अर्थात रजब की तेरह, चौदह और पंद्रह तारीख़ को। जो लोग इस उपासना के प्रति लगाव रखते हैं वे इन तीन दिनों तक मस्जिद में रहते हैं और ईश्वर की उपासना करते हैं। इन तीन दिनों में रोज़े रखे जाते हैं। एतेकाफ़ का क़ानून यह है कि एतेकाफ़ करने वाले व्यक्ति को 13 रजब को सुबह की नमाज़ से पहले मस्जिद में पहुंचना होता और और 15 रजब को मग़रिब की नमाज़ तक वहीं पर ठहरना पड़ता है। इस दौरान लगातार तीन दिनों तक रोज़े रखे जाते हैं और उपासना की जाती है। एतेकाफ़ कोई नई इबादत नहीं है बल्कि यह बहुत ही प्राचीन इबादत है।

  ईश्वरीय धर्मों में एतेकाफ़ को विशेष महत्व प्राप्त रहा है। बहुत से ईश्वरीय दूत एतेकाफ़ जैसी इबादत किया करते थे। अल्लामा मजलेसी ने अपनी पुस्तक बेहारुल अनवार में लिखा है कि हज़र सुलैमान, मस्जिदुल अक़सा में एतेकाफ़ किया करते थे। उनके लिए खाने पीने का सामान उपलब्ध कराया जाता था और वे लंबे समय तक बैतुल मुक़द्दस में ठहरकर एतेकाफ़ किया करते थे। इसी प्रकार हज़रत मरयम भी बैतुल मुक़द्दस के एक कोने में बैठकर ईश्वर को याद किया करती थीं। वे सामान्यतः बैतुल मुक़द्दस के पूर्वी क्षेत्र में जाकर लंबे समय तक ईश्वर की उपासना में व्यस्त रहती थीं।

पवित्र क़ुरआन में ईश्वर कुछ अवसरों पर एतेकाफ़ के विषय की ओर संकेत करता है। सूरए बक़रा की आयत संख्या 125 में ईश्वर कहता है कि उसने इब्राहीम और उनके बेटे इस्माईल को आदेश दिया कि वे ईश्वर के घर को तवाफ़ करने वालों, एतेकाफ़ करने वालों और रुकूअ तथा सजदा करने वालों के लिए साफ करें।

एतेकाफ़ एसी इबादत है जिसकों पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अंजाम दिया। एतेकाफ़ करना महापुरूषों की परंपरा रही है। स्वयं पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने मानने वालों को एतेकाफ़ के लिए प्रेरित किया करते थे। ईश्वर के अन्तिम दूत पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स), जो पूरे संसार के लिए आदर्श थे, न केवल मौखिक रूप में लोगों को एतेकाफ़ करने के लिए प्रेरित करते बल्कि वे स्वयं भी इस उपासना को किया करते थे। वे पवित्र रमज़ान के अन्तिम दस दिनों में एतेकाफ़ करते थे। एतेकाफ़ के बारे में उनका कथन है कि निष्ठा से किया जाने वाला एतेकाफ़, पापों के प्रयाश्चित का कारण बनता है।

  इसी संबन्ध में वे आगे कहते हैं कि मोतकिफ़ के सारे पाप धुल जाते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि मनुष्य कुछ दिनों के लिए सांसारिक मायामोह से अलग होकर ईश्वर की उपासना में व्यस्त हो जाता है। इस प्रकार वह बहुत से पापों से बच जाता है। यही चीज़ उसके बाद वाले जीवन में अन्य पापों से बचने की भूमिका प्रशस्त कर सकती है जिसके लिए दृढ इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है।

यहां पर यह बताना आवश्यक है कि इस्लाम, सन्यास व बैगग का कड़ा विरोधी है। सन्यास लेना या संसार को छोड़कर अलग थलग रहने का कोई महत्व नहीं है। इस्लामी दृष्टिकोण से यदि कोई उपासना के उद्देश्य से संसार को छोड़कर एकांतवास अपना ले तो यह इस्लामी दृष्टि में प्रशंसनीय नहीं है बल्कि इसकी कड़े शब्दों में निंदा की गई है। इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार दुनिया को छोड़कर ईश्वर की निकटता प्राप्ति के उद्देश्य से एकांत में जाकर सदैव उसकी उपासना करने का कोई महत्व नहीं है।

  हांलांकि एतेकाफ़ और सन्यास में कोई तुलना नहीं है। सन्यास में मनुष्य सदा के लिए संसार को त्याग देता है जबकि एतेकाफ़ में एसा कुछ नहीं है। एतेकाफ़ में मनुष्य केवल 3 से 10 दिनों के लिए मस्जिद में जाकर ईश्वर की उपासना में लीन हो जाता है और बाद में उसी समाज में पहुंचकर जीवन व्यतीत करने लगता है जहां से वह एतेकाफ़ करने गया था। यहां पर एतेकाफ़ का उद्देश्य उस व्यक्ति को बाद वाले जीवन में पापों से बचने के लिए तैयार करना है। इस अल्पावधि में भौतिकता से दूरी बनाकर एतेकाफ़ करने वाला, दूसरों को भी बुराइयों से रोक सकता है। इसका कारण यह है कि वह कुछ समय तक सांसारिक बंधनों को तोड़कर ईश्वर की सेवा में उपस्थित हो चुका है और अब लोगों के बीच पहुंचा है। एसे में वह उन लोगों के लिए अच्छा उदाहरण है जो इस समय भौतिकता में डूबे हुए हैं।

जैसाकि हमने बताया कि एतकाफ़ के लिए रमज़ान के अन्तिम दस दिनों का भी उल्लेख किया गया हैं साथ ही रजब के महीने के तीन दिनों में भी एतेकाफ़ किया जा सकता है जो तेरह, चौदह और पंद्रह रजब हैं। एतेकाफ़ की समय अवधि कम से कम तीन दिन होनी चाहिए। इस दौरान मनुष्य जहां पर ठहरता है उसे वहीं पर तीन दिनों तक रहना चाहिए। इस दौरान उसका वहां से बाहर जाना ठीक नहीं है। धार्मिक पुस्तकों में विस्तार से एतेकाफ़ की शर्तों और नियमों का उल्लेख किया गया है। इस स्थान पर हम केवल यह कहना चाहेंगे कि एतेकाफ़ से ईश्वर का उद्देश्य, एक प्रकार से मनुष्य का आध्यात्मिक प्रशिक्षण करना है।

जैसाकि आपको आरंभ में बताया गया कि एतेकाफ़, पूरी निष्ठा से किया जाना चाहिए तभी इच्छित परिणाम प्राप्त होते हैं। एतेकाफ़ के बारे में अल्लामा मजलेसी कहते हैं कि एतेकाफ़ की चरम सीमा यह है कि पूरे अस्तित्व के साथ मनुष्य ईश्वर की सेवा में उपस्थित हो और स्वयं को हर प्रकार के पाप और बुराइयों से पवित्र कर ले। निश्चित रूप से इस प्रकार का मनुष्य ही सफल जीवन व्यतीत कर सकता है।


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