इंसानियत को ख़त्म करती वहाबियत
(last modified Thu, 28 Jul 2016 12:01:20 GMT )
Jul २८, २०१६ १७:३१ Asia/Kolkata
  • इंसानियत को ख़त्म करती वहाबियत

मुसलमानों के पवित्र स्थान मदीना में अभी कुछ दिन पहले बम धमाके होने के बाद कुछ लोगों ने फेसबुक पर लिखा कि आतंकवादियों का इस्लाम से कोई लेना देना नही है क्योंकि ये तो मुसलमानों को भी मार रहे हैं, लोगों के ऐसे बयान बड़े ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं।

ऐसे लोगों से मेरा एक सवाल है कि क्या इन आतंकवादियों का इस्लाम से रिश्ता होता अगर ये सिर्फ ग़ैर मुसलमानों को मारते? क्या इन आतंकवादियों का इस्लाम से रिश्ता होता अगर ये सिर्फ शिया मुसलमानों को मार रहे होते? क्या इंसानियत का रोज़ाना क़त्ल करने वालों का किसी भी धर्म से कोई रिश्ता हो सकता है? ये एक बड़ा सवाल है जिसके बारे में सबको सोचना पड़ेगा। लोग कहते हैं की आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता लेकिन पूरे विश्व में रोज़ाना हो रहे आतंकी हमलों के बाद मुझे लगता है कि आतंकवाद धार्मिक कट्टरवादियों के समर्थन के बिना इतनी तेज़ी से नहीं फ़ैल सकता। तो सवाल अब यह आता है कि कौन से धार्मिक लोग आतंकवादियों का समर्थन करते हैं? कौन से वो लोग हैं जो अलक़ायदा, लश्कर-ए-तैयबा और इस्लामिक स्टेट (दाइश) जैसे आतंकवादी संगठनों का समर्थन करते हैं। ये बड़े गंभीर सवाल हैं जिनका जवाब पता करना बड़ा ज़रुरी है।

आज हर आतंकवादी हमले की कड़ी कहीं न कहीं वहाबियों से जा के जुड़ती है। चाहे बात आप ढाका में हुए हमलों की कर लें जहाँ पर युवा आतंकियों के दिमाग में आतंकवाद का ज़हर भरने का काम एक वहाबी और सलाफी ज़ाकिर नाइक का है जो की मुम्बई का रहने वाला है। चाहे बात आप इराक़ और सीरिया में रोज़ाना हो रहे क़त्लेआम की कर लें, यहाँ इस क़त्लेआम के पीछे सऊदी अरब समर्थित इस्लामिक स्टेट के आतंकवादी हैं जिनकी वहाबी विचारधारा है। चाहे बात आप भारत में होने वाले आतंकवादी हमलों की कर लें, ज़्यादातर हमलों के पीछे लश्कर-ए-तैयबा का हाथ है और इस आतंकवादी संगठन को सारा पैसा सऊदी अरब से आता है। 2009 में विकिलीक्स द्वारा जारी किये गए केबल बताते हैं की लश्कर-ऐ-तैयबा और जमातुद दावा के चीफ़ हफ़ीज़ सईद को सारा पैसा सऊदी अरब से मिलता है। ये वो ही हफ़ीज़ सईद है जिसने मुम्बई में सन् 2008 में आतंकी हमले करवाये थे और 166 से ज़्यादा निर्दोष लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी थी। अब मुद्दे की बात ये है कि पूरे विश्व में आतंकवाद फ़ैलाने वाले ये वहाबी लोग हैं कौन, कहाँ से आये ये लोग और किसने इन्हें बनाया था? 


