दिल्ली में मुसलमानों के क़त्लेआम पर आई अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया ज़ाहिर करती है कि दाइश की तरह चरमपंथी हिंदुत्व के इरादे को दुनिया भांप चुकी है!
(last modified Sun, 15 Mar 2020 04:41:30 GMT )
Mar १५, २०२० १०:११ Asia/Kolkata
  • दिल्ली में मुसलमानों के क़त्लेआम पर आई अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया ज़ाहिर करती है कि दाइश की तरह चरमपंथी हिंदुत्व के इरादे को दुनिया भांप चुकी है!

दिल्ली में मुसलमानों के ख़िलाफ़ हुई हिंसा के बाद विश्व स्तर पर जिस प्रकार की प्रतिक्रिया सामने आई है उससे साफ़ ज़ाहिर है कि चरमपंथी हिंदुत्ववादी नज़रिए को दुनिया भर में उसी नज़र से देखा जा रहा है जिस नज़र से दाइशी वहाबी नज़रिए को देखा जाता है।

दाइशी आतंकी नज़रिए में भी इस बात पर बहुत ज़्यादा ध्यान दिया जाता था कि हिंसा के बेहद भयानक रूप को दिखाकर लोगों को डराया जाए ताकि वह मुंह से कुछ बोलने की स्थिति में न रह सकें। इराक़ और सीरिया में अपने नियंत्रण वाले इलाक़ों में दाइश के आतंकियों ने कहीं लोगों को ज़िंदा जलाया, कहीं उन्हें भेड़ बकरियों की तरह ज़िबह किया, कहीं ऊंचाई पर ले जाकर नीचे गिरा दिया, कहीं गले में बम बांध कर रिमोट कंट्रोल से उसका धमाका कर दिया। यह सब करने के साथ ही दाइश ने इसका भी इंतेज़ाम किया कि इन हृदय विदारक घटनाओं और हत्याओं की वीडियो बनाई जाए और उसे ख़ूब फैलाया जाए।

 

इसका मक़सद लोगों को डराना है क्योंकि दाइशी आतंकियों को अच्छी तरह पता है कि कुछ ही लोग हैं जो उसके चरमपंथी नज़रिए को स्वीकार करेंगे, अधिकतर लोग इसे ख़ारिज कर देंगे क्योंकि यह ग़ैर इंसानी रवैया है। यही हाल आरएसएस और चरमपंथी हिंदुत्ववादी नज़रिए का है।  

भारत में चरमपंथी हिंदुत्व का ठेकेदार आरएसएस भी इसी राह पर चल रहा है। द वायर हिंदी में छपे एक लेख के अनुसार दिल्ली में मुसलमानों के ख़िलाफ़ चरमपंथी हिंदुओं की हिंसा ‘मुसलमानों की समस्या’ का हमेशा के लिए इलाज करने की बड़ी कोशिश का हिस्सा है, जो संघ परिवार और उसके अधीनस्थ काम करने वाली हिंदुत्ववादी शक्तियों और उनके अनगिनत समर्थको का वर्षों से संजोया हुआ सपना है। लगभग एक सदी से आरएसएस नेताओं की सारी सोच इस बात पर केंद्रित रही है कि मुसलमानों को किस तरह से अधीन बनाया जाए कि वे दोयम दर्जे के अधिकारविहीन नागरिक बन जाएं क्योंकि अपनी तमाम चाहतों के बावजूद उनसे पूरी तरह से छुटकारा पाना मुश्किल है।

मुसलमानों के खिलाफ एक माहौल बनाना, उनसे उनकी नागरिकता छीनने के लिए सभी विधायी उपकरणों का इस्तेमाल करना, लाखों लोगों के अधिकार और उनकी जमीन छीनकर उन पर पहरे लगाना, और अब समुदाय के सबसे निर्बल तबकों के खिलाफ योजनाबद्ध हिंसा करना- जातीय संहार की बड़ी योजना की तरफ ही इशारा करते हैं। जातीय संहार के परंपरागत रूपों में शारीरिक हिंसा के कई चरण हो सकते हैं, जैसा कि रवांडा या बोस्निया में देखा गया, जिसकी परिणति हजारों लोगों की मृत्यु में होती है। वैश्विक समुदाय इन्हें होने से नहीं रोक पाया, लेकिन उसने इनसे सबक लिया है।

भारत में क्या हो रहा है और क्या हो सकता है इस पर दुनिया की नज़रें टिकी हुई हैं क्योंकि चरमपंथी हिंदुत्व के इरादे सारी दुनिया भांप चुकी है।

 

