चीन चाहता है कि भारत के लोग उसे सही प्रकार से समझें और लड़ने की बात दिमाग़ से निकाल दें संवाद और संपर्क की बात करें!
चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े अख़बार ग्लोबल टाइम्ज़ का मानना है कि भारत में चीन को लेकर सही समझ की कमी है और यह बात भारत के कुछ हल्क़े भी जानते हैं और इन हल्क़ों की ओर से ज़ोर दिया जा रहा है कि चीन को ठीक प्रकार से समझा जाए मगर समझौते के लिए बल्कि चीन का मुक़ाबला करने के लिए।
चीनी अख़बार ने अपने संपदकीय में ज़ोर दिया है कि भारत को अपने दिमाग़ से लड़ाई और मुक़ाबले की बात निकाल कर समझौते के बारे में सोचना चाहिए।
अख़बार ने अपने संपादकीय लेख में लिखा कि क्या वजह हुई कि चीन और भारत के बीच तनाव ज्वालामुखी बन गया? आरोप मढ़ना और राष्ट्रवादी जुनून इस तरह पूरे भारत में फैला कि दोनों देशों के पास जटिल आपसी संबंधों को संभालने की गुंजाइश ख़त्म हो गई। हिंदुस्तान टाइम्ज़ ने एक संपादकीय लिखा है जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि अगर चीन से निपटना है तो उसे बेहतर तरीक़े से समझना ज़रूरी है। जबकि अन्य भारतीय मीडिया संस्थानों ने चीन विरोधी भावना को भड़काने में मदद की।
हिंदुस्तान टाइम्ज़ के संपादकीय ने लिखा कि भारत कुछ थोड़े से रिटायर्ड कूटनयिकों और सैनिक अधिकारियों पर निर्भर है जो चीन के मामलों को देखते रहे हैं। कुछ इंटेलीजेन्स अधिकारियों और डिप्लोमैट्स को चुन लेना जो चीनी बोलना जानते हैं और उनके साथ कुछ बुद्धिजीवियों को मिला लेना काफ़ी नहीं है। यदि वर्तमान संकट को हल करना है तो नई दिल्ली के लिए ज़रूरी है कि अपने संपर्क का दायरा बढ़ाए और इसमें उन लोगों को शामिल करे जो चीन को अच्छी तरह समझते हैं।
भारतीय अख़बार के इस लेख को पढ़कर समझा जा सकता है कि भारत के समाज में चीन के बारे में जो समझ है वह बहुत सीमित है। चीन इस समय भारत को संदेश देना चाह रहा है कि शक्ति की वर्तमान श्रंखला में चीन के वर्चस्व को समझे और स्वीकार करे जबकि नई दिल्ली सरकार यह नहीं कर सकती। इसलिए ज़रूरी हो गया है कि कूटनैतिक रिश्तों को रिसेट किया जाए। अख़बार में जो मांग की जा रही है कि चीन को बेहतर समझने की ज़रूरत है वह चीन से लड़ने के उपाय खोजने की कोशिश है।
वैसे पर्यवेक्षक मानते हैं कि भारत में चीनी मामलों के विशेषज्ञ बहुत कम हैं। और जो लोग हैं भी वह पश्चिमी मीडिया में छपने वाले लेखों और रिपोर्टों की मदद से चीन को समझना चाहते हैं जबकि इन रिपोर्टों में बड़ी हेराफेरी होती है जबकि भारतीय बुद्धिजीवियों को लगता है कि वह चीन को हाथ की रेखाओं की तरह पहचानते हैं। जबकि ट्वीटर पर हैशटैग बायकाट चाइना को प्रमोट करने वाले पूर्व भारतीय अधिकारियों को देखकर लगता है कि भारत में नीति निर्धारकों को चीन की सही समझ नहीं है।
यही हाल मीडिया विशलेषकों का है। टाइम्ज़ आफ़ इंडिया में लिखने वाली इंदरानी बाग्ची का मानना है कि भारत को चाहिए कि मालाबार के इलाक़े में अमरीका, आस्ट्रेलिया और जापान के साथ मिलकर युद्ध अभ्यास करे और ताइवान के साथ फ़्री ट्रेड को बढ़ावा दे।
भारतीय स्कालर सना हाशेमी इससे भी आगे चली गईं उन्होंने अपने लेख में लिखा कि यह बेहतरीन समय है कि भारत ताइवान के साथ औपचारिक रूप से कूटनैतिक रिश्ते बनाए।
यह साफ़ नहीं है कि इन बुद्धिजीवियों को सही से अंदाज़ा भी है कि वह क्या कह रहे हैं या नहीं? भारत को समझना चाहिए कि चीन हरगिज़ नहीं चाहता कि नई दिल्ली से उसके रिश्ते ख़राब हों लेकिन यह भी साफ़ है कि चीन अपनी एक इंच ज़मीन भी छोड़ने वाला नहीं है।
भारत और चीन के बीच 2 हज़ार किलोमीटर संयुक्त सीमा है लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप से दोनों देश एक दूसरे से बहुत दूर हैं।
हिंदुस्तान टाइम्ज़ की यह बात तो सही है कि भारत के लोगों के लिए ज़रूरी है कि वह चीन को बेहतर तरीक़े से समझें मगर इसका मक़सद चीन से जंग करना नहीं बल्कि चीन के साथ पर्याप्त संवाद होना चाहिए ताकि मामले को सुलझाया जा सके।
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