हैदराबाद नगर निगम चुनाव को बीजेपी ने क्यों बनाया इतना महत्वपूर्ण? इस चुनाव से मोदी को किस तरह की है उम्मीद? योगी को हैदराबाद का नाम नहीं लगता अच्छा!
भारत की केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने इस बार हैदराबाद के नगर निगम चुनाव में कुछ इस तरह पूरी ताक़त झोंकी है कि मानो यह नगर निगम का चुनाव नहीं, बल्कि लोकसभा या विधान सभा के चुनाव हों। वैसे 1 दिसंबर मंगलवार को हैदराबाद नगर निगम चुनाव में वोटिंग आरंभ हो चुकी है। मतदान बहुत ही सुस्त रफ़्तार से शुरू हुआ।
भारत के तेलंगाना राज्य के ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव के लिए प्रचार का काम ख़त्म होकर मतदान भी शुरू हो गया है। लेकिन मतदान से पहले हुए चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने न सिर्फ चर्चा बटोरी बल्कि इस राज्य में ज़्यादा प्रभाव न होने के बावजूद पार्टी ने अपने लगभग सभी दिग्गजों को प्रचार अभियान में उतारकर अपने इरादे ज़ाहिर कर दिए। ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में 150 पार्षद चुने जाने हैं जिन पर शहर में प्रशासन और आधारभूत ढांचे के निर्माण की ज़िम्मेदारी होती है। यहां स्ट्रीट लाइट, सरकारी स्कूल, सड़कों का रखरखाव, साफ-सफाई, स्वास्थ्य जैसे मामलों के अलावा इमारतों और सड़क निर्माण जैसे कार्यों को भी नगर निगम संभालता है और इसका बजट क़रीब साढ़े पांच हज़ार करोड़ रुपये का है। ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम की आबादी 82 लाख है और यह तेलंगाना की 24 विधानसभा और पांच लोकसभा सीटों में फैला हुआ है। यह देश के सबसे बड़े नगर निगमों में से एक है। इस नगर निगम में हैदराबाद, रंगारेड्डी, मलकानगिरि और संगारेड्डी समेत चार ज़िले आते हैं। यही नहीं, तेलंगाना की जीडीपी का बड़ा हिस्सा इसी नगर निगम से आता है। तेलंगाना में यह माना जाता है कि इस नगर निगम पर क़ब्ज़ा करने का मतलब तेलंगाना की सत्ता के नज़दीक पहुंचना है। साल 2016 के निकाय चुनावों में तेलंगाना में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस ने 99, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने 44, बीजेपी ने चार और कांग्रेस ने दो सीटें जीती थीं। इस बार नगर निगम की 150 वॉर्डों के लिए 1,122 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। एक दिसंबर को मतदान किया जाएगा और चार दिसंबर को नतीजों की घोषणा होगी।
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम में केवल चार सीटें, तेलंगाना विधानसभा में सिर्फ दो सीटें और लोकसभा में चार सीटें होने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने इस चुनाव में कुछ इस तरह पूरी ताक़त झोंक रखी है मानो यह नगर निगम का चुनाव नहीं, बल्कि लोकसभा या विधान सभा के चुनाव हों। बीजेपी के अलावा टीआरएस, एआईएमआईएम और कांग्रेस पार्टी तो चुनावी मैदान में हैं ही। चुनाव में बीजेपी की आक्रामकता ने लोगों को हैरान कर रखा है। भारत के गृहमंत्री अमित शाह के अलावा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तक वहां प्रचार और रोड शो कर चुके हैं, तो वहीं भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपने विशेष अंदाज़ में न सिर्फ भाषण दिया, बल्कि रोड शो भी किया। योगी आदित्यनाथ ने तो प्रचार में यह तक कह दिया कि उनकी पार्टी सत्ता में आने पर हैदराबाद का नाम तक बदल सकती है। इसके अलावा बीजेपी के कई केंद्रीय कैबिनेट मंत्री जैसे स्मृति ईरानी, प्रकाश जावड़ेकर भी वहां प्रचार के लिए जा चुके हैं। बीजेपी युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या तो वहीं डेरा डालकर बैठे हुए हैं। बीजेपी द्वारा हैदराबाद नगर निगम चुनाव में झोंकी जा रही भरपूर ताक़त को देखते हुए एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी बीजेपी पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि, "अब तो सिर्फ ट्रम्प का ही आना बाक़ी रह गया है।"