दिल्ली में मुसलमानों के ख़िलाफ़ हुई हिंसा और इसमें पुलिस और सरकारी संस्थाओं के रवैए को संदेह की नज़र से दुनिया भर में देखा जा रहा है।

दिल्ली में हुई हिंसा पर ईरान, तुर्की, इंडोनेशिया, मलेशिया, ब्रिटेन और यहां तक कि अमरीका के भीतर जिस प्रकार की प्रतिक्रियाएं हुईं उनसे साफ़ ज़ाहिर है कि आरएसएस को दुनिया अच्छी तरह जानती है बिल्कुल उसी तरह जैसे वहाबी और दाइशी विचारधारा के ख़तरे से वाक़िफ़ है।

दिल्ली में होने वाली हिंसा पर तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोग़ान का कहना था कि भारत वह देश बन चुका है जहां हिंदु मुसलमानों का क़त्लेआम कर रहे हैं और नरसंहार बड़े पैमाने पर फैला हुआ है।

भारत के साथ लंबे अर्से से गहरे दोस्ताना रिश्ते रखने वाले ईरान की प्रतिक्रिया बेहद महत्वपूर्ण थी। ईरान के सुप्रीम लीडर ने कहा कि भारत में हालिया दिनों दिल्ली में हुए मुसलमानों के जनसंहार ने दुनिया को हिला कर रख दिया है। उन्होंने भारत सरकार पर ज़ोर दिया कि वह मुसलमानों का जनरसंहार बंद करवाए। सुप्रीम लीडर ने कहा कि भारत में मुसलमानों के क़त्ले आम पर दुनिया भर के मुसलमानों के दिल आहत है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को चाहिए कि चरमपंथी हिंदुओं और उनके समर्थक संगठनों पर अंकुश लगाए और मुसलमानों का क़त्ले आम बंद करवाकर इस्लामी जगत में ख़ुद को अलग थलग पड़ने से बचाए।

भारत के बारे में ईरान का यह स्टैंड इसलिए महत्वपूर्ण है कि इस्लामी जगत में ईरान प्रभावशाली देश है। ख़ास तौर पर पश्चिमी एशिया में ईरान एक मज़बूत ब्लाक का नेतृत्व कर रहा है जो अमरीका के सामने डटा हुआ है।

 

इंडोनेशिया और मलेशिया में भी दिल्ली दंगों का मामला मज़बूती से उठा और भारत सरकार की नीयत को संदेह की नज़र से देखा गया।

भारत को यूरोप में भी शर्मिंदगी उठानी पड़ी। ब्रिटेन के सांसदों ने विदेश मंत्री और राष्ट्रमंडल के कार्यालय एफ़सीओ पर दबाव डाला है कि वह मुसलमानों के क़त्लेआम के मामले में भारत सरकार से की गई बातचीत का ब्योरा दें।ब्रिटेन के सिख सांसदों तनमनजीत सिंह देशी और प्रीत गिल कौर ने दिल्ली दंगों पर भारत सरकार की जमकर निंदा की। इस बीच संसद में एफ़सीओ के प्रतिनिधियों से तत्काल सवाल पूछते हुए लेबर पार्टी के सदस्य तनमनजीत सिंह देशी ने कहा कि दिल्ली में हालिया दिनों में होने वाले दंगों ने दर्दनाक यादें ताज़ा कर दी हैं। उन्होंने कहा कि जब में भारत में छात्र था तो 1984 में एक धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप में मैने सिखों का नरसंहार होते देखा है। ब्रिटिश सांसद ने स्पीकर को संबोधित करते हुए कहा कि हमें इतिहास से सीखने की ज़रूरत है, समाज को विभाजित करने के इरादे रखने वालों और धर्म के नाम पर क़त्ल और हिंसा करने वालों और धार्मिक स्थलों को तबाह करने वालों के हाथों हम बेवक़ूफ़ नहीं बन सकते।

अमरीकी अख़बार न्यूयार्क टाइम्ज़ ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें दिल्ली में हुए मुसलमानों के क़त्लेआम का उल्लेख किया गया है। अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि हालिया सुबूत से यह मालूम होता है कि मुसलमानों के क़त्लेआम के दौरान उनकी हत्या करने और उनके घरों को निशाना बनाने में दिल्ली पुलिस ने सामूहिक रूप से मुसलमानो के ख़िलाफ़ काम किया और सक्रिय रूप से हिंदू भीड़ की मदद की।

इन प्रतिक्रियाओं से यह समझना कठिन नहीं है कि मुसलमानों के बारे में आरएसएस के ख़तरनाक इरादों को सारी दुनिया जानती है।

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