कथित लव जिहाद पर इतनी आपात स्थिति में क्यों लाया गया अध्यादेश? अदालत के आदेश की अन्देखी कर योगी सरकार क्या और किसे देना चाहती हैं संदेश?
कथित लव जिहाद के मामले में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार आख़िरकार सरकार अध्यादेश ले लाई है और दूसरी राज्य सरकारें जहां भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है वहां भी क़ानून बनाने को लेकर तैयारियां शुरू कर दी गईं हैं। वहीं दूसरी ओर इलाहाबाद उच्च न्यायालय जीवन साथी चुनने को मौलिक अधिकार बताते हुए इसमें दख़ल को ग़ैरक़ानूनी बता रहा है।
भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यानाथ सरकार की कैबिनेट ने उस अध्यादेश के मसौदे पर अपनी मुहर लगा दी है जिसके तहत शादी के लिए 'छल, कपट, प्रलोभन या बलपूर्वक धर्मांतरण' कराए जाने पर अधिकतम 10 साल जेल और जुर्माने की सज़ा का प्रावधान है। अब यह अध्यादेश राज्यपाल के पास उनकी स्वीकृति के लिए भेजा गया है और उसके बाद इसके बारे में नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा। योगी सरकार के इस अध्यादेश को लेकर कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या यह इतना बड़ा मसला है कि इस पर क़ानून बनाया जाए और वह भी इतनी आपात स्थिति में कि अध्यादेश जारी किया जाए। हालांकि यूपी के अलावा मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक जैसे राज्यों ने भी कथित 'लव जिहाद' को लेकर क़ानून बनाने की बात कही है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण का कहना है यूपी सरकार द्वारा लाया जा रहा यह क़ानून भारतीय संविधान की मूल आत्मा के ख़िलाफ़ है। वह कहते हैं, "हमारा संविधान किसी भी धर्म के दो वयस्क युवक-युवती को आपसी रज़ामंदी से विवाह करने की अनुमति देता है। धर्म या जाति के आधार पर इसमें बंदिश नहीं लगाई जा सकती। यह क़ानून संविधान में किसी व्यक्ति को मिले मूल अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। जहां तक मुझे लगता है कि यदि यह सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया तो वहां यह ख़ारिज कर दिया जाएगा।” प्रशांत भूषण कहते हैं कि आईपीसी की धारा 493 में पहले से ही यह प्रावधान हैं कि अगर विवाह करने के लिए किसी तरह का प्रलोभन दिया जाता है, दबाव डाला जाता है या कोई अन्य अवैध रास्ता अपनाया जाता है तो यह दंडनीय अपराध है। इसके लिए दस साल तक की क़ैद की सज़ा हो सकती है। जानकारों का कहना है कि अवैध तरीके से या जबरन कराए गए धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ भी आईपीसी में स्पष्ट प्रावधान हैं। ऐसे में फिर से एक क़ानून लाए जाने का कोई औचित्य नहीं है। बल्कि इस तरह के नए क़ानून बनाकर केवल लोगों को भ्रमित किया जा रहा है।
भारत में हालिया कुछ वर्षों के दौरान कट्टरपंथी हिन्दू संगठन और चरमपंथी विचारधारा वाले नेता अंतर-धार्मिक विवाहों को लेकर पूरे देश हंगामा खड़ा किए हुए हैं। इसका विरोध करने वाले कुछ संगठन ख़ासकर मुस्लिम पुरुष और हिन्दू महिला की शादियों को 'लव जिहाद' बताकर इसके पीछे किसी बड़े षडयंत्र को देख रहे हैं। यूपी के कानपुर शहर में इस तरह की कई शादियों की पिछले दिनों शिकायत की गई और उन सबके पीछे मुस्लिम युवकों और कुछ मुस्लिम संगठनों की साज़िश बताया गया। कानपुर पुलिस ने इन शादियों की जांच के लिए आठ सदस्यों की एक एसआईटी यानी विशेष जांच टीम गठित की। इस टीम ने ऐसी 14 शादियों की जांच की लेकिन दो महीने की जांच के बावजूद उसे किसी तरह की साज़िश के सबूत नहीं मिले। कानपुर ज़ोन के पुलिस महानिरीक्षक मोहित अग्रवाल बताते हैं, "11 मामलों में एसआईटी ने पाया कि अभियुक्तों ने धोखाधड़ी करके हिन्दू लड़कियों से प्रेम संबंध बनाए। ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई है। बाक़ी तीन मामलों में लड़कियों ने अपनी मर्ज़ी से शादी करने की बात कही है इसलिए उसमें पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी है। एसआईटी की जांच में किसी तरह की साज़िश या बाहरी फंडिंग जैसे सबूत नहीं मिले हैं।”