अब सवाल यह उठता है कि बीजेपी और ख़ासकर भारतीय प्रधानमंत्री मोदी और उनके सबसे क़रीबी एवं भारत के गृहमंत्री अमित शाह को इस निकाय चुनाव से ऐसी कौन सी उम्मीदें दिख रही है, जो उन्होंने इस चुनाव में अपनी पूरी ताक़त झोंक थी। बीजेपी के कई शीर्ष नेता ऑफ द रिकॉर्ड इस बात को स्वीकार करते हैं कि टीआरएस और एआईएमआईएम के गढ़ में पैठ जमाना आसान नहीं है लेकिन पिछली लोकसभा चुनाव में मिली जीत से बीजेपी का आत्मविश्वास बढ़ा है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हुई थी जबकि एक साल बाद ही लोकसभा चुनाव में उसने चार सीटें जीत लीं जबकि कांग्रेस पार्टी को सिर्फ तीन सीटें और एआईएमआईएम को सिर्फ एक सीट हासिल हुई थी। यही नहीं, बीजेपी की उम्मीदें तब और ज़्यादा बढ़ गईं जब पिछले दिनों उसने इसी साल नबंवर की शुरुआत में दुब्बाक विधान सभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में जीत हासिल की। यह सीट टीआरएस विधायक के निधन से खाली हुई थी और टीआरएस ने उनकी पत्नी को ही टिकट दिया था लेकिन बीजेपी उम्मीदवार ने उन्हें हरा दिया था। भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव और हैदराबाद नगर निगम चुनाव के प्रभारी भूपेंद्र यादव कहते हैं, "बीजेपी यहां इतनी मज़बूती से अपनी दावेदारी क्यों पेश कर रही है, यह सवाल बेमानी है। जब हम त्रिपुरा जीत सकते हैं, तेलंगाना में चार लोकसभा सीट जीत सकते हैं, तो नगर निगम चुनाव क्यों नहीं जीत सकते हैं। यहां की जनता टीआरएस के शासन को देख रही है और उससे मुक्ति पाना चाहती है। बीजेपी की ओर वह आशा भरी निगाहों से देख रही है और हम यहां की जनता की सेवा करने को तत्पर हैं।"
दिल्ली में बीजेपी के एक बड़े नेता नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि हैदराबाद नगर निगम चुनाव में पार्टी त्रिपुरा जैसे चमत्कार की उम्मीद तो नहीं कर रही है लेकिन वह इस चुनाव के माध्यम से ख़ुद को टीआरएस का विकल्प बनने की कोशिश कर रही है। यानी, बीजेपी इस उम्मीद में है कि वह कांग्रेस पार्टी को निगम चुनाव में शून्य पर ला दे और फिर अगली बार उसके निशाने पर सिर्फ टीआरएस रहेगी। हैदराबाद में रह रहे एक सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि बीजेपी की अचानक आक्रामकता यह बता रही है कि उसकी निगाह में हैदराबाद निगम चुनाव नहीं, बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव है जहां वह अपनी मज़बूत दावेदारी पेश करने की कोशिश में है। समाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि, " भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार यह मानते हैं कि टीआरएस के नेता और मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव को टार्गेट करके बीजेपी अपना रास्ता बनाने की कोशिश में है। बीजेपी इस चुनाव में न सिर्फ बड़ा निवेश कर रही है और बड़े नेताओं से प्रचार करा रही है, बल्कि चुनाव के मुद्दों को भी अपनी तरह से हैंडल कर रही है। नगर निगम के चुनाव आमतौर पर स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं और दूसरी पार्टियों के नेता बिजली, पानी, सड़क, कूड़ा जैसे मुद्दों पर लड़ भी रहे हैं। आमतौर पर इन चुनावों में राज्य के बड़े नेता भी प्रचार करने से बचते हैं लेकिन बीजेपी ने न सिर्फ बड़े नेताओं को प्रचार में उतारा बल्कि प्रचार को अपने एजेंडे के इर्द-गिर्द रखने की कोशिश की। हमेशा की तरह हैदराबाद नगर निगम चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने धर्म, मंदिर-मस्जिद, पाकिस्तान और शहरों और मोहल्लों के नाम बदलने की ज़्यादा बात की है और उसका चुनाव प्रचार में भी यही मुख्य मुद्दा रहा। अब देखना होगा कि चार दिसंबर को बीजेपी अपने इन मुद्दों के साथ हैदराबाद के नगर निगम चुनाव में कितनी सफलता प्राप्त कर पाएगी।? (RZ)
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