भारत का फ़ायदा अमेरिका का नुक़सान, आख़िर वॉशिंग्टन ने दिल्ली को चेतावनी दे ही दी, अब क्या करेंगे मोदी?
भारत की लगातार रूस से बढ़ती नज़दीकियों को लेकर अमेरिका चिंतित नज़र आने लगा है, यही कारण है कि उसने अब भारत को चेतावनी भी दे दी है।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत, रूस से ज़्यादा मात्रा में कच्चा तेल का आयात करे, अमेरिका को यह बात खटकने लगी है। जो बाइडन प्रशासन का कहना है कि भारत पहले की तरह रूस से तेल ख़रीद सकता है, लेकिन अगर उसने इसमें बढ़ोतरी की तो उसे 'बड़े जोखिम' का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। वहीं सबसे अहम बात यह है कि रूस भारत को कम क़ीमत पर तेल देने के लिए तैयार है और भारत के लिए यह बहुत ही अनुकूल स्थिति है। लेकिन, अमेरिका ने रूस से ख़रीदे जाने वाले तेल के बिल की लंबाई देखकर ऐसे समय में यह चेतावनी दी है कि जब रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लॉरोवफ़ भारत की यात्रा पर पहुंच रहे हैं। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा है, 'हम क्रेमलिन पर यूक्रेन के ख़िलाफ़ उसके पसंद के विनाशकारी जंग को जितनी जल्द हो सके, ख़त्म करने के लिए दबाव बनाने को लेकर कड़े प्रतिबंधों समेत एक मज़बूत सामूहिक कार्यवाही के महत्त्व पर भारत और दुनिया भर में अपने साझीदारों को शामिल करने का प्रयास कर रहे हैं। रॉयटर्स ने एक सूत्र के हवाले से बताया है कि अमेरिका चाहता है कि भारत और रूस जो भी भुगतान कर रहे हैं, या जो कुछ भी कर रहे हैं, वह पाबंदियों को ध्यान में रखकर होना चाहिए। अगर नहीं तो वे खुद को बहुत बड़े जोखिम में डाल रहे हैं। जबतक वह प्रतिबंधों का पालन करते हैं और ख़रीद को बहुत ज़्यादा नहीं बढ़ाते हैं, तब तक अमेरिका को कोई समस्या नहीं है।
दूसरी ओर ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ क्वाड के भारत के दो सहयोगी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया, कहीं न कहीं रूस से भारत के कारोबारी रिश्ते को लेकर परेशान हैं। अमेरिकी वाणिज्य मंत्री गीना रैमोंडो ने कहा है कि, 'अब इतिहास के सही तरफ़ खड़े होने का समय है और अमेरिका और दर्जनों दूसरे देशों के साथ, आज़ादी के लिए, लोकतंत्र के लिए और संप्रभुता के लिए यूक्रेन के लोगों के साथ खड़े होने का समय है और रूसी राष्ट्रपति पुतीन के युद्ध को फंडिंग करने और हौसला बढ़ाने और सहयोग करने का नहीं।' उधर ऑस्ट्रेलिया के व्यापार मंत्री डैन तेहान ने कहा है कि लोकतांत्रिक देशों को 'नियम-आधारित दृष्टिकोण अपनाने के लिए' मिलकर काम करना चाहिए। यह सारी बातें ऐसी स्थिति में कही जा रही हैं कि जब स्वयं अमेरिका और उसके सहयोगियों ने पश्चिमी एशिया के कई देशों पर ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से हमला करके उसे तबाह किया है। आज भी यमन पर सऊदी अरब द्वारा किए जा रहे पाश्विक हमलों का यह सब रियाज़ का समर्थन करते हैं।
याद रहे कि 24 फ़रवरी को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतीन ने जब से यूक्रेन में स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन की शुरुआत की है, तब से रूस के ख़िलाफ़ अमेरिका और उसके सहयोगियों ने प्रतिबंधों की लाइन लगाई दी है। इन प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ना है और अमेरिका जिस तरह से भारत पर दबाव बनाना चाहता है, उसके पीछे भी उसका उद्देश्य यही है, क्योंकि भारत न सिर्फ विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता है, बल्कि 24 फरवरी से अबतक रूस से 1.3 करोड़ बैरल तेल ख़रीद चुका है। जबकि, 2021 में पूरे साल भर में यह आंकड़ा 1.6 करोड़ बैरल ही था। शायद अमेरिका इसी बात को लेकर परेशान है। वहीं जानकारों का मानना है कि दिल्ली सरकार जो अभी तक फूंक-फूंक कर क़दम रख रही है वह न मास्को को और न ही वॉशिंग्टन को नाराज़ करना चाहती है, अब देखना होगा कि भारत की मोदी सरकार क्या निर्णय लेती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी देश की जनता पर मंहगाई की पड़ती मार को रोकेंगे या फिर अमेरिका की चेतावनी के आगे घुटने टेक देंगे? (RZ)
हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए क्लिक कीजिए
हमारा टेलीग्राम चैनल ज्वाइन कीजिए