इसकी शुरुआत होती है 18वीं शताब्दी से, जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद अपने एक एजेंट "हेम्फेर" को मध्यपूर्व में इस आदेश के साथ भेजता है कि वो सारे तरीक़े ढूंढे जायें जिस से मध्यपूर्व के देशों को और उनके प्राकृतिक संसाधनों को हम अपनी गिरफ़्त में ले सकें। तो एजेंट "हेम्फेर" ने कहा की सबसे बढ़िया तरीक़ा है "फूट डालो और राज करो"। आगे बढ़ने से पहले ये समझना ज़रुरी है की उस क्षेत्र के 1740 में क्या हालात थे जिसे हम आज सऊदी अरब के नाम से जानते हैं। उस समय यह एक पठार मात्र था जिसमे "बेदोयूं" नाम की जनजाति के लोग रहते थे। इस जनजाति में एक क़बीला था जिसका सरदार "इब्ने सऊद" था। उस समय तक क़बीले एक दूसरे से लड़ते रहते थे। उस समय एक कट्टरवादी "अदल अल वहाब" की मुलाक़ात "इब्ने सऊद" से हुई और "इब्ने सऊद" ने सोचा की क्यों न वहाब की इस कट्टरवादी सोच को आधार बना के पूरे पठार पर कब्ज़ा कर लिया जाये। "इब्ने सऊद" और "अदल अल वहाब" में उस समय यह समझौता हुआ कि इब्ने सऊद राजनीतिक मसले को देखेगा और अदल अल वहाब धार्मिक द्वेष का ज़हर लोगों के मन में घोलेगा और दोनों एक दूसरे के काम में दखल नहीं देंगे। अदल अल वहाब कहता था की सन् 950-1000 के बाद से इस्लाम में जो भी विकास हुआ वह ग़लत है और इसे बदलने की ज़रुरत है। इसलिए जो लोग उस समय उनकी बात से सहमत नही थे, उनका अदल अल वहाब ने क़त्ल करवा दिया। इस तरीक़े से पूरे पठार पर इब्ने सऊद और अदल अल वहाब का क़ब्ज़ा हो गया। इसके बाद तुर्की और इजिप्ट ने आले सऊद और अदल अल वहाब को शिकस्त दी लेकिन आख़िरकार 1932 में ब्रिटेन की मदद से इन वहाबियों ने अपना एक देश स्थापित कर लिया जिसे आज हम सऊदी अरब के नाम से जानते हैं। 1932 के बाद से अब तक आतंकवाद को बढ़ावा देने के अलावा सऊदी अरब ने कुछ नहीं किया। 


हिंदुस्तान के अंदर भी पिछले कई सालों से वहाबी विचारधारा का ज़हर यहाँ के नौजवान मुसलमानों में भरा जा रहा है। अब इस समस्या ने हिंदुस्तान के अंदर भी एक विकराल रूप धारण कर लिया है। पिछले कुछ सालों में लगभग 1700 करोड़ रुपया सऊदी अरब ने हिंदुस्तान के अंदर भेजा है वहाबियत का ज़हर हिंदुस्तान के समाज में घोलने के लिए। 12वीं शताब्दी के बाद से हिंदुस्तान में इस्लाम धर्म का आगमन हुआ जिसके तहत शुरुआत में हज़ारों सूफ़ी संत ईरान और मध्य एशिया से हिंदुस्तान में आये और उसके बाद अब तक सूफ़ी परम्परा ही भारत में रही है। सूफ़ी संतों की मज़ारें भारत में हमेशा से हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे और एकता का प्रतीक रही हैं, हर साल यहाँ लाखों की संख्या में हिन्दू जाते हैं और मुसलमान भाइयों के साथ खड़े हो के दुआ मांगते हैं। हर साल लाखों की संख्या में हिन्दू चादर चढ़ाने निज़ामुद्दीन औलिया और अजमेर शरीफ़ दरगाह पर जाते हैं। लेकिन अब ये वहाबी विचारधारा का फैलाव इस सूफ़ी परम्परा के लिए एक बड़ा ख़तरा बन गया है। सऊदी अरब से आये 1700 करोड़ रुपए का इस्तेमाल करके वहाबी लोग नई मस्जिद खोल रहे हैं और उन के अंदर नौजवानों को कट्टरता का पाठ पढ़ा रहे हैं। भारत की इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक इस 1700 करोड़ में से 800 करोड़ रुपए का इस्तेमाल नई 4 वहाबी यूनिवर्सिटी खोलने के लिए किया जा रहा है, 400 करोड़ रुपए से 40 नई वहाबी मस्जिद बनाई जा रही हैं, 100 करोड़ रुपयों से पुरानी मस्जिदों के कर्ता धर्ताओं को ख़रीदने का काम ज़ारी है व् 300 करोड़ से वहाबी मदरसे खोले जा रहे हैं। भारत की आईटी राजधानी बैंगलोर में भी पिछले कुछ सालों में 40 से ज़्यादा मस्जिदें वहाबी और सलाफ़ी लोगों ने खोली हैं। दक्षिण भारत ख़ासकर केरल में वहाबी विचारधारा बहुत ही ख़तरनाक तरीक़े से फ़ैल रही है जिसका नतीजा ये हैं कि वहां पर वहाबी नेता अबु बक़र अल मुस्लिआर ने एक बेहद ही घिनौना बयान दिया की औरतें तो सिर्फ बच्चा पैदा करने की मशीन हैं, इस से ज़्यादा कुछ नहीं। जब फ़ातिमा ज़हरा अपने पिता हज़रत मोहम्मद के घर में आया करती थी तो हज़रत मोहम्मद साहब अक्सर उनके सम्मान में खड़े हो जाया करते थे और सभी को कहते थे की की नारी का सम्मान करना हमारा सबसे बड़ा धर्म है लेकिन इन वहाबी लोगों के अनुसार औरतें सिर्फ बच्चा पैदा करने की मशीन हैं, आप इन वहाबियों की गन्दी सोच का अंदाज़ा इस बयान से लगा सकते हैं। 


ये वहाबी लोग मज़ारों को नही मानते और कहते हैं की मज़ार बनाना इस्लाम के ख़िलाफ़ है, इसलिए इन वहाबियों ने हज़ारों मज़ारों को नष्ट कर दिया है जिसमे 21 अप्रैल 1925 को हज़रत मोहम्मद साहब की बेटी फ़ातिमा ज़हरा की मज़ार को गिराया जाना भी शामिल है। यहाँ पर एक बड़ा सवाल यह उठता है कि हज़रत मोहम्मद साहब की बेटी की मज़ार गिराने वाला क्या कोई मुसलमान हो सकता है? 