इस बीच उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने जिस दिन कैबिनेट की बैठक में इस अध्यादेश को मंज़ूरी दी उससे ठीक एक दिन पहले ऐसे ही एक कथित ‘लव जिहाद' मामले की इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहा कि अपनी पसंद के साथी के साथ जीवन जीने का अधिकार किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और इसमें परिवार, समाज और सरकार का हस्तक्षेप ठीक नहीं है। यूपी के कुशीनगर के रहने वाले सलामत अंसारी और प्रियंका खरवार ने पिछले साल अगस्त में शादी की थी। विवाह से ठीक पहले प्रियंका ने इस्लाम स्वीकार कर लिया था और अपना नाम बदल कर 'आलिया' रख लिया था। प्रियंका के परिजनों ने इसके पीछे साज़िश का आरोप लगाते हुए सलामत के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करा दी थी जिसमें उस पर अपहरण और जबरन विवाह करने जैसे आरोप लगाए थे। सलामत के ख़िलाफ़ पॉक्सो ऐक्ट की धाराएं भी लगाई गई थीं। हालांकि पूरे मामले को सुनने के बाद अदालत ने सारे आरोप निरस्त करते हुए कहा कि धर्म की परवाह ना करते हुए अपनी पसंद के साथी के साथ जीवन बिताने का अधिकार जीवन के अधिकार और निजी स्वतंत्रता के अधिकार में ही निहित है। यह फ़ैसला सुनाते वक्त अदालत ने अपने उन पिछले फ़ैसलों को भी ग़लत बताया जिनमें कहा गया था कि विवाह के लिए धर्मांतरण प्रतिबंधित है और ऐसे विवाह अवैध हैं।
याद रहे कि, दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट के कहने पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी(एनआईए) ने केरल में कथित लव जिहाद के मामलों की जांच की थी। इस दौरान एनआईए ने 11 अंतरधार्मिक शादियों की पड़ताल की थी लेकिन किसी भी मामले में उसे जबरन धर्म परिवर्तन और कथित ‘लव जिहाद’ के सबूत नहीं मिले थे। यह जांच बहुचर्चित हादिया मामले की वजह से हुई थी जिसमें केरल के कोट्टायम ज़िले की अखिला अशोकन ने धर्म परिवर्तन के बाद हादिया ने निकाह किया था। इस मामले को हादिया के पिता अशोकन ने ‘लव जिहाद’ का नाम देते हुए केरल उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने यह शादी रद्द कर दी थी। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस फ़ैसले को पलट दिया था। सुप्रीम कोर्ट के कहने पर एनआईए ने केरल में कथित लव जिहाद के मामलों की जांच करते हुए 11 अंतरधार्मिक शादियों की पड़ताल की थी। यह 11 मामले उन 89 अंतर धार्मिक शादियों में से चुने गए थे जिनमें लड़कियों के अभिभावकों ने शिकायत की थी और जिन्हें केरल पुलिस ने एनआईए को उपलब्ध कराए थे।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा उपचुनाव के दौरान एक जनसभा में कथित लव जिहाद के ख़िलाफ़ क़ानून लाने की घोषणा की थी। वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं कि ऐसी घोषणाओं के पीछे सिवाय राजनीतिक संदेश देने के और कुछ नहीं है। शरद प्रधान के मुताबिक़, "आखिर कोई इमरजेंसी वाली स्थिति आ गई थी क्या कि सरकार को इसके ख़िलाफ़ अध्यादेश लाना पड़ा। अध्यादेश तो बहुत ही आपात स्थिति में लाया जाता है जबकि सदन ना चल रहा हो और लाए भी हैं तो उसमें क्या नया है। सारे क़ानून पहले से मौजूद हैं और जो नहीं है उसे सुप्रीम कोर्ट ही खारिज कर देगा बाद में। कुल मिलाकर योगी सरकार एक ख़ास वर्ग को एक ख़ास वर्ग के ख़िलाफ़ संदेश देना चाहती है जैसा कि सीएए प्रदर्शन और दूसरी घटनाओं के मामले में हुआ है।” (RZ)