क्या भारत, लद्दाख़ पर चीन से समझौता कर चुका है, चीनी घुसपैठ की अहम जानकारियां रक्षामंत्रालय की वेबसाइट से ग़ायब+ फ़ोटोज़
भारतीय रक्षा मंत्रालय का वह दस्तावेज, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारतीय सीमा में किसी भी तरह के अतिक्रमण’ न होने के दावे के उलट जानकारी दी गई थी, मंत्रालय की वेबसाइट से ग़ायब हो गया है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि इस हफ्ते की शुरुआत में मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड हुए ‘रक्षा विभाग की जून 2020 की बड़ी गतिविधियों’ के दस्तावेज़ में लिखा था कि ‘चीनी टुकड़ियों ने पूर्वी लद्दाख में अतिक्रमण किया, लेकिन अब यह बात वेबसाइट से ग़ायब है।
चार पन्नों के इस दस्तावेज के दूसरे पन्ने पर ‘एलएसी पर चीनी अतिक्रमण नाम से एक सब-सेक्शन था जिसके पहले पैराग्राफ में लिखा था कि 5 मई 2020 से एलएसी के पास खासतौर पर गलवान घाटी पर चीन का अतिक्रमण बढ़ा है। 17-18 मई 2020 को चीनी पक्ष ने कुगरांग नाला, गोगरा और पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी किनारे पर अतिक्रमण किया।
यह वाक्य कि लद्दाख में कई जगहों पर "चीनी पक्ष ने अतिक्रमण" किया, उस भाषा के विपरीत है, जिसका उपयोग अब तक विभिन्न अवसरों पर भारत सरकार द्वारा किया गया है।
गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिक मारे गये थे। इस घटना के बाद भारतीय प्रधानमंत्री ने 19 जून को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में कहा था कि भारतीय सीमा में किसी ने प्रवेश नहीं किया न ही कोई भारतीय सैनिक चीन की सीमा में गया।
भारतीय प्रधानमंत्री के इस बयान पर विपक्षी दलों की ओर से सवाल उठाए गये थे।
17 जून को भारतीय विदेश मंत्रालय के एक नोट में कहा था कि चीन ने गलवान घाटी में हमारी ओर निर्माण कार्य करने की कोशिश की थी।
इस मतलब हुआ कि अगर चीन ने भारतीय सीमा में रहकर ही किसी निर्माण कार्य को रोकने की कोशिश की होगी।
16 जून को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा था कि चीन सर्वसम्मति से गलवान घाटी में एलएसी का सम्मान करते हुए वहां से निकल गया है।
19 जून को प्रधानमंत्री के बयान के बाद भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई जिसके बाद अगले दिन इस पर विस्तृत स्पष्टीकरण जारी किया गया जिसमें कहा गया कि जैसे कि एलएसी के उल्लंघन का सवाल है उसके संबंध में यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि 15 जून को गलवान में हिंसा इसलिए हुई क्योंकि चीनी पक्ष एलएसी के नज़दीक संरचनाएं खड़ी करना चाह रहा था और इस तरह के कार्य न करने की बात नहीं मान रहा था।
चीन अब तक पैंगोंग झील के किनारे की अपनी स्थिति से हटने को तैयार नहीं है जिस पर भारतीय पक्ष ने चिंता भी जताई है। (AK)
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