सीमा पर बदले हालात को किस नज़र से देखता है चीन, भारत में बढ़ते कथित राष्ट्रवादी जुनून पर चीनियों को क्यों है एतेराज़?
(last modified Tue, 07 Jul 2020 15:02:56 GMT )
Jul ०७, २०२० २०:३२ Asia/Kolkata
  • सीमा पर बदले हालात को किस नज़र से देखता है चीन, भारत में बढ़ते कथित राष्ट्रवादी जुनून पर चीनियों को क्यों है एतेराज़?

भारत और चीन के बीच लद्दाख में एलएसी पर झड़प और तनाव के बाद तनाव कम करने पर सहमति बनी है जिसके तहत चीनी सैनिक पीछे हटे हैं।

चीन की सत्ताधारी पार्टी से जुड़े अख़बार ग्लोबल टाइम्ज़ ने एडीटर नोट में इस विषय को उठाते हुए लिखा है कि चीन-भारत सीमावर्ती मामलों में विशेष दूत, स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री वांग यी और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बीच रविवार की रात फ़ोन पर बात हुई जिसमें सीमा पर तनाव कम करने पर सहमति बनी। क्या इस सहमति से सीमावर्ती मूद्दों को हल करने में मदद मिलेगी? भारत में बढ़ता राष्ट्रवाद का जुनून दोनों देशों के संबंधों को किस तरह प्रभावित कर सकता है?

चीन की सामरिक ताक़त, जिसमें हमले की ताक़त और लाजिस्टिक सपोर्ट की ताक़त शामिल है, भारत से बहुत ज़्यादा है। इसलिए अगर लड़ाई होती है तो चीनी सेना भारतीय सेना को पराजित कर सकती है मगर लड़ाई दोनों देशों के लिए नुक़सान का सौदा है।

दोनों देशों की सहमति से लगता है कि दोनों देशों के नेतृत्व ने एक क़दम पीछे हटकर पूरी स्थिति को संभालने का निर्णय लिया है। चीन अपने पड़ोसी देशों से अच्छा संबंध चाहता है और उम्मीद है कि भारत भी पारस्परिक मामलों में संयम का परिचय देगा।

भारत में नेशनलिज़्म का जुनून हमेशा से रहा है और इसी के तहत भारत ने अपनी सामरिक ताक़त लगातार बढ़ाई जबकि उसकी जनता ग़रीब है। इन्हीं भावनाओं की वजह से भारतीय सेना के भीतर अंधा आत्म विश्वास फैल रहा है क्योंकि कुछ देश भारत को हथियार बेच रहे हैं जबकि तकनीक कोई भी देने को तैयार नहीं है।

भारत में कुछ ताक़तें पहले से ही चीनी उत्पादों पर बैन लगवाने की कोशिश में थीं लेकिन उन्हें कोई बहाना नहीं मिल पा रहा था। सीमा पर तनाव हुआ तो उन्हें बहाना मिल गया। यह भारतीय नेशनलिज़्म के जुनून की मिसालें हैं। यह ताक़तें भारत की सेना और इकानोमी को बहुत बढ़ा चढ़ाकर पेश करती हैं मगर सच्चाई यह है कि भारत के पास न तो पर्याप्त सामरिक और औद्योगिक क्षमता है और न ही चीन का मुक़ाबला करने की ताक़त है।

अब देखना यह है कि सहमति के बाद जुनून ख़त्म होगा या नहीं। भारतीय सेना को यह महसूस हो रहा है कि गलवान में उसे नुक़सान उठाना पड़ा है। यदि यही भावना रही तो निश्चित रूप से चीन भारत सैनिक संबंधों में दोबारा तनाव उत्पन्न हो सकता है।

नई दिल्ली सरकार की ज़िम्मेदारी है कि अपने देश के जनमत को शांत करे और नई दिल्ली यह ज़िम्मेदारी संभाले के भविष्य में तनाव नहीं बढ़ने देगी।

चीन विरोधी भावना के जवाब में चीन को चाहिए कि अपनी जगह शांत रहे और पूर्ण संकल्प के साथ डटा रहे और भारत की ओर से किसी भी हमले का सामना करने के लिए तैयार रहे।

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