दिल्ली दंगे के वे पहलू जिन पर पुलिस जांच में नहीं दिया गया ध्यान, किसकी लिखी स्क्रिप्ट को दिल्ली पुलिस अपनी जांच बता रही है?
(last modified Sat, 18 Jul 2020 08:44:06 GMT )
Jul १८, २०२० १४:१४ Asia/Kolkata
  • दिल्ली दंगे के वे पहलू जिन पर पुलिस जांच में नहीं दिया गया ध्यान, किसकी लिखी स्क्रिप्ट को दिल्ली पुलिस अपनी जांच बता रही है?

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की एक समिति ने कहा है कि दिल्ली दंगों के दौरान पुलिस ने कई मौक़ों पर कोई कार्रवाई नहीं की तो कहीं दंगाइयों की मदद की और कहीं कहीं पर तो सीधे तौर पर लोगों को मारा-पीटा और उनके साथ दुर्व्यवहार किया।

इसी साल फरवरी में भारत की राजधानी दिल्ली के उत्तर-पश्चिमी इलाक़ों में हुई हिंसा में दिल्ली पुलिस ने कई मौकों पर कोई कार्रवाई नहीं की तो कहीं सक्रिय रूप से दंगाइयों की मदद की और कहीं-कहीं पर तो सीधे तौर पर लोगों को मारा-पीटा और उनके साथ दुर्व्यवहार किया। यह कहना है दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग का जिसकी इस हिंसा की जांच करने के लिए बैठाई गई फैक्ट-फाइंडिंग समिति ने अपनी रिपोर्ट दिल्ली सरकार को सौंप दी है। समिति का गठन नौ मार्च 2020 को किया गया था और सुप्रीम कोर्ट के ऐडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एम आर शम्शाद को इसका अध्यक्ष बनाया गया था। कोरोना वायरस के कारण पूरे भारत में लगे लॉकडाउन की वजह से समिति के काम पर काफ़ी असर पड़ा और समिति जून में जांच फिर से शुरू कर पाई। हिंसा-प्रभावित इलाक़ों में सर्वे और पीड़ितों से बातचीत के आधार पर बनाई 130 पन्नों की अपनी रिपोर्ट को समिति ने आयोग को 27 जून को प्रस्तुत किया और आयोग ने इसे 16 जुलाई को दिल्ली सरकार को सौंप दिया। हिंसा में क़रीब 55 लोग मारे गए थे। रिपोर्ट में इन सभी के नाम, उम्र और वह किन हालात में मारे गए, इन सभी बातों का उल्लेख किया गया है। समिति जिन निष्कर्षों पर पहुंची है उनमें से प्रमुख हैं दिसंबर 2019 से ही हिंसा के लिए लोगों को उकसाया जाना, हिंसा का योजनाबद्ध, संगठित और टार्गेटेड होना, धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जाना और पुलिस की भूमिका पर संदेह होना।

समिति का कहना है कि दिसंबर 2019 से फरवरी 2020 में हुए दिल्ली विधान सभा के चुनावों तक बीजेपी के नेताओं द्वारा कई भाषणों में लोगों को नए विवादित नागरिकता क़ानून (सीएए) का विरोध करने वालों के ख़िलाफ़ हिंसा के लिए उकसाया गया। इस सिलसिले में समिति ने बीजेपी नेता कपिल मिश्रा का नाम मुख्य रूप से लिया है और कहा है कि मौजपुर इलाक़े में 23 फरवरी को उनके भाषण के तुरंत बाद हिंसा शुरू हो गई थी। समिति के अनुसार कपिल मिश्रा ने दिल्ली पुलिस के डिप्टी कमिश्नर वेद प्रकाश सूर्य की उपस्थिति में जाफ़राबाद में विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों को बल-पूर्वक हटाने की मांग की थी और धमकियां भी दी थीं। बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के इस भाषण के वीडियो को खुद उन्होंने ट्वीट भी किया था। समिति इस निष्कर्ष पर भी पहुंची है कि हिंसा में इस हद तक मुस्लिमों को निशाना बनाया गया था कि जहां मकान हिंदुओं के थे और किराए पर मुस्लिमों को दिए गए थे, वहां दंगाइयों ने मकानों को छोड़ दिया और सामान को बाहर निकाल कर नष्ट कर दिया। रिपोर्ट में 11 ऐसी मस्जिदों, पांच मदरसों, एक मज़ार और एक क़ब्रिस्तान का उल्लेख है कि जिन पर कट्टरपंथी हिन्दुओं द्वारा हमला करके उन्हें नुक़सान पहुंचाया गया।

