कार्यक्रम आज की बातः किसान आंदोलन को लेकर मोदी सरकार ने की ऐसी चूक कि जिसने आंदोलन को देश व्यापी और वैश्विक बना दिया
(last modified Sun, 14 Feb 2021 14:16:15 GMT )
Feb १४, २०२१ १९:४६ Asia/Kolkata

2014 और उसके बाद 2019 के आम चुनावों में बहुमत हासिल करने के बाद, नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने कई ऐसे फ़ैसले लिए और क़ानून पारित किए जिन पर जमकर विवाद हुआ और विरोध प्रदर्शन हुए। नोटबंदी, जीएसटी, ट्रिपल तलाक़, आर्टिकल 370 और सीएए/एनआरसी जैसे विवादास्पद मुद्दों का विरोध तो हुआ, लेकिन मोदी की हिंदुत्ववादी लोकप्रिय सरकार के ख़िलाफ़ यह विरोध जनांदोलन का रूप नहीं ले पाया।

वैसे भी इन पांच फ़ैसलों में से तीन का संबंध, सीधे तौर पर देश की मुस्लिम अल्पसंख्य आबादी से था, जिससे कहीं न कहीं बीजेपी को बहुसंख्यक हिंदुओं को पोलाराइज़्ड और लामबंद करने में मदद मिल रही थी। भारत के वरिष्ठ राजनीतिक टीकाकार तसलीम रहमानी कहते हैं कि बीजेपी की मुख्य नीति ही यही है कि वह भारत को हिन्दू राष्ट्र की ओर ले जाना चाहते हैं।  पोलाराइज़ेशन और लोकप्रियता की लहरों पर सवार मोदी सरकार ने सितम्बर 2020 में देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी माने जाने वाले कृर्षि क्षेत्र में व्यापक सुधारों के नाम पर तीन क़ानून पारित किए। इन क़ानूनों का देश के कमज़ोर विपक्ष और किसान संगठनों ने शुरू से ही विरोध किया, लेकिन सरकार ने इस विरोध को भी दूसरे अन्य विरोधों की तरह हैंडल करने की कोशिश की। सरकार ने सबसे पहले विरोध की आवाज़ों को नज़र अंदाज़ करने की नीति अपनाई, ताकि विरोध करने वाले थक हारकर अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी की उलझनों में व्यस्त हो जायें और समय का पहिया आगे बढ़ जाए। लेकिन जब विरोध की यह आवाज़ें इतनी ऊंची होने लगीं कि दिल्ली में बैठे शासकों के कानों से टकराने लगीं तो उन्होंने इन्हें दबाने के लिए कई नुस्ख़ों का इस्तेमाल किया। जब हर हर्बा नाकाम हो गया तो 26 जनवरी की हिंसा और लाल क़िले पर ख़ालसा झंडा लहराने की घटना से सरकार को काफ़ी उम्मीद हो गई। 28 जनवरी की शाम को पुलिस व प्रशासन पूरी तरह से कील कांटों से लैस होकर दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचा और उसने पिछले दो महीनों पुराने किसानों के धरना प्रदर्शनों को समेटने की क़वायद शुरू कर दी। लेकिन इस दौरान किसान नेता राकेश टिकैत के आंसूओं और किसानों से भावनात्मक अपील ने बाज़ी पलट दी। इसके बाद किसान आंदोलन में न केवल नई जान पड़ गई, बल्कि यह पहले से कहीं अधिक व्यापक हो गया।