आज के दिन हिंदुस्तान में लगभग 18 लाख मुसलमान वहाबी विचारधारा को मानते हैं, और सऊदी अरब के पेट्रो डॉलर की मदद से ये संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। इतिहास इस बात का गवाह है कि जहाँ जहाँ वहाबियत फैली है वहां वहां इसने इंसानियत को ख़त्म कर दिया है, अगर आज हमने इस विचारधारा को हिंदुस्तान में बढ़ने से नही रोका तो भविष्य में ये हमारे बहुसांस्कर्तिक और बहुधार्मिक समाज के लिए एक बड़ा ख़तरा बन जायेगी।


जो एक सबसे बड़ा ख़तरा अभी भारत के उत्तरी राज्य जम्मू और कश्मीर में मंडरा रहा है वो है बढ़ती वहाबी विचारधारा। भारतीय सेना के रिटायर्ड अधिकारी "अफसर करीम" के अनुसार पाकिस्तान वहाबी प्रचारकों को कश्मीर में भेज रहा है जिस से कश्मीर घाटी के अंदर कट्टरवाद बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। आसिया अंद्राबी जैसी वहाबी कश्मीर घाटी के अंदर शरीया क़ानून लागु करने के सपने देख रही है और युवाओं को हिंसा के रास्ते पर धकेल रही है, वहीँ दूसरी तरफ ये अपने बेटे को मलेशिया में पढ़ा रही है। जैसे जैसे जम्मू और कश्मीर में वहाबियत फैली है, उसके परिणामस्वरूप वहां अलगाववाद भी बढ़ा है। जम्मू कश्मीर के सूफ़ी कल्चर को इन वहाबी और अलगाववादी लोगों द्वारा पूर्ण रूप से तबाह करने की साज़िश रची जा रही है, और वहाबियों की इस मुहिम को सारा पैसा सऊदी अरब से आ रहा है।  


सऊदी अरब के पैसों पर पले हुए ज़ाकिर नाइक जैसे वहाबी उपदेशक आज हिंदुस्तान के बहुधार्मिक समाज के लिए एक सबसे बड़ा ख़तरा बन के उभरे हैं जो एक धर्म को दूसरे से श्रेष्ट बताते हैं। हिंदुस्तान में अनेक धर्म के लोग सदियों से शांति से रहते आये हैं लेकिन ये धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन कर के लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए उकसाना एक बड़ा ख़तरा बन के हमारे भारतीय समाज के सामने खड़ा है। ये धर्म परिवर्तन के लिए उकसाने का काम एक तरफ़ हिन्दू राईट विंग के लोग कर रहे हैं तो दूसरी तरफ ज़ाकिर नाइक जैसे वहाबी लोग। हिंदुस्तान का समाज महात्मा गांधी के सर्व धर्म समभाव के कांसेप्ट पर सदियों से चलता आया है और आगे भी ऐसे ही चल सकता है। इस कांसेप्ट के अंतर्गत एक इंसान का अपने धर्मं का सम्मान करना उसकी धार्मिक ज़िम्मेदारी है और दूसरे सभी धर्मों का सम्मान करना उसकी नैतिक ज़िम्मेदारी है। महात्मा गांधी जी कहते थे की नैतिक ज़िम्मेदारी धार्मिक ज़िम्मेदारी से बड़ी होती है। सऊदी हुकूमत से वहाबियत की सेवा के लिए किंग फ़ैसल मेडल पाने वाले ज़ाकिर नाइक इस हिंदुस्तान की सर्व धर्म सम्भावि समाज के लिए बड़ा ख़तरा बन के सामने आये हैं। आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ पिछले 4 साल में ज़ाकिर नाइक को 15 करोड़ रुपए सऊदी अरब से प्राप्त हुए हैं।
अगर समय रहते इस वहाबी विचारधारा को हिंदुस्तान से ख़त्म नही किया गया तो भविष्य में ये हिंदुस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा और समाज के लिए एक बड़ा ख़तरा बन के उभरेगी। 

                      लेखक ‘अभिमन्यु कोहर’

       (लेखक के निजी विचार हैं, पार्स टूडे का सहमत होना ज़रूरी नहीं। )

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