रिपोर्ट के अनुसार पुलिस की भूमिका को लेकर कई हिंसा पीड़ितों ने बताया कि कई जगह अपने सामने हिंसा को होता देखने के बावजूद पुलिस ने कुछ नहीं किया। बल्कि दंगाईयों के कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी दिखाई दी। कई मामलों में आपात फोन नंबर पर फोन आने के बावजूद पुलिस मौक़े पर नहीं गई। मौक़े पर हिंसा करने वालों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई ना करने के अलावा हिंसा के बाद एफआईआर दर्ज करने में पुलिस ने या तो देर की या उस पर कोई कार्रवाई नहीं की। कई मामलों में पुलिस ने हिंसा को बढ़ावा दिया। समिति के सामने आए गवाहों के अनुसार कुछ मामलों में हिंसा ख़त्म हो जाने के बाद पुलिस को हिंसा करने वालों को सुरक्षित वहां से निकालते हुए भी देखा गया। कई मामलों में पुलिस ने पीड़ितों को ही गिरफ़्तार कर लिया। रिपोर्ट में लिखा है कि कई मामलों में जांच ठीक से किए बिना ही पुलिस ने चार्जशीट दायर कर दी। कई गवाहों ने समिति को बताया कि हिंसक भीड़ और पुलिस ने मुस्लिम महिलाओं पर उनके धर्म के आधार पर हमला किया, उनके हेजाब और बुर्क़े खींच कर उतार दिए और उन्हें मारा। कई जगहों पर भीड़ ने मुस्लिम महिलाओं पर तेज़ाब फेंका और उन्हें यौन हिंसा की धमकी दी। पुलिस ने "आज़ादी" के नारों का ताना देते हुए महिलाओं का यौन शोषण किया। एक मामले में तो एक पुलिसकर्मी द्वारा महिला प्रदर्शनकारियों के सामने अपने गुप्तांग दिखाने की भी शिकायत है।

दिल्ली हिंसा में मारे जाने वालों के परिजनों को दिए गए मुआवज़े को लेकर समिति ने कहा है कि आम लोगों और सरकारी अधिकारियों की मृत्यु में भेदभाव किया जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आम लोगों के मुक़ाबले सरकारी अधिकारियों के मारे जाने पर मुआवज़े में काफडी बड़ी रक़म दी गई है। लूट, आगज़नी, संपत्ति को नुक़सान आदि मामलों में तो अभी तक मुआवज़ा या तो दिया ही नहीं गया है या बहुत छोटी रक़म दी गई है। कई मामलों में हिंसा के चार महीने बाद भी प्रमाणन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। इन निष्कर्षों के आधार पर समिति ने अनुशंसा की है जांच में हुई त्रुटियों के सुधार, मुआवज़ा, पीड़ितों की क़ानूनी मदद, निष्पक्ष सरकारी वकीलों की नियुक्ति जैसे उद्देश्यों के लिए सरकार को एक पांच-सदस्यीय स्वतंत्र समिति का गठन करना चाहिए। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि उसके पास रिपोर्ट अभी पहुंची नहीं है और वह रिपोर्ट देख कर उस पर अपनी प्रतिक्रिया देगी।

कुल मिलाकर भारत की राजधानी दिल्ली में हुए दंगों ने जहा पूरी दुनिया में भारत की छवि को भारी नुक़सान पहुंचाया है वहीं दिल्ली पुलिस की भूमिका और उसके बाद उसके द्वारा की गई जांचों और समुदाय विशेष के लोगों को टॉर्गेट बनाया जाना एवं बीजेपी नेताओं को उसके द्वारा क्लीन चिट दिया जाना, यह सब दंगे के बाद की ऐसी घटनाएं हैं जिसने भारत जैसे महान देश को विश्व सामाज के सामने शर्मसार कर दिया है। (RZ)

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