सरकार ने जब बाज़ी पलटते हुए देखी तो किसानों को डराने और धमकाने के लिए धरना स्थलों के नज़दीक कटीले तार और बड़ी बड़ी कीलें ठोंक दीं। सरकार का यह पैंतरा भी फ़ेल हो गया, बल्कि किसी ख़तरनाक अंतरराष्ट्रीय सीमा का मंज़र पेश कर रही इन तस्वीरों ने आंदोलन को कुचलने की सरकार की योजना के ताबूत में आख़िरी कील ठोंक दी और आंदोलन को देश व्यापी बनाने के साथ साथ एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना दिया। सरकार द्वारा किसानों और पत्रकारों की गिरफ़्तारियां तथा धरना स्थलों पर इंटरनेट सेवाओं का बंद करना, मानवाधिकारों का मुद्दा बन गया, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना शुरू हो गई और विश्व की कई नामी-गिरामी शख़्सियतों ने ट्वीट करके आंदोलनकारी किसानों से सहानुभूति जताई। अमरीकी पॉप सिंगर रिहाना और पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट्स पर मोदी सरकार की हद से ज़्यादा कड़ी प्रतिक्रिया ने आग में घी डालने का काम किया, जिसके बाद विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त कई हस्तियां, इस आंदोलन से जुड़ गईं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मीडिया और सोशल मीडिया पर इसकी चर्चा होने लगी।  वहीं भारत के कट्टरपंथी हिंन्दू संगठन हालीवुड सेलिब्रिटीज़ द्वारा किसान आंदोलन का समर्थन करने से भड़क गए हैं और उन्होंने दिल्ली में रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग सहित कई सेलिब्रिटीज़ के पुतले जलाए और नारे लगाए।  संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इस आंदोलन पर टिप्पणी से मोदी सरकार निश्चित रूप से अधिक असहज महसूस कर रही होगी, लेकिन उसने पहले की ग़लतियों से सबक़ लेते हुए इस पर कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं जताई है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संस्था ने किसान आंदोलन को लेकर अधिकतम संयम बरतने की अपील करते हुए ऑफ़लाइन और ऑनलाइन दोनों जगह शांतिपूर्ण तरीक़े से इकट्ठा होने और अभिव्यक्ति की आज़ादी के सम्मान पर बल दिया है।

अमरीकी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस द्वारा भारतीय किसानों के आंदोलन के मुद्दे को लगातार उठाए जाने ने भी मोदी सरकार को काफ़ी हद तक परेशान कर दिया है। यह परेशानी भारतीय विदेश मंत्रालय के बयान और बीजेपी के आईटी सेल की ट्रोलिंगो से कि जिसे ट्रोल आर्मी भी कहा जाता है, बख़ूबी समझी जा सकती है। विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि सोशल मीडिया पर बड़ी हस्तियों को ज़िम्मेदाराना व्यवहार करना चाहिए। वहीं मीना हैरिस का कहना है कि ट्रोलिंग उन्हें सच्चाई का साथ देने से नहीं रोक सकती। उन्होंने अपने एक ट्वीट में लिखा कि यह कोई संयोग नहीं है कि एक महीने से भी कम समय पहले दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र पर हमला हुआ था और अब हम सबसे बड़ी आबादी वाले लोकतंत्र पर हमला होते हुए देख रहे हैं। यह एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। हम सभी को भारत में इंटरनेट शटडाउन और किसान प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षाबलों की हिंसा को लेकर नाराज़गी ज़ाहिर करनी चाहिए। विश्व ख्याति प्राप्त कुछ हस्तियों द्वारा सोशल मीडिया पर किसान आंदोलन के समर्थन की काट के लिए भारतीय विदेश मंत्रालय ने दो हैशटैग भी शेयर किए, जिसके बाद भारत सरकार के मंत्रियों समेत कई खिलाड़ियों और फ़िल्मी हस्तियों ने भी सरकार के समर्थन में ट्वीट किए।

वहीं कांग्रेस नेता शशि थरूर ने विदेश मंत्रालय की इस हरकत की आलोचना करते हुए कहा है कि मोदी सरकार की हठधर्मी और अलोकतांत्रिक रवैए की वजह से, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को नुक़सान पहुंच रहा है। इसकी भरपाई भारतीय सेलिब्रिटी द्वारा सरकार के समर्थन में ट्वीट कराने से नहीं की जा सकती है। इस बीच भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को राज्य सभा में राष्ट्रपति के भाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए जहां उन्होंने एक बार फिर आंदोलनकारी किसानों को वार्ता का निमंत्रण दिया वहीं इशारों-इशारों में उन्होंने भी विदेशी हस्तियों द्वारा किए गए ट्वीट पर भी कटाक्ष किया। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि किसान आंदोलन के ख़िलाफ़ लड़ाई में मोदी सरकार अब तक हर मोर्चे पर नाकाम रही है, यहां तक कि मीडिया और सोशल मीडिया के क्षेत्र में जहां बीजेपी को अजय माना जाता रहा है, यह सरकार पिछड़ती हुई नज़र आ रही है। किसान बनाम सरकार के बीच इस लड़ाई में किसानों द्वारा 6 फ़रवरी को देश भर में 3 घंटे के सफल चक्का जाम ने सरकार को यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि अगर यह लड़ाई और लम्बी खिंचती है तो किसानों के तरकश में अभी कई और ऐसे तीर हैं, जो सरकार की हर चाल पर पानी फेर सकते हैं।

 

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